विचार रात के ग्यारह बज रहे थे। मैं सोने की कोशिश कर रहा था। मैं अपनी आंखें बंद कर आज दिन भर किए गए कामों के बारे में सोच रहा था। साथ ही कल किए जाने
विचार
रात के ग्यारह बज रहे थे। मैं सोने की कोशिश कर रहा था। मैं अपनी आंखें बंद कर आज दिन भर किए गए कामों के बारे में सोच रहा था। साथ ही कल किए जाने वाले कामों की अपने मन में सूची बना रहा था। यह सोचते हुए मेरी आंखें कब लग गई इसका पता ही नहीं चला। अचानक मेरी कानों में जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी। मेरी नींद खुल गई। यह आवाज घर के बाहर से आ रही थी। मैंने दीवार घड़ी की ओर देखा, मध्य रात्रि के बारह बज रहे थे। मैं किसी अनहोनी की आशंका में घर से बाहर निकला। चिल्लाने की आवाज मेरे सामने रहने वाले मित्रा जी के घर से आ रही थी। जब मैंने गौर से सुना तो यह मित्रा जी एवं उनके लड़के की आवाज लग रही थी। मैं तेजी से मित्रा जी के घर की ओर चल पड़ा।
मैं घर में दाखिल हुआ तो वहां का नजारा काफी क्षुब्ध करने वाला था। मित्रा जी और उनके 18 वर्ष के लड़के के बीच बहस हो रही थी। उनका लड़का जोर-जोर से चिल्लाकर अपने पिता यानी मित्रा जी को कह रहा था कि यह उसकी जिंदगी है। वह अपनी मर्जी से जीना चाहता है। मित्रा जी की धर्मपत्नी पति- पुत्र के मध्य बीच-बचाव कर रही थी। वह दोनों को समझा रही थी कि वह लोग आपस में झगड़ा नहीं करें। मित्रा जी हमारे प्रिय मित्र थे। उनका लड़का बी. टेक. इंजीनियरिंग का द्वितीय वर्ष का छात्र था। मैंने मित्रा जी से पूछा कि क्या बात है? आपलोग आपस में बहस क्यों कर रहे हैं? इस पर मित्रा जी ने अपने बेटे की तरफ इशारा करके कहा कि यह अकसर देर रात को घर आता है। अपने दोस्तों के साथ पार्टी मनाता है। कभी-कभी मादक पदार्थों का सेवन भी करता है। हमें बताता भी नहीं कि यह कब तक घर आएगा। मैं इसे जब समझाता हूं तो कहता है कि अभी मौज-मस्ती करने का समय है। मैं अपने तरीके से जीना चाहता हूं, क्योंकि यह जिंदगी मेरी है।
मैंने पिता - पुत्र के मध्य बीच-बचाव किया। मैंने कहा कि अभी मध्य रात्रि हो गई है। हमलोग कल बात करेंगे। मित्रा जी की धर्मपत्नी ने भी इस बात का समर्थन किया। इतना कह कर मैंने मामले को शांत किया और धीमे-धीमे कदमों से अपने घर की ओर चल पड़ा। मैं काफी थकान महसूस कर रहा था। मैं अपने घर में आकर अपने बिस्तर पर लेट गया। मैं मित्रा जी के लड़के एवं आजकल की युवा पीढ़ी के बारे में सोचने लगा। आजकल लोग अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीना चाहते हैं। मैं सोच रहा था कि क्या हमारी जिंदगी सिर्फ हमारी वजह से है ? हमारी नींव हमारे माता-पिता के सहयोग से पङती है। फिर हम अपने मां के उदर में नौ महीने रहते हैं। इसके लिए हम अपनी मां के साधनों का उपयोग करते हैं। इसके बाद डॉक्टर, नर्स एवं अन्य मेडिकल कर्मचारियों के सहयोग से हमारा जन्म होता है।
जन्म के बाद हमारा बचपन हमारे माता–पिता,परिवारवालों एवं समाज के सहयोग से खिलता है । हम बोलना-चालना,पढ़ना दूसरों की कोशिशों की वजह से सीखते हैं। हम इस वातावरण के भी ऋणी हैं जिससे हम हवा,सूरज की रोशनी,पानी एवं खाद्य - पदार्थ इत्यादि लेते हैं। जब हम थोड़े बड़े होते हैं तो हम अपने शिक्षकों की कोशिशों से ज्ञान प्राप्त करते हैं। सरकार समाज के टैक्स से हमारे लिए स्कूल-कॉलेज, अस्पताल,सड़कें एवं अन्य सुविधा उपलब्ध कराती है। हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हर एक इंसान पांच तरह के ऋण (देव ऋण,ऋषि ऋण,पितृ ऋण,नारी अर्थात मनुष्य ऋण एवं भूत ऋण) के साथ जन्म लेता है जिसे अपने जीवन में चुकाना चाहिए। हमें नैतिकता,धर्म एवं विज्ञान की समझ है जो हमें जानवरों से अलग करती है। अगर हम गौर से सोचे तो बिना दूसरों की मदद के हम अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। हमारे जीवन का उद्देश्य दूसरों की सहायता करना होना चाहिए ना कि सिर्फ अपने बारे में सोचना एवं अपने तक सीमित रहना। हमें एवं हमारी युवा पीढ़ी को यह समझना होगा। यह सब सोचते-सोचते मेरी आंख कब लग गई मुझे पता ही नहीं चला .
- डॉ अजय कुमार
प्रोफेसर (बाल रोग)
वीएमएमसी और सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली
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