शाहीन बाग़ : लोकतंत्र की नई करवट’ उस अनूठे आन्दोलन का दस्तावेज़ है जो राजधानी दिल्ली के गुमनाम-से इलाक़े से शुरू हुआ और देखते-देखते एक राष्ट्रव्यापी
शाहीन बाग़ : लोकतंत्र की नई करवट
शाहीन बाग़ आन्दोलन ने देश में लोकतंत्र की शक्ति का अहसास कराया ,उसने यह दिखाया कि शांतिपूर्ण अहिंसक एवं संगठित प्रतिरोध किस तरह नागरिकों को सक्षम बना सकता है. आजादी की बाद अपनी तरह का यह अकेला आन्दोलन था जिसने भारतीय लोकतंत्र को एक नया अर्थ दिया और एक नया रास्ता दिखाया भाषा सिंह ने इस आन्दोलन पर किताब लिखकर और राजकमल प्रकाशन ने प्रकशित कर एक जरूरी काम किया है. यह बनते हुए इतिहास का दस्तावेज है जो पीढ़ियों तक काम आयगा शाहीन बाग – लोकतंत्र की नई करवट के लोकार्पण के मौके पर आयोजित परिचर्चा में ये बात कहीं विद्य्वान वक्ताओं ने.
प्रेस क्लब के सभागर में गुरूवार को सुपरचित पत्रकार भाषा सिंह की नवीनतम किताब शाहीन बाग – लोकतंत्र की नई करवट का लोकार्पण किया गया. राजकमल प्रकाशन के उपक्रम सार्थक से प्रकाशित यह पुस्तक सीएए/एनआरसी के मुद्दे पर शुरु हुए देशव्यापी शाहीन बाग़ आन्दोलन का जीवंत ब्यौरा पेश करती है .
अपनी पुस्तक के लोकार्पण के मौके पर भाषा सिंह ने कहा ‘भारत के लोकतंत्र ने शाहीन बाग़ को जिया है इस आन्दोलन ने भारतीय लोकतंत्र और सविंधान की शक्ति का नए सिरे से अहसास कराया इसपर पुस्तक लिखना मुझे अपने जमीर को, अपने वतन को महसूस करना था.
योजना आयोग की पूर्व सदस्य डॉ. सईदा हमीद ने कहा ‘ शाहीन बाग़ जैसे एक गुमनाम इलाके से उपजे आन्दोलन को ल भाषा सिंह ने खुबसूरत तरीके से सहेजा है. यह आन्दोलन हम सबके लिए एक सबक की तरह है यह लोकतंत्र की ताकत में भरोसा पैदा करने वाला आन्दोलन रहा जिसने एक जगह से शुरु होकर पुरे देश को अपने दायरे मे समेटा. बेशक इसकी अगुवाई आम मुस्लिम महिलायों ने की लेकिन यह समूचे हिंदुस्तान का आन्दोलन बन गया.
वरिष्ठ लेखक व कवि अजय सिंह ने इस मौके पर कहा ‘शाहीन बाग विस्मृति को जिंदा रखने का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है़ .यह संघर्ष नए भारत की खोज का एक आंदोलन था. लेखिका भाषा सिंह ने बड़ी संवेदना, लगाव से यह पुस्तक लिखी है़ जिसने एक नए भारत क़े निर्माण औऱ नवजागरण की राह तैयार की है़ . यह आंदोलन एक नई करवट ही नही लोकतत्र की एक नई इबादत भी लिखेगा.
मशहूर शायर और वैज्ञानिक गौहर रजा ने कहा ‘ भाषा सिहं की यह किताब उन सहमे लोगों को जगाने की कोशिश है़ जो अपने अधिकारों क़े लिए लड़ना चाहते हैं. लेखिका ने शाहीन बाग़ के हवाले से दिखाया है कि शांतिपूर्ण आंदोलन से किस तरह व्यवस्था की तरफ से खड़े किये जा रहे अवरोधों को टक्कर दी जा सकती है.यह आन्दोलन भारत के इतिहास और मुस्लिम समाज में एक ऐसा विस्फोट था जो किसी सेकुलर मुद्दे क़े लिए देश के मुसलमानों द्वारा पहले कभी नही किया गय़ा था.यह एक आन्दोलन है जिसने आगे की नस्लों के लिए एक रास्ता तैयार किया है.किसान आन्दोलन की सफलता की नीव भी शाहीन बाग़ आन्दोलन के तर्ज पर पड़ी .
