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उनको प्रणाम कविता नागार्जुन
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उनको प्रणाम कविता की व्याख्या भावार्थ
जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।
कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए !
उनको प्रणाम !
जो छोटी–सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि–पार;
मन की मन में ही रही¸ स्वयं
हो गए उसी में निराकार !
उनको प्रणाम !
व्याख्या - कवि प्रस्तुत पंक्तियों में कहते हैं कि वे भी नमन योग्य हैं ,जिन्होंने जीवन पथ पर संघर्ष करते हुए आगे बढे परन्तु पथ के शूलों के आतंक से मार्ग में ही विचलित हो गए। ऐसे वीर जिनके तीर लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाए और युद्ध की समाप्ति के पहले ही उनके तरकश रीते हो गए। ऐसे वीरों को भी कवि नमन करता है। कवि के कथन का मूल भाव यह है कि जिसमें जीवन से संघर्ष करने की क्षमता है वे वरेण्य हैं। कवि ऐसे भी साहसी यात्रियों को नमन करता है जो कि अपनी छोटी सी नाव लेकर उमंग के साथ सागर के वक्षस्थल पर प्रयाण किये। वे सागर की उत्ताल तरंगों से संघर्ष करते हुए सागर में स्वयं को तिरोहित कर दिया है पर हार नहीं मानी है। ऐसे वीर भी कवि के अनुसार प्रणाम योग्य है।
जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह–रह नव–नव उत्साह भरे;
पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे !
उनको प्रणाम !
एकाकी और अकिंचन हो
जो भू–परिक्रमा को निकले;
हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके
इतने अदृष्ट के दाव चले !
उनको प्रणाम !
व्याख्या - कवि का कहना है कि जिनमें लक्ष्य तक पहुँचने की उत्कट अभिलाषाएं हैं वे भी वन्दनीय हैं ,चाहे वे वहां तक पहुँच पाए या न पहुँच पायें। उनकी दृढ इच्छा भावी पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करती रहेगी। इस प्रसंग में वह उन साहसी पर्वतारोहियों को प्रणाम करता है ,जिन्होंने हिमालय के उच्च शिखर पर चड़ने का अदम्य प्रयास किया था। वे शिखर पर आरूढ़ होने का लक्ष्य लेकर चढ़े थे ,किन्तु पथ की बाधाओं एवं विपरीत परिस्थितियों के कारण उनके संकल्प समाप्त हो गए और उन्हें हिम समाधि लेनी पड़ी। उन्हें कवि सम्मान के साथ नमन करते हैं। कवि इस प्रसंग में उन साहसी वीरों को नमन करते हैं जो एकाकी पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकले। उन्हें मार्ग में पग - पग पर बाधाओं का सामना करना पड़ा और उनका हर निशाना व्यर्थ हुआ। वे निरंतर अग्रगामी रहे ,पीछे की ओर लौटने के लिए मुँह नहीं मोड़ा ,भले ही उन्हें पंगु होना पड़ा। वे अपने पैरों की परवाह न करते हुए हुए मार्ग के शूलों को कुचलते हुए आगे बढ़ते ही गए। ऐसे लोग असफल होने के बावजूद भी गरिमामय हैं।
कृत–कृत नहीं जो हो पाए;
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल !
उनको प्रणाम !
थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ;
या जन्म–काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ !
उनको प्रणाम !
व्याख्या - कवि देश के क्रांतिकारियों एवं शहीदों का स्मरण करते हुए कहता है कि वह उन वीरों का नमन करता है जिन्होंने प्राणों की परवाह न करते हुए राष्ट्र की आजादी के लिए शहीद हो गए। जिन्होंने सरफरोसी की तम्मना लेकर स्वतंत्रता की बलि वेदी पर अपने प्राणों की आहुति दे दी। अभी इनकी शहादत के इतिहास की घटना कुछ वर्षों पहले की है लेकिन आज देशवासियों के द्वारा भुला दिया गया है। परन्तु कवि उन वीर सेनानियों को नहीं भूला है और उनका नमन करता है। कवि उन्हें स्मरण करता हुआ कहता है कि उनकी राष्ट्रीयता चेतना एवं देश प्रेम का गुण गान करता है। वे स्वतंत्रता सेनानी अल्पायु में ही अपने प्राणों का न्योछावर कर दिए। यदि वे कायर होते तो दीर्घायु रहते। कवि उन स्वतंत्रता सेनानियों को प्रणाम करता है।
दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ?
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत !
उनको प्रणाम !
जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर–चूर !
उनको प्रणाम !
