कवि वृन्द के दोहे अर्थ सहित वृंद कवि वृन्द कवि के दोहे नीति के दोहे वृन्द vrind ke dohe explanation class 12 Maharashtra board vrind kavi ke dohe kavi
कवि वृन्द के दोहे
कवि वृन्द के दोहे अर्थ सहित वृंद कवि वृन्द कवि के दोहे नीति के दोहे वृन्द vrind ke dohe explanation class 12 Maharashtra board vrind kavi ke dohe kavi vrind ke dohe ka arth
दोहावली कवि वृंद का मूल भाव सार
प्रस्तुत पाठ या कविता दोहावली , कवि वृन्द जी के द्वारा रचित है । इन दोहों के माध्यम से कवि ने नीति संबंधी शिक्षा दिया है । इन दोहों में कवि वृन्द ने समाज में मानवीय व्यवहार का उचित निर्वहन या परिपालन कैसे हो और व्यक्ति कैसे परोपकारी, परिश्रमी, गुणवान आदि बने, इससे संबंधित शिक्षा दी है ।
वृन्द के दोहे का भावार्थ व्याख्या
(1)
जो जाको गुन जानहीं, सो तिहि आदर देत ।
कोकिल अंबहि लेत है, काग निबौरी हेत ।
भावार्थ
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि वृन्द जी के द्वारा रचित दोहावली से उद्धृत हैं । इन पंक्तियों के माध्यम से व्यक्ति के गुणों की पहचान और उसके आदर की बात कही गई है । कवि कहते हैं कि व्यक्ति जिसके गुणों को जानता-पहचानता है, उसकी नज़र में उसके गुणों का आदर भाव भी जागृत होता है । आगे कवि दृष्टांत देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार कोयल आम का रसास्वादन करती है और कौवा नीम की निम्बौरी से ही संतुष्ट हो जाता है ।
(2)
सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय ।
पबन जगाबत आग कौं, दीपहि देत बुझाय । ।
भावार्थ
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि वृन्द जी के द्वारा रचित दोहावली से उद्धृत हैं । इन पंक्तियों के माध्यम से कवि के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि जो ताक़तवर होता है, लोग उसी के पक्ष में होते हैं और कमज़ोर व्यक्ति हमेशा अकेले ही रहता है । कवि कहते हैं कि जो व्यक्ति शक्तिशाली होता है, अधिकांश लोग उसी के सहायक होते हैं ⃒ निर्बल या कमज़ोर व्यक्ति के साथ कोई भी खड़ा नहीं होता । कवि कहते हैं कि जिस प्रकार पवन शक्तिशाली होता है, इसलिए वह आग को बुझा देता है । ठीक उसके विपरीत दीपक कमज़ोर होता है, इसलिए वह उसको बुझा पाने में सक्षम नहीं हो पाता ।
(3)
अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिए दौर ।
तेते पांव पसारिए, जेती लांबी सौर ।
भावार्थ
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि वृन्द जी के द्वारा रचित दोहावली से उद्धृत हैं । इन पंक्तियों के माध्यम से कवि के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि व्यक्ति को अपनी क्षमता के हिसाब से ही काम करना चाहिए । कवी कहते हैं कि अपनी सामर्थ्य शक्ति के अनुसार ही व्यक्ति को कोई काम करना चाहिए । अर्थात् जितनी लंबी सौर है, उतने ही पांव पसारने चाहिए ।
(4)
करत-करत अभ्यास तें, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।
भावार्थ
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि वृन्द जी के द्वारा रचित दोहावली से उद्धरित हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि द्वारा परिश्रम की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है। कवि कहते हैं कि जिस प्रकार रस्सी के द्वारा कुंवे से पानी खींचने की वजह से किनारे पर रखे पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं, ठीक उसी प्रकार बार-बार अभ्यास करने से मंद बुद्धि का व्यक्ति भी विद्वान बन जाता है।
(5)
सरसति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात।
ज्यों खरचे त्यों-त्यों बढ़े, बिन खरचे घटि जात।
भावार्थ
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि वृन्द जी के द्वारा रचित दोहावली से उद्धरित हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि द्वारा अर्जित ज्ञान को साझा करने से उसमें वृद्धि होती है, इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है। सरस्वती को ज्ञान के भंडार के प्रतिरूप में माना गया है। अर्थात् हम सीखी हुई ज्ञान को जितना ज्यादा एक-दूसरे से साझा करेंगे, वह उतना ही बढ़ता है। परन्तु, यदि अपने ज्ञान को साझा न करें तो यह निरंतर घटती चली जाती है।
वृन्द के दोहे का प्रश्न उत्तर
बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न-1 – ‘दोहावली’ में किस चीज़ की शिक्षा दी गई है ?
उत्तर- नीति
प्रश्न-2 – किस तरह के लोगों को आदर मिलता है ?
उत्तर- गुणी
प्रश्न-3 – आग को कौन फैलाता है ?
उत्तर- पवन
प्रश्न-4 – मुर्ख कैसे चतुर बनता है ?
उत्तर- अभ्यास से
प्रश्न-5 – सरस्वती का भण्डार किसको कहा जाता है ?
उत्तर- ज्ञान
प्रश्नोत्तर
प्रश्न-1 – कौन किसको आदर देता है ?
उत्तर- ज्ञानी व्यक्ति गुणों को आदर देता है।
प्रश्न-2 – ‘हमें अपनी सीमा को ध्यान में रखकर ही काम करना चाहिए’ – क्यों ?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति का भाव कवि वृन्द द्वारा रचित दोहावली से उद्धृत है। कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपनी क्षमता के अनुसार ही काम करना चाहिए। क्योंकि जब मनुष्य अपनी क्षमता और सीमा को ध्यान में रखकर कोई काम करता है, तो उसमें उसे अत्यधिक सफलता हासिल होती है।
प्रश्न-3 – अभ्यास का क्या महत्त्व होता है ?
उत्तर- अभ्यास से व्यक्ति अपने लक्ष्य को हासिल कर पाता है। अल्पज्ञानी व्यक्ति भी अभ्यास के द्वारा विद्वता को प्राप्त होता है।
प्रश्न-4 – सरस्वती के भंडार की क्या अनोखी बात है ?
उत्तर- सरस्वती के भंडार की यह अनोखी बात है कि उसे जितना भी एक-दूसरे से साझा किया जाए, उसके भंडार में उतना ही वृद्धि होती है।
प्रश्न-5 – ‘सभी ताक़तवर के सहायक होते हैं, निर्बल का कोई नहीं’ – यह बात किस उदाहरण के माध्यम से समझाई गई है ?
उत्तर- ‘सभी ताक़तवर के सहायक होते हैं, निर्बल का कोई नहीं’ – यह बात कवि समझाते हुए उदाहरण देते हैं कि जिस प्रकार पवन शक्तिशाली होता है, इसलिए वह आग को बुझा देता है। ठीक उसके विपरीत दीपक कमज़ोर होता है, इसलिए वह उसको बुझा पाने में सक्षम नहीं हो पाता।
भाषा संरचना
प्रश्न-8 – विलोम शब्द लिखो –
उत्तर-
सबल – निर्बल
आना – जाना
घटना – बढ़ना
लंबी – छोटी
कवि वृन्द के दोहे पाठ से संबंधित शब्दार्थ
सुजान – चतुर
सबल – बलशाली
कोकिल – कोयल
सहायक – मददगार
काग – कौवा
पवन – हवा
करतब – साहसिक कार्य
घटि – घटना, कम होना
रसरी – रस्सी
निबल – कमजोर
दीपहि – दीपक
जड़मति – मुर्ख ।
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