अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय atal bihari vajpayee biography अटल बिहारी वाजपेयी जीवन परिचय इन हिंदी 25th december atal vihari jivan parichay
अटल बिहारी वाजपेयी
आजीवन ब्रह्मचर्य और वाक् पटुता युक्त एक महान व्यक्तित्व का विराट दर्शन, जिसमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की संकल्पशक्ति, भगवान श्रीकृष्ण की राजनीतिक कुशलता और आचार्य चाणक्य की दृढ़ कूटनीति का परस्पर अनुपातिक सांयोगिक त्रिवेणी प्रवाहित होता रहा हो और जिसने अपने जीवन का प्रति क्षण और शरीर का प्रति कण राष्ट्रसेवा के महायज्ञ में सर्वदा अर्पित करते रहा हो, उस महान व्यक्तित्व का ही नाम ‘अटल बिहारी वाजपेयी’ है। उस महान व्यक्ति के महान व्यक्तित्व का दिव्य दर्शन विराट महान भारत के रूप में देखा जा सकता है .....
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं, कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है, यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद के सुप्रसिद्ध प्राचीन तीर्थस्थान ‘बटेश्वर’ में एक वैदिक-सनातन धर्मावलंबी कान्यकुब्ज ब्राह्मण पं० श्यामलाल जी के पुत्र पं० कृष्ण बिहारी जीविका हेतु ग्वालियर में अध्यापक पद पर नियुक्त हुए। वे ग्वालियर राज्य के सम्मानित कवि भी थे। यहीं ग्वालियर के ‘शिंदे की छावनी’ में माता श्रीमती कृष्णा देवी के तृतीय संतान स्वरुप 25 दिसम्बर सन् 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में अटल बिहारी जी का जन्म हुआ था। परिवार का विशुद्ध भारतीय वातावरण अटल बिहारी जी के रग-रग में बचपन से ही बसने लगा था। चुकी परिवार 'संघ' के प्रति विशेष निष्ठावान था। परिणामत: बचपन से ही अटल बिहारी जी का झुकाव भी ‘संघ’ की ओर हुआ और वे ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के एक कर्मठ ‘स्वयंसेवक’ बन गए। फिर वंशानुक्रम और वातावरण दोनों ने मिलकर अटल बिहारी जी को बाल्यावस्था से ही एक प्रखर ‘राष्ट्रभक्त’ बना दिया।
जिन दिनों अटल बिहारी जी इंटरमीडिएट के छात्र थे, उन्हीं दिनों उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता “हिंदू, तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय” लिखी थी और सन् 1942 में लखनऊ के कालीचरण कॉलेज के आई. टी. सी कैम्प (प्रारम्भिक प्रशिक्षण कैंप) में परमपूज्य गुरुजी के समक्ष उन्होंने अपनी इस कविता को पढ़ी।
होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूँ जग को गुलाम।
मैंने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम।
गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए?
कब दुनिया को हिंदू करने घर-घर में नरसंहार किए?
कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी तोड़ीं मस्जिद?
भू-भाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय।
परम पूज्य गुरूजी तथा समस्त श्रोता अटल बिहारी जी की इस कविता को सुन कर बहुत प्रभावित हुए थे। प्रारम्भिक जीवन से ऐसे ही कविताओं और अपने उद्गार से जन-जागृति के अटल बिहारी जी ध्वज-वाहक थे।
सन् 1942 में जब गाँधी जी ने 'अँग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा दिया, तो ग्वालियर भी अगस्त क्रांति की लपटों में आ गया। छात्र वर्ग आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे। अटल बिहारी जी तो सबके आगे ही रहते थे। आंदोलन के उग्र रूप धारण करते ही उनके पिता ने उन्हें अपने पैतृक गाँव बटेश्वर भेज दिया। वहाँ भी क्रांति की आग धधक रही थी। अटल बिहारी जी पुलिस की लपेट में आ गए और तब उन्हें नाबालिग के कारण आगरा जेल की ‘बच्चा-बैरक’ में रखा गया। देश-प्रेम के कारण उन्हें चौबीस दिनों की प्रथम जेलयात्रा प्राप्त हुई, जिसे अटल बिहारी जी आजीवन अपना सौभाग्य मानते रहे थे ।
