कुटीर उद्योग या लघु उद्योग पर निबंध Essay On Small & Cottage Industries in Hindi hindi essay on kutir udyog aur laghu udyog startup ideas in hindi
कुटीर उद्योग या लघु उद्योग पर निबंध
कुटीर उद्योग या लघु उद्योग पर निबंध कुटीर उद्योग या लघु उद्योग का निबंध hindi essay on kutir udyog aur laghu udyog kutir udyog aur laghu udyog par essay kutir udyog aur laghu udyog nibandh kutir udyog aur laghu udyog par nibandh in hindi business ideas entrepreneur new startup ideas startup ideas in hindi - विज्ञान का प्रभाव कम या अधिक सभी देशों पर पड़ा है। भारत में भी कल - कारखानों की वृद्धि होती जा रही हैं। भारत में भी कल -कारखानों की वृद्धि होती जा रही है। अंग्रेजों के इस देश में राज्य स्थापित करने के कारण इस देश के उद्योग धंधों को काफी क्षति उठानी पड़ी है। पर सन १९४७ ई. से सुधार जारी है।
प्राचीन भारत में घरेलू उद्योग धंधे
एक ऐसा युग था ,जब कि भारत के घरेलू उद्योग धंधों की अपार उन्नति हो चुकी थी। इसीलिए इतिहास में भारतीय कारीगरी का सुनहला युग विख्यात है। यहाँ की हाथ की बनी चीजें सुन्दर ,सस्ती और टिकाऊ होती थी। विदेशों के लोग उन चीज़ों का अत्यधिक व्यापार करते थे। वे इस देश के साथ व्यापार करना गौरव की बात समझते थे। ढाके की मलमल ,बनारसी साड़ियाँ ,आगरा की दरियाँ ,चुनार के मिट्टी के बर्तन और कश्मीर के शाल -दुशाले की याद अभी भी लोगों के ह्रदय को गुदगुदाया करती है।
कुटीर उद्योग के विनाश के कारण
हमारे दुर्भाग्य से देश में अंग्रेजी सरकार की स्थापना हुई। स्वार्थसिद्धि और साम्राज्य विस्तार के लोभ से कल - कारखानों की बढती होने लगी। देश के घरेलू उद्द्योग धंधों को जड़ से उखाड़ डालने की कोशिश की जाने लगी। रंग -विरंगी विदेशी वस्तुओं का जाल बिछाकर लोगों की रूचि बिगाड़ने का यत्न होने लगा। अपने देश की बनी चीज़ों से घृणा करना सिखलाने वाली शिक्षा का प्रचार किया जाने लगा। इस प्रकार हमारे घरेलू उद्द्योग धंधों की जड़ ही हिल गयी।
घरेलू उद्योग धंधे की वर्तमान स्थिति
यंत्रयुग के अभिशाप के कारण हाथ की कारीगरी का सर्वनाश हो चुका है। कल कारखानों की बढ़ती के कारण कारीगरों और शिल्पियों की कमर टूट चुकी है। देश की हाथ की कारीगरी की चीज़ें ,कल कारखानों की बनी चीज़ें के मुकाबले भद्दी ,मँहगी और बेडौल जँचती हैं ,इसीलिए भारत के पेट भरने वाले शिल्पियों और कारीगरों को आज दाने दाने के लिए मुहताज बनना पड़ा है ,किन्तु यह ध्रुव सत्य है कि जब तक देश की कारीगरी की रक्षा नहीं की जा सकेगी ,तब तक देश की दरिद्रता और बेकारी से छुटकारा पाना टेढ़ी खीर है।
कुटीर उद्योग की समस्याएं व निवारण
आज देश स्वतंत्र है। स्वतंत्र भारत के प्रत्येक व्यक्ति का यह पवित्र कर्त्तव्य है कि वह देश की खोयी हुई कारीगरी का उद्धार करने के लिए पूरे मन से चेष्टा करें। राष्ट्रपिता गाँधी जी बराबर इस बात पर जोर पर जोर दिया करते थे कि विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और चरखा तथा करघा का प्रसार करने से ही हमारी गुलामी का अंत होगा। तभी हमारी दरिद्रता दूर होगी। देश में बेकारी का नाम मिट जाएगा और तभी हमारी आर्थिक समस्या का समाधान होगा। इसके लिए हमें शिक्षा का प्रचार करना होगा। सरकार को घरेलू उद्द्योग धंधों की उन्नति और विकास की ओर ध्यान देना पड़ेगा। कल - कारखानों की बनी चीज़ों के मुकाबले हाथ की बनी चीज़ों के प्रति देशवासियों के ह्रदय में आर्थिक अनुराग उत्पन्न करना होगा। सभी शिक्षा केन्द्रों को घरेलू उद्द्योग धंधों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा।
आर्थिक स्वतंत्रता कैसे प्राप्त हो ?
हमें राजनितिक स्वतंत्रता तो मिल गयी ,पर हमारी आर्थिक स्वतंत्रता तो अभी दूर की बात है। देश की जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग आज भी अधिकांश समय बेकारी में ही बीतता है। ऐसी स्थिति में देश कैसे सुखी और संपन्न बन सकता है ? देश की दरिद्रता कैसे दूर हो सकती है ? देशवासियों का जीवन स्तर कैसे ऊपर उठ सकता है ? किसानों ,मजदूरों और दरिद्र जन - जन की आर्थिक स्थिति कैसे सुधर सकती है ? इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है और वह उत्तर यही है कि देश के घरेलू उद्योग धंधों का पुनरुद्धार हो ,उन्हें फूलने -फलने का पूरा सुयोग मिले और उनके प्रचार और विकास में राष्ट्रीय सरकार और जनता का पूरा पूरा सहयोग हो।
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