व्याख्या - कवि के अनुसार वे वीर साहसी हैं जो आजादी के संघर्ष में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। जो विपरीत परिस्थिति में भी अपने मशाल को जलाये रखा। ऐसे लोग असाधारण भावनाओं से ओत - प्रोत थे परन्तु उनका अधिकतम जीवन वंदी गृह में बीता। जिसके फलस्वरूप उनकी मन की अभिलाषाएं अपूर्ण ही रह गयी। उन्होंने अप्रतिम साहस का परिचय देकर कालापानी का संघर्षपूर्ण जीवन झेला लेकिन तनिक भी विचलित नहीं हुए। इन वीरों का त्याग एवं देशप्रेम बेजोड़ है। इनकी सेवाओं की तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। उन वीरों ने कभी भी अपने प्रचार की चिंता नहीं की। उनके मन में तो भारत माता को आज़ाद करने की संकल्प शक्ति थी। उनकी अभिलाषाएं अपार थी ,लेकिन सरकार के दमन के कारण प्रतिफलित न हो सकी। कवि उन्हें भी प्रणाम करते हैं।
उनको प्रणाम कविता नागार्जुन के प्रश्न उत्तर
प्र. कौन विज्ञापन से क्यों दूर रहे ?
उ. आज तो साधारण से कार्य को भी प्रचारित करने के लिए लोग बेचैन रहते हैं परन्तु दृढव्रती सेनानियों ने कभी भी अपने कार्य एवं उद्देश्य को प्रचारित नहीं किया। देश में ऐसे अनगिनत स्वतंत्रता सेनानी अब भी वर्तमान हैं ,जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वश्य न्योछावर कर दिया। उनके सामने स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है का मूल मन्त्र था। उन्होंने कभी भी न तो अपना प्रचार किया और न अपने कार्य का ढिढोरा पीटा।
प्र. कवि के अनुसार प्रतिकूल परिस्थितियों ने किनके मनोरथ को चूर चूर कर दिया ?
उ. देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने आज़ाद भारत का ,जो स्वपन देखा था ,वह उनके जीवन में ही चूर चूर हो गया। इन राष्ट्र प्रेमिओं ने जिन महत उद्देश्यों को लेकर संघर्ष किया था आज वे सभी प्रायः अधूरे रह गए। आज देश के सत्ताधारियों स्वार्थी ,भ्रष्टाचारी एवं आत्मकेंद्रित हो गए। सम्पूर्ण देश में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। आज देश की जनता स्वतंत्रता सेनानियों के कष्टों ,यातनाओं एवं पीड़ाओं को भूल चुकी है। कवि ऐसे वीर सेनानियों को प्रणाम करते हैं।
प्र. 'हो गए उसी में निराकार ' कथन का तात्पर्य क्या है ?
उ. यहाँ पर कवि उन महान विभूतियों को नमन करता है जो कि अपनी लघु सीमाओं के साथ सागर की पार करने के लिए चल पड़े परन्तु सागर की उत्ताल तरंगों के थपेड़ों से संघर्ष करते हुए अपना जीवन खो बैठे।
प्र. भू परिक्रमा पर निकले वीर एकाकी और अकिंचन क्यों थे ?
उ. ऐसे वीरों में अदम्य उत्साह की भावना थी। उनका मूल उद्देश्य लक्ष्य तक पहुँचना था। अपने इस साहसिक यात्रा में वे अकेले और खाली हाथ थे। वे पग - पग पर बाधित हुए ,लेकिन पीछे की ओर नहीं लौटे।
उनको प्रणाम कविता का संदेश सारांश मूल भाव
उनको प्रणाम कविता बाबा नागार्जुन जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध कविता है। कवि ने बड़ी सरल भाषा में देश की महान विभूतियों ,देश प्रेमियों ,क्रांतिकारियों एवं शहीदों का नमन किया है। कवि देश की वर्तमान परिस्थिति से क्षुब्ध हैं उनका कहना है कि आज देशवासी शहीदों की उस शहादत को भूल गए हैं जिन महान उद्देश्यों को लेकर उन्होंने अपनी जान गंवाई थी। आज लोग कुर्शी की आपाधापी में अपने अतीत के गौरवमय इतिहास को भूल रहे हैं।
उनको प्रणाम कविता नागार्जुन के शब्दार्थ
कुंठित - हीन भावना से युक्त
अभिमंत्रित - मन्त्र द्वारा सिद्ध
उदधि - समुन्द्र
शिखर - पर्वत की चोटी
अकिंचन - खाली हाथ
अदृष्टि - जो दिखाई न दे
उग्र - तीव्र
कुसमय - बुरा समय
निरवधि - लगातार
विज्ञापन - प्रचार
प्रतिकूल - विपरीत
मनोरथ - अभिलाषा
चूर - चूर - नष्ट कर देना
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