राष्ट्रभक्ति की प्रखर भावना को देख कर पं. दीनदयाल उपाध्यान सन् 1946 में अटल बिहारी जी को लखनऊ ले आए। लखनऊ में वे ‘राष्ट्रधर्म’ के प्रथम संपादक नियुक्त किए गए। उनके परिश्रम और कुशल संपादन से 'राष्ट्रधर्म' ने कुछ ही समय में अपना राष्ट्रीय स्वरूप को प्राप्त कर लिया। हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने वाले अटल बिहारी जी ने फिर सन 1950 ई. में 'दैनिक स्वदेश' के संपादक का कार्यभार संभाला। परन्तु आर्थिक संकट के कारण बड़े ही दुखी मन से उन्होंने इसे बंद कर दिया। फिर लखनऊ से प्रकाशित 'वीर अर्जुन' के संपादक का दायित्व संभाला। अनुभव की परिपक्वता, विचारों की गंभीरता और भाषा की स्पष्टता ने 'वीर अर्जुन' की ख्याति बढ़ा दी। अटल जी की कलम में कुछ ऐसा जादू रहा कि पत्र की प्रति हाथ में आते ही लोग पहले संपादकीय पढ़ते थे, बाद में उसके समाचार आदि।अटल बिहारी जी ‘भारतीय जनसंघ’ के संस्थापक सदस्य थे। भारतीय मनीषा के आचार्य, राष्ट्रीय मान-सम्मान के संरक्षक पूज्य डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने तरुण अटल बिहारी जी में कर्मठता, निष्ठावान और भारतीय संस्कृति के ज्ञाता जैसे गुणों को भाँप लिया और अपने निजी सचिव के रूप में रख लिया। अटल बिहारी जी महान नेता डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ छाया की तरह लगे रहते थे। डॉ. मुखर्जी की सभाओं में उमड़ आती जनता को अटल बिहारी जी भी संबोधित किया करते थे। उनके व्याख्यानों की शैली डॉ. मुखर्जी को बहुत पसंद थी। अपना हाथ हवा में लहराते हुए, विनोदपूर्ण शैली में जब वे चुटीले व्यंग्य करते थे, तो तालियों की गड़गड़ाहट से सभास्थल गूँज उठता था। अब अटल बिहारी जी की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर ‘संघ’ के वक्ता के रूप में बन गई। अटल बिहारी जी के भाषणों का ऐसा जादू रहा कि लोग उन्हें सुनते ही रहना चाहते थे।
दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते,
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते
मैं अखिल विश्व का गुरू महान, देता विद्या का अमर दान,
मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान।
सन 1955 में अटल बिहारी जी भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में कूद पड़े, किंतु साधनहीनता के कारण वे विजयी न हो सके। सन् 1957 में द्वितीय आम चुनाव में बलरामपुर से संसद के रूप में जनसंघ के प्रत्याशी के रूप विजयश्री ने अटल बिहारी जी को वरण की। उन्होंने अपार जनसमूह से कहा था – ‘यह विजय मेरी नहीं, यह बलरामपुर क्षेत्र के समस्त नागरिकों की है। मैं वचन देता हूँ कि एक सांसद के रूप में इस क्षेत्र की सेवा एक राष्ट्रभक्त सेवक के रूप में करूँगा।‘ और ऐसा ही किया भी उन्होंने।
धोती, कुर्ता और सदरी पहने, भरे-भरे गोल चेहरे वाले गौरवर्णी अटल जी संसद में अपना प्रथम भाषण देने जब उठे, तब सबकी दृष्टि तो उन पर टिक गईं, पर लोग हिंदी में उन्हें नहीं सुनना चाहते थे, किंतु अटल बिहारी जी अबाध रूप से हिंदी में ही बोलते रहे। और एक दिन ऐसा भी आया कि संसद सदस्यों ने उनकी भाषण-शैली और तथ्य प्रस्तुति कला की प्रशंसा करना शुरू कर दिया। फिर तो उसके बाद जब तक अटल बिहारी जी संसद में रहे, उनके भाषण सुनने के लिए सांसद दौड़-दौड़कर संसद में कक्ष में पहुँच जाया करते थे। वे एक सर्वमान्य सर्वश्रेष्ठ सांसद रहे, जिनके भाषण के समय न कोई टोका-टाकी होती और न ही कोई शोरशराबा ही। अटल बिहारी जी का एक ही अटल स्वप्न था .....
