मुझे नौकरी मिल गई - लघु नाटक

SHARE:

मुझे नौकरी मिल गई यह लघु नाटक आज के शिक्षित बेरोजगार युवकों की भयावह स्थिति को दर्शाता है, जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्ति के उपरांत भी उनके अनुकूल एक

मुझे नौकरी मिल गई

ह लघु नाटक आज के शिक्षित बेरोजगार युवकों की भयावह स्थिति को दर्शाता है, जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्ति के उपरांत भी उनके अनुकूल एक छोटी-सी नौकरी भी नहीं मिल पाती हैं और वे शारीरिक तथा आर्थिक शोषण के शिकार बनते जाते हैं। ब्रजनंदन M.A. पास करके नौकरी की तलाश में कलकत्ता शहर आता है। काफी कोशिश के बाद भी वह एक साधारण-सी नौकरी भी नहीं प्राप्त कर पाता है। दुर्भाग्य या सौभाग्य वश उसे एक सर्कस कम्पनी में एक सफ़ेद भालू बन कर नाचने और उछल-कूद करने की एक छोटी-सी नौकरी मिल जाती है। फिर इसके बाद .........

पात्र - परिचय

ब्रजनंदन: 25 वर्षीय युवक। दुबला। चहरे पर दुःख की झलक। साधारण कपड़ें।

मैनेजेर: 40 वर्षीय आकर्षक व्यक्तित्व। आकर्षक वेश-भूषा।

रिंग मास्टर: 45 वर्षीय,  रोबिला चेहरा,  बड़ी-बड़ी मूच्छें,  चमकीले कपड़ें।

गेट कीपर : 45 वर्षीय,  दरवान सम्बंधित कपडें,  हाथ में एक लम्बी लाठी।

भालू: भालू की वेश-भूषा।

शेर: शेर की वेश-भूषा।

जोकर : जोकर की वेश-भूषा।

गणेश : सधारण वेश-भूषा।

पुलिस : पुलिस की वेश-भूषा, एक सिटी और हाथ में एक डण्डा।

राहगीर 1: साधारण वेश-भूषा।

राहगीर 2: साधारण वेश-भूषा।

लड़का: 1 साधारण वेश-भूषा के।

लड़का: 2 साधारण वेश-भूषा के।

लड़का: 3 साधारण वेश-भूषा के।

लड़का: 4 साधारण वेश-भूषा के।

(पर्दे के पीछे से सूत्रधार की आवाज़ हॉल में गूंजती है)

सूत्रधार - उपस्थित देवियों और सज्जनों ! आज आपके के समक्ष हम जो लघु नाटक प्रस्तुत करने जा रहे हैं, वह एक ऐसे बेरोजगार शिक्षित युवक की है, जो आज की बेरोजगारी और आर्थिक विषमता के कुचक्र से त्रस्त अपने जीवन को जीने या आगे बढ़ने के लिए कोई भी समझौता करने को तैयार है, यहाँ तक कि उसे इंसान से जानवर तक बनने में भी कोई परहेज नहीं है।

(ब्रजनंदन का प्रवेश। साधारण वेश-भूषा। चहरे पर उदासी छाई हुई कई दिनों तक भूखे रहने के कारण उसके शरीर पर दुर्बलता के चिन्ह। सिर पर बिखरे बाल। कपड़ें अस्त-व्यस्त। हाथ में अपने सर्टिफिकेट युक्त एक फाईल लिया हुआ। ब्रजनंदन मंच पर इधर-उधर बेवश टहलता है)

सूत्रधार - ब्रजनंदन प्रसाद,  M.A. इन हिस्ट्री, एक बेरोजगार शिक्षित युवक है। कई जगहों पर अपने नसीब को आजमाया, परन्तु कहीं उसे एक साधारण-सी भी नौकरी नहीं मिल पाई। वह नौकरी की तलाश में कोलकत्ता आया है, क्योंकि वह सुन रखा है कि कोलकत्ता महानगर में माँ काली के आशीर्वाद से हर किसी को कोई न कोई नौकरी मिल ही जाती है। परन्तु कोलकत्ता में भी उसका नसीब साथ नहीं दे रहा है। नौकरी की तलाश में आज उसका चौथा दिन है। बीतते दिनों के साथ ही साथ उसके पास रहे-सहे पैसे भी ख़त्म होते जा रहे हैं।

ब्रजनंदन - आज चौथा दिन है। कलकत्ते की किन-किन गालियों और दफ्तरों में मैं नहीं गया, लेकिन मेरे जैसे M.A.  इन हिस्ट्री पास युवक के लिए एक साधारण-सी नौकरी भी नहीं है? (चिंतित) उफ़! क्या-क्या

