वारिस कहानी मोहन राकेश

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वारिस कहानी मोहन राकेश सारांश वारिस कहानी का उद्देश्य शीर्षक की सार्थकता मास्टर जी का चरित्र चित्रण Mohan Rakesh ki kahani Waris वारिस जीवन शैली

वारिस कहानी मोहन राकेश 


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वारिस कहानी मोहन राकेश का सारांश

वारिस कहानी मोहन राकेश जी की प्रसिद्ध कहानी है। इसमें लेखक के बाल्यकाल की स्मृतियों को अत्यंत सहज एवं मार्मिक रूप से चित्रित करती है। वारिस के नायक मास्टर जी एक अजनबी व्यक्ति हैं जो सन्यास धारण कर
वारिस कहानी मोहन राकेश
पर्वतों की ओर जा रहे हैं। एक पहाड़ी शहर में मास्टर जी अपने जीवन यापन के लिए अध्यापन कार्य आरम्भ करते हैं। लेखक के पिता उन्हें अपने दोनों बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने के लिए नियुक्त कर देते हैं। कहानी में बालमन को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ उकेरा गया है। बच्चों का पढ़ाई में मन न लग्न और उनके द्वारा छोटी - छोटी शरारतें करना आदि बातों का स्वाभाविक एवं हृदयग्राही वर्णन किया गया है। मास्टर जी बच्चों को पढ़ाते - पढ़ाते उनके मोहपाश में बंध जाते हैं। वे बच्चों को जीवन के सत्य से अवगत करवाना चाहते हैं परन्तु बच्चों का नन्हा मन जीवन दर्शन को समझ नहीं पाता और उसे हास परिहास में उड़ा देता है। जाते हुए मास्टरजी अपने जीवन की अमूल्य निधि के रूप में अपना पेन बच्चों को दे जाते हैं। 

मास्टर जी के रूप में घर छोड़कर आये एक सन्यासी के भीतर बसने वाली प्रवृत्तियों को भी अत्यंत बारीकी से उकेरा गया है। मनुष्य परिस्तिथिवश घर - परिवार या संसार छोड़ तो सकता है परन्तु उसका अतीत सदा ही उसके वर्तमान को प्रभावित करता रहता है। मास्टर जी की कोमल भावनाओं बच्चों का सानिध्य पाकर पुनः उनके विरक्ति के बाहरी खोल को भेदकर प्रकट हो जाती है। बालक जब बड़ा होता है तो उसे अपने बाल जीवन का वह चरित्र और उसके साथ बिताये दिन याद आते हैं। कहानी अत्यंत सहज शैली में लिखी गयी है। भाषा विषय के अनुकूल सरस एवं प्रवाहमय है। बालक के अतीत को चित्रित करने एवं बालमन की शरारतों को उकेरने में लेखक पूर्ण रूप से सफल रहा है। 


वारिस कहानी का उद्देश्य 

वारिस सन्यास धारण कर चुके एक ऐसे व्यक्ति की कथा है जो बच्चों को पढ़ाते पढ़ाते उनके मोह में पड़ जाता है। मास्टर जी ने सन्यास धारण किया है परन्तु वे जीविकोपार्जन के लिए भिक्षा नहीं माँगते और बच्चों को पढ़ाने का कार्य करने लगते हैं। बच्चों की समस्त शरारतों को नज़रअंदाज करके मास्टर जी इन्हें पढ़ाई के अतिरिक्त जीवन के सत्य और दर्शन से परिचित करवाने की चेष्टा भी करते हैं। मास्टर जी के साथ उनका अतीत भी है ,जिसे वे किसी को नहीं बताते हैं।  

वारिस कहानी बालमन की शरारतों और एक सन्यासी मास्टर के मनोभावों की सूक्ष्मताओं को चित्रित करती हैं। कथानायक अपनी स्मृतियों के आधार पर इस कहानी को लिखता है जिससे स्पष्ट होता है कि इतने वर्ष बीतने के पश्चात भी मास्टर जी की स्मृति उसके मानस में शेष है। उसी स्मृति का अंकन इस कहानी में हुआ है। बालक होने के कारण भले ही वर्षों पहले लेखक मास्टर जी के स्नेहिल मनोभावों को नहीं समझ सका परन्तु आज परिपक्क होने पर वह उन्हें अनुभव करता है और मास्टर जी उसकी स्मृतियों में अंकित को चुके हैं। 

