सहर्ष स्वीकारा है कविता की व्याख्या सारांश प्रश्न उत्तर गजानन माधव मुक्तिबोध सहर्ष स्वीकारा है कविता की व्याख्या प्रश्न उत्तर saharsh swikara hai
सहर्ष स्वीकारा है कविता - गजानन माधव मुक्तिबोध
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सहर्ष स्वीकारा है कविता की व्याख्या भावार्थ
ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली ग़रीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़्ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए के पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है--
संवेदन तुम्हारा है !!
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि मुक्तिबोध जी कहते हैं कि उन्होंने जीवन को सहज भाव से जिया है। जीवन के हर दुःख सुख को उन्होंने समेटा है। कवि को अपने प्रिय का विश्वास हमेशा से रहा है। उनका मानना है कि मैंने अपनी ज़िन्दगी को खुले मन से जिया है इसीलिए मेरे जीवन में जो कुछ भी है ,जैसा भी है ,वह मेरी अपनी पसंद से है ,मैंने दिल से उसे स्वीकार किया है। मुझे हे प्रिय ! सदा यह विश्वास रहा है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी है ,जैसा भी है ,तुम्हे प्यारा होगा।
मैंने गरीबी पर गर्व किया है ,मैंने जीवन में गहरे अनुभवों को समेटा है ,मेरे पास विचारों का जो भी खजाना है ,मेरी कट्टरता और मजबूती ,मेरे भीतर की करुणा की नहीं यहाँ तक कि मेरा बनावटी व्यवहार भी मेरा अपना मौलिक है। हे प्रिय ! मेरे जीवन में ,इसके क्षण - क्षण में भी जो कुछ भी सजीव है ,जागृत है ,उसमें तुम्हारी संवेदना छुपी है ,तुम उसमें सदा हिस्सेदार रही हो।
कवि का कहना है कि उसके जीवन की मूल प्रेरणा उसकी प्रिय रही है। अटूट विश्वास में बंधे होने के कारण ही उसने जीवन में निस्संग होकर सब कुछ मन से स्वीकार किया है।
विशेष - प्रस्तुत पद्यांश में निम्नलिखित विशेषताएं हैं -
- मुक्त छंद में अर्थ की लय से युक्त प्रस्तुत अंश सुंदर बन पड़ा है।
- कवि अपनी प्रिया के विश्वास को जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्वीकार करता है।
जाने क्या रिश्ता है,जाने क्या नाता है
जितना भी उँड़ेलता हूँ,भर भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
व्याख्या - प्रस्तुत पद्यांश में कवि अपनी प्रिया से कहते हैं कि न जाने इस दुनिया से मेरा कैसा सम्बन्ध है ,कैसी आत्मीयता है कि जितना अधिक मैंने अपने ह्रदय की करुणा को इस पर उड़ेलता हूँ उतनी ही करुणा मेरे दिल में और अधिक उमड़ आती है। ना जाने मेरे ह्रदय क्यों इस संसार के प्रति ममता से उमड़ता रहता है। ना जाने मेरे ह्रदय में प्यार का कोई झरना लगा हुआ है अथवा इसमें मीठे पानी का स्रोत मेरे भीतर करुणा का यह स्रोत सदा बहता रहता है। हे प्रिय ! सदा तुम मेरे सम्मुख रहती हो। जिस प्रकार धरती से चाँद दूर रहता है और वह मुस्कराता है ठीक उसी प्रकार तुम भी मुझ से दूर रहकर मेरी ओर मुस्कराती रहती हो। तुम्हारा खिला हुआ चेहरा मुझे प्रिय है।
कवि का मानना है कि वे संसार से प्यार करते हैं क्योंकि उन्हें अपनी प्रियतमा का प्यार प्राप्त है। कवि के भीतर प्यार का स्रोत भी संभवतः उसकी प्रियतमा की ही देन है।
विशेष - प्रस्तुत पद्यांश में निम्नलिखित विशेषताएं हैं -
- प्रस्तुत पद्यांश में कवि आत्म - विश्लेषण करता प्रतीत होता है। यहाँ पर संदेह अलंकार भी है। कवि यह निर्णय नहीं कर पा रहा है कि उसके ह्रदय में ऐसा क्या क्या है जो उसे बार - बार प्यार से भर देता है।
- मुक्तक छंद में लिखी प्रस्तुत कविता में कवि ने प्यार को सबसे बड़ी प्रेरणा स्वीकार किया है।
- झरना और स्रोत कवि ह्रदय में उपजने वाले अक्षय भण्डार के सूचक है।
सचमुच मुझे दण्ड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर,चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मै, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता--
भीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गयी है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नही होती है !!!
