जीवन विहीन रेगिस्तान दुनिया के रेगिस्तानों में जीवंत थार का रेगिस्तान आने वाले समय में जीवन विहीन रेगिस्तान बन जाए. लगता है रेगिस्तान को भी अब विकास क
क्या रेगिस्तान को विकास की बलि देनी होगी ?
जैसलमेर जिले के गांव कुछड़ी में आलाजी लोक देवता के नाम से छोड़ी गई 10 हजार बीघा ओरण भूमि भू-सैटलमेंट के दौरान राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हुई. एक दर्जन गांवों के मवेशी तथा जीव-जंतुओं की प्रजातियां इसी ओरण की शरण में जीवन-यापन करती हैं तथा थार की जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में योगदान देती है. पूर्वजों ने ओरण में विविध प्रकार के जल स्त्रोत बनाए थे जिनसे पशुओं व जीव-जंतुओं को चारा, पानी मिल सके. कुछड़ी गांव के लोगों ने इस भूमि का एक बड़ा भाग विकास के नाम पर एक निजी कंपनी को आवंटित किए जाने की आशंका जताई. वहीं कुछ लोग गोचर में अवैध तरीके से खेती करने लगे हैं. सीमाज्ञान और अतिक्रमण हटाने की पशुपालकों की मांग को नजरअंदाज किया जा रहा है. सियांबर गांव के लोग एवं ग्राम पंचायत सदियों से चारागाह के रूप में उपयोग करने वाली भूमि को सौर ऊर्जा उत्पादन कंपनी को आवंटित किए जाने की संभावना का विरोध कर रहे हैं.
जैसलमेर की देगराया औरण को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज कराने की मांग निरंतर उठ रही है. बाप क्षेत्र अखाधना गांव के लोग अपने तालाब के आगौर को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज कराने की मांग कर रहे हैं. गौचर जमीनों को बचाने के लिए किए जा रहे जन आंदोलन इसका उदाहरण है. रेगिस्तान में जीवन की संभावनाओं को पूर्वजों ने ओरण, गोचर, तालाबों के विकास में देखा था. प्रत्येक गांव में इसकी ऋंखला जीवन का हिस्सा थी. यहां गांव नदियों के किनारे नहीं बसे. ओरण, गोचर और तालाबों के किनारे बसे. सरकार के भू-राजस्व अभिलेखों में यह जमीनें कहीं दर्ज हुई, कहीं नहीं हुई. आज इनकी स्थिति खराब हुई है. लोग चाह कर भी इनकी सुरक्षा और संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि रेगिस्तान के लोग अपने शामलात संसाधनों को बचाने के लिए अलग-अलग तरह से संघर्ष कर रहे हैं. जबकि सरकार और प्रशासन विकास की दुहाई देकर कंपनियों के साथ खड़ा है. वहीं दूसरी तरफ लोग अपने बूते पर संसाधनों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं. पूंजी की क्रूरता और जीवन के बीच के युद्ध में जीत किसकी होगी, यह समय ही बताएगा.
इन सामुदायिक संसाधनों, चारागाह, ओरण गौचर, तांडा, तालाब, बेरियां, खड़ीनें, बरसाती नदियां और उनका कैचमेंट ऐरिया राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हुआ. भू-सेटलमेंट के दौरान के समय में लोगों की आजीविका का मुख्य साधन पशुपालन था. किसानों की खातेदारी जमीनों के उत्पादन पर टेक्स (बिगोड़ी) लगता था, इस कारण से किसान अपनी व्यक्तिगत भूमि भी रिकॉर्ड में कम दर्ज कराता था. स्थानीय लोगों को लगता था कि इस जटिल भौगोलिक और गर्म व शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में कौन आएगा? रिकॉर्ड में दर्ज हो, या नहीं, जमीन और संसाधन हमारे रहेंगे. राजस्थान की अधिकांश ओरण, गौचर पर कुछ स्थानीय लोगों ने कब्ज़ा किया हुआ है. कुछ जगहों पर सरकार द्वारा कंपनियों को आवंटित की गयी है और यह सिलसिला जारी है. सरकार भूल सुधार के बजाय मौके का फायदा उठा रही है. समुदाय की मांग को दरकिनार कर एकतरफा फैसले लिए जा रहे हैं. समुदाय द्वारा जीवन की संभावनाओं को संजो कर रखा गया था, उन जमीनों को विंड एवं सौर ऊर्जा कंपनियों को दे रही है. इससे रेगिस्तान के स्थानीय लोगों की आजीविका के साथ-साथ पर्यावरण, जैव विविधता बर्बाद हो रही है, इस पर किसी का ध्यान अब तक नहीं गया है.
