कलाकार का विश्व हृदय पाठ का सारांश प्रश्न उत्तर लेखक कमलेश महादेवी वर्मा जी के यहाँ बैठे, तो महादेवी जी लेखक के ठहरने के संबंध में जिज्ञासा प्रकट कीं
कलाकार का विश्व हृदय - डॉ. पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’
कलाकार का विश्व हृदय पाठ का सारांश - प्रस्तुत पाठ या साक्षात्कार कलाकार का विश्वह्रदय , डॉ. पदम् सिंह शर्मा ‘कमलेश’ जी के द्वारा लिखित है । इस साक्षात्कार के माध्यम से कवि के द्वारा हिन्दी में छायावाद की वेदना और करुणा की अमर गायिका के रूप में स्थापित महादेवी वर्मा के जीवन के कतिपय अनछुए पक्षों को उभारने का प्रयास किया गया है । लेखक के अनुसार, महादेवी जी एक सच्ची कलाकार हैं, क्योंकि साहित्य-सृजन उनका लक्ष्य नहीं अपितु आम जनता की सेवा करना भी उनका लक्ष्य है।
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, एक बार जब लेखक कमलेश महादेवी वर्मा जी के यहाँ बैठे, तो महादेवी जी लेखक के ठहरने के संबंध में जिज्ञासा प्रकट कीं । लेखक ने जवाब में बोला कि निराला जी के यहाँ ठहरा हूँ, तो इस पर महादेवी जी बोलीं – तब तो आप घर ही में ठहरे हैं । लेखक ने महसूस किया कि वाकई महादेवी जी के ह्रदय में निराला जी के लिए बहुत सम्मान है । इसके पश्चात्, निराला जी की प्रशंसा करते हुए महादेवी जी कहती हैं – ऐसी प्रतिभा हिन्दी में नहीं है । निराला जी का रहन-सहन निम्न स्तर का के भारतीय जन का है और प्रतिभा ऐसी है कि क्या कहा जाए ? उन्होंने हिन्दी में बहुत कुछ लिखा है, पर हिन्दी में उनकी कद्र नहीं हुई । इसका कारण भी स्पष्ट है। निराला जी साधक हैं और हिन्दी में साधक होना मानो छोटा होना है ।
महादेवी वर्मा जी देश के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और साहित्यिक परिवर्तन पर वे कितनी गहराई से विचार करती हैं, इसका पता लेखक को तब चला जब उन्होंने रेडियो और हिन्दुस्तानी के साथ गाँधी जी की इस बात की आलोचना की कि जो उर्दू नहीं जानते वो देशभक्त नहीं हैं । महादेवी वर्मा जी कहती हैं कि मुझे अब प्रतीत होती है कि हिन्दुस्तानी प्रचलित होगी और हिन्दी लेखकों को संघर्ष पर संघर्ष करने पड़ेंगे पर संघर्ष हमारा प्राण है और वह हमें करना है , आगे भी करेंगे । जीवित रहने के लिए संघर्ष करना हमारे विद्रोही स्वभाव की विशेषता है ।यह विद्रोह हमने पढ़ते-पढ़ते ही सीख लिया था । मैं महिला विद्यापीठ में इसी विद्रोह को क्रियात्मक रूप दे रही हूँ । इस क्रियात्मक जीवन में मुझे व्यस्त रहना पड़ता है और मैं उस व्यस्तता में ही जीवन का आनंद खोजती रहती हूँ ।
लेखक ने जब महादेवी जी पूछा कि – आप साहित्य सम्मेलन में कभी सम्मिलित नहीं होतीं, इसका क्या कारण है ? आप जैसे वर्तमान हिन्दी के उन्नायक कवियों के अभाव में सम्मलेन विशेषकर कवि-सम्मलेन फीका ही रहता है । लेखक के सवाल का जवाब देते हुए महादेवी जी कहती हैं – इस तरह के सम्मलेन में नैतिकता का अभाव है और नई पीढ़ी को उसका शिकार होना पड़ता है । पुरानी परंपरा के पोषक अपने ह्रदय-परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते । इसके पश्चात लेखक के पूछने पर महादेवी जी अपने बचपन के जीवन के बारे में बताते हुए कहती हैं – मेरा बचपन बहुत अच्छा बीता । इसका कारण यह है कि हमारे यहाँ कई पीढ़ियों से कोई लड़की नहीं थी । न मेरे बाबा के कोई बहन थी, न मेरे पिता के । मैं अपने बाबा के तप का फल हूँ ।