कहानी में मास्टर जी के चरित्र द्वारा यह तथ्य सामने आता है कि मनुष्य सन्यास लेकर भले ही समाज से अपने को विलग कर ले परन्तु उसका अतीत और उसका वर्तमान उसे सदा प्रभावित करते रहते हैं। मनुष्य अपनी कोमल भावनाओं का प्रतिरूप ही समाज में ढूँढता है और सदा एक सामाजिक प्राणी बनकर ही रहता है। 


वारिस कहानी मोहन राकेश शीर्षक की सार्थकता 

वारिस इस कहानी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक है। मास्टर जी जिन बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं ,उन्हें ही अपने विचार ,अपना ज्ञान और अपनी संपत्ति विरासत में सौंपकर इस नश्वर संसार की भौतिक आवश्यकताओं से प्रस्थान करना चाहते हैं। मास्टर जी अपने वारिसों को अपने विचारों के अनुकूल बनाने के लिए उन्हें बंगला सिखाने का प्रयत्न भी करते हैं। इस प्रकार मास्टर जी भाषा की विरासत ,विचारों की विरासत ,जीवन दर्शन की विरासत और अंत में अपने ज्ञान ,जीवन दर्शन और शिक्षा का प्रतिक एकमात्र पेन अपने वारिसों को सौंपकर प्रस्थान कर जाते हैं। 
प्रस्तुत कहानी में बच्चे मास्टर जी के धीर - गंभीर विचारों से लेकर उनकी भौतिक वस्तुओं के मध्य एकमात्र ऐसा सूत्र हैं ,जहाँ मास्टर जी को सन्यास लेने के बाद भी मोह का अनुभव होता है। व्यक्ति को जिससे मोह होता है ,उसे ही वह अपना सर्वस्व सौंपता है और वही उस व्यक्ति का वारिस कहलाता है। अतः वारिस शीर्षक उचित एवं उपयुक्त है। 


मास्टर जी का चरित्र चित्रण 

मास्टर जी गेरुए कपडें पहने हुए एक सन्यासी की भाँती कहानी में अचानक प्रकट होते हैं और बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने लगते हैं। मास्टर जी रहस्यमय व्यक्तित्व के स्वामी है। उनके भूतकाल का किसी को पता नहीं है। कानून की परीक्षा पास करने के पश्चात भी मास्टर जी वकालत नहीं करते हैं। उन्हें आगे कहाँ जाना है वह भी बहुत स्पष्ट नहीं है। वह दूर घने पहाड़ों में जाकर खो जाना चाहते हैं। 

मास्टर जी लोभी नहीं है। आवश्यकता के अनुरूप केवल एक ही ट्यूशन करते हैं - दूसरी ट्यूशन मिलने पर नकार देते हैं। समय के पाबन्द मास्टर जी बच्चों को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं देते हैं अपितु उसमें अच्छे संस्कार भरने की चेष्टा भी करते हैं। बच्चों की दुनिया और दर्शन के बारे में शिक्षित करने के प्रयास भी मास्टर जी द्वारा निरंतर किये जाते हैं। इन प्रयासों में निरंतर असफल रहने के बाद भी मास्टर जी हिम्मत नहीं हारते हैं और नाना प्रकार से प्रयत्न जारी रखते हैं। 

मास्टर जी के पास जो कुछ भी है वह सम्पूर्ण जीवन जीने के लिए अपर्याप्त है। परन्तु मास्टर जी किसी भी वस्तु की कामना नहीं करते हैं। जितना है उसी में संतुष्ट हैं। ट्यूशन पढ़ाते - पढ़ाते वे बच्चों को अपने बच्चों की भाँती प्यार करने लगते हैं। वे अपना जीवन दर्शन बच्चों को विरासत में देने के लिए लालायित हैं ,पर बच्चों के पिता द्वारा पढ़ाई समाप्त होने की सूचना उन्हें असहज कर देती हैं। इस प्रकार मानवीय प्रवृत्ति के साथ ही मास्टर जी सद्गुणों से युक्त एक गंभीर ,भावुक और निश्चयवान व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आते हैं - ऐसा व्यक्ति जी जीवन की कठिनाइयों से ऊपर उठकर एक शांत और निर्जन वन क्षेत्र में जीवन जीने की ललक लिए हुए आगे बढ़ रहा है। 


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