मुझे नौकरी मिल गई - लघु नाटक
मनसूबे बाँधकर गाँव से चला था। सोचा था, कलकत्ता पहुँचते ही कहीं न कहीं नौकरी लग ही जायेगी। महीने भर में ही माँ-बाबूजी को हज़ार रुपये का पहला मनी आर्डर तो भेज ही दूँगा। उफ़ ! आज यह चौथा दिन भी खाली ही गया (
पॉकेट टटोलता है.... निकाल कर देखता है) मात्र दस रुपये ही रह गए हैं। (बड़बड़ाता है) वाह । रे ब्रजनंदन ! वाह ।..... क्या-क्या सपने सजाये थे। M.A. करके प्रोफेसरी करूँगा। न हुआ तो कम से कम किसी कंपनी में मैनेजरी तो जरुर ही कर लूँगा। काश ! बाबूजी की बात पहले ही मान लिया होता और मैट्रिक के बाद से ही खेती-बारी के काम में लग गया होता, तो अब तक अपने परिवार को आराम से खिलाता-पिलाता रहता। गाँव पर माँ-बाबूजी सोच रहे होंगे कि ब्रजनंदन तो अब कोलकतिया बाबू बन गया होगा.... (दीर्घ श्वास लेकर) ठीक है .......... आज एक बार और कोशिश करता हूँ। अगर आज भी असफल रहा, तो यहीं इसी कोलकाता शहर में माँ काली को स्मरण कर सुसाइड कर लूँगा। आखिर गाँव क्या मुँह लेकर जाऊँगा? 

(अपने आपको थोडा संयत तथा कुछ ठीक-ठाक कर फिर से नौकरी की तलाश में भटकने लगता है)

ब्रजनंदन : (मंच पर एक किनारे आ कर) सर। .... मैं  M.A. पास हूँ। मेरे लायक कोई छोटी-मोटी नौकरी दे दीजिए। 

नेपथ्य से : जाओ, आगे बढ़ो। कोई जगह खाली नहीं है। 

ब्रजनंदन : (दूसरे किनारे आ कर) सर। .... मैं M.A. इन हिस्ट्री हूँ। मेरे लिए कोई नौकरी ....... । 

नेपथ्य से : नो वेकैंसी।  प्लीज मूव अवे। 

ब्रजनंदन : (एक किनारे दर्शकों से निराश स्वर में) सर। मुझे एक नौकरी दे दीजिए । 

नेपथ्य से : (बंगला भाषा के लय में) ओरे बाबा! आमार पास कोई नौकरी-चाकरी नाई है। आगे जाओ भाई। 

ब्रजनंदन : (मंच के बीच में निराश स्वर में ही) सर ! .... अपनी कंपनी में मुझे कोई भी काम दे दीजिए। 

नेपथ्य से : अरे तुम क्या आफत किये हो? कोई जगह खाली नहीं है। यहाँ वैसे ही कर्मचारियों की संख्या अधिक है, उनकी ही छटनी करनी है। पता नही, कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं?

ब्रजनंदन : (हताश स्वर में) सर ! .... कोई काम दे दीजिये। मैं पढ़ा-लिखा और काफी मेहनती युवक हूँ। काफी परेशान हूँ .... सर ! प्लीज .... कोई भी  नौकरी दे दीजिए। 

नेपथ्य से : सॉरी ! ..... नो वेकैंसी! 

(हर तरफ से आवाज़े आ रही है.... नो वेकैंसी!  .....। नो वेकैंसी ! .... । ‘नो वेकैंसी’ की तख्तियों सहित कई लड़कों का प्रवेश। सभी ब्रजनंदन को केंद्र कर घूमते हैं। ब्रजनंदन हताश बैठ जाता है। तख्तियाँ सहित लड़कों का प्रस्थान)

ब्रजनंदन : अब मैं क्या करूँ! मेरे जैसे पढ़े-लिखे मेहनती युवक के लिए इस शहर में एक छोटी-सी भी नौकरी नहीं है? अब मैं क्या मुँह लेकर अपने गाँव लौटूँगा? इससे अच्छा तो यही होगा कि अब मैं यहीं आत्मा-हत्या कर लूँ। 

(‘हावड़ा पुल’ लिखा हुआ एक पोस्टर लिए हुए एक लडके का प्रवेश! वह एक ओर से दूसरी ओर निकल जाता है। मंच पर राहगीरों का आना-जाना, ब्रजनंदन से टकराना, भला-बुरा कहना)

राहगीर-1: क्या रास्ते के बीच खड़ा है? हटो उधर। 

राहगीर-2: ओरे बाबा ये की ? रास्तार मोध्ये खाड़ा आच्छे। एक्टू किनारे चोलो। 

  (वह एक ओर से दूसरी ओर निकल जाता है)

ब्रजनंदन : हाँ! यह हावड़ा का पुल आत्म-हत्या करने के लिए ठीक रहेग। यहाँ से छलाँग लगाऊँगा तो गंगा नदी के गर्भ में सदा- सदा के लिए समाँ जाऊँगा। सारी मुसीबतों से मुक्ति मिल जायेगी। 

(पुल पर से कूदने की कोशिश करता है, तभी एक ट्रैफिक पुलिस का एक ओर से हाँथ में डण्डा लिए और सिटी बजते हुए प्रवेश होता है)

पुलिस: (बंगला-हिंदी में) ओरे दाड़ायेगा! धोर तो रे ! तुम आमरा सामने सुसाइड कोरता है ? वो भी हावड़ा पुल से ? काहाँ से आया रे ? बोका कोथा कार।

ब्रजनंदन : सिपाही जी! मैं नौकरी ढूँढते-ढूँढते थक गया हूँ। अब मुझमें जीने की कोई तमन्ना नहीं रह गयी है। इसलिए मैं आत्म-हत्या करना चाहता हूँ। 

पुलिस : पॉकेट में कुछ है? (कड़क कर) पॉकेट में कुछ है? निकाल! (पॉकेट की तलाशी लेते हुए, दस का नोट निकाल कर) खाली दोस का नोट? तुम इधर हावडा पुल से दोस रूपया में मोरना चाहता है? ओरे एई कोलकाता है! इहाँ जीने से ज्यादा मोरने के वास्ते पोइसा लगता है। समझा ? बोका कोथा कार! (एक डंडा मारता है) पाला इहाँ से!

