बोध कहानी प्रेमचंद बोध कहानी बोध कहानी का सारांश bodh kahani in hindi बोध कहानी प्रेमचंद के प्रश्न उत्तर premchand ki kahani bodh bodh kahani in hindi
बोध कहानी प्रेमचंद
बोध कहानी बोध कहानी का सारांश bodh kahani in hindi बोध कहानी प्रेमचंद के प्रश्न उत्तर premchand ki kahani bodh bodh kahani in hindi मुंशी प्रेमचंद की कहानी
बोध कहानी का सारांश
प्रस्तुत पाठ या कहानी बोध,लेखक प्रेमचंद जी के द्वारा रचित है ⃒ इस कहानी के माध्यम से भौतिक पदार्थों पर नैतिक मूल्यों की विजय दिखाई गई है ⃒ यह एक प्रेरणादायक कहानी है, जो सामाजिक मूल्यों और मानव व्यवहार पर आधारित है ⃒
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, पंडित चंद्रधर एक स्कूल में अध्यापक थे ⃒ लेकिन वे अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं रहते थे ⃒ वे हमेशा सोचते रहते कि कहीं और नौकरी करते तो अब तक हाथ में चार पैसे होते, आराम से जीवन गुजरता ⃒ इस नौकरी में तो महीनेभर प्रतीक्षा करने के बाद कहीं पंद्रह रुपए देखने को मिलते हैं ⃒ उसे भी खत्म होते देर नहीं लगती ⃒ न खाने का सुख, न पहनने का आराम ⃒ पंडित जी के पड़ोस में दो महाशय और रहते थे ⃒ एक ठाकुर अतिबल सिंह, वे थाने में हेड कांस्टेबल थे ⃒ दूसरे मुंशी बैजनाथ, वे तहसील में सियाहेनवीस थे ⃒ वास्तव में देखा जाए तो उन दोनों आदमियों का वेतन पंडित जी से कोई अधिक न था, लेकिन फिर भी उनकी ज़िंदगी चैन की और सुखमय थी ⃒ दोनों के पास नौकर-चाकर होने के साथ-साथ मोहल्ले वालों के दिल में उनके लिए पर्याप्त सम्मान भी था ⃒ पंडित जी उनके ठाठ-बाट देखकर कुढ़ते और अपनी किस्मत को कोसते ⃒ यहाँ तक कि उन दोनों के लड़कों को पढ़ाना भी पड़ता ⃒ वे दोनों पंडित जी के घर कभी आटा तो कभी दूध व सब्जी भेज देते थे ⃒ कभी-कभार तो पंडित जी को उनसे बुरा-भला भी सुनने को मिल जाता था, परन्तु बेचारे अपमान के ज़हर को अमृत समझकर पी जाते थे ⃒ अपनी इन स्थितियों से निकलने के लिए पंडित जी ने कई प्रार्थनापत्र लिखे, अफ़सरों की खुशामदें कीं पर कुछ न हुआ ⃒ आखिरकार, वे हार मानकर बैठ गए ⃒ लेकिन वे इन सब के बावजूद भी बच्चों को मन लगाकर पढ़ाना नहीं छोड़े, जिससे उनके अफ़सर बहुत ख़ुश रहते थे ⃒ बस्ती के लोग उनसे संतुष्ट थे ⃒ परिणाम स्वरूप, उन्हें कुछ इनाम भी मिलता रहता और अवसर मिलने पर अफसरों के द्वारा उनका वेतन वृद्धि भी होता रहता ⃒
