शल्य चिकित्सा के प्रवर्तक सुश्रुत पाठ का सारांश प्रश्न उत्तर Shalya chikitsa ke pravartak ushruta Samhita sushruta samhita book in hindi Jcert Book
शल्य चिकित्सा के प्रवर्तक - सुश्रुत
शल्य चिकित्सा के प्रवर्तक - सुश्रुत Shalya chikitsa ke pravartak SHALYA CHIKITSAK KE PRAWARTAK शल्य-चिकित्सा के प्रवर्तक: सुश्रुत कक्षा 8 हिंदी JCERT the sushruta samhita sushruta samhita history Jharkhand State New Jcert Book 2600 years ago महर्षि सुश्रुत maharishi Plastic Surgery hinduism father of surgery indian civilisation Sushruta Samhita sushruta samhita book in hindi sushruta samhita sutra sthana sushruta samhita and charaka samhita
शल्य चिकित्सा के प्रवर्तक सुश्रुत पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ या विज्ञान लेख शल्य चिकित्सा के प्रवर्तक – सुश्रुत , डॉ. यतीश अग्रवाल जी के द्वारा लिखित है ⃒ इस पाठ में लेखक के द्वारा महान भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य सुश्रुत के स्वर्णिम युग का उल्लेख किया गया है, जिसने शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसी नई-नई शल्य तकनीकें विकसित कीं, जो भावी शल्य-चिकित्सकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं ⃒ आचार्य सुश्रुत के द्वारा सुश्रुत संहिता नामक चिकित्सा ग्रन्थ की रचना की गई है, जो आयुर्वेद का एक महान ग्रन्थ है ⃒ उक्त ग्रन्थ में से शल्य-चिकित्सा की अनेक विलक्षण विधियों, यंत्रों और उपकरणों की व्यापक जानकारी हासिल होती है ⃒
पाठ के अनुसार, वाराणसी (प्राचीन काल में काशी राज्य की राजधानी थी), गंगा तट पर शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थित इस नगरी का इतिहास अत्यंत प्राचीन और वैभवशाली रहा है ⃒ तकरीबन ढाई हज़ार साल पूर्व की बात है ⃒ गंगा तट से थोड़ी ही दूर पर एक पाठशाला थी ⃒ वहाँ आयुर्वेद (जीवनदान देने वाली कला) की शिक्षा दी जाती थी ⃒ इस आयुर्वेद पाठशाला का द्वार सिर्फ उनके लिए खुले थे, जिनका मन मानव-सेवा और प्रेम से ओत-प्रोत होता था, जिनमें साधना और कठोर परिश्रम करने की लगन होती थी ⃒ दूर-दूर से विद्यार्थी इस आयुर्वेद पाठशाला में आकर शिक्षा ग्रहण किया करते थे ⃒ इस आयुर्वेद पाठशाला के आचार्य महर्षि सुश्रुत थे ⃒ वे स्वयं काशी के राजा दिवोदास के शिष्य थे ⃒ दिवोदास को भगवान धन्वन्तरि का अवतार कहा गया है ⃒आचार्य सुश्रुत अपने समय के अद्वितीय शल्य चिकित्सक हुए ⃒ इन्होंने बहुत सी ऐसी नई शल्य तकनीकें विकसित कीं, जो आगे चलकर बहुत से शल्य-चिकित्सकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं ⃒ इनके द्वारा रचित ग्रन्थ सुश्रुत-संहिता इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि वर्तमान समय से कहीं ज्यादा आगे प्राचीन समय के चिकित्सा विज्ञान था ⃒ इस ग्रन्थ में कुल 120 अध्याय हैं और इन्हें छह भागों में विभक्त किया गया है – सूत्रस्थान, निदानस्थान, शरीरस्थान, चिकित्सास्थान, क्ल्पस्थान, उत्तरस्थान ⃒ शरीर के किसी भाग में मवाद पड़ जाने पर चीरा लगाना आवश्यक होता है, यह महत्वपूर्ण तथ्य सुश्रुत से छिपा नहीं था ⃒ सुश्रुत ने इस पर जानकारी