कथाकार मन्नू भंडारी की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा मन्नू जी ने जमकर लिखा औऱ जमकर जीवन जिया. उनके उपन्यास महाभोज को मैंने ही 1981 में पहली बार मंचित
हमें फक्र है कि हम मन्नू भंडारी युग में जिये
नई दिल्ली: मन्नू भंडारी एक ऐसी रचनाकार थी जिन्होंने मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया ,उन्होने जो महसूस किया वो लिखा। साधारण की महिमा का जो एक अभियान आज की आधुनिकता में चला है, उसकी वह मुकाम थीं. वह एक बड़ी लेखिका थी लेकिन उनमें इसको लेकर कभी अभिमान नहीं रहा उन्होंने ने आपका बंटी जैसा उपन्यास तब लिखा जब लोग संबंधों के बारे में खुलकर कहने से संकोच करते थे। उनकी कृतियां हमेशा पढ़ी जाएंगी हमें फक्र है़ कि हम मन्नू भंडारी युग में जिये।
ये बातें मंगलवार को जानी मानी कथाकार मन्नू भंडारी की स्मृति में आयोजित सभा में आये उनके प्रशंसकों ने कहीं । साहित्य अकादेमी के सभागार में शाम ५ बजे से दिवंगत कथाकार मन्नू भंडारी की स्मृति सभा का आयोजन राधाकृष्ण प्रकाशन और हंस पत्रिका परिवार की और से किया गया था।
मन्नू भंडारी की यादें साझा करते हुए वरिष्ठ कथाकार मृदुला गर्ग ने कहा, मन्नू जी उन बिरले इनसानों में थीं जिनमें अहंकार बिल्कुल नहीं था. एक बार उन्होंने कहा था कि मुझे जितना प्यार सम्मान मिला उतना मैंने लिखा नहीं. यह उनकी विनम्रता थी. उन्होंने किसी विचारधारा या विमर्श के दबाव में नहीं लिखा, स्वेच्छा से जो चाहा वही लिखा.
कथाकार-पत्रकार मृणाल पांडे ने कहा, मन्नू जी के लेखन और जीवन में सत्यनिष्ठता की कीमत चुकाई, पर इसका कोई हल्ला नहीं मचाया. वह ईमानदार थीं. मैं उनकी ईमानदारी की कायल थी. वह हमारी सदय अग्रजा और स्नेही मित्र थीं. मूल्यों से समझौता नहीं करना उनका स्वभाव था. उन्होंने कहा, मेरी मां शिवानी मन्नू जी की बहुत बड़ी फैन थीं. हमें फक्र है़ कि हम मन्नू भंडारी युग में जिये.
वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी ने कहा, मेरी नजरों में मन्नू भंडारी की एक सौम्य छवि बनी हुई है. साधारण की महिमा का जो एक अभियान हमारी आधुनिकता में चला है, उसकी वह मुकाम थीं. उनका उत्तर जीवन शुरू हो गय़ा है और यह जीवन उनके भौतिक जीवन से भी लंबा होगा यही कामना करते हैं.
सुपरिचित रंगकर्मी अमाल अल्लाना ने एक संदेश में मन्नू जी के उपन्यास महाभोज के नाट्य रूप की प्रस्तुति की यादें साझा करते हुए कहा, उस उपन्यास के नाट्य रूपांतर के समय हर बैठक में वे आईं और मुझे पूरा सहयोग दिया. एक युवा निर्देशक के प्रति उनकी यह उदारता मुझे हमेशा याद रही. हमेशा याद रहेगी.
कथाकार गीतांजलि श्री ने कहा, मन्नू जी का लेखन फेमिनिज्म के संदर्भ में हमारी पीढी को एक अलग दृष्टि देने वाला साबित हुआ. उनकी दृढ़ता और स्पष्टता ने हमें काफी प्रेरणा दी.
वरिष्ठ ममता कालिया ने कहा, एक लेखक का सबसे बड़ा जीवन यह होता है कि पाठक उसके लेखन को पढ़ते रहें. मन्नू जी ऐसी ही लेखक थीं. वे सहज सरल और क्षमाशील थीं. बहुत ही सहज औऱ उदार इंसान थी. उन्हें अपने आप पर, बड़ी लेखिका होने पर कभी अभिमान नही था. ममता ने कहा, मन्नू जी ने आपका बंटी जैसा उपन्यास तब लिखा जब लोग संबंधों को गोपनीय रखते थे, उन्होंने महाभोज तब लिखा जब हिंदी में दलित लेखन का चलन नहीं हुआ था.
राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा कि हमें अपने राधाकृष्ण प्रकाशन से मन्नू भंडारी का समस्त लेखन प्रकाशित करने का सौभाग्य मिला.. मन्नू जी स्नेह भी बहुत करती थीं, चिंता भी बहुत करती थीं, और नाराज भी बहुत होती थीं. सब ऐसे ही सहज जैसे एक माँ करती है. मुझे लगता है कि मन्नू जी को बिना स्त्रीवादी हुए स्त्रीवाद के लिए बिना लोकप्रिय साहित्य लिखे पाठक प्रिय रचनाओं के लिए और इस सबसे ज्यादा अपने लेखकीय आत्मविश्वास और सहजता के लिए याद किया जाता रहेगा.
जाने माने रंगकर्मी देवेंद्रराज अंकुर ने मन्नू भंडारी को याद करते हुए कहा,मन्नू जी ने जमकर लिखा औऱ जमकर जीवन जिया. उनके उपन्यास महाभोज को मैंने ही 1981 में पहली बार मंचित किया था, यह एक महत्वपूर्ण रचना थी खासकर राजनीति को लेकर. मन्नू जी क़े शांत सहज व्यक्तित्व से लगता नहीं था कि वे इस तरह राजनीति की गुत्थियों को अपनी रचना में उतार सकती हैं. अंकुर ने कहा, 40 वर्षो क़े हिन्दी रंगमंच में महाभोज कई बार मंचित हुआ औऱ देश की कई भाषाओं में मंचित हुआ.
स्मृति सभा में मन्नू भंडारी पर केंद्रित एक डॉक्यूमेंट्री के अंश भी दिखाये गए. इसके बाद शास्त्रीय गायक विद्या शाह ने कबीर,सूर आदि संत कवियों के पदों का गायन किया.. गौरतलब है कि मन्नू भंडारी का १५ नवंबर निधन हो गया था ,वरिष्ठ लेखिका के निधन पर साहित्यजगत ने गहरा शोक जताया है
मन्नू भंडारी के बारे में
मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल 1931 को मध्य प्रदेश के भानपुरा में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई अजमेर, राजस्थान में हुई। कोलकाता एवं बनारस विश्वविद्यालयों से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। पेशे से अध्यापक मन्नू जी ने लंबे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज में पढ़ाया।
हिन्दी साहित्य के अग्रणी लेखकों में गिनी जाने वालीं मन्नू भण्डारी ने बिना किसी वाद या आंदोलन का सहारा लिए हिन्दी कहानी को पठनीयता और लोकप्रियता के नए आयाम दिए। ‘यही सच है’ शीर्षक उनकी कहानी पर आधारित बासु चटर्जी निर्देशित फिल्म ‘रजनीगंधा’ ने साहित्य और जनप्रिय सिनेमा के बीच एक नया रिश्ता बनाया। बासु चटर्जी के लिए उन्होंने कुछ और फिल्में भी लिखीं। उनकी कई कहानियों का नाट्य-मंचन भी हुआ। ‘महाभोज’ उपन्यास का उनका नाट्य-रूपांतरण आज भी देश भर में अनेक रंगमंडलों द्वारा खेला जाता है।
उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ को दाम्पत्य जीवन तथा बाल-मनोविज्ञान के संदर्भ में एक अनुपम रचना माना जाता है। जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने ‘एक कहानी यह भी’ नाम से अपनी आत्मकथा भी लिखी जिसे मध्यवर्गीय परिवेश में पली-बढ़ी एक साधारण स्त्री के लेखक बनने की दस्तावेजी यात्रा के रूप में पढ़ा जाता है।
हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठ कथाकार एवं संपादक राजेन्द्र यादव की जीवन-संगिनी रहीं मन्नू जी ने अपने लेखन में स्वतंत्रता-बाद की भारतीय स्त्री के मन को एक प्रामाणिक स्वर दिया और परिवार की चहारदीवारी में विकल बदलाव की आकांक्षाओं को रेखांकित किया।
मन्नू भंडारी कुछ समय से अस्वस्थ थीं और एक सप्ताह उपचाराधीन रहने के उपरांत 15 नवंबर को अस्पताल में ही उन्होंने अंतिम सांस ली थी।
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