गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं गीता जयंती तथा मोक्षदा एकादशी के शुभ अवसर पर हम सभी को चाहिए कि आदर्श जीवन जीने के लिए हम नियमित रूप से गीता का अध्यय
गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं
आज से लगभग सैकड़ों वर्ष पूर्व की बात है, जब श्री हरि विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए द्वापर युग में कृष्णावतार लिया था। पांडवों तथा कौरवों के मतभेद शत्रुता का रूप धारण कर चुके थे। कौरवों की धृष्टता थी कि अधर्म के साथ होते हुए भी वे पांडवों से युद्ध करने को तैयार थे। दोनों पक्षों के मध्य संधि कराने के अनंत प्रयास किए गए परंतु कोई हल न निकला, यहां तक कि दुर्योधन ने श्रीकृष्ण का संधि प्रस्ताव भी अस्वीकार करते हुए युद्ध की घोषणा कर दी थी और अंततः युद्ध का दिन आ ही गया।
युद्धभूमि थी कुरुक्षेत्र की तथा दिन था मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी का जिसे ‘मोक्षदा’ एकादशी भी कहा जाता है। अर्जुन के सारथी बने कृष्ण जैसे ही रथ को युद्धभूमि में लेकर आए वैसे ही परिजनों को देखकर अर्जुन को सांसारिक मोह ने घेर लिया। भरी सभा में पत्नी को निर्वस्त्र करने का आदेश देने वाला दुर्योधन भाई और उसके इस कुकर्म पर मौन साधने वाले पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि लोग अपने शुभचिंतक प्रतीत होने लगे।इन विचारों के प्रभाव से अर्जुन ने युद्ध न करने का विचार कर ही लिया था कि तभी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्मसंकट से निकालने के लिए दिव्य ज्ञान देने का निश्चय किया। काल जो कभी किसी के लिए नहीं रुका था परंतु जब श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीमद्भागवत गीता का प्रादुर्भाव किया तो वह भी उतने समय के लिए स्थिर हो गया था। मात्र 45 मिनट,700 श्लोक और 18 अध्याय के श्रीगीता के उपदेश ने तथा श्रीकृष्ण के दिव्य विराट स्वरूप ने अर्जुन के ज्ञानचक्षुओं को खोल दिया।स्वजनों के मोह में वशीकृत होकर जो युद्ध न करने की सोच रहा था वो अब जान चुका था कि धर्म स्थापना के लिए युद्ध उचित अथवा अनुचित नहीं वरन् अनिवार्य होता है।गीता का महात्म्य इतना बड़ा है कि इसे पढ़ने सुनने वाले सभी दुखों को सहने की क्षमता प्राप्त कर लेते हैं क्योंकी गीता के सार में ही जीवन जीने की कला निहित है। उस समय पवनपुत्र हनुमान, बर्बरीक और संजय ही मात्र चार सौभाग्यशाली लोग थे जो भगवान के श्रीमुख से गीता का उपदेश सुन सके।कहते हैं प्राण त्यागते समय पितामह ने कहा था कि यदि कृष्ण के श्रीमुख से गीता उपदेश का एक शब्द भी उनके कानों तक पहुंच जाता तो उनका जीवन धन्य हो जाता। वहां उपस्थित जिस किसी ने भी गीता सुनी वो संसार रूपी भवसागर से तर गया था।ये उन सभी का दुर्भाग्य ही था जो उस युग तथा उस स्थान पर उपस्थित होते हुए भी भगवान के श्रीमुख से पवित्र गीता का एक शब्द भी नहीं सुन सके।गीता के उपदेश तब से लेकर आज तक उतने ही प्रासंगिक हैं।आज के समय में अवसाद से जूझते लोग आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं क्योंकि कोई किसी के बिछड़ने से दुखी है तो कोई स्वजनों की पीड़ा से।कोई भौतिक संसाधनों के अभाव में दुखी है तो कोई उनका उपभोग न करने वाले की अनुपस्थिति से दुखी है।कोई शारीरिक रूप से अस्वस्थ है तो कोई मानसिक रूप से।लेकिन ये समस्याएं उत्पन्न कैसे हुईं ये कोई नहीं जानता या उनका हल क्या है ये भी कोई नहीं जानता क्योंकि हमारे पास जीवन जीने की कला ही नहीं है और न हमने सीखने का प्रयास किया है।गीता जैसा धर्मग्रंथ हमारे पास होते हुए भी यदि हम इन समस्याओं से ग्रसित हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हम कौरव पक्ष के उन महानुभावों से कम अभागे नहीं हैं क्योंकि जिस प्रकार प्रत्यक्ष होते हुए भी वे गीता का ज्ञान प्राप्त न कर सके उसी प्रकार हम भी इस कलयुग में गीता जैसा धर्मग्रंथ उपस्थित होते हुए भी उसे पढ़ने, सुनने, समझने आदि की चेष्टा नहीं करते।
श्रीगीता के प्रत्येक श्लोक में जीवन का सार निहित है।जिसने संपूर्ण गीता का अध्ययन कर लिया वह व्यक्ति जीवन पथ पर कभी भी नहीं डगमगाता, धर्मसंकट में नहीं पड़ता तथा मृत्यु के अटल सत्य को सहज स्वीकार करता है।वह प्रेम और मोह के मध्य का अंतर समझता है।जिन प्रश्नों का उत्तर या जिन समस्याओं का समाधान मनुष्य को इस संसार में नहीं मिलता वो उसे गीता में मिलता है।अतः आज गीता जयंती तथा मोक्षदा एकादशी के शुभ अवसर पर हम सभी को चाहिए कि आदर्श जीवन जीने के लिए हम नियमित रूप से गीता का अध्ययन करें तथा अपने आसपास भी लोगों को गीता पढ़ने के लिए प्रेरित करें। आप सभी को मेरी ओर से श्रीमद्भागवत गीता जयंती की अनंत शुभकामनाएं 🙏❣️
- महिमा शर्मा
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