महदेवी वर्मी जी की माता जी एक धार्मिक महिला थीं । वे ब्रजभाषा के पद बनाती थीं और उसे गाती भी थीं । कहीं न कहीं लिखने का मूल भाव उन्हें अपनी माता से ही प्राप्त हुई और इस प्रकार महादेवी जी भी लिखना ब्रजभाषा में ही आरंभ किया । बाद में महादेवी जी पिंगल-शास्त्र से हरिगीतिका छंद ढूँढ निकाला और उसी अनुरूप लिखना आरंभ किया । इसके पश्चात् जब लेखक ने महादेवी जी से पूछा कि वे कौन से देशी-विदेशी लेखक हैं, जिन्हें आप अधिक पसंद करती हैं ? जवाब में महादेवी जी ने बोला – विदेशी लेखक मुझे कोई पसंद नहीं है । मेरा सबसे प्रिय ग्रंथ तो ऋग्वेद है । उसकी प्रार्थनाएँ मुझे बहुत प्रिय है ।उसके बाद मुझे उपनिषद प्रिय हैं । संस्कृत कवियों में कालिदास का रघुवंश मुझे प्रिय है और उसका कुछ अनुवाद भी मैंने किया है ।लेकिन अपेक्षाकृत भवभूति का उत्तर रामचरित अधिक प्रिय है ।मैं तो तुलसी की अपेक्षा कबीर को अधिक पसंद करती हूँ। इस प्रकार विदेशी प्रभाव मेरे ऊपर बिलकुल भी नहीं है ।
अगले प्रश्न के रूप में जब लेखक ने पूछा कि – छायावाद और रहस्यवाद के संबंध में आपके क्या विचार हैं ? तब महादेवी जी ने जवाब दिया – इतनी जल्दी कुछ नहीं कहा जा सकता। छायावाद को रहस्यवाद की प्रथम सीढ़ी मानती हूँ। वह रोमांटिसिज्म की परिणति कहीं नहीं हुई। पर छायावाद की परिणति रहस्यवाद में होती है। इसके पश्चात लेखक ने महादेवी जी से पूछा कि – आपको कौन सी रचना लिखकर सर्वाधिक संतोष हुआ है ? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि – मुझे अपनी कोई रचना लिखकर संतोष नहीं हुआ। सतोष होना असंभव बात है, क्योंकि यदि संतोष हो जाए तो कोई कलाकार फिर लिखे ही क्यों ? लेखक पुनः महादेवी जी से पूछते हैं – आपको चित्रकला से अधिक प्रेम है या काव्यकला से ? इसके जवाब में महादेवी जी प्रसन्नतापूर्वक बोलती हैं – काव्यकला मेरी सर्वाधिक प्रिय वस्तु है, चित्रकला उतनी नहीं।
महादेवी जी कहती हैं कि – मेरा मन क्रियात्मक कार्यों में अधिक रमता है। साहित्य सृजन मेरे लिए उतने महत्त्व का नहीं जितना कोई क्रियात्मक जनोपयोगी कार्य। मुझे यदि गर्मियों में पहाड़ पर जाना पड़ता है तो भी सेवा भावना से ही जाती हूँ। वहां भी दवा-दारू करती हूँ। मैं जानना चाहती हूँ कि वे लोग कैसे रहते हैं। जब लेखक ने महादेवी जी से यह पूछा कि लोग आपको आधुनिक काल की मीरा कहते हैं। क्या आप इस बारे में कुछ कहना चाहेंगी ? इस सवाल पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए महादेवी जी जवाब देती हैं – मीरा एक महान स्त्री थी और उसे बहुत ज्यादा संघर्ष भी करना पड़ा था। वह अत्यधिक दण्डित हुई थी। मुझे या किसी स्त्री को वैसा दंड नहीं मिला। हमारा संघर्ष उसके सामने कुछ भी नहीं। अंत में महादेवी जी इतना कहते-कहते मौन हो गई...।
कलाकार का विश्वह्रदय पाठ के प्रश्न उत्तर
अभ्यास-प्रश्न
बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न-1 – महादेवी लेखक के लिए किस संबंध में चिंतित थी ?
