उपन्यास के तत्व उपन्यास के तत्व की विवेचना उपन्यास के तत्व के नाम, उपन्यास के तत्व पर टिप्पणी upanyas ke tatva ka varnan upanyas ke tatva ke naam
उपन्यास के तत्व की विवेचना
उपन्यास के तत्व उपन्यास के तत्व की विवेचना कीजिए उपन्यास के तत्व पर प्रकाश डालिए उपन्यास के तत्व के नाम, उपन्यास के तत्व पर टिप्पणी upanyas ke tatva ka varnan kijiye upanyas ke tatva ka varnan kijiye upanyas ke tatva ke naam - उपन्यास का माध्यम गद्य होता है और उसका विषय मानव जीवन होता है। उपन्यास यथार्थ जीवन का काल्पनिक चित्र होता है। यह चित्र कल्पित होते हुए भी यथार्थ ही प्रतीत होता है। मानव जीवन का चित्रण उपन्यास में कथा के रूप में होता है वर्णन के रूप में होता है। जीवन और उपन्यास के अटूट सम्बन्ध को लक्ष्य करते हुए डॉ.श्यामसुन्दर दास ने उपन्यास को मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक गाथा कहा है।
उपन्यास के तत्व निम्नलिखित हैं -
उपन्यास के छ : तत्व माने जाते है -
- कथावस्तु या घटनाक्रम
- चरित्र चित्रण या पात्र योजना
- कथोपकथन
- शैली
- देशकाल
- उद्देश्य
उपयुक्त छ : तत्वों में प्रथम दो तथा अंतिम बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
कथावस्तु या घटनाक्रम
मूल कथा ही कथावस्तु कही जाती है। इस कथावस्तु की तीन अवस्था होती है। उदय ,विकास और अंत। उपन्यास में वर्णित सभी घटनाएँ एक सूत्रबद्ध होनी चाहिए। उनमें कहीं भी टूटन न आ जाए ,इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अनावश्यक घटनाओं या कथाओं को जहाँ तक संभव हो सके अलग ही रखना चाहिए क्योंकि उनसे कथा में प्रतिरोधता एवं शिथिलता आ जाती है। कथानक के चुनाव की कोई सीमा नियत नहीं की जा सकती है। वह इतिहास ,पुराण ,जीवनी आदि कहीं से भी उद्धत किया जा सकता है ,किन्तु इस समय जीवन की अस्वाभाविकता होने से जीवन से सम्बंधित उपन्यासों को ही अधिक चुना जाता है। इसके साथ ही उपन्यास का उद्देश्य मनोरंजन भी होना चाहिए। इसके अभाव में पाठक उबने लगता है। जहाँ तक संभव हो सके अलौकिक एवं असंभव घटनाओं को बहिष्कृत ही करना चाहिए क्योंकि आज के बुद्धि प्रधान युग में इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।
चरित्र चित्र या पात्र योजना
उपन्यास में पात्रों के चरित्र चित्रण में सत्यता ,स्वाभाविकता और सजीवता के साथ ही साथ प्रभावोत्पादकता भी होनी चाहिए। पात्रों के सम्बन्ध में अब पहले से अधिक जागरूकता दिखाई जाती है। पहले तो केवल नायक और नायिका को ही महत्व दिया जाता था किन्तु आज स्थिति कुछ भिन्न हो चुकी है। आज सभी को समान महत्व दिया जाता है। एक बात और विशेष ध्यान देने की है कि पहले तो पात्रों का कोई भी स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं होता था। वे उपन्यासकार की सफलता एवं श्रेष्ठता उपन्यासकार के निरंतर उन्नतिशील तथा स्वतंत्र व्यक्तित्व वाले पात्रों के चयन पर भी निर्भर है। आज श्रेष्ठ उपन्यास वही कहा जाता है जिसके पात्र यथार्थवादी हो।
उद्देश्य
उपन्यास में उद्देश्य या बीज से अभिप्राय जीवन की व्याख्या से है। क्योंकि उपन्यास में जीवन का की चित्रण होता है अतः जीवन के व्यापारों का मानव जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ता है ,इसी का चित्रण उपन्यास में करता है। इसके साथ ही उसमें कुछ सिद्धांत एवं विशेष विचारों का आ जाना भी स्वाभाविक होता है। उपन्यासों में मनोरंजन आवश्यक गुण माना जाता है किन्तु कोरा मनोरंजन न होकर उसमें विशिष्ट उद्देश्य का भी प्रतिपादन होना चाहिए अपितु योग्य उपन्यासकारों द्वारा उनका चित्रण सूक्तियों और वाक्यों के माध्यम से इस रूप में किया जाता है ,जिससे की पाठक शुष्कता का अनुभव न करें। साथ ही साथ उनसे वे शिक्षा ग्रहण भी करे। इस उद्देश्य का प्रतिपादन अप्रत्यक्ष रूप से वार्तालाप या घटना द्वारा करना चाहिए। साथ ही साथ यह उद्देश्य महान और प्रभावशाली भी होना चाहिए।
कथोपकथन
यह कथासूत्र के विकास तथा पात्रों के चरित्र चित्रण में पूर्ण सहायक होता है। इससे कथावस्तु में नाटकीयता एवं सजीवता आ जाती है। प्रासंगिक घटनाएँ भी इसे के द्वारा प्रकाश में लायी जा सकती है। पात्रों की आंतरिक दशा का चित्रण भी इसी के द्वारा संभव है। कथोपकथन पात्रों के चरित्र ,सवभाव ,देश ,शिक्षा ,स्थिति आदि के अनुकूल होना चाहिए। पात्रों की भाषा में कृत्रिमता का पूर्णतया बहिष्कार कर देना चाहिए अन्यथा कथोपकथन सफल नहीं कहे जा सकेंगे।
देशकाल
पात्रों के चित्रण एवं घटनाओं के वर्णन में स्वाभाविकता एवं यथार्थ बनांये रखने के लिए आवश्यक है कि उपन्यास में देश काल या वातावरण का पूर्ण ध्यान रखा जाए। घटना का स्थान ,समय ,तत्कालीन विभिन्न परिस्थितियों का पूर्ण ज्ञान उपन्यासकार के लिए अनिवार्य है। इतिहास प्रधान उपन्यासों का तो वह प्राण ही है। लेकिन देश काल तथा वातावरण के वर्णन में इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कहीं कथा प्रवाह न रुक जाए।
शैली या भाषा
उपन्यास की सफलता उपन्यासकार की सरस और सरल भाषा शैली के प्रयोग पर निर्भर होती है। इसके साथ ही एक बात और विशेष विचारणीय है कि सम्पूर्ण उपन्यास की रचना शैली एक सी हो। भाषा का प्रयोग भी तात्कालिक समाज के दृष्टिकोण के अनुसार होना चाहिए तथा उसमें सरलता भी होनी आवश्यक है। हिंदी में आजकल उपन्यास लेखन की चार शैलियाँ प्रचलित है -
- कथा शैली
- आत्मकथा शैली
- पत्र शैली
- डायरी शैली
अंतिम दो शैलिओं में हिंदी में कम ही उपन्यास लिखे गए हैं। पूर्व में दोनों शैलिओं का प्रचलन ही अधिक है।
विडियो के रूप में देखें -
COMMENTS