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सदाचार का ताबीज - हरिशंकर परसाई
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सदाचार का ताबीज कहानी का सारांश
प्रस्तुत पाठ या हास्य एकांकी सदाचार का तावीज़ , लेखक हरिशंकर परसाई जी के द्वारा लिखित है। इस एकांकी के माध्यम से यह बताया गया है कि कैसे ताबीज़ बाँधकर आदमी को ईमानदार बनाने की कोशिश की जा रही है। प्रस्तुत पाठ के लेखक का मानना है कि किसी को सदाचारी तभी बनाया जा सकता है, जब भ्रष्टाचार के मौके ख़त्म हों तथा कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा मिले। इस एकांकी में जो पात्र हैं, वे इस प्रकार हैं – राजा, मंत्री, दरबारी-1, दरबारी-2, दरबारी-3, विशेषज्ञ-1, विशेषज्ञ-2, विशेषज्ञ-3, साधु, कुछ राज-कर्मचारी और आमजन। जो सूत्रधार की भूमिका में है, वह मंच पर नहीं आता है परन्तु उसकी आवाज़ सुनाई देती है।
दृश्य-1 के अंतर्गत राज दरबार लगा है। सिंहासन पर राजा बैठा है। उसकी बाईं ओर मंत्री और एक दरबारी बैठा है। इसी तरह राजा के दाईं ओर दो अन्य दरबारी बैठे हैं। तभी राजा बोलता है – प्रजा बहुत हल्ला मचा रही है कि सब जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है। हमें तो आज तक कहीं नहीं दिखा। तुम लोगों को कहीं दिखा हो तो बताओ। राजा की बात सुनते ही तीनों दरबारी ‘ना’ में अपनी असहमति प्रकट करते हैं। तत्पश्चात् मंत्री बोलता है – जब हुज़ूर को नहीं दिखा तो हमें कैसे दिख सकता है ? राजा जवाब में बोलता है – तुम लोग सारे राज्य में ढूंढ़कर देखो कि कहीं भ्रष्टाचार तो नहीं है ! अगर कहीं मिल जाए तो हमारे देखने के लिए नमूना लेते आना। हम भी तो देखें कि कैसा होता है।
दरबारी-1 – हुज़ूर, वह हमें नहीं दिखेगा। सुना है, वह बहुत बारीक होता है।
दरबारी-2 – महाराज, अपने राज्य में एक जाति रहती है, जिसे ‘विशेषज्ञ’ कहते हैं। इस जाति के पास कुछ ऐसे अंजन होता है कि उसे आँखों में आँजकर वे बारीक़ चीज़ भी देख लेते हैं।
दरबारी-3 – महाराज, हमारा निवेदन है कि इन विशेषज्ञों को ही भ्रष्टाचार तलाशने का काम सौंपे।
इसके पश्चात् राजा मंत्री को विशेषज्ञ लाने का हुक्म देते हैं। मंत्री और तीनों दरबारियों का राजा को सलाम करते हुए मंच से प्रस्थान होता है। राजा किसी चिंतन में खोया होता है। मंत्री तीन नए लोगों के साथ दरबार में फिर हाज़िर होता है। तीनों राजा को सलाम करके दरबारियों वाले आसनों पर बैठ जाते हैं। तभी तीनों विशेषज्ञों को संबोधित करते हुए राजा कहता है – सुना है, हमारे राज्य में भ्रष्टाचार है। पर वह कहाँ है, यह पता नहीं चलता। तुम लोग उसका पता लगाओ। अगर मिल जाए तो पकड़कर हमारे पास ले आना। अगर बहुत हो तो नमूने के लिए थोड़ा-सा ले आना। तत्पश्चात् विशेषज्ञों ने उसी दिन से भ्रष्टाचार की छान-बीन शुरू कर दी। दो महीने बाद वे पुनः दरबार में हाज़िर हुए। विशेषज्ञों को राजा संबोधित करते हुए बोलते हैं – तुम्हारी जाँच पूरी हो गई ? क्या तुम्हें भ्रष्टाचार मिला ? लाओ, मुझे दिखाओ। देखूँ, कैसा होता है !
विशेषज्ञ-1 – हुज़ूर, वह हाथ ही पकड़ में नहीं आता। वह स्थूल नहीं, सूक्ष्म है। वह अगोचर है, पर वह सर्वत्र व्याप्त है। उसे देखा नहीं जा सकता, अनुभव किया जा सकता है।
राजा – (कुछ सोचते हुए) विशेषज्ञों, तुम कहते हो कि वह सूक्ष्म है, अगोचर है और सर्वव्यापी है। ये गुण तो ईश्वर के हैं। तो क्या भ्रष्टाचार ईश्वर है ?
विशेषज्ञ-2 – हाँ महाराज, अब भ्रष्टाचार ईश्वर हो गया है।
दरबारी-1 – पर वह है कहाँ ? कैसे अनुभव होता है ?