ब्रजनंदन : और वह रूपया?

पुलिस : इहाँ से भागता है कि अभी एक डंडा तुमाके और मरता। जोलदी भाग इहाँ से, नहीं तो अभी तुमको लाल बज़ार दिखाएगा। बोका कोथा कार।

(ब्रजनंदन एक ओर हट जाता है। पुलिस का प्रस्थान। सर्कस का पोस्टर लिए हुए एक जोकर का मंच पर प्रवेश)

जोकर : रोजाना तीन शो। दोपहर एक बजे, शाम को चार बजे और रात को सात बजे। आपके शहर के गुलमोहर पार्क में "दी ग्रेट इंटरनेशनल फैंटास्टिक सर्कस"। देखिए ........ देखिए! जानवरों और इंसानो का एक साथ करामात ! टिकट 50 रु., 100 रु., और 150 रुपये। आइए ..... आइए ........ और देखिए  ..... "दी ग्रेट इंटरनेशनल फैंटास्टिक सर्कस"।

(जोकर का प्रस्थान)

ब्रजनंदन : (सोचते हुए) अगर मैं किसी तरह से सर्कस में शेर के पिंजड़े में कूद जाऊँ, तो फिर बचने की कोई उम्मीद नहीं रहेगी। …… हाँ, यही ठीक रहेगा। चलते हैं, वहीं गुलमोहर पार्क में। 

(ब्रजनंदन का प्रस्थान)

दृश्य परिवर्तन

 (सामने सर्कस के खेल सम्बंधित कुछ पोस्टर्स। लोगों का आना-जाना। माइक पर कुछ पुराने गीत। बीच- बीच में सर्कस शो से सम्बंधित कुछ उद्घोषणाएँ। एक गेटकीपर गेट पर खड़ा है)

ब्रजनंदन : यहाँ तो अनेक लोग अनेक काम कर रहे हैं। यहाँ शायद मेरे लिए भी कोई काम मिल जाये। एक बार और आखरी कोशिश करके देखता हूँ। नहीं तो इस सर्कस के शेर के पिंजड़े में कूद कर तो मरना निश्चित है ही । (गेट से प्रवेश करना चाहता ही है)

गेट-कीपर: अरे भाई! अंदर कहाँ जा रहे हो? पहले उस काउंटर पर जा कर टिकट तो ले लो, फिर अंदर जाना। 

ब्रजनंदन: मैं सर्कस देखने नहीं आया हूँ। मुझे तो मैनेजेर साहब से मिलना है। मैनेजेर साहब कहाँ मिलेंगे?

गेट कीपर: मैनेजर साहब ! ठीक है। अंदर जाओ। ओ जो टाई वाले बड़े साहब हैं न, वही इस सर्कस के मैनेजेर साहब हैं। जाओ मिल लो। 

(गेट कीपर का प्रस्थान। सफाईवाला गणेश हाथ में झाड़ू लिए हुए प्रवेश करता है और सफाई करने लगता है। मैनेजेर साहब का दूसरी ओर से प्रवेश। कुछ मोटा और कड़ा आदमी। पैंट-शर्ट पर टाई पहने हुए बड़ा आकर्षक व्यक्तित्व)

ब्रजनंदन: गुड मॉर्निंग सर! 

मैनेजर: गुड मॉर्निंग! कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?

ब्रजनंदन: सर! मैं M.A. पास हूँ और मैं काफी मेहनती युवक हूँ। मुझे आप अपने इस सर्कस में कोई भी नौकरी दे देते, तो आपकी बड़ी कृपा होती। 

मैनेजर: क्या कहा? M.A. पास? नौकरी? माफ़ करो भाई! यहाँ इतने पढ़े-लिखे लोगों के लिए कोई काम नहीं है। देखते नहीं यहाँ तो जानवरों की सफाई और सेवा करने वाले साधारण और अनपढ़ लोगों की आवश्यकता है। माफ़ करो, भाई! कहीं और जाओ। (गणेश की ओर देख कर) अरे गणेश! आलसी कहीं का। हाथियों को अभी तक खाना नहीं खिलाया। सारा दिन आराम करता है। जा जल्दी से हाथियों को खाना खिला कर उन्हें आईटम के लिए तैयार करो।

गणेश: जी साहब! अभी जाता हूँ। 

मैनेजेर : (दूसरी ओर) और तू भोला! तू खड़ा-खड़ा मेरा मुँह क्या देख रहा है? जा। जा भाग कर, शेर के पिंजड़े को साफ कर। 

ब्रजनानदान: स... सर! .... सर! मैं चार दिनों से भूखा हूँ। रोटी का एक टुकड़ा भी मुँह में नहीं गया है सर! मुझे कोई भी कम दे दीजिए। सर प्लीज!