व्याख्या - प्रस्तुत पद्यांश में कवि मुक्तिबोध अपनी प्रियतमा से कहते हैं कि वह उसे दंड दे ताकि वह उसे भूल सके। प्रगाढ़ स्नेह उसकी कमजोरी बन गया है इसीलिए कवि उसके बदले में दंड पाना चाहता है। कवि कहता है कि हे
प्रिये ! तुम मुझे सचमुच कठोर दंड दो ,बिछुड़ने की सजा दो। मैं तुम्हे भूल जाऊं और इस भूल को दक्षिणी ध्रुव के लम्बे अन्धकार की तरह मैंने अपने शरीर ,चेहरे और ह्रदय में पाल लूं। मैं तुम्हारे बिछुड़न में पूरी तरह अपने आपको भूल जाना चाहता हूँ। हे प्रिय ! तुम से घिरे रहने और ढके रहने का प्रकाश अब मुझ से सहा नहीं जाता है। तुम्हारी ममता के बादल की कोमलता मुझसे सही नहीं जाती है। जब कभी तुम्हारी ममता दिल में जागती है तो वह भीतर ही मुझे पीड़ा पहुँचाती है। तुम्हारे प्यार की छाया में सुरक्षित रहने के कारण मेरी आत्मा अत्यंत कमजोर और असहाय सी हो गयी है। मेरी आत्मा को नियति डराती है। मुझे सदा इस बात का भय लगा रहता है कि न जाने मेरा क्या होगा। मुझे अब सहानुभूति जताने वाली तथा मन बहलाने वाली आत्मीयता अच्छी नहीं लगती है। मेरी ह्रदय भविष्य की चिंता में छटपटाहट से भरी रहती है।
प्रिये ! तुम मुझे सचमुच कठोर दंड दो ,बिछुड़ने की सजा दो। मैं तुम्हे भूल जाऊं और इस भूल को दक्षिणी ध्रुव के लम्बे अन्धकार की तरह मैंने अपने शरीर ,चेहरे और ह्रदय में पाल लूं। मैं तुम्हारे बिछुड़न में पूरी तरह अपने आपको भूल जाना चाहता हूँ। हे प्रिय ! तुम से घिरे रहने और ढके रहने का प्रकाश अब मुझ से सहा नहीं जाता है। तुम्हारी ममता के बादल की कोमलता मुझसे सही नहीं जाती है। जब कभी तुम्हारी ममता दिल में जागती है तो वह भीतर ही मुझे पीड़ा पहुँचाती है। तुम्हारे प्यार की छाया में सुरक्षित रहने के कारण मेरी आत्मा अत्यंत कमजोर और असहाय सी हो गयी है। मेरी आत्मा को नियति डराती है। मुझे सदा इस बात का भय लगा रहता है कि न जाने मेरा क्या होगा। मुझे अब सहानुभूति जताने वाली तथा मन बहलाने वाली आत्मीयता अच्छी नहीं लगती है। मेरी ह्रदय भविष्य की चिंता में छटपटाहट से भरी रहती है।
कवि का कहना है कि सीमातीत प्यार पा कर वह अत्यधिक कोमल और कमजोर हो गया है। कवि इसे अपनी कमजोरी समझता है इसीलिए अपनी प्रियतमा से प्रार्थना करता है कि वह उसे इस कमजोरी का दंड दे ,उसे अपने से दूर कर दे। कवि को अपने ऊपर विश्वास नहीं रह गया है और वह भविष्य से आशंकित है।
विशेष - प्रस्तुत पद्यांश में निम्नलिखित विशेषताएं हैं -
- अतुकांत ,मुक्तक छंद का सुन्दर उदाहरण है।
- ममता को बादल से उपमित किया है।
- कवि प्यार को अपनी शक्ति बनाना चाहता है ,कमजोरी नहीं।
- कवि की भावुकता और उसकी गहन चिंतन एक साथ इस पद्यांश में झलकता है।
- रूपक एवं अनुप्रास अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है।
सचमुच मुझे दण्ड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बाद्लों में
बिलकुल मैं लापता!!
