यक्ष युधिष्ठिर संवाद महाभारतयक्ष युधिष्ठिर संवाद एक पिता का पुत्र की परीक्षा, धर्म पिता रुप में करते रक्षा,यम रुप में मृत्युदाता, जीवन का लक्ष्य है म
यक्ष युधिष्ठिर प्रश्नोत्तर सिर्फ सुनिए नहीं गुनिए
धर्माचरण किए बिना धरती पर कोई नहीं जीता,
धर्म विरुद्ध आचरण से इंसा जीवित नहीं रहता,
धर्माचरण बिना प्रकृति से एक तृण नहीं हिलता,
धर्मवत जिए बिना अंजलिभर जल नहीं मिलता!
अर्जुन भीम सा बलशाली योद्धा मृतवत हो गए,
मनुज धर्म नहीं धमकाने का स्वधर्म को समझो,
समस्त सृष्टि को गर्भ में जो धारण कर चलती,
उस मां से ये धरा कैसे अधिक भारी हो सकती?
पिता समक्ष सभी बौना, आसमान से ऊंचा पिता,
जो देव अतिथि कुटुंब पितर आत्मा का अपोषक,
वो बुद्धिमान मनुष्य श्वास लेकर भी मृत होता!
हे मानव! मां धरा से भारी,पिता आकाश से ऊंचा,
जो क्षिति जल पावक गगन समीर को गर्भ में ले
एक कर दे उस मां की तुलना सिर्फ धरा से कैसे?
जो संतान पे जमीं-आसमां एक करे वे पिता होते!
पुत्र ही मनुष्य की आत्मा है,भार्या दैवकृत सहचरी,
मेघ जीवन का सहारा, दान ही आश्रय मानव का,
दक्षता उत्तम गुण है,शास्त्र ज्ञान सर्वोत्तम धन है,
लाभों में श्रेष्ठ आरोग्य, सुखों में संतोष उत्तम है!
घर का साथी सहधर्मिणी,विदेश का साथी विद्या,
मरणासन्न का साथी दान, बुद्धिमान का विवेक,
अग्रसोची ही विजेता,सुखी वही जिसपर कर्ज नहीं,
असत्य अनाचार घृणा क्रोध के त्याग में है शांति
दया धर्म का मूल, वेदोक्त ज्ञान नित्य फलदायी,
सत्पुरुषों की मित्रता कदापि नष्ट होती नहीं भाई,
यदि मनुज अभिमान त्याग दे सर्वप्रिय हो जाता,
मन को जो वशवर्ती कर ले उसे शोक नहीं होता!
वायु से तीव्रगामी ये मन,तिनके से अधिक चिंता,
मन का दमन करे दम, दुष्कर्म से दूर रखे लज्जा,
स्वधर्म में तत्परता है तप, सर्दी गर्मी सहना क्षमा,
चित्त की शांति शम, सबके सुख की कामना दया!
परमात्मा का यथार्थ बोध है ज्ञान,धर्ममूढ़ता मोह,
धर्म पालन ना करना आलस्य, अज्ञानता है शोक,
सम चित्त होना ही सरलता, क्रोध दुर्जय शत्रु होता,
लोभ सबसे बड़ी व्याधि, सर्वहितकामी साधु होता!
कुलवंश स्वाध्याय शास्त्र श्रवण नहीं होता कारण
ब्रह्मणत्व का, बल्कि ब्रह्मणत्व कारण सदाचरण,
चारों वेदों को पढ़कर, जो दुराचार में लिप्त होता,
वो मनुष्य ब्राह्मण नहीं, व्यसनी अधम शूद्र होता!
धर्म पर स्थिर रहना स्थिरता,आत्माभिमान मान,
इन्द्रिय निग्रह धैर्य,मन मैल त्यागना परम स्नान,
प्राणियों का रक्षण ही दान,धर्मज्ञ को पंडित जान,
जन्म मृत्यु कारण वासना, नास्तिक मूर्ख समान!
ईश्वर ने संसार रचा मानव ने सुख-दुख रच डाली,
दुनिया में दुख का कारण लालच-स्वार्थ व भय ही,
सत्य सदाचार प्रेम और क्षमा कारण होते सुख का,
ये सृष्टि यदि कार्य है,तो कारण है ईश्वर निर्माता!
तर्क की एक स्थिति नहीं,श्रुतियां भिन्न-भिन्न सी,
पथदर्शी एक ऋषि नहीं,’महाजनो येन गत:स पंथा'
धर्म नष्ट न करो नष्ट-भ्रष्ट धर्म तुझे नष्ट करेगा,
सदा धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारा रक्षण करेगा!
अहिंसा,समता,शांति,दया व अमत्सर धर्म के द्वार,
यश,सत्य,दम,शौच,सरलता,लज्जा,दान, तप है शरीर,
शम,दम,उपरति, तितिक्षा, समाधान धर्म साधनों पर,
निर्भर रहकर हे मनु के वंशधर धर्म को धारणकर!
धर्म करो ‘धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षित:'
अर्थ काम से अधिक,दया समता होता आदरणीय,
स्वजन परिजन में भेद नहीं करना ही है धर्महित,
परहित सदा ही सोचिए,तब होगा अपनों का हित!
यक्ष युधिष्ठिर संवाद एक पिता का पुत्र की परीक्षा,
धर्म पिता रुप में करते रक्षा,यम रुप में मृत्युदाता,
जीवन का लक्ष्य है मुक्ति, मगर आश्चर्य ये है कि
नित मरते प्राणी, पर स्वदेह की ना सोचते नश्वरता!
- विनय कुमार विनायक,
दुमका, झारखंड-814101
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