मैनेजेर: (कुछ नाराजगी सहित) तो भाई! मैं क्या कर सकता हूँ। जाओ कहीं और कोई काम देखो। 

ब्रजनंदन: सर! ...... सर! मैं बहुत ही भूखा हूँ। मुझे कोई भी काम दे दीजिए .......। (लड़खड़ा कर गिरने लगता है। मैनेजेर उसे सहारा देता है)

मैनेजेर: अरे! ..... अरे! ....... यह क्या हुआ? जाओ ‘मेस’ में मेरा नाम बोल कर खाना खा लो। (दूसरी ओर ) अरे गणेश। तू अभी तक यहीं खड़ा है। जा इसे ‘मेस’ में ले जाकर इसे खाना खिला दे। 

ब्रजनंदन : नहीं सर! खाना नहीं सर! आप मुझे कोई भी कुछ भी काम दे दीजिए। 

मैनेजेर: अच्छा ठीक है। तुम जाओ पहले खाना खा लो। फिर बात करते हैं। (गणेश से) इसे ले जाओ। (गणेश के साथ ब्रजनंदन का प्रस्थान)

मैनेजेर: (दूसरी ओर) अरे नौसाद। गाड़ी तैयार है न? जरा तेल पानी चेक कर लो। (दूसरी ओर) और तुमलोग काम कर रहे हो या खेल? एक दरी  को उठाने में तुम पाँच-पाँच लोग लगे हो। जल्दी करो। 

(सर्कस का ही एक कलाकार का प्रवेश)

कलाकार: सलाम साहब! आज अपुन का ग्रुप एक नया शो पेश करेगा। रस्सी पर एक साथ चार-चार लड़कें अपना-अपना करतब दिखाएँगी । 

मैनेजेर : ठीक है। होशियारी से। कोई गिरे न। मुझे भी कहीं जवाब देना पड़ता है। 

(कलाकार का प्रस्थान और ब्रजनंदन का प्रवेश। पहले से दुरुस्त)

ब्रजनंदन: सर! मुझे क्या काम करना है? बताइए। 

मैनेजेर: काम? कैसा काम? हमारे पास तुम्हारे लायक कोई काम नहीं है। जाओ।  

ब्रजनंदन: नहीं सर! कोई तो काम आपको देना ही पड़ेगा। और अगर आपको मुझे कोई काम न देना था, तो फिर आपने मुझे खाना ही क्यों खिलाया? मुझे खाना नहीं खिलाना चाहिए था। 

मैनेजेर: अजीब आदमी हो तुम। अरे तुम भूखे मर रहे थे, इसीलिए मैंने तुम्हें खाना खिलाया। इसका मतलब तो यह नहीं कि मैं तुम्हें नौकरी ही दे दूँ। 

ब्रजनंदन: हाँ सर! मैं अगर भूखा मर रहा था, तो आप मुझे मरने देते। आपका खाना खा कर तो, मैं अब पहले से और अधिक स्वस्थ हो गया हूँ। अब तो मुझे मरने के लिए फिर कम से कम अगले चार दिनों तक भूखा रह कर मौत का इंतजार करना पड़ेगा। आपको तो मुझे कोई न कोई काम देना ही पड़ेगा, नहीं तो मैं आपके सर्कस के शेर के पिंजड़े में कूद कर मैं अपनी जान ही दे दूँगा। 

मैनेजेर: तुम तो बड़े ही कृतघ्न आदमी हो। मैंने तुम्हारी जान क्या बचाई, और तुम हो कि मेरी जान पर ही बन आए हो। (सोचते हुए) ठीक है। तुम्हारे लिए मैं कोई काम सोचता हूँ। तुम तब तक उधऱ बैठो। 

(पास के एक बेंच पर जा बैठता है। गणेश प्रवेश करता है और कुछ काम करने लगता है)

मैनेजेर: गणेश। यह आदमी तो काम के लिए आमदा है। कैसा आदमी है लगता है यह तुम्हें? 

गणेश: साहब जी! यह तो पढ़ा-लिखा है। यह बड़ा ही आज्ञाकारी लगता है। देखा नहीं साहब! कैसे बार-बार झुक-झुक कर आपको सलाम कर रहा था। इसकी अपनी कोई भी सोच नहीं है। जो कहिएगा, वही करेगा। यह तो पढ़ा-लिखा है और भूख का मारा है। इसे रख लीजिए, साहब! 

मैनेजेर: अच्छा ठीक है। तुम जाओ। (गणेश का प्रस्थान)

मैनेजर : (ब्रजनंदन को) सुनो। इधर आओ। (ब्रजनंदन पास आता है) तुम अपना क्या नाम बताया?

ब्रजनंदन: जी ब्रजनंदन! 

मैनेजेर: सुनो ब्रजनंदन! मेरे पास तुम्हारे लायक एक ही काम है। उसके बदले में तुम्हें दो हज़ार रूपये प्रति माह मिलेंगे। ऊपर से खाना फ्री।

ब्रजनंदन: (आश्चर्य से) क्या दो हज़ार रूपये? इतने रूपये में तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ। कहिए तो मैं आपके जूतें साफ कर दूँ। (जूते की और झुकता) या .... या.... कहिए तो इन जानवरों के मल-मूत्र-गंदगी साफ कर दूँ। आप जो कहिएगा, मैं वही करूँगा सर! 

मैनेजेर: तुम इतने उतावले मत होओ। पहले काम तो सुनो। काम यह है कि मेरे सर्कस में एक सफ़ेद भालू था। वह कल की रात में मर गया। कोई नहीं जनता है। उसी सफ़ेद भालू को देखने के लिए मेरे सर्कस में अधिक भीड़ हुआ करती थी।

ब्रजनंदन: ठीक है सर! मैं उस सफ़ेद भालू के लाश को या और भी कोई जानवर मरेंगे तो उनकी लाश को भी बाहर फेंक दिया करूँगा। बताइए कहाँ है, वह मरा हुआ, सफ़ेद भालू?