विशेषज्ञ-3 – वह सर्वत्र है। वह इस भवन में है। वह महाराज के सिंहासन में है।
सिंहासन का नाम सुनते ही राजा चौंक जाता है। राजा को बताया जाता है कि आपके पूरे शासन में भ्रष्टाचार है और वह मुख्यतः घूस के रूप में है। तभी राजा चिंतित होकर कहते हैं कि हम भ्रष्टाचार बिलकुल मिटाना चाहते हैं। उसके बाद राजा विशेषज्ञों से भ्रष्टाचार मिटाने का उपाय पूछता है। फिर दरबार लगता है। राजा के सामने कागज़ों का एक पुलिंदा रखकर तीनों विशेषज्ञों का प्रस्थान होता है। राजा उन कागज़ों को उलट-पलटकर देखता है, फिर मंत्री, फिर तीनों दरबारी देखते हैं। जब राजा ने सबसे मत पूछा तो मंत्री ने बोला – महाराज, यह योजना एक मुसीबत है। इसे ठीक करने में तो सारी व्यवस्था उलट-पलट हो जाएगी। हमें तो कोई ऐसी तरकीब चाहिए जिससे बिना कुछ उलट-फेर किए भ्रष्टाचार मिट जाए। जवाब में राजा ने कहा – मैं भी यही सोचता हूँ। पर वह हो कैसे ? हमारे प्रपितामाह को तो जादू आता था, हमें तो वह भी नहीं आता। तुम लोग ही कोई उपाय सोचो। मंत्री ने कहा – महाराज, यह काम आप मुझपर छोड़िए और जाकर चैन की नींद सोइए।
मंत्री – महाराज, एक कंदरा में तपस्या करते हुए इन महान साधक को हम ले आए हैं। इन्होंने सदाचार का तावीज़ बनाया है। वह मंत्रों से सिद्ध है और उसको बाँधने से आदमी एकदम सदाचारी हो जाता है।
साधु अपने झोले से एक तावीज़ निकालकर राजा को देता है। राजा तावीज़ को उलट-पलटकर देखता है, फिर उससे पूछता है कि मुझे बताओ कि इससे आदमी सदाचारी कैसे हो जाता है ? तभी साधु कहता है – महाराज, भ्रष्टाचार और सदाचार मनुष्य की आत्मा में होता है। बाहर से नहीं होता है। मेरी यह सदाचार का तावीज़ जिस आदमी की भुजा पर बंधा होगा, सदाचारी हो जाएगा। मैंने कुत्ते पर भी प्रयोग किया है। यह तावीज़ गले में बाँध देने से कुत्ता भी रोटी नहीं चुराता। यही इस तावीज़ का गुण है, महाराज। इतने में राजा खुश हो जाता है और अपने राज्य में ताविज़ों का एक कारखाना खोलने की बात कहता है, तभी मंत्री बोल पड़ता है – महाराज, हमें इस झंझट में न पड़कर साधु बाबा को ही ठेका दे देना चाहिए। ये अपनी मंडली से तावीज़ बनवाकर राज्य को सप्लाई कर देंगे। ये बात राजा को बहुत पसंद आई। राजा के द्वारा साधु को पाँच करोड़ रूपए देकर कारखाना खोलने का ठेका दे दिया गया। राज्य के अखबारों में ख़बर छपी कि सदाचार के तावीज़ की खोज़। तावीज़ बनाने का कारखाना खुला। देखते ही देखते लाखों तावीज़ बन गए। सरकारी कर्मचारियों की भुजा पर एक-एक तावीज़ बाँध दिया गया। राजा तावीज़ का असर देखने के लिए एक कर्मचारी को पाँच का नोट देकर अपना काम करने का लालच देता है। लेकिन कर्मचारी घुस के रकम को पाप बताकर उसे डांट देता है। राजा बहुत खुश हो जाता है कि लोग तावीज़ पहनकर ईमानदार हो गए हैं। महीने के आख़िरी तारीख़ को राजा फिर उस कर्मचारी के पास जाता है और पाँच का नोट देते हुए कहता है – आज तो मेरा काम कर दीजिए। तभी कर्मचारी उस नोट को लेकर अपने जेब में रख लेता है और कहता है – चलो, तुम भी क्या याद करोगे ! राजा गुस्सा में आकर कहता है कि क्या तुम आज सदाचार का तावीज़ पहनकर नहीं आए हो तो वह कर्मचारी तावीज़ पहनने की बात स्वीकारता है.... ।।
सदाचार का ताबीज कहानी के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1- राजा ने दरबारियों से क्या पूछा ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, राजा ने दरबारियों से पूछा कि प्रजा बहुत हल्ला मचा रही है कि सब जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है। हमें तो आज तक कहीं नहीं दिखा। तुम लोगों को कहीं दिखा हो तो बताओ।
प्रश्न-2- भ्रष्टाचार को ढूंढने का काम किसको सौंपा गया ?
