आचार्य रामचंद्र शुक्ल की निबंध शैली आचार्य रामचंद्र शुक्ल की निबंध शैली की विशेषताएं आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हिंदी के मूर्धन्य समालोचक निबंधकार कवि
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की निबंध शैली की विशेषताएं
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की निबंध शैली आचार्य रामचंद्र शुक्ल की निबंध शैली की विशेषताएं आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हिंदी के मूर्धन्य समालोचक ,साहित्यइतिहासकार ,निबंधकार एवं कवि हुए। आप ने हिंदी निबंध लेखन को ही एक नयी दिशा और गरिमा प्रदान नहीं की बल्कि हिंदी साहित्य के इतिहास को भी इतने सरल एवं वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया कि आज तक हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने वाला कोई विद्वान उनकी बनायीं सीमाओं को नहीं तोड़ पाया है।
हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं के विकास में आचार्य रामचंद शुक्ल जी का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। कविता ,गद्य ,निबंध ,आलोचना तथा साहित्य इतिहास लेखन में उनका स्थान अद्वितीय है। हिंदी निबंध लेखकों में उनका स्थान सर्वोच्च है और उनकी तुलना अंग्रेजी के श्रेष्ठ निबंध लेखक बेकन से की जाती है।
शुक्ल जी के निबंधों की विशेषताओं का अध्ययन हम निम्नलिखित दो शीर्षकों के अंतर्गत कर सकते हैं -
- विषयवस्तु सम्बन्धी विशेषताएं
- भाषा शैली विषयक विशेषताएं
विषय वस्तु सम्बन्धी विशेषताएँ
विषय वस्तु सम्बन्धी विशेषताएँ - आचार्य शुक्ल जी के निबंध मूलतः चिंतामणि के तीन भागों में संकलित है। ये निबंध दो प्रकार के हैं -
- मनोविकार सम्बन्धी
- साहित्य समीक्षा सम्बन्धी।
मनोविकार सम्बन्धी निबंधों में क्रोध ,घृणा। श्रद्धा और भक्ति तथा लोभ आदि को लिया जा सकता है। साहित्य समीक्षा सम्बन्धी निबंधों में सधारणकरण और व्यक्ति वैचित्र ,लोकमंगल की साधनावस्था तथा रसात्मक बोध के विविध स्वरुप निबंधों को लिया जा सकता है। तुलसी ,जायसी और सूर के काव्य ग्रंथों की लम्बी भूमिकाएं व्यावहारिक समीक्षा निबंधों का रूप धारण कर लेती हैं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के निबंधों में देश प्रेम अपने विविध रूपों में व्यक्त हुआ है। भारत के कण - कण से प्रेम ,यहाँ के जन - जन से स्नेह तथा यहाँ की सभ्यता और संस्कृति का गुण -गान इनके निबंधों में हुआ है। लोभ और प्रीति जैसे निबंध में भी वे देश प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए स्थान निकाल लेते हैं। आचार्य शुक्ल की मर्यादावादी दृष्टि उन्हें पश्चिम सभ्यता के कठोर आलोचक तथा भारतीयता के पक्षधर के रूप में सामने लाती है। समीक्षा के क्षेत्र में भी वे भारतीय काव्यशास्त्र के सिधान्तों को पश्चिम के सिधान्तों से कहीं अधिक महत्व देते हैं। समीक्षात्मक निबंधों में आपने कोरे शास्त्रवाद का समर्थन नहीं किया बल्कि सहृदयता एवं भावुकता के साथ साथ निष्पक्षता उनके निबंधों का श्रृंगार करती है।
मनोविकार सम्बन्धी निबंधों को मनोविज्ञान की आधुनिक खोजों से जोड़कर लिखने का सफल प्रयास आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किया। आपने मनोविकार सम्बन्धी निबंध कोरे मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित न होकर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक बोध से भी संपन्न है।
भाषा शैली विषयक विशेषताएं
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के निबंधों के महत्व को सभी विद्वानों ने स्वीकार किया है। हिंदी के बेकन कहे जाने वाले आचार्य शुक्ल के निबंधों की सर्वप्रथम विशेषता उनकी मौलिकता और ताजगी है। आचार्य शुक्ल चमत्कार उत्पन्न करने के लिए मौलिकता का समर्थन नहीं करते थे। उनकी मान्यताएं ,उनका विषय - विवेचन ,उनकी तर्क श्रृंखला ,उनकी व्यंगोक्ति तथा उनके द्वारा जुटाए गए सरस साहित्यिक उदाहरण ही उनके निबंधों को मौलिक बनाते हैं। वैक्तियक्ता उनकी निबंध शैली की दूसरी विशेषता है। उन्हें अपनी मान्यताओं पर पूर्ण विश्वास था और उनका यह विश्वास उनके लेखन में झलकता है। उनके निबंध ,किन्तु ,परन्तु की दुविधापूर्ण शैली नहीं अपनाते बल्कि ऐसा ही है ,ऐसा माना जाना चाहिए जैसे वाक्यों की विश्वास शैली में लिखे गए हैं। सुगठित परिभाषाएं ,सूत्र शैली तथा अणुवाक्यों का प्रयोग उनके गहन चिंतन एवं आत्म विश्वास का सूचक है। उनकी निबंध शैली को समास शैली कहा जा सकता है। वे संक्षिप्तता के पक्षधर थे। उनके कुछ निबंध बहुत लम्बे हैं परन्तु वहां यह विस्तार विषय की व्यापकता का परिणाम है न कि शैली के बिखराव का। आपके निबंधों में ह्रदय तथा बुद्धि का समुचित योग है।
आचार्य शुक्ल की निबंध शैली में व्यंग्त्मकता का गुण भी दृष्टव्य है। देश प्रेम निबंध में व्यंग की छटा देखिये। आप लिखते हैं -
"मोटे आदमियों ! तुम ज़रा दुबले हो जाते ,अपने अंदेशे से नहीं - तो न जाने कितनी ठठरियों में मांस चढ़ जाता। "
'प्रेम हिसाब - किताब नहीं है। हिसाब - किताब करने वाले भाड़े पर मिल सकते हैं ,पर प्रेम करने वाले नहीं।"
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के निबंधों की भाषा सामान्यतः तत्सम शब्दावली प्रधान संस्कृतनिष्ठ भाषा है परन्तु उनकी भाषा विषयानुसार बदलती भी रहती है। पारिभाषिक शब्दों का सृजन ,आणुवाक्यों की रचना ,काव्य - लालित्य से युक्त भाषा ,तुलनाओं द्वारा अपनी बात स्पष्ट करने की प्रवृत्ति तथा साम्य वैमष्य का सम्यक विवेचन उनकी निबंध शैली की विशेषताएं हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आचार्य शुक्ल के निबंधों की विषय वस्तु तथा भाषा शैली नवीनता लिए हुए है और हिंदी निबंध लेखन को उन्होंने बहुत ऊँचा उठाया है। मनोवैज्ञानिक निबंधों के क्षेत्र में आचार्य शुक्ल का योगदान अद्वितीय है।
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