मैनेजेर: तुम उतावले मत होओ। पहले तुम मेरी पूरी बात को सुनो। उस सफ़ेद भालू के चमड़े को मैंने उतरवा कर रख लिया है। उसे तुम्हें पहन कर  और सफ़ेद भालू बन कर सर्कस में खेल दिखाना पड़ेगा। 

ब्रजनंदन: सर! यह आप क्या कह रहे है? मु …..मुझ ...... मुझे भालू बनना पड़ेगा? मतलब इंसान से जानवर। ये कैसी नौकरी है सर? कोई और काम बताइए सर! 

मैनेजेर : इसी काम के लिए तुम्हें दो हज़ार रूपये मिलेंगे। मंजूर हो तो बोलो, न तो उल्टे पाँव लौट जाओ। इसके अतिरिक्त मेरे पास कोई भी दूसरा काम नहीं है। 

ब्रजनंदन: परन्तु दूसरे जानवर। मेरा मतलब है कि अन्य दूसरे जानवरों से तो बराबर जान का रिस्क है। 

मैनेजेर : घबराओ नहीं। वे सभी जानवर पालतू हैं। और साथ में हमेशा मेरा रिंग मास्टर रहेगा। तुम्हें कोई डर या भय नहीं है। काम करना हो तो ठीक है, वरना यहाँ से चलते बनो।  

ब्रजनंदन: (सोचते हुए। स्वगत भाषण) इंसान बने रहने पर खाली पेट.......… भूखे-प्यासे ....…… मौत......... ख़ुदकुशी ……और जानवर की से बदतर मौत। और जानवर बनाने पर दो हज़ार रूपये प्रति माह की नौकरी। परिवार जन के भरण-पोषण का सहारा। (प्रत्यक्ष में) ठीक है। सर! मैंने सोच और समझ लिया है। मैं सर्कस का सफ़ेद भालू बनूँगा। सफ़ेद भालू। M.A. फर्स्ट क्लास क्यालिफाइड सफ़ेद भालू। मुझे यह नौकरी मंजूर है, सर! 

मैनेजेर: गुड! शाबाश! यह तुमने अकल की बात की है और सही निर्णय लिया है। चलो, मैं तुम्हें उस सफ़ेद भालू के सफ़ेद चमड़े को देता हूँ, जो तुम्हे और तुम्हारे परिवार वालों को रोटी और कपड़ा देगा। परन्तु यह याद रखना, यह भेद खुलने न पावे, नहीं तो, तुम्हारी यह दो हज़ार की नौकरी गई। 

ब्रजनंदन: ठीक है साहब! मुझे दो हज़ार रूपये प्रिय हैं। मृत भालू के सफ़ेद चमड़े प्रिय है। इंसान का यह चोला प्रिय नहीं है। M.A. की यह डिग्री प्रिय नहीं। यह डिग्री तो मुझे भूखों मरने पर मजबूर कर रहा है। यह इंसानी चोला तो परिवारजन के पेट भरने और उनके तन ढकने में असमर्थ है, जबकि मरे जानवर का चोला हमें सब कुछ दे रहा है।

मैनेजेर: ठीक है। तुम आओ। (मैनेजेर का प्रस्थान

ब्रजनंदन: (दर्शकों से) भाइयों! अब तक मेरा परिचय ब्रजनंदन M.A. पास इन हिस्ट्री था, परन्तु अब से मेरा परिचय सफ़ेद भालू ........... वाइट बियर .......... सर्कस का सफ़ेद भालू। आज से यही मेरा परिचय है। यही मेरी पहचान है। यह नहीं ............ (सेर्टिफिकेट की फाईल को दर्श्कोंकी और फेकते हुए प्रस्थान करता है

दृश्य परिवर्तन 

  (सर्कस का पोस्टर लिए हुए एक जोकर का मंच पर प्रवेश)

जोकर : रोजाना तीन शो। दोपहर एक बजे, शाम को चार बजे और रात को सात बजे। आपके शहर के गुलमोहर पार्क में "दी ग्रेट इंटरनेशनल फैंटास्टिक सर्कस"। देखिए ........ देखिए! जानवरों और इंसानो का एक साथ करामात ! टिकट 50 रु., 100 रु., और 150 रुपये। आइए ..... आइए ........ और देखिए  ..... "दी ग्रेट इंटरनेशनल फैंटास्टिक सर्कस"।

(मंच पर सफ़ेद भालू-ब्रजनंदन के गले में बंधी रस्सी को पकड़े साथ मैनेजेर का प्रवेश)

मैनेजेर: तुम अपना नाम क्या बताये थे? मैं तो भूल ही गया। 

ब्रजनंदन: सर! मेरा नाम तो ब्रजनंदन था। ब्रजनंदन प्रसाद। परन्तु अब मेरा नाम सफ़ेद भालू है। आप चाहें तो मुझे 'वाइट बियर' भी कह सकते हैं। 

मैनेजेर: ठीक है, ‘वाइट बियर’ ही तुम्हारा नाम रहेगा। लेकिन सारी बाते याद है न। 

ब्रजनंदन: जी सर! इस सफ़ेद भालू का राज, राज ही रहेगा। 

मैनेजेर: ठीक है। (रिंग मास्टर को पुकारता हुआ) रिंग मास्टर! आप जरा इधर आइए। 

  (रिंग मास्टर का प्रवेश। शिकारी जैसे पोशाक। बड़ी-बड़ी मूच्छें। हाथ में डंडा। बैल जैसा कद काठी)

रिंग मास्टर: एस सर! गुड मार्निंग सर! 

