तुम्हारे साथ रहकर कविता की व्याख्या सारांश प्रश्न उत्तर Sarveshwar Dayal Saxena मूल भाव Tumhare Saath Rehkar Hindi Poetry तुम्हारे साथ रहकर अक्सर
तुम्हारे साथ रहकर कविता - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
तुम्हारे साथ रहकर कविता तुम्हारे साथ रहकर कविता के प्रश्न उत्तर Sarveshwar Dayal Saxena तुम्हारे साथ रहकर कविता की व्याख्या तुम्हारे साथ रहकर कविता का सारांश मूल भाव Tumhare Saath Rehkar Hindi Poetry
तुम्हारे साथ रहकर कविता की व्याख्या भावार्थ
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।
व्याख्या - कवि जीवन यात्रा में अकेले इधर - उधर भटकता हुआ दिशाहीन हो गया था। उसके मन में एक अजीब सी वंचना की स्थिति थी। उसे सब कुछ बिखरा बिखरा सा लगता था। इसी बीच एकाएक प्रिय का साहचर्य हुआ और उसकी दुनिया ही बदल गयी। उसके मन की अशांति दूर हो गयी। उसके जीवन की निसंगता समाप्त हो गयी। उसके जीवन में अब भीतर बाहर स्फुरण और गतिशीलता दिखलाई पड़ने लगी। प्रिय का साथ मिलते ही उसे वे दूरियां सिमटी सी लगने लगी जिन्हें देखकर वह पराजय महसूस करता था। उसे हर असंभव चीज़ अब संभव प्रतीत होने लगी। उसका मन हर्षित हो गया। जीवन की सारी विडंबना समाप्त हो गयी। उसका मन ख़ुशी और अह्रालाद से भर गया। सारी दुनिया अब उसे प्रेमिल दिखलाई पड़ने लगी। चारों दिशाएं सिमटकर उसके पास आ गयी। वह अब समस्याओं एवं वंचनाओं से मुक्त होकर सुखद जीवन का अनुभव करने लगा।
हर चीज़ का आकार घट गया है,
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख
आशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,
मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,
यहाँ तक कि घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,
और धूप का दीवार पर
चढ़कर चले जाने का।
व्याख्या - प्रस्तुत पन्क्तियों में कवि ने प्रिय के आगमन के बाद अपने जीवन में होने वाले परिवर्तन का चित्रण किया है। प्रियतम के आगमन के पहले वह अपना आत्मविश्वास खो चुका था किन्तु अब वह जीवन की घुटन ,पीड़ा और पराजय से ऊपर उठकर एक विचित्र अनुभव का बोध करने लगा। अब उसके सामने सारी ऊँचाई लघुता में सिमटती हुई दिखलाई पड़ने लगी। उसके सारे कठिन कार्य सुगम प्रतीत होने लगे। प्रिय के साथ से पहले जो वृक्ष छूने में वह असमर्थ था वही अब उसे इतने बौने प्रतीत लगते है कि वह उनके शीर्ष पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद दे सकता है। अब वह आसानी से अनंत आकाश और नीले बादलों का अनुभव अपने इर्द -गिर्द कर सकने में सफल हैं। उसे अब तक अपना जीवन उबाऊ सा प्रतीत लगता है। प्रकृति में होने वाले परिवर्तन उसे नहीं प्रभावित कर पाते थे किन्तु प्रियतम के आगमन से उसे अब हर चीज़ अर्थवत्ता प्रदान करने लगी है। अब उसे घास का हिलना ,हवा का बहना ,धूप का आना और जाना निरर्थक नहीं प्रतीत होता ,इनमें उसे किसी न किसी सन्देश का आभास होने लगा है। अब वह हर परिवर्तन में एक विशिष्ट सिरहन का अनुभव करने लगा है।
तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है
कि हम असमर्थताओं से नहीं
सम्भावनाओं से घिरे हैं,
हर दिवार में द्वार बन सकता है
और हर द्वार से पूरा का पूरा
पहाड़ गुज़र सकता है।
शक्ति अगर सीमित है
तो हर चीज़ अशक्त भी है,
भुजाएँ अगर छोटी हैं,
तो सागर भी सिमटा हुआ है,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।
