माता पिता की सेवा पर निबंध mata pita ki seva par nibandh माता पिता के प्रति हमारा कर्तव्य बच्चों का माता-पिता के प्रति कर्तव्य पर निबंध Children's Dut
माता पिता के प्रति हमारा कर्तव्य
माता पिता के प्रति हमारा कर्तव्य पर निबंध माता पिता के प्रति बच्चों का कर्तव्य बच्चों का माता-पिता के प्रति कर्तव्य पर निबंध Essay on Children's Duty towards Parents in Hindi माता-पिता की सेवा पर निबंध mata pita ki seva par nibandh - हमारे यहाँ माँ बाप का दर्जा स्वर्ग से बढ़कर माना गया है या यों कहो कि ईश्वर का ही दूसरा रूप हमारे माता - पिता है। हम बड़े ही भक्ति और प्रेम के साथ देवी देवताओं की पूजा करते हैं ,पर माँ - बाप की पूजा और सेवा करना तो इससे भी बढ़कर हमारा कर्तव्य है क्योंकि माँ बाप तो प्रत्यक्ष देवी देवता है। उनके ही दया और लालन-पालन के कारण आज हम कुछ करने धरने लायक बन सके हैं। गर्भ से लेकर आज तक उनके किये हुए उपकारों से उऋण होना हमारे लिए कठिन ही नहीं प्रत्युत असंभव है।
संतान के प्रति स्नेह
माँ बाप के संतान के प्रति सच्चा और स्वाभाविक स्नेह रहता है ,उस स्नेह में स्वार्थ की गंध भी नहीं रहती है। वह स्नेह उनके ह्रदय में उपजता है और ह्रदय के ही खून में सींच - सींचकर उसे बढ़ाते है। वह बराबर बढ़ता ही जाता है। उसका बढ़ना कभी भी बंद नहीं होता है। वह स्नेह सदा ही हरा -भरा रहता है ,सूखने और मुरझाने का अवसर ही नहीं आता है। माँ -बाप का अपना कुछ नहीं रह जाता है। वे अपने तमाम सुखों और भोग -विलासों को संतान के आगे भूल जाते हैं। उनके मन और प्राण संतान में ही अटके रहते हैं और तो क्या ,वे अपने आपको को भी उन पर ही न्योछावर कर देते हैं।
दरिद्र हो या धनी सभी की यही इच्छा रहती है कि उनकी संतान सच्चे अर्थ में मनुष्य बने। सभी माँ -बाप अपनी संतान को सुखी देखना चाहते हैं और उनसे कल्याण के लिए सब कुछ झेलने के लिए तैयार रहते हैं। दरिद्र माँ -बाप अपनी सतांन की शिक्षा और भरण -पोषण के लिए अपने मान - अपमान को तिलांजलि देकर घर-घर भीख मांगने में भी संकोच नहीं करते हैं। स्वयं उपवास करके भी अपनी संतान को खिलाने -पहिनाने के लिए वे ख़ाक छानते फिरते हैं। बीमार हो जाने पर उनकी दवा - दारु में अपने कपड़े -लत्ते ,जगह -जमीन ,शरीर के गहने और घर के बर्तन बेच देने में भी आनाकानी नहीं करते हैं।
बच्चों का कर्तव्य
उनके स्नेह का मूल्य तो प्राण देकर भी चुकाया नहीं जा सकता है। ऐसी दशा में भी जो संतान अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं ,भला उसका उद्धार कैसे हो सकता है और वह अपने जीवन में कैसे सुखी रह सकता है ? इस संसार में उनकी भक्ति ,आज्ञा -पालन और सेवा सुश्रुषा करना प्रत्येक संतान का सबसे बड़ा कर्तव्य है। बुढ़ापे में उनकी सुख शान्ति और भरण -पोषण का ध्यान रखना उसका परम पवित्र धर्म है। माता-पिता बराबर सुखी रहें ,इस बात के लिए प्रत्येक संतान को चेष्टा करनी चाहिए। माता-पिता के प्रसन्न रहने से ही सभी देवी देवता प्रसन्न होते हैं। संतान को अपने सभी कार्यों में सफलता मिलती है। उनका जीवन सुखमय और आनंद से परिपूर्ण रहता है।
माता पिता की भक्ति का उदाहरण
हमारा पुराना इतिहास ऐसे ऐसे अनेक उदाहरणों से भरा है। ऋषि कुमार श्रवण का अपने माँ - बाप को कंधे पर लटकाकर तीर्थों में घुमाना ,तनिक से इशारे पर राजा ययाति के पुत्र का पिता की भक्ति के एक से एक बढ़कर प्रमाण है। पिता की इच्छा न रहने पर भी ,उनकी बात रखने के लिए राम का राज्य छोड़कर चौदह वर्ष तक वन वन की ख़ाक छानना पिता की भक्ति का जीता जागता नमूना है। पिता के लाख मना करते रहने पर भी उनके लिए हस्तिनापुर के राज्य पर लात मारकर भीष्म का जन्म भर अविवाहित रहना ,इसको याद करके आज भी हमारी आँखें तर हो जाती है। माता-पिता की भक्ति का ऐसा आदर्श भला और कहाँ खोजा जा सकता है ?
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