मैनेजेर: आपको तो पता ही है कि अपना वह सफ़ेद भालू कल रात ही मर गया। और इस सर्कस में उसे ही देखने के लिए अधिक भीड़ हुआ करती है। जल्दी में मैं इसे ही ढूँढ पाया हूँ। इसे आप अपने अनुसार जल्दी से जल्दी ट्रेंड कर दीजिए। 

रिंग मास्टर: ओ. के. सर! 

मैनेजेर : ठीक है, मैं चलता हूँ। (भालू के माथे को थपथपा कर प्रस्थान)

रिंग मास्टर: (भालू को सिखाते हुए) सिर उठाओ। …...… हाथ उठाओ।……...… दोनों हाथ उठाओ।…...… (भालू वैसा ही करता है) अब खड़े हो जाओ …… (खड़ा नहीं होता है) तुमसे उठा नहीं जाता है। (चाबुक से मारता है। भालू चाबुक को पकड़ने की कोशिश करता है)

ब्रजनंदन: (स्वगत भाषण) यह रिंग मास्टर तो लगता है कि मुझे मार ही डालेगा। मन तो करता है कि इसे पटक कर इसके छाती पर दो-चार जोरदार घूँसे जमाऊँ। तब पाजी का अक्ल ठिकाने आ जायेगा। अबकी बार मारे तो दिखता हूँ। 

रिंग मास्टर: चाबुक पकड़ता है। मैंने तुमसे भी बड़े से बड़े जानवर को सही रास्ते पार पर ला दिया है, और तू किस खेत की मूली है रे! (चाबुक चलता है। भालू चाबुक को पकड़ कर झटक देता है। रिंग मास्टर गिर पड़ता है। भालू रिंग मास्टर पर चढ़ कर उसे घूँसा मरना ही चाहता है कि ........)

ब्रजनंदन: नहीं। पोल खुल जायेगी। फिर दो हज़ार रूपये की नौकरी भी चली जायेगी। फिर माँ-बाबूजी और घरवाली का खर्चा? ........ नहीं ...… नहीं ……..। मुझे दो हज़ार रूपए चाहिए। मार ले। मार ले, तू। पर यह दो हज़ार की नौकरी नहीं छूटनी चाहिए। (स्थिर हो जाता है)

रिंग मास्टर : (उठकर) तू मुझ पर हमला करेगा? (चाबुक से मारता है) ले मज़ा चख। एक … दो … तीन...... (दनादन चाबुक मारता है। भालू बिलखते हुए सहम जाता है) अब आया बच्चू काबू में। अब मैं जैसा कहता हूँ, वैसा ही कर। चल उठ। (उठता है) अपने दोनों पैरों पर खड़ा हो जा। (खड़ा होता है) सभी को हाथ जोड़ कर नमस्कार करो। (नमस्कार करता है) ……। शाबाश! अब डांस करो (नाचता है) वाह! वाह! शाबाश! अब ठीक है। नाच। नाच। नाच मेरे भालू तो पैसा मिलेगा। 

(मंच पर रौशनी धीरे-धीरे धीमी पड़ जाती है। दोनों का प्रस्थान । मंच पर पुनः धीरे-धीरे प्रकाश फैलता है। मंच पर एक किनारे में भालू ब्रजनंदन एक ओर बैठा है। मैनेजेर का प्रवेश)

 मैनेजेर: ब्रजनंदन। 

ब्रजनंदन: (मुखौटा हटा कर) सर। ब्रजनंदन तो मेरा अतीत था। वर्तमान में मैं सफ़ेद भालू या ‘वाइट बियर’ हूँ, सर! यही मेरा परिचय है सर! 

मैनेजेर: ठीक है। आज तुम्हारे घर से एक चट्ठी आई है। लो देख लो।

ब्रजनंदन: दीजिए सर। (चिट्ठी लेता है। मैनेजेर का प्रस्थान। भालू चिट्ठी को मंच पर सामने आ कर पढ़ता है) बबुवा को आशीर्वाद। बबुवा जब से तुम्हार नौकरी के सम्बाद मिला है, तब से गॉव भर में हमलोगों का इज्जत बढ़ गया है। साहूकार तो अब पूछ-पूछ कर सामान उधारी में देने लगा है। तुम्हार घरवाली को गाँव की महिला समिति का अध्यक्ष चुन लिया गया है। गॉव के नवयुवक लोग यह फैसला किया है कि बबुवा जब तुम गॉव आओगे, तब ये लोग स्टेशन से तुमको बैंड बाजा के साथ गॉव ले के आयेंगे। बाकी सब ठीक है। समय पर रुपइया भेजते रहना। कम लिखना, ज्यादा समझना। बबुवा खुश रह। (चहरे पर वितृष्णा के भाव) उँह! उधारी में सामान मिल रहा है। घरवाली को महिला समिति का अध्यक्ष चुन लिया गया है। उँह! मैं यहाँ इंसान से जानवर बना उछाल-कूद करके दो हज़ार रूपये की नौकरी  कर रहा हूँ।

