कृष्ण का आकर्षण किसी जाति धर्म से बंधा नहीं, कृष्णाकर्षण से जीवात्मा परमात्मा में समा सकते, कृष्ण से सम्बंधित होनेवाले कंश कभी नही बनते!
कृष्ण नहीं किसी एक वर्ण जाति वंश से बंधे हुए
गांधारी का शाप फला व कृष्ण का वंश उजड़ा,
फिर ये यादव कौन जो यादव की उपाधि रखते,
जो अपने आप को श्रीकृष्ण के वंशज समझते?
कृष्ण नहीं थे, गोपालक नंद गोप के सुपुत्र सगे,
कृष्ण थे सुर सूरसेन वंश के सुरि शौरि सुरसेनी,
कनिष्ठ यदुपुत्र क्रोष्टु अंधक से अलग शाखा के!
कृष्ण ने अपने जीते जी सब पुत्र पौत्र बांधव को
मूसल से लड़ते झगड़ते मरते मारते देख लिए थे,
उनकी कुल नारियों को आभीर लुटेरे ने छीने थे!
‘आभीर: मन्त्रयामासु:समेत्याशुभदर्शना: अयमेको
अर्जुनो धन्वी वृद्धबालं हतेश्वरम्’ ‘वे अशुभदर्शी
आभीर,अकेले स्त्रियों को ले जाते अर्जुन से लड़े'!
‘वृष्णीन् विनष्टांस्ते श्रुत्वा व्यथिता:पाण्डवाभवन्’
सारे वृष्णिवंश के विनाश सुनकर पांडव दुखी हुए,
गान्धार्या यद्वाक्य मुक्त:स पूर्वम्’याद कृष्ण को!
जो सारी जातिगत उपाधियां छोड़ यादव बन गए,
अन्य यदुवंशी मूल की जातियों से दूरियां बढ़ाके!
व्यासस्मृति में गोप को नापित कोल किरात संग
अंत्यज कहे गए, जबकि घोसी शिशुपाल के पिता
दमघोष के वंशज,आभीर अहीर कुकुर कंशवंश के!
कृष्ण थे वृष्णिवंशी यदु के बड़े पुत्र सहस्त्रजित के
हैहय राजवंशी शाखा से निकले, गोपालक नहीं थे,
कनिष्ठ यदुपुत्र क्रोष्टु अंधक से वार्ष्णेय अलग थे!
कृष्ण ने गीता में कहा है ‘वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि’
वार्ष्णेय अंधक शाखा के गोपालकों की उपाधि नहीं
कृष्ण थे वेद-उपनिषद,आगम-निगम के परमज्ञानी!
महाभारत मौसलपर्व से ज्ञात होता कि वृष्णि और
अंधक यदुकुल के ऐसे शाखा थे जो सुरा उत्पादक,
मद्यप थे,‘वृष्ण्यन्धककुलेष्विह सुरासवो न कर्तव्य:!
‘कृष्णस्य संनिधौ राम: सहित: कृतवर्मणा अपिवद्'
कृष्ण के निकट कृतवर्मा सहित बलराम, सात्यकि
गद,बभ्रु सुरा पीने लगे,सात्यकि मदोन्मत हो गए!
कृष्ण युद्ध कुशल क्षत्रिय थे, जबकि गोप तब भी
गोपालक, आज भी गोपालक, क्षत्रिय नहीं रहे कभी,
यदुवंश की यादव उपाधि से जाति सियासत करते!
कृष्ण के पूर्वज शौरि थे,आज भी है राजपूत शौरि,
सूरि,सोढ़ी,जडेजा,जाट पौराणिक यादव क्षत्रिय खत्री,
जो गोपालक नहीं, यदुवंश में ढेर शाखाएं अब भी!
‘तत: शौरिं नृयुक्तेन बहुमूल्येन भारत यानेन महता
पार्थो बहिनिष्क्रामयत् तदा’पार्थ ने वसुदेव शौरि के
शव को बहुमूल्य विमान में सुलाकर बाहर ले गए!
श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया था गांधारी के शाप को,
उन्होंने कभी माफ नहीं किया खुद को, स्ववंश को,
अपने जीवन काल में देखा अपने वंश के नाश को!
ताकि किसी को अहं नहीं हो कृष्ण वंशज होने के,
कृष्णवंशी नहीं बचा कोई मथुरा समुद्र में खोने से,
कृष्ण लीला समेट वंश सहित गोलोक सिधार गए!
ऐसे वहम के क्या फायदे जिससे अहं बढ़ने लगते,
राम कृष्ण की उपाधि लेके रावण कंस होने लगते,
हरकोई वहम छोड़कर अनुयायी बनें राम कृष्ण के!
कृष्ण नहीं किसी एक वर्ण जाति वंश से बंधे हुए,
कृष्ण एक आस्था है,सारी संस्कृति को समेटे हुए,
कृष्ण जेल में जन्मे पर बंधे नहीं किसी बंधन से!
कृष्ण पर किसी एक माता का अधिकार नहीं था,
कृष्ण एक प्रेयसी के नहीं हजारों नारियों के पति,
कृष्ण को प्रेमी पति सखा मानना जारी आज भी!
कृष्ण का आकर्षण किसी जाति धर्म से बंधा नहीं,
कृष्णाकर्षण से जीवात्मा परमात्मा में समा सकते,
कृष्ण से सम्बंधित होनेवाले कंश कभी नही बनते!
कृष्णवंशी वही जो कृष्ण को स्वजाति में नहीं बांटे,
कृष्णांशी वही जो सारी दुनिया को कृष्ण अंशी कहे,
श्यामअंशी रसखान भी,कान्हा तो पूरी कायनात के!
- विनय कुमार विनायक,
दुमका, झारखंड-814101
🤣🤣🤣🤣🤣कसम से तेरा पता होता तो वर्तमान के सभी यादव राजपरिवार तुझे जिंदा गाड़ देते
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