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देश गीत कविता - श्रीधर पाठक
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देश गीत कविता का भावार्थ व्याख्या
जय जय प्यारा, जग से न्यारा
शोभित सारा, देश हमारा,
जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा
जग-सौभाग्य, सुदेश।
जय जय प्यारा भारत देश।
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियों में कवि श्रीधर पाठक जी द्वारा लिखी गयी है। इस कविता में भारत देश का गुणगान किया गया है। भारत को विश्व का मुकुट बताया गया है और इसके हजारों साल जीते रहने तथा फलने फूलने की कामना की गयी है।
कवि का मानना है कि प्यारे भारत देश की बार बार जय हो। भारत देश प्यारा लगता है क्योंकि यह अपने गुणों के कारण एक अनूठा देश है। इस देश की अपनी ही शान है। यहाँ हिमालय जैसा ऊँचा पर्वत है। भारत में अनेकों ही नदियाँ बहती है और प्रकृति इस देश की शोभा बढाती है। यह ऋषियों तथा मुनिओं की तपोभूमि है। यहाँ सत्य और अहिंसा का सन्देश दिया गया है। इन्ही गुणों के कारण भारत पूरे विश्व का ताज है अर्थात सब देशों से श्रेष्ठ है। यह ईश्वर के स्नेह का भी विशेष पात्र है। ईश्वर भारत से विशेष रूप से प्यार करता है। इस प्रकार भारत भाग्यशाली है। अतः कवि कहता है कि ऐसे सुन्दर तथा प्यारे देश की बार - बार जय हो।
प्यारा देश, जय देशेश,
अजय अशेष, सदय विशेष,
जहाँ न संभव अघ का लेश,
संभव केवल पुण्य-प्रवेश।
व्याख्या - कवि का कहना है कि भारत एक सुन्दर और प्यारा देश है। यहाँ सुख समृद्धि है। इसका कारण यह है कि यहाँ के लोग मेहनती हैं। फसलें लहलाती हैं। अन्न के भण्डार भरे हुए हैं। इसी कारण यह सशक्त भी है। इसे कोई नहीं जीत सकता है। यह मिट नहीं सकता है अर्थात यह सदैव अजेय रहेगा। यहाँ के लोगों में दया की भावना विशेष रूप से देखने को मिलती हैं। यहाँ के लोग अहिंसा की पुजारी हैं। पाप कर्म से सदैव दूर रहते हैं। भारतवासी हजारों सालों से सत्य ,अहिंसा ,सहनशीलता तथा विश्व बंधुत्व की भावना को मानते आये हैं और उनका पालन करते रहे हैं। इन्ही श्रेष्ठ गुणों के कारण भारत पुण्य भूमि है। अतः कवि का कहना है कि ऐसे प्यारे भारत देश की बार - बार जय हो।
स्वर्गिक शीश-फूल पृथिवी का,
प्रेम-मूल, प्रिय लोकत्रयी का,
सुललित प्रकृति-नटी का टीका,
ज्यों निशि का राकेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
व्याख्या - कवि का मानना है कि भारत देश स्वर्ग से भी ऊँचा तथा श्रेष्ठ है। इसी कारण कवि ने इसे स्वर्ग का शीश बताया है। इसके बिना स्वर्ग भी व्यर्थ है। पृथ्वी की शोभा भी भारत जैसे सुन्दर देश के कारण ही है। यह धरती का फूल है क्योंकि यह सुन्दर भी है और मनहारी भी है। तीनों लोकों में जो प्रेम का आस्तित्व है वह भारत देश के कारण ही है। भारत ने ही प्रेम की भावना को पैदा किया है और उसका सभी दिशाओं में विस्तार किया। भारत देश सुन्दर प्रकृति का उसी प्रकार सुन्दर दिखने वाला टीका है जैसे काली रात का टीका चंद्रमा है। कवि कहता है कि ऐसे सुन्दर भारत देश की जय हो। उस भारत देश की जय हो जो स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है और जिसने प्रेम जैसे गुण का विस्तार सब जगह किया है।
जय जय शुभ्र हिमाचल-शृंगा,
कल-रव-निरत कलोलिनि गंगा,
भानु-प्रताप-समत्कृत अंगा,
तेज-पुंज तप-वेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
व्याख्या - भारत देश की कई विशेषताएं हैं जिनके कारण यह सुन्दर बन पड़ा है। यहाँ हिमालय पर्वत की ऊँची चोटियाँ हैं जो हिम के कारण उज्जवल दिखती है और चमकती हैं। यहाँ पावन गंगा अपनी लहरों से कोमल तथा मधुर ध्वनि करती है। सूर्य के प्रकाश से भारत के कोनों - कोनों पर चमत्कारपूर्ण प्रभाव पड़ता है। भारत देश रूप ,सुन्दरता और गुणों के कारण तेज़ का पुंज है। इसका वेश तपस्वी की तरह ओजपूर्ण है। अतः कवि का कहना है कि ऐसे प्यारे और सुन्दर देश की बार - बार जय हो।
जग में कोटि-कोटि जुग जीवै,
जीवन-सुलभ अमी-रस पीवै,
सुखद वितान सुकृत का सीवै,
रहै स्वतंत्र हमेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
व्याख्या - कवि इस सुन्दर ,सुख समृद्धवाले तथा गुणों से परिपूर्ण देश पर बलिहारी जाता है। अतः वह कामना करता है कि यह देश हजारों - हजारों युगों तक जीता रहे। यह देश जीवनदायक ऐसे अमृत का पान करे जिससे कि यह अमरत्व को प्रदान हो ,कभी समाप्त न हो। यह देश अच्छे और सुखकारक गुणों का विस्तार करता रहे। कवि की कामना है कि यह देश सदैव आज़ाद रहे। कभी भी गुलाम न हो। यह कविता कवि के भारत देश के प्रति असीम प्यार को दर्शाती है। अतः वह ह्रदय से कामना करता है कि इस प्यारे देश की सदैव जय हो।
देश गीत कविता के प्रश्न उत्तर
प्र. कवि का क्यों मानना है कि भारत पर ईश्वर और प्रकृति की असीम कृपा है ?