(मंच पर प्रकाश धीरे-धीरे मंद होता है । मंच पर पुनः धीरे-धीरे प्रकाश फैलता है। प्रसन्नता सहित रिंग मास्टर का प्रवेश)

रिंग मास्टर: (दर्शकों से) मेहरबान! साहेबान! कदरदान! आज के इस सर्कस शो में आप सभी का स्वागत है। आज आपसी वैमनस्यता के कारण एक इंसान दूसरे से क्रमशः दूर होता जा रहा है। इंसान इतना अवसरवादी हो गया है कि अक्सर अपने थोड़े से स्वार्थ के लिए अपने भाई-बंधुयों के गर्दन पर भी छूरी चलने से नहीं चुकता है। ऐसे समय में आज के इस शो में आपको यह दिखाऊँगा कि इंसान भले ही इंसान से मिल कर न रह सके, परन्तु एक जानवर दूसरे जानवर के साथ कितने प्रेम-भाव से रहते है और खेलते-कूदते हैं। तो तैयार हो जाइए आज एक रोमांचक शो देखने के लिए। एक बार जोरदार तालियाँ।

(तालियों की गड़गड़ाहट। रिंग मास्टर का प्रस्थान । संगीत की तेज धुन और तुरंत ही एक शेर के साथ रिंग मास्टर का प्रवेश)

रिंग मास्टर: (शेर से) शाबाश! रॉयल बंगाल टाइगर! अब सभी दर्शकों का अभिनन्दान करो …… (शेर हाथ को हिलता है) सभी को नमस्कर करो ........ (शेर दो पैरों पर खड़ा हो कर अपने हाथों को जोड़ता है) शाबाश! अब जरा नाच कर दिखाओ। नाचो ……… (नाचता है) वाह! वाह! शाबाश रॉयल बंगाल टाइगर! ठहरो। (शेर खड़ा होकर स्थिर हो जाता है) शाबाश! अब तुम इसी तरह से खड़े रहो। मैं अभी ‘वाइट बियर’ को लेकर आता हूँ।

(रिंग मास्टर का प्रस्थान। शेर चुपचाप खड़ा दर्शकों का मनोरंजन करता है और तुरंत ही सफ़ेद भालू के साथ रिंग मास्टर का प्रवेश)

रिंग मास्टर: ईट इज’ वाइट बियर’ .......... वाइट बियर! सभी का अभिनन्दान करो............. (भालू हाथ हिलाता है) शाबाश! सभी को नमस्कार करो ……… (हाथों को जोड़ता है) शाबाश! अब जरा नाच के दिखाओ............ (भालू नाचता है) शाबाश वाइट बियर! (शेर से) रॉयल बंगाल टाइगर! अब तुम भी नाचो। (शेर भी नाचता है। संगीत बज रहा है। एक जोकर का प्रवेश। वह भी शेर और भालू के बीच में आ कर नाचता है और सभी का मनोरंजन करता है)

जोकर: रिंग मास्टर साहब! मैनेजेर साहब आपको कोई जरुरी काम से बुला रहे है। (जोकर का प्रस्थान)

रिंग मास्टर: (शेर और भालू से) शाबाश! तुम दोनों अपने-अपने जगह पर चुप-चाप खड़े रहना, हिलेगा नहीं। मैं अभी आया। (रिंग मास्टर का प्रस्थान । दोनों चुप-चाप खड़े रहते हैं)

भालू: (शेर को देख भयभीत हो कर काँपती आवाज में) अरे बाप रे बाप! आज तक इतने करीब से मैंने खुले में किसी शेर को नहीं देखा .........। चिड़ियाघर में पिंजरे में बंद शेर को तो लाठी से कोंचने में कितना मजा आता था। लेकिन ....... लेकिन आज तो इसको अपने पास देख कर कितना डर लग रहा है। मैं तो पसीना-पसीना हो गया हूँ। (अपने पैर के पास छू कर) मेरा तो कुछ और ही निकल गया है। .......... क्या करूँ। …… आखिर यह तो आदमखोर जानवर ही है। ........ कहीं हम पर हमला ही कर दे तो ........? जानवर का क्या भरोसा? ........ पाजी कहीं का। यह रिंग मास्टर भी इतनी देरी क्यों कर रहा है? ........ मेरे तो अब तक ऊपर और नीचे के सारे कपड़े ही गीले हो गए हैं। ....... अरे बाप रे बाप! ...... यह शैतान तो मुझे ही घूर रहा है। ........... लगता तो है कि यह शेर पालतू है। हमला नहीं करेगा।........ लेकिन-लेकिन यह तो मुझे ही घूर रहा है। ….. अब क्या करूँ? …… चिल्लाऊँ? ..... नहीं! राज खुल जायेगा और राज खुल गया तो … तो फिर यह नौकरी भी चली जायेगी। …… दो हज़ार रूपये भी हाथ से चले जायेंगे। (शेर भालू को तरेरता और दहाड़ता है)

