कहाँ वो मंदिर कहाँ वो मस्जिद कहाँ सुनाया नया फ़साना कहाँ हक़ीक़त छुपा के आये ख़ुशी तुम्हारी झलक रही है किसे मुहब्बत जता के आये ख़ुदा कहाँ से मिला बताओ किसी
कहाँ वो मंदिर कहाँ वो मस्जिद
कहाँ सुनाया नया फ़साना कहाँ हक़ीक़त छुपा के आये
ख़ुशी तुम्हारी झलक रही है किसे मुहब्बत जता के आये
कहाँ वो मंदिर कहाँ वो मस्जिद कहाँ नमाज़ी कहाँ पुजारी
ख़ुदा कहाँ से मिला बताओ किसी का दिल जब दुखा के आये
चमक रहा है बजार रौशन मगर यहाँ पे है खोखला सब
ख़रीदा क्या है क्या बेच कर के क्या भाव अपना लगा के आये
वहाँ से खेला है तय सभी का वो जैसा चाहेगा वो ही होगा
ज़रा सा ताकत मिली तुम्हे थी सो रौब पूरा बता के आये
अभी भी कोठी की बात करते अभी भी दौलत को गिन रहे हो
बताओ अपनी ठगी की गठरी कहाँ कहाँ से उठा के आये
वंदना
2)ग़ज़ल
बहुत ज़रूरी था
दर्द होना बहुत ज़रूरी था
मेरा रोना बहुत ज़रूरी था
नींद की गोलियाँ कई खा ली
रात सोना बहुत ज़रूरी था
मै अकेले सँभल नहीं पायी
तेरा होना बहुत ज़रूरी था
फूल सा मन कुचल के तुमको ही
काँटे बोना बहुत ज़रूरी था
ज़िंदा रहना मरे के जैसे यूँ
लाश ढोना बहुत ज़रूरी था
वंदना
3) ग़ज़ल🍁
गुमान होता है
जिसपे हमको गुमान होता है
जान होता जहान होता है
पीर का है इलाज संभव क्या
कोई कह दे निदान होता है
बोल उठती है ज़िंदगी थककर
रोज़ क्यों इम्तिहान होता है
चोट लगती नहीं गले पर यूँ
खुदकुशी का निशान होता है
वंदना
4)ग़ज़ल_🍂
संसार है ये
समझ पायी नहीं संसार है ये
दिखावे का सजा बाज़ार है ये
बिना जाने हुआ क्या हादसा था
हमे कहने लगे बीमार है ये
गिनाते जब भी वो शोहरत बुलंदी
मै कह उट्ठी हूँ की बेकार है ये
दरारें भरने में उसने अचानक
बना दी ऊँची सी दीवार है ये
घुटन से दम नहीं घुटता हमारा
किसी ने दे दिया उपहार है ये
वंदना
5)ग़ज़ल_
ख़त्म करके
दिखावे का तमाशा ख़त्म करके
सभी झूठा दिलासा ख़त्म करके
चली जाऊँगी इक दिन छोड़कर सब
यहाँ से जाने क्या- क्या ख़त्म करके
बड़ा होने की जल्दी में हमेशा
जिये अंदर का बच्चा ख़त्म करके
सभी फल हैं सलामत पेड़ के अब
वहाँ से हर परिंदा ख़त्म करके
निभाना सीख जाओगे मोहब्बत
हमें पूरा का पूरा ख़त्म करके
वंदना
6) पंडित_
जाति अपनी भुनाओगे पंडित
सर पे टीका लगाओगे पंडित
काहे छुपकर शराब पीते हो
पीढ़ियों को बताओगे पंडित
जाति जिनके न साथ खाते हो
लड़कियाँ वो फिराओगे पंडित
बेटे के अब...दहेज में बोलो
कीमतें क्या लगाओगे पंडित
है जमी मैल की परत मोटी
जाके गंगा नहाओगे पंडित
राम नामी का आवरण रखकर
पाप सारे छुपाओगे पंडित
दान फिर मंदिरों में बाँटोगे
पहले ठगकर कमाओगे पंडित
वंदना
7)ग़ज़ल
चाहिए आसमान
चाहिए आसमान था पूरा
ताकतों पर गुमान था पूरा
रोक पाया नहीं वो मौतों को
जो दवा की दुकान था पूरा
आप की खुशनसीबी थी ये भी
