आजकल के श्रपित दुर्योधन और उनके माँ बाप वैसे ही वोह अर्ध निद्रा मे कुर्सी पर था | बह बासठ वर्ष का सेवानिवृत्त व्यक्ति हे ,और सही शब्दों मे कहो तो एक
आजकल के श्रपित दुर्योधन और उनके माँ बाप
वैसे ही वोह अर्ध निद्रा मे कुर्सी पर था | बह बासठ वर्ष का सेवानिवृत्त व्यक्ति हे ,और सही शब्दों मे कहो तो एक एसी बेकार वस्तु हे, जो ना तो किसी के काम की हे और ना ही किसी को पसंद हे|लोग उसे खुशी से नहीं बल्कि मजबूरी में झेल रहे हैं।
आज कल के श्रपित दुर्योधन की भी अजीब कहानी हे| यह अपने बूढ़े माँ बाप को लोक लाज या अपनी मजबूरी की वजह से गांव से अपने साथ शहर तो ले आते हे |पर बोह माँ बाप के साथ मिक्स नहीं हो पाते हे | यह बे चारे दुर्योधन तो माँ बाप के साथ मिक्स होने की कोशिश करते हैं पर इनकी पत्नी सफल नहीं होने देती।
एक तो इन बुजुर्ग लोगों की शक्ल बहुत खराब हो जाती हे | महँगे ड्राइंग रूम के एक कोने मे बैठे हुए यह बुजुर्ग माँ बाप बहुत खराब लगते हैं। दूसरे इनका ना तो इन दुर्योधन को रहना पसंद आता हे ना खाना पसंद आता और ना सोना पसन्द आता हैं। दुर्योधन और उनकी पत्नी की नजर में यह बूढ़े माँ बाप जाहिल ,गवार ,अनपढ़ हैं। पढ़ी लिखी सोसाइटी में रहने के लायक नहीं हैं। यह मूर्ख बुजुर्ग माँ बाप समझते हे कि बोह यहां रह कर अपने बच्चो की मदद कर रहे हे। यह बृद्ध माँ बाप इन दुर्योधन के घर आ तो जाते हैं पर इन्हें कोई इज़्ज़त नहीं मिलती हैं और इन्हे मन मसोस कर अपने सम्मान को भूल कर रहना पड़ता हैं। इनके पुत्र और उसकी पत्नी का
चेहरा इन बुड्डो को देख कर फूला रहता हैं ।यह बे चारे बुड्ढे अपनी तरफ से काफी कोशिश करते हैं की इनका पुत्र और उसकी पत्नी खुश रहे और इनके ब्यबहार से दुर्योधन को कोई कष्ट ना हो किन्तु यह लोग बहुत ही बद तमीज़ होते हैं । इनके अंदर संस्कार नाम की कोई चीज नहीं होती हैं । इन्ह पता नहीं किस बात का घमंड होता हैं ।
आप लोग भी विचार कर रहे होंगे कि दुर्योधन कैसे श्रपित हो गया | महाभारत मे उसे दो चरित्र बहुत दयनीय लगते हे| एक जन्मांध धृतराष्ट्र और दूसरी गांधारी |दोनों ही पुत्र मोह के मारे हुए थे | धृतराष्ट्र तो अंधे थे और पुत्र मोह मे लिप्त थे इस लिये उन्हें महाभारत मे अपयश के सिवा कुछ नहीं मिला | लेकिन गांधारी का चरित्र महान हे | वह एक ऐसी नारी हे जो अपने तप से भगवान कृष्ण के वंश को नष्ट होने का श्राप देती हे |वह चाहती तो दुर्योधन को विजय का आशीर्वाद दे सकती थी या कम से कम उस को अमृता का आशीर्वाद दे ही सकती थी| लेकिन उसने इनमें से कुछ नही किया
बार बार अपनी माता गांधारी का अपमान करने के बावजूद और अपनी माता की सलाह ना मानने के बावजूद जब दुर्योधन पूर्ण रूप से निराश हो जाता हे |तब उसे अपनी माँ की याद आती हे ,और उसे लगता हे कि अब एक मात्र सहारा उसकी माँ हे और बोह ही उस को विजय दिला सकती हे |बह अपनी माँ के पास जाता हे और विजयश्री का आशीर्वाद मांगता हे| लेकिन गांधारी उसे उसके कर्मों के कारण विजयश्री का आशीर्वाद देने से मना कर देती हे।
गांधारी एक माँ थी और माँ का दिल अजीब होता हे | बोह उसे अमरता का वरदान देना चाहती थी | गांधारी ने दुर्योधन को अगले दिन नग्न अवस्था मे आने को कहा जो कि कृष्ण के कुचक्र के कारण सम्भव ना हो सका .
गांधारी एक महान तपस्वी थी।वह भविष्य मे होने वाली घटना को जान जाती थी |मेरा मानना हे कि बोह दुर्योधन को दिल से आशीर्वाद देना नहीं चाहती थी | यदि बोह अमृता का आशीर्वाद देना चहती तो उसी समय दे सकती थी |उसे अगले दिन आने को नही कहती।
आज आय दिन बहुत अधिक संख्या में इन युवा द्वारा अपने वृद्ध माता पिता को अपमानित करने ,उनेह कष्ट देने की खबरें आ रही हैं। यह सब उनके पतन का कारण बने गा।
मेरा अनुरोध ह आजकल के युबा से बेह कम से कम दुर्योधन की तरह अपनी मा का मन ना दुखाए | नही तो बे ना केबल आशीर्वाद से बन्चित हो जाएंगे बल्कि कभी सुख और शान्ति ना पा सको गे |
- अशोक कुमार भटनागर ,
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी ,
रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार
बुजुर्गों के लिए अपनाए गए सर्वनाम अनादर सूचक हैं। लेखक स्वयं रिटायर्ड हैं। यदि उन्होंने अपने बच्चों के प्रति निराशा व्यक्त की है तो भी सर्वनाम अलग और आदर सूचक होने चाहिए। लेख का मर्म सही है पर भाषा तो निंदनीय लगी। खेद हो तो सुधार करे।
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