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो ज़िन्दगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
व्याख्या - प्रस्तुत पद्यांश में कवि गजानन माधव मुक्तिबोध अपनी प्रियतमा से विनती करते हैं कि वह उसे पाताल लोक में ,अकेले रहने की सजा दे। आप लिखते हैं कि हे प्रिये ! तुम मुझे ऐसा दंड दो कि मैं पाताल की अँधेरी गुफा ,कन्दारों में अथवा धुएं के बादलों में लापता हो जाऊं। कवि सोचता है कि क्या मेरे लिए गायब हो जाना संभव है। वहां भी तो तुम्हारे ही सहारे जीवित रहूँगा। मैं हर स्थान पर तुम्हारे साथ ही जीता हूँ। मेरा जो कुछ भी है अथवा मेरा होने वाला है अथवा जो कुछ मुझे प्राप्त होना संभव है वह सब तुम्हारे ही कारण है। मेरे जीवन में जो कुछ भी है वह सब तुम्हारे ही कारण से है। आज तक ज़िन्दगी में मुझे जो कुछ मिला है उसे मैंने हंसी - ख़ुशी से स्वीकार किया है। मैंने जो कुछ भी पाया है वह तुम्हारी कृपा से ही पाया है इसीलिए तुमने भी मुझे सम्पूर्णता में प्यार किया है।
कवि के स्पष्ट किया है कि उसकी प्रियतमा उसे इसीलिए चाहती है क्योंकि दोनों के विचारों तथा भावों में समानता है। कवि स्पष्ट करता है कि उसके लिए अकेलापन प्राप्त नहीं हो सकता है क्योंकि उसकी प्रियतमा उसकी आत्मा में बस्ती है।
विशेष - प्रस्तुत पद्यांश में निम्नलिखित विशेषताएं हैं -
- कवि की फैंटसी महोहर है।
- भाषा सरल एवं शैली बातचीत की है।
सहर्ष स्वीकारा है कविता का सारांश मूल भाव
सहर्ष स्वीकारा है कविता गजानन माधव मुक्तिबोध जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध कविता है। प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन को सहज भाव से जिया है। जीवन के हर दुःख सुख को उन्होंने समेटा है। आपको अपने प्रिय का विश्वास सदा प्राप्त रहा है। वे संसार से प्यार करते हैं क्योंकि उन्हें अपनी प्रियतमा से प्यार प्राप्त है। कवि के भीतर प्यार का स्त्रोत भी संभवतः उसकी प्रियतमा की ही देन है। उसके ह्रदय में प्रियतमा की ममता का बादल मंडराता रहता है। उसे प्रियतमा की ममता परेशान करती है ,पीड़ा पहुँचाती है। प्रियतमा के प्यार ने उसे अत्यधिक कमजोर बना दिया है। कवि को भविष्य में घटने वाली घटनाएँ चिंतित करती है। कवि इसी कारण डरता है कि न जाने कल क्या होगा। कवि और उसकी प्रियतमा उसे इसलिए चाहती है क्योंकि दोनों के विचारों तथा भावों में समानता है। उसके लिए अकेलापन प्राप्त नहीं हो सकता क्योंकि उसकी प्रियतमा उसकी आत्मा में बसती है।
सहर्ष स्वीकारा है कविता के प्रश्न उत्तर
प्र. वह क्या क्या है जिसे कवि ने सहर्ष स्वीकारा है ?
उ. कवि ने जीवन को अपनी पूर्णता में स्वीकार किया है। जिंदगी में जो कुछ है अथवा जो कुछ मिल सकता है ,उसके प्रति कवि का स्वीकार भाव है। कवि जीवन की किसी भी वस्तु के प्रति नकारात्मक रुख नहीं अपनाता है।
प्र. कवि के पास जो कुछ भी अच्छा - बुरा है वह विशिष्ट और मौलिक कैसे और क्यों है ?
उ. कवि का कथन है कि उसके पास जो कुछ अच्छा या बुरा है वह उसकी अपनी मौलिक उपलब्धि है। कवि का मानना है कि उसकी प्रियतमा का संवेदन उसकी हर उपलब्धि में मिला हुआ है इसीलिए वह अपनी उपलब्धि मौलिक हो गयी है। कवि की निर्धनता ,विचार ,वैभव ,दृढ़ता ,करुणा और कृतिमता सभी कुछ मौलिक है।
प्र. कवि को अपने प्रियतमा से संवेदनाओं के धरातल पर क्या कुछ मिला ?
उ. कवि को अपनी प्रियतमा से संवेदना के धरातल पर सम्पूर्ण चेतना मिली है। कवि के जीवन में जो कुछ भी है ,वह प्रियतमा की संवेदनाओं का ही फल है। कवि अपनी निर्धनता पर गर्व करता है क्योंकि उसकी प्रियतमा उसे निर्धनता में भी अपनाती है।
प्र. एक ओर अंधकारमयी विस्मृति में खो जाने का दंड कवि क्यों पाना चाहता है ?
उ. कवि को लगता है कि प्रियतमा के प्यार ,कोमलता एवं संवेदना ने उसे आत्मिक रूप से कमजोर बना दिया है। कवि प्रियतमा के रहते अपने अस्तित्व को अनुभव नहीं कर पाता। उसे लगता है कि वह इस असीम प्यार और स्नेह का हकदार नहीं है। वह अपनी प्रियतमा से कहता है कि वह उसे कहीं दूर एकांत निर्वासित जीवन जीने के सजा दे जहाँ पर वह नितांत अकेला रह जाए।
प्र. कवि के लिए सुखद मधुर स्थिति भी असह्य क्यों हो गयी है ?
उ. कवि के लिए सुखद मधुर स्थितियां जिन्हें वह स्मरणीय उजाले की संज्ञा देता है ,असह्य हो गयी है क्योंकि वह अपराध बोध से ग्रसित है और उसे लगता है कि उसके साथ सस्ती सहानुभूति दिखाई जा रही है।
प्र. कवि ने 'सहर्ष स्वीकारा है ' में क्या भाव व्यक्त किया है ?
उ. कविवर मुक्तिबोध यह स्पष्ट करते हैं कि जीवन में उन्होंने कटु -मधुर ,अच्छे - बुरे ,सुखद - दुखद ,वांछित - अवांछित सभी प्रकार के अनुभवों को हँस कर स्वीकार किया क्योंकि उन्हें सदा यह लगता है कि उसकी प्रिय को यही दृष्टिकोण ,ऐसा ही व्यवहार प्रिय था।
अभ्यास के.question answer
जवाब देंहटाएंMamta k badl
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