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वर्धराजन ने कहा, भाषा सिंह की यह किताब मौजूदा नाजुक माहौल में लिखा गया एक अहम दस्तावेज है इसमें हम न केवल अपने समय की सचाई को देख सकते हैं. बल्कि यह किताब लोकतंत्र और अमन को पसंद करने वाले तमाम लोगों के लिए एक प्रेरणा भी बन सकती है.
शाहीन बाग़ आन्दोलन से जुडी रही डॉ.जरीन हलीम ने कहा ‘यह आंदोलन औरतों क़े लिए गर्व था न केवल मुस्लिम औरतों क़े बल्कि देश की उन तमाम औरतों क़े लिए जो अपने अधिकारों क़े लड़ना चाहती हैं. जिस तरह से औरतों ने इस आन्दोलन की अगुवाई की वह विश्वभर में एक मिसाल बना गया और साथ ही एक सन्देश भी दे गया की कैसे शांतिपूर्ण आंदोलन सरकार से अपने अधिकारों के लिए लड़ा जा सकता है.
आयोजन के आरम्भ में राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा ‘राजकमल प्रकाशन 75वे वर्ष मे प्रवेश कर रहा है.आजादी के भी 75 वर्ष पुरे हो रहे हैं.अपनी शुरुवात से ही हम साहित्य के साथ- साथ ऐसे विषयों पर भी किताबें प्रकाशित करते रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध साहित्य से नही रहा .ऐसे अधिकतर किताबें ऐसे समसामयिक विषयों या मसलों पर होती हैं जिनके बारे में जानने की उत्सुकता लोगों को रहती है . समाज को ऐसी किताबों की बड़ी जरूरत है ‘ शाहीन बाग लोकतंत्र की नई करवट’ ऐसी ही किताब है . शाहीन बाग़ आन्दोलन के हवाले से यह किताब शांतिपूर्ण अहिंसक और संगठित प्रतिरोध का उदहारण पेश करती है , जो किसी भी लोकतान्त्रिक समाज की शक्ति है.
आयोजन में सीपीआई नेता डी राजा , राज्यसभा सदस्य मनोज कुमार झा चर्चित लेखिका अरुंधती राय भी उपस्थित रहीं.
किताब के बारे में
‘शाहीन बाग़ : लोकतंत्र की नई करवट’ उस अनूठे आन्दोलन का दस्तावेज़ है जो राजधानी दिल्ली के गुमनाम-से इलाक़े से शुरू हुआ और देखते-देखते एक राष्ट्रव्यापी परिघटना बन गया। यह किताब औरतों, ख़ासकर मुस्लिम औरतों की अगुआई में चले शाहीन बाग़ आन्दोलन का न सिर्फ़ आँखों देखा वृत्तान्त पेश करती है, बल्कि सप्रमाण उन पक्षों को उद्घाटित करती है जिनकी बदौलत शाहीन बाग़ ने बँधी-बँधाई राजनीतिक-सामाजिक सोच को झकझोरा, लोकतंत्र और संविधान की शक्ति का नए सिरे से अहसास कराया और उनके प्रति लोगों के भरोसे को और मज़बूत किया।
लेखक के बारे में
भाषा सिंह
पत्रकार, लेखक, डॉक्यूमेंटरी फ़िल्ममेकर व संस्कृतिकर्मी भाषा सिंह का जन्म 20 जून, 1971 को दिल्ली में हुआ। पढ़ाई-लिखाई लखनऊ में हुई। देशभर में सिर पर मैला ढोने की प्रथा की पड़ताल करती पहली किताब 'अदृश्य भारत' 2012 में पेंगुइन से छपी जो अंग्रेज़ी, तमिल, तेलुगु व मलयालम में भी अनूदित हो चुकी है। सिर पर मैला ढोने की प्रथा और उससे प्रभावित समुदाय पर काम के लिए ‘प्रभा दत्त संस्कृति फ़ेलोशिप’, ‘पेनोस फ़ेलोशिप’ और ‘पीपुल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया फ़ेलोशिप’; प्रिंट में सर्वश्रेष्ठ पत्रकार का ‘रामनाथ गोयनका पुरस्कार’; उत्तर भारत में कृषि संकट व किसानों की आत्महत्या पर काम के लिए ‘नेशनल फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया फ़ेलोशिप’।
क़रीब 25 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय।
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