उत्तर- भ्रष्टाचार को ढूंढने का काम विशेषज्ञों को सौंपा गया।
प्रश्न-3- तावीज़ बंधा होने पर भी इकतीस तारीख़ को कर्मचारी ने घूस लेना क्यों स्वीकार कर लिया ?
उत्तर- क्योंकि महीने के आख़िरी तारीख़ होने के कारण कर्मचारी के पास पैसे खत्म हो गए होंगे, इसलिए वह घूस लेना स्वीकार कर लिया होगा। दूसरी बात यह है कि तावीज़ तो सिर्फ एक ढोंग के सिवा कुछ भी नहीं था।
प्रश्न-4- राजा को क्या चीज़ दिखाई नहीं देती थी ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, राजा को भ्रष्टाचार दिखाई नहीं देती थी।
प्रश्न-5- विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार की क्या-क्या विशेषताएँ बताई ?
उत्तर- विशेषज्ञों ने भ्रष्टाचार के बारे में बताया कि उसे हाथ से नहीं पकड़ सकते हैं। वह स्थूल नहीं सूक्ष्म है। वह सर्वत्र व्याप्त है। उसे देखा नहीं जा सकता, केवल अनुभव किया जा सकता है।
प्रश्न-6- मंत्री ने भ्रष्टाचार मिटाने का क्या उपाय सुझाया ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, मंत्री ने भ्रष्टाचार मिटाने का उपाय सुझाते हुए राजा से कहा कि महाराज, एक कंदरा में तपस्या करने वाले साधु ने सदाचार का तावीज़ बनाया है। वह मंत्रों से सिद्ध है और उसको बाँधने से आदमी एकदम सदाचारी हो जाता है।
प्रश्न-7- पाठ में छिपे व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- पाठ में छिपे व्यंग्य को इस तरह से हम समझ सकते हैं कि केवल तावीज़, भाषणों, या दंड जैसे आडंबरयुक्त चीज़ों के बलबूते भ्रष्टाचार को ख़त्म नहीं किया जा सकता। अगर राज्य या शासक अपने कर्मचारियों को उनकी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए पर्याप्त वेतन दें और नैतिक मूल्यों की स्थापना करे तो निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा।
व्याकरण बोध
प्रश्न-8- अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखिए -
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
जिसका आचरण भ्रष्ट हो – भ्रष्टाचारी
जो किसी विषय का ज्ञाता हो – ज्ञानी
लिपटे हुए कागज़ों का बंडल – पुलिंदा
जो चारों तरफ़ फैला हुआ हो – सर्वव्यापी
जो दिखाई न दे – अदृश्य
प्रश्न-9- नीचे लिखे समस्त पदों का विग्रह कीजिए -
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
महाराज – महान है जो राजा
महामंत्री – महान है जो मंत्री
महापुरुष – महान है जो पुरुष
श्वेतांबर – श्वेत है जो अंबर
पीतांबर – पीत है अंबर जिसका अर्थात् कृष्ण
प्रधानाध्यापक – प्रधान है जो अध्यापक
परमानंद – परम है जो आनंद
नीलगगन – नीला है जो गगन
प्रश्न-10- नीचे लिखे वाक्यों के अंत में अर्थ के आधार पर छाँटकर बॉक्स में लिखी गई लोकोक्तियाँ लिखिए -
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
ऑफिस में बाबू के पद के लिए एक विज्ञापन क्या दिया गया कि हज़ारों आवेदन आ गए। इसे कहते हैं एक अनार सौ बीमार।
भयंकर दुर्घटना के बाद भी स्वाति बच गई। किसी ने ठीक ही कहा है जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय।
खेत में गन्ने बो लो। चीनी, गुड़ तो मिलेगा ही सूखा भी जानवरों के चारे के काम आएगा। इसे कहते हैं आम के आम गुठलियों के दाम।
खज़ाना खोजते-खोजते उम्र बीत गई और अंत में मिला भी तो क्या – खाली मटका। इसे कहते हैं खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
सदाचार का ताबीज पाठ से संबंधित शब्दार्थ
सदाचार – अच्छा आचरण या व्यवहार
विशेषज्ञ – किसी विषय-विशेष का ज्ञान रखने वाला
भ्रष्टाचार – बुरा आचार-विचार
बारीक – सूक्ष्म, पतला
विराटता – विशालता
अंजन – काजल
आंजकर – आँखों में काजल लगाकर
पुलिंदा – गठरी
स्थूल – मोटा, घना
अगोचर – अप्रकट, अदृश्य
व्याप्त - समाया हुआ
सर्वव्यापी – सब जगह समाया हुआ
कंदरा – गुफा
कल – पुरजा, मशीन
तावीज़ – मंत्र लिखा कागज़ या धातु का टुकड़ा जिसे हाथ पर या गले में पहना जाता है।
Sadachar ka tabij ke Aadhar per harishankar parsai ki lekhan Kala
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