भालू: अरे बाप रे बाप! यह तो मुझे ही घूर रहा है। (शेर भालू की ओर बढ़ता है)  यह तो मेरी ओर ही बढ़ रहा हैइसकी नियत ठीक नहीं लग रही है ……। अब तो चिल्लाता हूँ, नहीं तो यह मुझे मार ही डालेगा। ........ लेकिन फिर दो हज़ार रूपये कहाँ से आयेंगे? माँ-बाबूजी का इलाज और पत्नी का खर्च कहाँ से आएगा? ........ क्या करूँ? (शेर कदम बढ़ाता है, भालू काँपने लगता है) यह तो मुझे मार ही डालेगा ……. चिल्लाता हूँ …… नहीं। दो हज़ार रूपये! ...... (शेर उसके पास पहुँच कर उसकी छाती पर एक पंजा मारता है। जोर से चीखते हुए भालू बेहोश हो जाता है। कुछ क्षण के लिए सन्नाटा छा जाती है) 

शेर: (भालू से) उठ.......... उठ ......... डरपोक कहीं का! (घसीट कर उठता है)

भालू: (हाथों को जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए) शेर भैइया! हमको छोड़ दो। हम भालू नहीं है। ….. मुझ पर दया करो शेर भैइया! ........ मुझ पर रहम करो। .......... मैं अपने माँ-बाबूजी की इकलौती संतान हूँ। मेरी घरवाली भी है। मेरा घर-परिवार भी है। शेर भैइया! मुझे छोड़ दो। ......... मैंने बहुत परिश्रम करके हिस्ट्री में M.A. किया है। एक छोटी सी नौकरी के लिए कहाँ-कहाँ नहीं भटका। अंत में सभी जगहों से निराश हो कर और अपने परिवार के पेट भरने के लिए इंसान से जानवर बन कर इस सर्कस में एक सप्ताह से कूद-फांद रहा हूँ। …… शेर भैइया! ........मुझे छोड़ दो........ मुझ पर दया करो। ........ शेर भैइया! ......... मैं आपके पाँव पड़ता हूँ। 

शेर: (अपना मुखौटा हटा कर) डरपोक कहीं का! तुमने हिस्ट्री में M.A. किया है, मैंने भी हिंदी में M.A. किया है। तुम्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिली, मुझे भी कहीं नौकरी नहीं मिली थी। तुम एक सप्ताह से इंसान से जानवर बने हुए हो, मैं भी पिछले छह वर्षों से इंसान से जानवर बना हुआ हूँ। हम दोनों ही नियति और बेरोजगारी के मार से पीड़ित हैं और इंसान से जानवर बन कर रिंग मास्टर के इशारे पर नाच रहे हैं। 

भालू: (आश्चर्य से) शेर भैइया! तो क्या आप भी ‘ओरिजिनल’ नहीं हैं? 

शेर: नहीं। और राज की बात सुन, इस सर्कस में जितने भी जानवर हैं, सभी नकली हैं। सभी ग्रेजुएट और M.A. पास हैं। और एक राज की बात सुनो। अभी तक किसी दर्शक ने हमारे असली रूप को न जाना है । ......... और जानना भी नहीं चाहिए। अगर जान गए तो हम दोनों के सहित अनगिनत शिक्षित बेरोजगारों की नौकरी चली जायेगी। .......... सबका घर तबाह हो जायेगा। .......... सबकी लाज और इज्जत को बचाने के लिए तुरंत ही उठो .......... और पहले की भाँति ही नाचो। कूदो और उछलो। इसी में हम  सभी भलाई है और इसी में हम सबकी नौकरी भी बची रहेगी और इसी से हमें दो हज़ार रूपये प्रति माह भी मिलते रहेंगे। 

भालू: हाँ शेर भैइया! …. आप सही कहते हैं। चलो शुरू हो जाओ ....... एक ...… दो ....... तीन …. चार …… पाँच …… छह …. सात …… आठ ........ । 

(पुनः संगीत की धुन बजने लगती है और उसके ताल-लय पर शेर तथा भालू दोनों मगन हो कर नाचने लगते हैं। मंच पर धीरे-धीरे प्रकाश धीमी हो जाती है)

(पूर्ण)






- श्रीराम पुकार शर्मा,
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101सम्पर्क सूत्र – 9062366788.

ई-मेल सम्पर्क – rampukar17@gmail.com

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,431,हिंदी लेख,531,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,423,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: मुझे नौकरी मिल गई - लघु नाटक
मुझे नौकरी मिल गई - लघु नाटक
मुझे नौकरी मिल गई यह लघु नाटक आज के शिक्षित बेरोजगार युवकों की भयावह स्थिति को दर्शाता है, जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्ति के उपरांत भी उनके अनुकूल एक
https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEj2EiixyXIWGoEx1TduyX9YT7OsVL2gPEvVtqIp4FVGAxwyyq8XJbsgliQO__DFdgFQFZPNenBsFTax9EAqJ_2LLlW37gnNmqupXTNiPDpN8Fj8dGG89Rb2CkeIUZJBLO_wU7arLpTjVrHR5_mPAhm02oD5xJ0revmPm5nFePngPYYiwiv5oGKOVj2uAA=s320
https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEj2EiixyXIWGoEx1TduyX9YT7OsVL2gPEvVtqIp4FVGAxwyyq8XJbsgliQO__DFdgFQFZPNenBsFTax9EAqJ_2LLlW37gnNmqupXTNiPDpN8Fj8dGG89Rb2CkeIUZJBLO_wU7arLpTjVrHR5_mPAhm02oD5xJ0revmPm5nFePngPYYiwiv5oGKOVj2uAA=s72-c
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2022/01/mujhe-naukri-mil-gai-natak.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2022/01/mujhe-naukri-mil-gai-natak.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका