ताई कहानी की समीक्षा सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर ताई कहानी की भाषा शैली tai vishambhar nath sharma kaushik रामजी दास कृष्ण दास मनोहर रामेश्वरी पतंग
ताई - विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक
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ताई कहानी का सारांश
रामजी दास और कृष्ण दास दो भाई थे। बड़े भाई रामजीदास के कोई संतान न होने कारण वह अपने छोटे भाई कृष्णदास के बच्चों मनोहर और चुन्नी को ही अपनी संतान की तरह प्यार करते थे। लेकिन यह बात रामजी दास की पत्नी रामेश्वरी को बिलकुल पसंद न थी। मनोहर से तो उसे विशेषतः चिढ थी। मनोहर ने एक दिन अपने ताऊ से रेलगाड़ी ला देने के लिए कहा। महोहर ने ताऊ जी के कहने पर कहा कि वह ताई जी को रेलगाड़ी पर नहीं बैठाएगा। इतना सुनते ही ताई जी का ह्रदय ईर्ष्या से भर आया और पराये बच्चों के साथ प्यार करने पर वह अपने पति से नाराज भी हुई।
रामजीदास ने मनोहर को उसकी ताई की गोद में बैठाते हुए कहा - ' यदि तुम इसे प्यार नहीं करोगी तो वह तुम्हे रेलगाड़ी पर नहीं बैठायेगा ?' इतना सुनते ही ताई ने मनोहर को नीचे दाखिल धकेल दिया। इसी बात पर पति - पत्नी में मनमुटाव हो गया। एक दिन जब रामेश्वरी अपनी देवरानी के साथ छत पर बैठी थी और पास ही मनोहर व चुन्नी खेल रहे थे तो वे खेलते - खेलते अपनी ताई की गोद में आ गिरे। रामेश्वरी के मन में प्यार भय आया और उसने झट से उन दोनों को गले लगा लिया। इतने में रामजीदास भी छत पर आ गए। ज्यों ही रामेश्वरी ने उन्हें देखा तो उसके मन में फिर से ईर्ष्या भर गयी। बाबू रामजीदास ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह बिगड़ गयी और उसके मन में बच्चों के प्रति ईर्ष्या और भी बढ़ गयी।
संयोग की बात देखिये कि एक दिन रामेश्वरी मकान की छत पर टहल रही थी कि मनोहर ने वहां आकर आकाश में उड़ती हुई पतंगों को देखकर ताई जी ने पतंग मंगवा कर देने का आग्रह किया लेकिन ताई जी ने उसे झिड़क दिया। वह फिर आकाश की ओर देखने लगा। वह फिर रह न सका और उसने ताई जी से पतंग मंगवा कर देने का आग्रह किया। इस पर ताई का मन द्रवित हो गया और वह मनोहर से प्यार करने करने लगी थी कि मनोहर ने कहा - ' ताई ! अगर तुम हमें पतंग नहीं मंगवा कर दोगी तो हम तुम्हे ताऊ जी से पिटवाएगें। " यह बात सुनते ही रामेश्वरी क्रोधित हो उठी।
इतने में एक पतंग कटकर छज्जे की ओर आ गयी और घर के आँगन में जा गिरी। मनोहर पतंग के पीछे लपका और छत से फिसल कर नीचे गिरते - गिरते उसके हाथ में छत की मुंडेर आ गयी। उसने बचाव के लिए ताई जी को पुकारना शुरू कर दिया। परन्तु ताई तो उसके मरने की राह देख रही थी। जब रामेश्वरी ने उसे पकड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया तो मनोहर के हाथ से मुंडेर छूट गयी और वह नीचे गिर गया। रामेश्वरी बेहोश हो गयी। सात दिन तक ज्वर रहा। बेहोशी में वह बार - बार यही - 'मनोहर को बचाओ ' और अपने को दोषी बताती कि वह मनोहर को नहीं बचा सकी। मनोहर की टांग टूट गयी थी जो अब ठीक हो रही थी। जब रामेश्वरी का ज्वर कम हुआ तो उसने मनोहर को पास लाने के लिए कहा और उसे अपनी छाती से लगा किया।
ताई कहानी के प्रश्न उत्तर
प्र. बाबू रामजीदास किनसे अधिक प्यार करते थे और उसका कारण क्या था ?
उ. बाबू रामजीदास अपने भाई के बच्चों से अधिक प्यार करते थे क्योंकि उनके अपनी कोई संतान नहीं थी।
प्र. ताई किसकी अर्धागिनी थी ? और वे हर समय चिढ़ी सी क्यों रहती थी ?
उ. ताई बाबू रामजीदास की अर्धागिनी थी। वे हर समय इसीलिए चिढ़ी सी रहती थी क्योंकि उनकी कोई अपनी संतान न थी।
प्र. बालक के अपनी ताई के विषय में क्या विचार हैं ?
उ. बालक मनोहर अत्यंत कोमल एवं प्रेमभाव के परिपूर्ण है। वह नित्यप्रति देखता है कि उसके ताऊ जी कई बार उससे रुखाई से पेश आती है और गोद से धकेल भी देती है। इसी कारण बालक मनोहर ताई के मन में ताई के प्रति जुड़ाव का भाव नहीं है और वह उनसे डरता भी है।
प्र. रामजीदास तथा रामेश्वरी का व्यवहार कहानी के आरम्भ में मनोहर के प्रति कैसा था ?