एक बार सावन के महीने में जब मुंशी बैजनाथ और ठाकुर अतिबल सिंह ने परिवार सहित अयोध्या की यात्रा की योजना बनाई तो उन्होंने पंडित जी को भी अपने खर्च से साथ ले गए ⃒ बिल्लौर से रात को एक बजे ट्रेन थी ⃒ ट्रेन आते ही भगदड़ के कारण मुंशी जी पहले चढ़ गए तथा ठाकुर साहब और पंडित जी साथ थे ⃒ जिस डिब्बे में ठाकुर साहब बैठना चाहते थे, उसमें केवल चार यात्री थे ⃒ ठाकुर साहब ने डाँटकर एक मुसाफ़िर को उठने के लिए कहा तो वह बोला – यह थाना नहीं है, जरा ज़बान सँभालकर बात कीजिए ⃒ जवाब में जब ठाकुर साहब ने उसका परिचय पूछा तो उस मुसाफ़िर ने जवाब दिया – हम वही हैं, जिनपर आपने जासूसी का अपराध लगाया था और जिनसे आप पच्चीस रुपये लेकर टले थे ⃒ इतने में दूसरा लेटा हुआ मुसाफ़िर ठहाका लगाकर बोल उठा – अरे दारोगा साहब, आप ही नीचे क्यों नहीं बैठ जाते ⃒ यह थाना थोड़े ही है कि आपके राज में फ़र्क पड़ जाएगा ⃒ जब ठाकुर साहब ने उससे भी परिचय पूछा तो उसने कहा – आपने मेरी सूरत भले न देखी होगी, पर आपके डंडे ने देखी है ⃒ इसी गाँव के मेले में आपने मुझे बिना बात के डंडे लगाए थे ⃒
पंडित जी अब तक चुपचाप खड़े थे ⃒ डरते थे कि कहीं मारपीट न हो जाए ⃒ लेकिन फिर भी उन्होंने अवसर पाते ही ठाकुर साहब को समझाया ⃒ ज्यों ही तीसरा स्टेशन आया, ठाकुर साहब ने बाल-बच्चों को वहाँ से निकालकर दूसरे डिब्बे में बैठाया ⃒ जबतक इधर दोनों मुसाफिरों ने ठाकुर साहब का सामान उठाकर ज़मीन पर फेंक दिया ⃒ दूसरे डिब्बे में जाते वक़्त दोनों ने ठाकुर साहब को धक्का दिया, वे प्लेटफार्म पर गिर पड़े, बाद में इंजन की सिटी की आवाज़ सुनकर पुनः गाड़ी में जाकर बैठ गए ⃒
उधर मुंशी बैजनाथ भी भारी मुसीबत में थे ⃒ उनके पास पैर फैलाने तक की जगह न थी ⃒ उनकी तबियत भी ख़राब हो गई थी ⃒ एक बार उलटी हुई और पेट में मरोड़ पड़ने लगे ⃒ एक वक़्त ऐसा भी आया कि उनकी तबियत काबू से बाहर हो गई और वे स्टेशन पर उतर पड़े तथा नीचे लेट गए ⃒ उनकी पत्नी और सब लोग घबरा गए ⃒ इस प्रकार मुंशी जी की नाजुक हालत से घबराकर सब कोई अपने सामान के साथ वहीं प्लेटफार्म पर उतर गए ⃒ परन्तु, एक ट्रंक ट्रेन में ही रह गया था ⃒ ट्रेन चली गई थी ⃒ जब स्टेशन मास्टर ने यह हाल देखा तो समझे हैजा हो गया है ⃒ हुक्म दिया, रोगी को अभी बाहर ले जाओ ⃒ मजबूर होकर सब लोग मुंशी जी को एक पेड़ के नीचे उठा ले गए ⃒ उनकी पत्नी रोने लगी ⃒ हकीम डॉक्टर की तलाश हुई ⃒ मालूम पड़ा पास ही एक छोटा सा अस्पताल है ⃒ उन लोगों की जान में जान आई ⃒ जब उन लोगों को मालूम हुआ कि डॉक्टर साहब बिल्लौर के रहनेवाले हैं ⃒ सुनकर पीड़ित परिवार का ढाढ़स बंधा ⃒ फिर दारोगा जी मुंशी जी को लेकर अस्पताल दौड़े ⃒
हालाँकि, डॉक्टर चोखेलाल पेशे से कंपाउण्डर था, पर लोग आदर से डॉक्टर कहा करते थे ⃒ उन्हें देखकर मुंशी बैजनाथ धीरे से बोले – अरे, ये तो बिल्लौर के ही हैं, भला सा नाम है ⃒ तहसील में आया-जाया करते हैं ⃒ क्यों महाशय, मुझे पहचानते हो ? जवाब में चोखेलाल बोलते हैं – जी हाँ, खूब पहचानता हूँ ⃒ जब मैं तहसील में लगान भरने जाता हूँ तो आप डाँटकर अपना हक वसूल कर लेते हैं ⃒ न दूँ तो शाम तक खड़े रहना पड़े ⃒ अब मेरी फ़ीस के दस रुपये निकालिए और दवा लेकर चलते बनिए ⃒ और अगर ठहरना चाहें तो दस रुपये रोज लगेगा ⃒ जब दारोगा जी ने बैजनाथ की स्त्री से रुपये माँगे, तब उन्हें बक्से की याद आई कि वह तो गाड़ी में ही छूट गया ⃒ बैजनाथ की स्त्री ने छाती पीट ली ⃒ दारोगा जी के पास भी अधिक रुपये न थे ⃒ वे किसी तरह दस रुपये निकालकर चोखेलाल को दिए ⃒ बदले में मुंशी जी को दावा मिला ⃒ दूसरे दिन मुंशी जी की स्त्री का गहना बाज़ार में बेचा गया, तब जाकर मुंशी जी की हालत सुधरी, तब रात को गाड़ी में बैठे और अयोध्या पहुँचे ⃒
जब अयोध्या पहुँचकर कहीं ठहरने की जगह न मिली तो एक साफ़ जगह देखकर बिस्तर बिछाए गए ⃒ इतने में बिजली चमकने लगी और बूँदें गिरने लगीं ⃒ सभी परेशान हो गए ⃒ अचानक नदी की तरफ से आते हुए एक व्यक्ति को संबोधित करते हुए पंडित जी ने पूछा – क्यों भाई साहब, यहाँ कहीं यात्रियों के ठहरने के लिए जगह मिलेगी ? इतने में उस व्यक्ति की नज़र जब पंडित जी पर पड़ी तो उसने उन्हें झुककर पैर छू लिया और बोला – गुरु जी आपने पहचाना नहीं, मैं कृपाशंकर , आपका पुराना शिष्य ⃒ पंडित जी अपने शिष्य कृपाशंकर को पहचानने में देरी नहीं की ⃒ कृपाशंकर ने अपना सौभाग्य समझते हुए पंडित जी से आग्रह करते हुए कहा – ठहरने की जगह की चिंता न कीजिए, घर चलिए ⃒ जवाब में पंडित जी बोले – मेरे साथ दूसरे लोग और उनके परिवार भी हैं ⃒ तभी कृपाशंकर ने कहा – गुरु जी, सबको साथ ले चलिए ⃒ मेरा बड़ा मकान खाली पड़ा है ⃒ आराम से दो-चार दिन ठहरिए ⃒ मेरा परम सौभाग्य है कि आपकी सेवा करने का कुछ अवसर मिला ⃒
कृपाशंकर ने कई कुली बुलाए तथा सामान उठवाया और सबको अपने मकान पर ले गया ⃒ कृपाशंकर ने ख़ूब सबकी सेवा किया ⃒ उसकी सेवा से सब मुग्ध हो गए ⃒ सभी खा-पीकर सो गए, पर पंडित चन्द्रधर को नींद नहीं आई ⃒ वास्तव में, पंडित जी ने आज शिक्षक का गौरव समझा और उन्हें आज इस पद की महानता का ज्ञान हुआ ⃒ सभी लोग तीन दिन तक अयोध्या में रहे ⃒ उन्हें किसी बात का कष्ट न हुआ ⃒ कृपाशंकर ने खुद उनके साथ जाकर प्रत्येक धाम के दर्शन कराए ⃒ जब सभी वापस होने लगे तो कृपाशंकर उन्हें स्टेशन तक पहुँचाने आया ⃒ पंडित जी के चरण छूटे हुए कहा – इस सेवक को याद करते रहिएगा ⃒ जब पंडित जी अपने घर पहुँचे तो उनके स्वभाव में काफ़ी बदलाव आ चुका था ⃒ इस प्रकार, उन्होंने फिर कभी किसी दूसरे विभाग में जाने की कोई ख्वाहिश नहीं रखी...... ⃒ ⃒
बोध कहानी प्रेमचंद के प्रश्न उत्तर
प्रश्नोत्तर
प्रश्न-1 – पंडित चंद्रधर क्यों पछताते थे ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, पंडित चंद्रधर इसलिए पछताते थे क्योंकि वह पेशे से एक शिक्षक थे और उनकी आमदनी बहुत ज्यादा नहीं थी ⃒
प्रश्न-2 – मुसाफ़िरों ने ठाकुर साहब के साथ कैसा व्यवहार किया ?
उत्तर- मुसाफ़िरों ने ठाकुर साहब के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया ⃒ उनका सामान नीचे फेंक दिया गया और एक बार तो उन्हें धक्का भी दिया गया, जिसके कारण वे प्लेटफार्म पर गिर पड़े ⃒
प्रश्न-3 – पंडित जी अपने छात्रों से कैसा व्यवहार करते थे ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, पंडित जी अपने छात्रों को मन लगाकर पढ़ाते थे तथा उनके साथ प्रेम-पूर्वक व्यवहार किया करते थे ⃒
प्रश्न-4 – ‘अपमान के ज़हर को अमृत समझकर पी जाते’ – यह वाक्य किसके लिए और क्यों कहा गया है ?
उत्तर- ‘अपमान के ज़हर को अमृत समझकर पी जाते’ – यह वाक्य पंडित जी के लिए कहा गया है ⃒ क्योंकि वह मुंशी और ठाकुर की अपमानजनक बातों को भी ख़ामोशी से सहन कर लेते थे, ताकि उनके घर से पंडित जी के घर आटा, दूध, सब्जी आदि आता रहे ⃒
प्रश्न-5 – कृपाशंकर हाथ बाँधे सेवक की भाँति दौड़ता था – क्यों ?
उत्तर- कृपाशंकर हाथ बाँधे सेवक की भाँति दौड़ता था, क्योंकि वह अपने अध्यापक (पंडित जी) का बहुत आदर करता था तथा बहुत वर्षों के बाद कृपाशंकर को अपने अध्यापक की सेवा करने का मौका मिला था ⃒
प्रश्न-6 – सही उत्तर चुनकर √ लगाइए –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
पंडित जी अपने अध्यापक होने के बारे में क्या सोचते थे ?
(बहुत कम आमदनी है)
पंडित जी ठाकुर साहब और मुंशी जी के साथ यात्रा पर जाने के लिए क्यों तैयार हो गए ?
(वे लोग पंडित जी का खर्च देने को तैयार थे)
पंडित जी के शिष्य उनका आदर करते थे क्योंकि –
(पंडित जी अपना काम खूब मन लगाकर करते थे)
सबको मार्ग में ही रेलगाड़ी से उतरना पड़ा क्योंकि –
(मुंशी जी बीमार हो गए थे)
भाषा से...
प्रश्न-7 – नीचे लिखे शब्दों के स्त्रीलिंग रूप लिखिए –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
मुंशी – मुंशियाइन
माली – मालिन
अध्यापक – अध्यापिका
पंडित – पंडिताइन
धोबी – धोबिन
अभिनेता – अभिनेत्री
प्रश्न-8 – योजक कि और संबंध कारक की का प्रयोग करके दो-दो वाक्य बनाइए –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
कि (योजक) – कहने का आशय यह है कि वह सब सुनता है ⃒
कि (योजक) – आज हम सीखेंगे कि रोटी कैसे बनाई जाती है ⃒
की (संबंधकारक) – कृष्ण की प्रेमिका का नाम राधा है ⃒
की (संबंधकारक) – वह मोहन की घड़ी है ⃒
प्रश्न-9 – नीचे विस्मयादिबोधक शब्द दिए जा रहे हैं, उनका प्रयोग कर वाक्य बनाइए –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
अरे ! – अरे ! बन्दर रिक्शा चला रहा है ⃒
हट ! – हट ! चल भाग यहाँ से ⃒
छि: छि: ! – छि: छि: ! कितना मैला कपड़ा है ⃒
शाबाश ! – शाबाश ! तुमने हमारा नाम ऊँचा कर दिया है ⃒
ठीक ! – ठीक ! मैं तुम्हें लेने आ जाउँगा ⃒
बोध कहानी प्रेमचंद से संबंधित शब्दार्थ
सियाहेनवीस – माल के दफ्तर की कच्ची बही या रजिस्टर लिखनेवाला
कोसते – बुरा-भला कहना
मन मारकर रह जाते – इच्छाओं को दबाना
मुसाफ़िर – यात्री
फ़र्क – अंतर
जान में जान आई – राहत मिलना
ढाढ़स – हिम्मत, धीरज
स्मृति – याद
मुग्ध – मोहित
गौरव – महत्त्व या सम्मान
सजल – आँसू भरे
चेष्टा – प्रयास या कोशिश ⃒
COMMENTS