रोटियाँ थी...मकान था पूरा
जो भी कह दे गुनाह है उसका
आदमी बदज़बान था पूरा
जो दिखा भी नहीं छपा भी ना
मुफ़लिसों का बयान था पूरा
वंदना
8)ग़ज़ल
किया अपराध किसने है
किया अपराध किसने है सज़ा किसने चुकाई है
हकीकत में ये दुन्या अब कहाँ पर ले के आई है
गली में मौत मिल सकती सड़क पर मौत मिल सकती
घरों में कैद रहने पर सभी की अब भलाई है
कहीं हालात बदतर हैं कहीं तस्वीर धुँधली है
तबाही कह रही घातक.... उदासी खूब छाई है
मरे कितने बचे कितने अभी ये आंंकड़े बाकी
दिनो दिन मामले बढ़ते नहीं जल्दी रिहाई है
कहाँ मंगल कहाँ हम चाँद पर जीवन तलाशे थे
यहाँ संकट धरा पर आ गया अब ये दुहाई है
वंदना
9)ग़ज़ल
ना सीखना कुछ है
मिले जो दंभ से , हुशियार से ना सीखना कुछ है
हमें अब आपके किरदार से ना सीखना कुछ है
हकीकत हम कहेंगे तो बड़प्पन में न मानोगे
तुम्हारे अत्ति के व्यवहार से ना सीखना कुछ है
जड़े हैं खोखली मानक गढ़े हैं सिर्फ निजता के
हमें है रंज इस मेयार से ना सीखना कुछ है
गले लगकर गले को रेतने का जो सलीका है
तुम्हारी दोमुही उस धार से ना सीखना कुछ है
मलिन है मन तो क्यों बरसा रहे हो नेह के बादल
निभाने को महज व्यापार से ना सीखना कुछ है
वंदना
10)ग़ज़ल
न घाटा मुनाफ़ा
न घाटा मुनाफ़ा है होता लगी में
तमाशा बनाओगे क्या बेख़ुदी में
उदासी है बिखरी नमी आँख में है
गुलाबों का मौसम नहीं ज़िंदगी में
ये किरदार मेरा मुझी में मिलेगा
तलाशो नहीं अब सुनो तुम किसी में
हमें गर मिटाकर सूकूं तुमको मिलता
चलो हम भी ख़ुश हैं तुम्हारी ख़ुशी में
लिखे को समझकर हमें मत समझना
कहा जाता सब कुछ नहीं शाइरी में
वंदना
अहमदाबाद
11)ग़ज़ल
मालिक के हिस्से है
नदी, नहरें, भरा तालाब, नल मालिक के हिस्से है
तुम्हे है प्यास पानी की वो जल मालिक के हिस्से है
सड़क पर बैठकर कहने का हक़ तुमको दिया जाता
तुम्हारे खेत की फसलों का हल मालिक के हिस्से है
हमेशा ही यहाँ गोदान का होरी ही मरता है
तिहत्तर साल का पूरा असल मालिक के हिस्से है
नई उम्मीद है जागी के चीखेंगे अदालत तक
के आगे चीख़ पर लेकिन अमल मालिक के हिस्से है
अनाजों के नए गोदाम जिनके हाथ में होंगे
सभी ये जानते हैं वो महल मालिक के हिस्से है
वंदना
🌸🌸कुछ शेर
1) मिलावट इस तरह किरदार में अच्छी नहीं सुन लो
जताना कुछ , बताना कुछ, दिखाना कुछ, निभाना कुछ
2) जिस दिन साथ हमारा छूटा
तन्हा तन्हा रह जाओगे
3) बताओ तो ये कैसा प्यार देते हैं बड़े बरगद
नये पौधों को ढ़ककर मार देेते हैं बड़े बरगद
4)हमारा जिक्र है उतना ही दिलकश
जो तुमने नज़्म में लिक्खा हुआ है
5) हमारी तानाशाही बढ़ गई क्या
हमें सरकार कहने लग गये हो
6) तोड़ देनी थी रीत रस्में सब
दिल नहीं तोड़ने का वादा था
- वंदना तिवारी
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