उ. रामजीदास और रामेश्वरी के विवाह को कई वर्ष बीतने के बाद भी उनके कोई संतान नहीं थी। इसी कारण इस कमी को पूरा करने के लिए दोनों कृष्णदास के बेटे मनोहर से बहुत प्यार करते थे। दोनों के मन में मनोहर के लिए अपार स्नेह था और वे उसके साथ अच्छा व्यवहार करते थे।
प्र. ताई के द्वारा धकेले जाने के पश्चात रामजीदास ने मनोहर के साथ कैसा व्यवहार किया ?
उ. ताई के द्वारा धकेले जाने के पश्चात रामजीदास ने गिरे हुए मनोहर को गोद में उठाया ,चुमकार कर चुप कराया और कुछ पैसे तथा रेलगाड़ी लाकर देने का वचन किया।
प्र. रामेश्वरी में भी माँ का ह्रदय था ,उदाहरण देकर सिद्ध कीजिये।
उ. रामेश्वरी में भी माँ का ह्रदय था। कई बार तो वह उन बच्चों को भी माँ से भी अधिक प्यार करती थी। मनोहर जब पतंग लेने के लिए कहता था तो उसका कलेजा पसीज जाता है और वह कहती है कि यदि आज मेरा पुत्र होता तो मुझे जैसी भाग्यवान स्त्री संसार में दूसरी न होती।
प्र. रामेश्वरी बच्चों के लिए भला - बुरा क्यों सोचने लगी ?
उ. रामेश्वरी बच्चों के लिए भला बुरा इसीलिए सोचने लगी क्योंकि रामजीदास ने यह कह दिया कि अपनी संतान के लिए सोच करना वृथा है। यदि तुम इनसे प्रेम करने लगो तो तुम्हे ये ही अपनी संतान प्रतीत होने लगेंगे। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि तुम इनसे स्नेह करना सीख रही हो।
प्र. मनोहर के गिर जाने पर ताई की क्या दशा हुई और क्यों ?
उ. मनोहर के गिर जाने पर ताई एक सप्ताह तक बुखार में बेहोश पड़ी रही। वह प्रलाप करती रही। क्योंकि उसके मन में बच्चों के प्रति ममता जाग गयी थी।
ताई कहानी की शीर्षक की सार्थकता
विशम्भरनाथ कौशिक द्वारा रचित ताई शीर्षक कहानी एक पात्र आधारित कहानी है जो कि ताई रामेश्वरी के इर्द -गिर्द घूमती है। यह कहानी एक ओर ताई के स्वभाव पर प्रकाश डालती है तो दूसरी ओर विविध घटनाओं के माध्यम से ताई के स्वभाव एवं जीवन को विविधताओं से युक्त प्रदर्शित करती है। कहानी में उल्लेखित परिस्थितियों से ताई पूर्ण रूप से प्रभावित होती है तथा अंत का भी ताई पर प्रभाव देखा जा सकता है। ताई पात्र द्वारा ही लेखक ने पारिवारिक तनावों एवं परिस्थितियों को जीवंत बनाया है। अतः इस कहानी का शीर्षक ताई एकदम उपयुक्त एवं सटीक प्रतीत होता है।
ताई कहानी का उद्देश्य
ताई कहानी विश्वभरनाथ शर्मा कौशिक द्वारा लिखित एक भावना प्रधान कहानी है। इस कहानी के माध्यम से ताई के मन में उठते विविध विचारों को दर्शाया गया है। ताई कभी रुढ़िग्रस्त महिला के रूप में उभरती है ,कबी निसंतान के दुःख को ढोती दिखलाई देती है ,कभी ममता के सागर में डूबती दिखती है तो कभी ईर्ष्या एवं घृणा की साकार प्रतिमा लगती है। इस प्रकार इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक व्यक्ति में इतने भाव दिखाना चाहा है वहीँ वे घटनाओं के माध्यम से एक निश्चित एवं सुखद अंत की ओर बढ़ते भी दिखलाई देते हैं। यह कहानी भावनाओं की अभिव्यक्ति अत्यंत भावुक ढंग से करती है तथा उसका प्रभाव भी भावुक समाज पर अवश्य अंकित होगा।
ताई कहानी के शब्दार्थ
अर्धागिनी - पत्नी
शुष्क - खुश्क
अटल - पक्का
द्वेष - बैर
निसंतान - जिसके कोई बच्चा न हो।
वृथा - व्यर्थ ,बेकार
नितांत - सर्वथा , बिलकुल
चेष्टा - कोशिश
कर्कश - तेज़
क्षोभ - दुःख ,पीड़ा
अनुराग - प्रेम ,स्नेह
भृकुटी - भवें
अप्रतिभ - अवाक
सतृष्ण - तृष्णारहित
दुलार - प्रेम
Ujjwal
जवाब देंहटाएंहमें बहुत अच्छा लगा, और इसी प्रकार आप लोग और भी अच्छे–अच्छे कहानियां डालते रहे।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सहित।,
हरीश हीरेमठ,
हावेरी,कर्नाटक–581110