व्याख्या - कवि का मानना है कि प्रियतम के आगमन के बाद जीवन में होनेवाली नवीन संभावनाओं का वर्णन किया है। प्रियतम के आगमन के पहले वह बाधाओं एवं समस्याओं के सामने घुटने टेक देता था किन्तु आज उसमें कठिनाइयों पर अधिपत्य स्थापित करने की क्षमता आ गयी है। प्रिय के साथ होने पर उसमें असीम शक्ति का एहसास होने लगा है। आज उसमें हर प्रकार की बाधाओं से जूझने की शक्ति मिल गयी है। आज वह उस दिवार में से द्वार के निर्माण की क्षमता रखता है जिसमें से पूरा का पूरा पहाड़ गुजर सकता है। प्रियतम के आते ही उसमें एक विशेष पौरुष का अनुभव होने लगा है। वह पहले अपने आपको शक्तिहीन मानता था। उसमें परिस्थितियों से जूझने की शक्ति नहीं थी। प्रियतम के साथ होने पर उसे यह अनुभव होने लगा कि जब मनुष्य में इच्छा शक्ति और दृढ संकल्प की भावना हो तो सारी असमर्थता ,संभावना में बदली जा सकती है। आज उसे नियति पर विजय प्राप्त कर लिया है और मृत्यु की विभीषिका एवं संत्रास की परवाह नहीं करता। आज उसमें एक विचित्र मनोबल की भावना का समावेश हो गया जिसमें वह किसी संघर्ष से भयभीत नहीं होता है वरन उसे पराजित करके ही दम लेता है। अब उसे लगता है कि जीवन और मृत्यु तो चिरंतर सत्य है उनसे भयभीत न होकर जीवन में आत्म-विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
तुम्हारे साथ रहकर कविता का सारांश मूल भाव
तुम्हारे साथ रहकर कविता सर्वेश्वरदयाल सक्सेना जी द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध कविता है। यह कविता एक सूनी नाव काव्य संग्रह से ली गयी है। इसमें कवि के द्वारा प्रेम की उद्दामता का जीवंत चित्रण हुआ है। मनुष्य के जीवन में नारी सौन्दर्य एवं साहचर्य का अभूतपूर्व प्रभाव होता है। वास्तव में नारी एक संयोजक शक्ति है। उसके साथ होने पर मन की अशांति दूर हो जाती है। बाहर भीतर का एकांत समाप्त हो जाता है। जीवन पथ की दूरी कम हो जाती है। जीवन का अकेलापन समाप्त हो जाता है और सर्वत्र गतिशीलता दिखलाई पड़ती है। कठिन कार्य सुगम बन जाता है। जीवन में कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की दुर्लभ शक्ति आ जाती है। छोटी सी छोटी अनुपम अर्थ प्रस्तुत करने लगती है। जीवन में विश्वास की भावना बढ़ जाती है और मन में आने वाली मृत्यु की विभीषिका और उसका संत्रास लुप्त हो जाता है। मनुष्य की इच्छा शक्ति प्रबल हो जाती है। सम्पूर्ण जीवन अर्थवान प्रतीत हो जाता है और असमर्थताएँ भी संभावना में बदल जाती है। यहाँ पर कवि स्पष्ट रूप से कहना चाहता है कि नारी साहचर्य ,सौन्दर्य और उसका प्रेम मानव जीवन की विडम्बना को दूर करके उसे जीवंत बना देता है।
तुम्हारे साथ रहकर कविता के प्रश्न उत्तर
प्र. तुम्हारे साथ रहकर कविता में कवि ने किस प्रकार प्रेमिल दुनिया का अनुभव व्यक्त किये हैं ?
उ. कवि के अनुसार नारी का साहचर्य एक प्रेमिल दुनिया का निर्माण करता है। प्रेमिल दुनिया हर पल एक नवीन संभावनाओं का होता है। प्रिय के साहचर्य से दुनिया को बदल देने का अटूट विश्वास पैदा होता है। इससे जीवन की जड़ता समाप्त हो जाती है।
प्र. कवि के अनुसार कब व्यक्ति के मन में दुनिया सिमटी हुई प्रतीत होती है ?
उ. जब मनुष्य के मन में किसी के प्रति प्रेम का भाव जाग उठता है तो उसकी भावनाएँ आत्मकेंद्रित हो जाती हैं। उसके सारे अभाव दूर हो जाते हैं। उसके लिए यह दुनिया सिमट कर आँगन सी बन जाती है।
प्र. कवि के अनुसार असमर्थत़ायें कब संभावनाओं में बदल जाती है ?
उ. कवि के अनुसार अकेले रहने पर मनुष्य भटकाव की स्थिति में रहता है। प्रियतम के साथ होने पर उसका भटकाव समाप्त हो जाता है। उसकी इच्छा उसके साथ हो जाती है। उसके मन में समस्त अवरोधों को दूर करने की शक्ति आ जाती है। इस प्रकार उसकी असमर्थताएँ संभावनाओं में बदल जाती है।
प्र. कवि जीवन में प्रेम के महत्व को किस प्रकार स्वीकार किया है ?
उ. कवि जीवन में प्रेम की अद्वैत स्थिति को स्वीकार किया है। प्रेम से ही जीवन गतिशील होता है। प्रेमयुक्त जीवन में असहायता और निरुपायता नहीं होती है। प्रेमिल संसार में अनास्था और दैन्य नहीं है ,उसमें जीवन के प्रति गहरी कामना ,आसक्ति और अटूट आकर्षण की स्प्रेहा है।
प्र. 'वह नियति की नहीं ,मेरी है ' कथन का भाव स्पष्ट कीजिये।
उ. प्रियतम के साथ न रहने पर कवि के मन में मृत्यु का आतंक समाया हुआ था किन्तु आज उसके साथ रहने पर इसका सारा भय समाप्त हो गया है। अब उसे लगता है कि जीवन और मृत्यु तो चिरंतन सत्य हैं उसने भयभीत न होकर मनुष्य को निरंतर जीवन के उर्ध्व सोपानों पर आगे बढ़ना चाहिए।
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