देते हुए कहा कि इस स्थिति में चीरा कैसे और कहाँ लगाएँ ⃒ इसी तरह जब शरीर के कुछ अंग जल-वृद्धि किए कारण फूल जाएँ तो उनका जल सुई द्वारा कैसे खींच लेना चाहिए, यह विधि भी उपयुक्त रूप से बताई गई है ⃒ मूत्राशय की पथरी, भगंदर, बवासीर और मोतियाबिंद की शल्य-क्रिया के साथ-साथ, जरुरत पड़ने पर माँ के गर्भ में चीरा लगाकर शिशु को जन्म देने की शल्य-क्रिया और दन्त-चिकित्सा तथा अस्थि-चिकित्सा की बारीकियों का अनूठा वर्णन भी सुश्रुत-संहिता में मिलता है ⃒ इसके अलावा काया श्रृंगार (प्लास्टिक सर्जरी) से जुड़े तरह-तरह के ऑपरेशन भी विस्तार से वर्णित है ⃒
टाँके लगाने के लिए त्वचा और विभिन्न उत्तकों की मोटाई और रचना को ध्यान में रखते हुए तरह-तरह के धागे भी विकसित किए गए थे ⃒ कुछ का आधार रेशम की डोर होती थी तो कुछ सूत से बनाए जाते थे ⃒ कुछ चमड़े से तैयार किए जाते थे तो कुछ घोड़ों के बालों से ⃒ इसी प्रकार कई किस्म की सुइयां भी उपयोग में लाई जाती थीं – कुछ मोटी, कुछ पतली, कुछ अधिक घुमाव लिए हुए, तो कुछ कम और कुछ बिलकुल सीधी ⃒ सुश्रुत-संहिता में शल्य-चिकित्सा के लगभग हर महत्वपूर्ण पहलू पर विस्तृत जानकारी दी गई है, जैसे – ऑपरेशन के बाद क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए, रोगी का आहार कैसा होना चाहिए, घाव भर जाए इसके लिए कौन सी औषधियाँ देनी चाहिए आदि ⃒ शल्य क्रिया के दौरान रोगी या मरीज़ को कष्ट न हो, इसके लिए कुछ ऐसी सक्षम जड़ी-बूटियाँ भी खोज निकाली गई थीं, जिनके देने से रोगी गहरी नींद में सो जाता था ⃒
सुश्रुत जितने बड़े शल्य-चिकित्सक थे, उतने ही श्रेष्ठ गुरु भी थे ⃒ शल्य कला का प्रारंभिक प्रशिक्षण देने के लिए वे अपने शिष्यों को कंद-मूल, फल-फूल, पेड़-पौधों की लताओं, पानी से भरी मशकों, चिकनी मिटटी के ढांचों और मलमल से बने मानव-पुतलों पर दिनोंदिन अभ्यास करवाते ⃒ इसी प्रकार के और भी अनेक विधियों का ज्ञान बेहद बारीकी से दिया करते थे ⃒ विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण में उत्तीर्ण होने के पश्चात् ही शिष्य के प्रशिक्षण का दूसरा चरण शुरू होता था ⃒ अब उसे किसी कुशल शल्य-चिकित्सक की देख-रेख में रख दिया जाता था ⃒ जब शिष्य पूरी तरह परिपक्व हो जाता था, तब उसे गुरु की तरह पूर्ण प्रशिक्षण और अनुभव पाकर ही वह पाठशाला से बाहर निकलता था ⃒
वास्तव में देखा जाए तो सुश्रुत मूल रूप से शल्य चिकित्सक थे ⃒ किन्तु उन्होंने क्षय रोग, कुष्ठ रोग, मधुमेह, ह्रदय रोग, एंजाइना एवं विटामिन सी की कमी से होने वाले रोग – स्कर्वी के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी दी ⃒ 600 ई. पूर्व से 1000 ई. पूर्व तक का समय भारतीय चिकित्सा विज्ञान के लिए स्वर्णिम युग था ⃒ चिकित्सा विज्ञान के कुछ इतिहासकारों का तो यह भी कहना है कि यूनानी चिकित्सा पद्धति के बहुत से सिद्धांत प्राचीन भारतीय चिकित्सकों के विचारों पर ही आधारित हैं... ⃒ ⃒
शल्य चिकित्सा के प्रवर्तक सुश्रुत पाठ के प्रश्न उत्तर
बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न-1 – प्रवर्तक का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर- जनक
प्रश्न-2 – सुश्रुत की चिकित्सा पद्धति किस पर आधारित है ?