उत्तर- ठहरने
प्रश्न-2 – इस साक्षात्कार में साधक शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?
उत्तर- निराला
प्रश्न-3 – इंदौर कवि सम्मलेन के सभापति कौन थे ?
उत्तर- गांधी जी
प्रश्न-4 – महादेवी ने बंगाल के अकाल पर कितने चित्र बनाए थे ?
उत्तर- साठ
प्रश्न-5 – महादेवी ने किस भाषा में लिखना प्रारंभ किया था ?
उत्तर- ब्रजभाषा
प्रश्नोत्तर
प्रश्न-1 – यह साक्षात्कार किसने, किसके साथ किया ?
उत्तर- यह साक्षात्कार डॉ. पदम् सिंह शर्मा ‘कमलेश’ ने महादेवी जी के साथ किया।
प्रश्न-2 – महादेवी जी महात्मा गाँधी की किस बात से सहमत नहीं थीं ?
उत्तर- महात्मा गाँधी ने हिन्दुस्तानी तालीमी संघ में हिन्दी वाले किसी आदमी को नहीं रखे थे, इसलिए महादेवी जी महात्मा गाँधी की उक्त बात से सहमत नहीं थीं।
प्रश्न-3 – महादेवी जी ने किस विषय पर 60 चित्र बनाए ?
उत्तर- महादेवी जी ने बंगाल के अकाल पर 60 चित्र बनाए।
प्रश्न-4 – महादेवी वर्मा ने निराला जी के बारे में लेखक को क्या बताया ?
उत्तर- महादेवी वर्मा ने निराला जी के बारे में लेखक को बताया कि – ऐसी प्रतिभा हिन्दी में नहीं है। निराला जी का रहन-सहन निम्न स्तर का के भारतीय जन का है और प्रतिभा ऐसी है कि क्या कहा जाए ? उन्होंने हिन्दी में बहुत कुछ लिखा है, पर हिन्दी में उनकी कद्र नहीं हुई। इसका कारण भी स्पष्ट है। निराला जी साधक हैं और हिन्दी में साधक होना मानो छोटा होना है।
प्रश्न-5 – कवी सम्मेलनों में न जाने के लिए महादेवी जी क्या तर्क देती हैं ?
उत्तर- कवी सम्मेलनों में न जाने के लिए महादेवी जी यह तर्क देती हैं कि सम्मलेन में नैतिकता का अभाव है और नई पीढ़ी को उसका शिकार होना पड़ता है। पुरानी परंपरा के पोषक अपने ह्रदय परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते।
प्रश्न-6 – महादेवी जी का सर्वप्रिय ग्रंथ कौन-सा है और क्यों ?
उत्तर- महादेवी जी का सर्वप्रिय ग्रंथ ‘ऋग्वेद’ है। क्योंकि महादेवी जी को ऋग्वेद की प्रार्थनाएं बहुत प्रिय हैं।
प्रश्न-7 – महादेवी वर्मा का मन किन कार्यों में अधिक रमता है ?
उत्तर- महादेवी वर्मा का मन क्रियात्मक कार्यों में अधिक रमता है।
भाषा संरचना
प्रश्न-8 – विलोम शब्द लिखो –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं -
संतोष – असंतोष
अतीत – वर्तमान
संपन्न – विपन्न
दंड – पुरस्कार
जिंदा – मुर्दा
पसंद – नापसंद
यथार्थ – कल्पना
जीवित – अजीवित
सामान्य – आसामान्य
स्वीकार – अस्वीकार
प्रश्न-9 – भाववाचक संज्ञा बनाइए –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं -
सफल – सफलता
एकरस – एकरसता
प्रसन्न – प्रसन्नता
विविध – विविधता
सुंदर – सौन्दर्य
कलाकार का विश्व हृदय पाठ से संबंधित शब्दार्थ
सृजन – निर्माण
परिणति – समाप्ति
चिंतित – परेशान
विचरण – घूमना
क्रियात्मक – क्रिया करते हुए
चकित – हैरान
संकीर्णता – तंगदिली, छोटे विचारों का दायरा
तालीम – शिक्षा
प्रतिभा – बुद्धि
सूत्रधार – संचालक
पिंगलशास्त्र – छंद शास्त्र
धारावाहिक – लगातार रूप में
विश्वव्यापी – संसार में समाई हुई
अभाव – कमी ।
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