विश्व की सबसे बड़ी कृत्रिम इंदिरा गाधी नहर आगमन से रेगिस्तान में बड़ा बदलाव आया. पानी की बूंद-बूंद की हिफाजत करने वाले क्षेत्र में रावी और सतलुज के पानी की धार बहने लगी. शुष्क मरू प्रदेश का सीमांत क्षेत्र नम हुआ. पशुपालन आधारित खेती से चलने वाली आजीविका की जगह आधुनिक कृषि ने जड़ें जमाई. सिंचाई और पेयजल विकास की योजनाएं गतिमान हुईं. पानी की किल्लत दूर होने के साथ-साथ ढांचागत एवं औद्योगिक विकास हुआ और लगातार हो रहा है. इससे पूंजी का प्रवाह बढ़ा है और निवेश के द्वार खुले हैं. पूर्वजों द्वारा प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर विकसित की गयी टिकाऊ आजीविका घौर अनिश्चितता के दौर में है. नहर और उससे सिंचित भूमि हरियाली, खुशहाली के साथ पानी, मिट्टी, हवा और रगों में जहर का प्रवाह कर रही है. नहर क्षेत्र में भी कभी चारागाह, तालाब, बेरियां व उनके कैचमेंट हुआ करते थे, जिनको कृषि भूमि में बदल कर बेचा गया. बिलायती व देसी बवूल से हरियाली के जंगल खड़े किए गये. नहर निकालने से पहले यहां की भूगर्भीय संरचना को नहीं समझा गया. पूरे क्षेत्र में जिप्सम और मुल्तानी मिट्टी की परत में अथाह पानी उड़ेलने से दलदल और लवण के कारण भूमि बंजर हो रही है. विकास के नए पन्नों पर स्थानीय वनस्पति, जीव-जंतु, पर्यावरण, जैव विविधता, जन और जानवर हाशिये पर हैं.
पानी, बिजली और यातायात विकास के साथ खनिज संसाधनों का दोहन, औद्योगिक विकास के अवसर खुले हैं. जिप्सम, कोयला, तेल, गैस, लाइमस्टोन, चाइना क्ले का खनन एवं इससे संबंधित उद्योग लगे हैं. पवन और सौर ऊर्जा की संभावनाओं को पहचाना गया है. भले ही यह क्षेत्र के लिए अनुकूल है, अथवा नहीं, लेकिन इसमें मुनाफा भरपूर है. मुनाफे ने बड़ी कंपनियों को आकर्षित किया. अथाह जल, जंगल, जमीन और सरकार का अवसर उपलब्ध कराने में भरपूर सहयोग कंपनियों को पांव पसारने में मददगार साबित हो रहा है. जिन जमीनों का उपयोग खड़ीनों, तालाबों, बेरियों के आगौर और पशुओं की चराई में करते थे, वह राजस्व रिकॉर्ड में आगौर, ओरण, गोचर के नाम से दर्ज नहीं हुई. अब यह जमीनें सरकार खनन, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा पैदा करने वाली कंपनियों को आवंटित कर रही है. सौर ऊर्जा गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र के लिए कितनी अनुकूल है? कांच के बने सौर ऊर्जा पैनल बिजली के साथ कितनी गर्मी पैदा करेंगे? इसका कोई अध्ययन अभी तक सामने नहीं आया है. जिस भूमि पर सोलर प्लांट लगया जाता है, उसे वनस्पति विहीन किया जाता है. सौर ऊर्जा के नाम पर प्रकृति को नष्ट किया जा रहा है.
यह सर्वविदित है कि थार के रेगिस्तान में सूखा, अकाल की बारंबारता है. पूर्वजों ने थार में जीवन की संभावनाओं को अकाल जैसी आपदा के सामने अपने आप को टिकाए रखने के लिए तरीके निकाले. लोगों ने बताया लगातार दो-तीन वर्ष सूखा होने पर बेरियों में पानी मिल जाता था. पूरे देश में खाद्यान्न संकट के चलते विदेशों से गेहूं आयात किया जाता था, उस समय जैसलमेर की खड़ीनों में गेहूं का उत्पादन होता था. सरकार का एक विभाग आपदा प्रबंधन एवं जोखिम घटाव का काम करता है. यहां के स्थानीय लोगों ने हजारों वर्ष पहले अकाल से संबंधित आपदा जोखिम घटाव के तरीकों को विकसित कर लिया था. लेकिन अब अंध विकास की गति के सामने यह सब टिकने वाले नहीं है. कुछ स्थानीय लालची वर्ग और मुनाफा कमाने वाली बड़ी कंपनियों की नजरें थार के रेगिस्तान पर पड़ गई है. इससे स्थानीय लोगों की मूल आजीविका और जीने के तरीके बदल जाएंगे. जिनको यह तरीके पसंद नहीं आएंगे वो पलायन कर जाएंगे. अंध विकास तेजी से आगे बढ़ते हुए चंद लोगों को मुनाफा देते हुए उजाड़, बिगाड़ और विरानता के पदचिन्ह छोड़ जाएगा. संभव है कि दुनिया के रेगिस्तानों में जीवंत थार का रेगिस्तान आने वाले समय में जीवन विहीन रेगिस्तान बन जाए. लगता है रेगिस्तान को भी अब विकास की बलि देनी होगी. (चरखा फीचर)
- दिलीप बीदावत
बीकानेर, राजस्थान
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