उत्तर- आयुवेद पर
प्रश्न-3 – आज से ढाई हजार वर्ष पहले आयुर्वेद की शिक्षा कहाँ दी जाती थी ?
उत्तर- पाठशाला में
प्रश्न-4 – भगवान धन्वन्तरि को किसका जनक माना जाता है ?
उत्तर- दिवोदास का
प्रश्न-5 – सुश्रुत के गुरु का क्या नाम था ?
उत्तर- दिवोदास
प्रश्नोत्तर
प्रश्न-1 – ढाई हजार साल पहले यहाँ की पाठशाला में किसकी शिक्षा दी जाती थी ?
उत्तर- ढाई हजार साल पहले यहाँ की पाठशाला में आयुर्वेद की शिक्षा दी जाती थी ⃒
प्रश्न-2 – महर्षि सुश्रुत का यश किस क्षेत्र में था ?
उत्तर- महर्षि सुश्रुत का यश शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में था ⃒
प्रश्न-3 – सुश्रुत संहिता में शल्य यंत्रों की संख्या कितनी बताई गई है ?
उत्तर- सुश्रुत संहिता में शल्य यंत्रों की संख्या 101 बताई गई है ⃒
प्रश्न-4 – इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर कितने अध्याय हैं ?
उत्तर- इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर 120 अध्याय हैं ⃒
प्रश्न-5 – मानव के भीतरी अंगों की जानकारी प्राप्त करने के लिए सुश्रुत ने क्या विधि खोज निकाली थी ?
उत्तर- मानव के भीतरी अंगों की जानकारी प्राप्त करने के लिए सुश्रुत ने एक अनूठी विधि खोज निकाली थी ⃒ मृत शरीर को पहले किसी वजनदार वस्तु के साथ बांधकर किसी छोटी सी नाहर में डाल दिया जाता था ⃒ एक सप्ताह बाद जब बाहरी त्वचा और उत्तक फूल जाते, तब झाड़ियों और लताओं से बने बड़े-बड़े ब्रुशों द्वारा उन्हें शरीर से अलग कर दिया जाता था ⃒ इससे शरीर के आंतरिक अंगों की रचना स्पष्ट हो जाती थी ⃒
प्रश्न-6 – किस काल को भारतीय चिकित्सा विज्ञान का स्वर्णिम युग माना जाता है और क्यों ?
उत्तर- 600 ई. पूर्व से 1000 ई. पूर्व तक का समय भारतीय चिकित्सा विज्ञान के लिए स्वर्णिम युग था ⃒ क्योंकि इस काल के दौरान आचार्य सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसी नई-नई शल्य तकनीकें विकसित कीं, जो भावी शल्य-चिकित्सकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं ⃒ आचार्य सुश्रुत के द्वारा सुश्रुत संहिता नामक चिकित्सा ग्रन्थ की रचना की गई है, जो आयुर्वेद का एक महान ग्रन्थ है ⃒ उक्त ग्रन्थ में से शल्य-चिकित्सा की अनेक विलक्षण विधियों, यंत्रों और उपकरणों की व्यापक जानकारी हासिल होती है ⃒
भाषा संरचना
प्रश्न-8 – निम्नलिखित मूल शब्दों से नए शब्द बनाइए –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
राजा – महाराजा , राजकुमार , राजमहल
विद्या – विद्यापीठ , विद्यालय ,
शिक्षा – अशिक्षा , शिक्षार्थी ,
यश – यशपाल , यशस्वी ,
मृत – मृतात्मा , अमृत ,
शल्य चिकित्सा के प्रवर्तक सुश्रुत पाठ से संबंधित शब्दार्थ
शल्य-चिकित्सा – चीड़-फाड़ द्वारा इलाज़
जीवंत – जीता-जागता
प्रवर्तक – आरंभ करने वाला
सहस्त्र – एक हजार
ओत-प्रोत – भरपूर
विशद – व्यापक, स्पष्ट
काया – शरीर
त्वचा – खाल, चमड़ा
एंजाइना – ह्रदय रोग
मशक – चमड़े का थैला
क्षय रोग – टी.वी. , तपेदिक
हिंस्त्र – खूंखार, हिंसक ⃒
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