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक, आजादी पर्व मनाएँगे॥
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से, कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें॥
हिन्दी को प्रथम बार विश्व मंच पर लाने का सार्थक प्रयास अटल बिहारी वाजपेयी जी ने ही किया था। प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 1975 में नागपुर में हुआ था। जिसमें प्रारित प्रस्ताव में कहा गया था, संयुक्त महासंघ में हिन्दी को अधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिलाया जाय। इसके दो वर्ष बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 4 अक्टूबर 1977 को जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन में में हिन्दी में जोरदार भाषण दिए थे। अटल बिहारी जी के उस भाषण से विश्व भर के हिन्दी प्रेमियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी थी।
6 अप्रैल 1980 का दिन अटल जी के जीवन में विशेष महत्वपूर्ण रहा। इसी दिन बंबई में भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ और अटल बिहारी जी उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए। ऐसे अवसर पर उन्होंने अपनी उद्भावना को स्पष्ट करते हुए कहा था ........
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा, अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
वरिष्ठ और सर्वमान्य अटल बिहारी वाजपेयी जी राजनीति के क्षेत्र में चार दशक तक सक्रीय रहे। वह लोकसभा में नौ बार तथा राज्यसभा में दो बार चुने गए थे, जो अपने आप में एक कीर्तिमान है। 25 जनवरी, 1992 को उन्हें ‘पद्मविभूषण’ से अलंकृत किया गया। 28 सितंबर, 1992 को उन्होंने उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 'हिंदी गौरव' के सम्मान से सम्मानित किया। 20 अप्रैल 1993 को उन्हें कानपुर विश्वविद्यालय ने मानद ‘डी.लिट्’ की उपाधि प्रदान की। 1 अगस्त 1994 को वाजपेयी को 'लोकमान्य तिलक सम्मान' पारितोषिक प्रदान किया गया, जो उनके सेवाभावी, स्वार्थत्यागी तथा समर्पणशील सार्वजनिक जीवन के लिए था। 17 अगस्त, 1994 को संसद ने उन्हें सर्वसम्मति से 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' का सम्मान दिया। देश के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू जी ने अपने जीवन काल में ही घोषणा कर दी थी कि अटल बिहारी वाजपेयी में भारत के भावी प्रधान मंत्री बनाने की योग्य क्षमता दिखाई देती है, जो कालांतर में सत्य भी हुई।
अटल बिहारी वाजपेयी जी समयानुसार भारत के तीन बार प्रधान मंत्री बने। प्रथम बार 16 मई से 1 जून, 1996 तक, 16 दिनों के लिए। द्वितीय बार 1998 में और फिर 19 मार्च, 1999 से 22 मई, 2004 तक। प्रधान मंत्री के रूप में उनकी दूरगामी सोच, कविताओं, भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र, पोखरण टेस्ट, पाकिस्तान से सम्बन्धों में सुधर की पहल, कारगिल में भारत को मिली जीत, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना और अंतर्राष्टीय स्तर पर भारत का कद बढ़ाने के लिये हमेशा याद किया जायेगा। वे देश के लिये पिता तुल्य थे, जिनमें न सिर्फ अपनी पार्टी को, बल्कि विपक्ष को साथ लेकर चलने की अद्भुत क्षमता थी।
समयानुसार सर्वश्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी 2005 से राजनीति से सन्यास लेकर नयी दिल्ली में 6-A कृष्ण मेनन मार्ग स्थित सरकारी आवस में रहते थे । 2015 में राष्ट्र ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपनी मौत को देखा, परखा और देश की आवश्यकता को स्मरण कर ढेर दिनों तक उसे अपने सम्मुख खड़े प्रतिक्षारत्त रहने का आदेश दिया और फिर चतुर्दिक शान्ति को देख कर माँ भारती और भारतमाता के ऐसे ओजस्वी सन्तान अटल बिहारी वाजपेयी जी विगत 16 अगस्त 2018 को सूर्य के अस्त होते ही मौत के गले में अपनी बाहें डाले, उस अनंत अदृश्य परम पथ पर शांत और मौन गमन कर गए। शायद उन्होंने अपनी मौत से ठान भी लिया था ....
ठन गई ! मौत से ठन गई !
जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
(अटल बिहारी वाजपेयी जयंती, 25 दिसम्बर, 2021)
- श्रीराम पुकार शर्मा,
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101
सम्पर्क सूत्र – 9062366788.
ई-मेल सम्पर्क – rampukar17@gmail.com
सुंदर
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