उ. अनेक कठिनाइयों के बावजूद भी भारत का अस्तित्व बना रहा ,इसे धरती की कोई शक्ति नहीं मिटा पायी। यहाँ सुख समृद्धि है। फसलें लहलहाती हैं। अन्न के भण्डार भरे पड़े हैं। धरती उपजाऊ है। इसके तीन ओर समुन्द्र है और एक ओर विशाल हिमालय प्रहरी बन खड़ा है। यहाँ के लोगों को न तो गर्मी से निरंतर जलना पड़ता है और न ही सर्दी से ठिठुरना पड़ता है। ऋतू परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है। यहाँ के लोगों को छ ऋतुओं का स्वाद चखने को मिलता है। इसके अतिरिक्त भारत ऋषि मुनियों की तपोभूमि है। यहां के धर्म गुरुओं ने विश्व को सत्य ,अहिंसा ,प्रेम तथा सहनशीलता आदि गुणों का पाठ पढाया है।
उ. पृथ्वीराज चौहान ने आक्रामक मुहम्मद गौरी पर कितनी ही बार विजय प्राप्त की। किन्तु हर बार उस पर दया करके उसे क्षमा दान दिया। उसे मारा नहीं। किन्तु एक बार मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान पर विजय प्राप्त की तो उसने क्षमा नहीं किया। बदले में दया नहीं दिखाई। इस घटना से पता चलता है कि भारतीय विशेष रुप से दयावान होते हैं।
प्र. भारत को महान बनाने में हिमालय और गंगा का क्या योगदान है ?
उ. हिमालय पर्वत भारत देश के प्रहरी के रूप में कार्य करता रहा है। इसकी माउन्ट एवरेस्ट नामक चोटी संसार की सबसे ऊँची चोटी है। जहाँ भारत की प्रमुख जीवनदायनी नदियाँ हिमालय पर्वत से निकलती है ,वहां दिन प्रतिदिन प्रयोग में आने वाली लकड़ी भी यही से आती है।
गंगा अपने स्त्रोत गंगोत्री से चलकर भारत का बहुत बड़ा भाग तय करके कोल्कता पहुंचती है। इसके तट पर बड़े बड़े नगर बसें हैं जो भारत के इतिहास तथा संस्कृति से सम्बंधित गतिविधियों का केंद्र रहे हैं। इसके किनारे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी है। जहाँ गंगा के जल से खेती की उपज में उन्नति होती रही है वहां किनारे बसे लोग इसका पावन जल पीकर अपने आपको धन्य मानते रहे हैं।
देश गीत श्रीधर पाठक कविता के शब्दार्थ
न्यारा - अनोखा
शोभित - सुसज्जित
मुकुट - ताज
दुलारा - प्यारा
देशेश - सुख समृद्धि युक्त देश
सदय - दया से युक्त
राकेश - चंद्रमा
शुभ्र - उज्जवल
श्रंग - चोटी
कलख - कोमल
निरत - लीन
अमीरस - अमृत
वितान - विस्तार
सुकृत - अच्छे कर्म
देश गीत कविता का सारांश मूल भाव
देशगीत कविता श्रीधर पाठक जी द्वारा लिखी गयी है। आपका कहना है कि प्यारा भारत देश सुन्दर और संसार में अनोखा है। इसकी विश्व में अपनी ही शोभा है। यह संसार के सर का ताज है। सुख समृद्धि से परिपूर्ण इस देश की जय हो। इस देश में करुणा और दया की भावना विशेष रूप से देखने को मिलती है। भारत देश में पाप लेशमात्र भी नहीं है। यह पुण्य भूमि है और यहाँ केवल पुण्य ही संभव है। यह देश स्वर्ग का शीश और धरती का फूल है। यह देश सुन्दर प्रकृति रूपी नटी का उस प्रकार टीका है जैसे काली अँधेरी रात का टीका चंद्रमा है। ऐसे सुन्दर और प्यारे भारत देश की जय हो। यहाँ हिमालय की चोटी हिम के कारण चमकती है। अनेकों लहरों से युक्त गंगा यहाँ मधुर स्वर करती हुई बहती है। सूर्य के प्रकाश से इसका एक एक कोना चमकता है। यह तेज़ का पुंज है और यहाँ तप की प्रधानता रही है। संसार में हमारा देश भारत हजारों साल तक जीता रहे। अच्छे कर्मों से इसके यश का विस्तार हो। हमारा देश भारत हमेशा ही आज़ाद रहे। इस प्यारे भारत देश की बार - बार जय हो।
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