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मुंबई की बरसात जगदंबा प्रसाद दीक्षित
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मुंबई की बरसात पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ या उपन्यास-अंश मुंबई की बरसात, उपन्यासकार जगदंबा प्रसाद दीक्षित जी के द्वारा लिखित है। इस पाठ के माध्यम से जगदंबा जी कहते हैं कि मुंबई की बरसात का कोई ठिकाना नहीं होता। बिना किसी पूर्वानुमान के बरसात अचानक से शुरू हो जाती है, फिर अचनाक से बंद हो जाती है। इस उपन्यास अंश से उस बरसात का हाल पता चलता है, जिसने समुद्र से सटे इलाके में त्राहि-त्राहि मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
बरसात का हाल बयाँ करते हुए लेखक जगदंबा प्रसाद जी कहते हैं कि बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। कभी कम हो जाती, तो कभी पुनः तेज़ हो जाती। सामने दरवाज़ा पर ताला लटका था, मतलब न गौतम आया, न कोपर, न कोई और। किसी प्रकार से मैंने ताला खोला। अंदर गया तो समझ में आया कि बिजली ही गायब है। जब मैंने दरवाज़े से बाहर झाँका तो देखा कि पूरी बस्ती अँधेरे में डूबी थी। हवाएं भी चीख रही थीं। रह-रहकर बादल गरज रहे थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं ? किसी पड़ोसी से कोई ख़ास जान-पहचान भी नहीं थी अब तक। सवाल था कि क्या कोई मोमबत्ती, दीया या लालटेन कुछ भी है ! जवाब स्पष्ट था- कुछ भी नहीं है। तत्पश्चात् पतले से गद्दे पर दरी डालकर मैंने अपना बिस्तर तैयार कर लिया। अपने जिस्म के सारे गीलेपन को पोंछकर और लुंगी लपेटकर जब बिस्तर पर पहुँचा, तो लगा कि कई जगह से गीला है। टीन शायद टपक रही थी। दो-तीन बार बिस्तर को इधर-उधर खींचकर मैंने सो जाने की कोशिश की। दोपहर तक सोता रहा। अचानक ठंडे पाने ने एड़ियों और पिंडलियों को स्पर्श करना शुरू कर दिया। मेरी नींद भाग गई। अभी भी बारिश में कोई कमी नहीं दिख रही थी। मैंने अपने सारे सामान समेटकर एक तरफ़ कर दिया। बाहर का पानी अंदर फ़ैल रहा था। तभी देखते ही देखते पानी सारी खोली में फ़ैल गया। किसी तरह दरवाज़ा खोल दिया। बस्ती के चारों तरफ़ पानी भर गया था। छोटे-छोटे घर काफ़ी कुछ डूब गए थे। दूसरे छोर के दोमंज़िले मकान की उपरी मंजिल पर भरे हुए लोग बिलकुल चुप थे। बढ़े हुए पानी को निहार रहे थे।
मैंने किताबें, कागज़ और कपड़े पेटी में रखे तथा पतला-सा बिछौना बगल में दबाया। पानी का तेज़ बहाव देखकर मैंने समझ लिया कि अब आगे बढ़ना मुश्किल है। इसलिए चुपचाप बढ़ते हुए पानी को देखता रहा। चाय की पतीली पानी में तैरनी लगी। प्लास्टिक का मग और एल्युमीनियम के डिब्बे भी बहने लगे। मुझे एहसास हुआ मैं पूरी तरह फँस गया हूँ। जब सामने नज़र उठाया तो देखा कि एक डोंगी करीब आ रही थी। डोंगी के अंदर दो-तीन लोग सवार थे। एक अधनंगा लड़का पानी भीगता, डोंगी को दाएँ-बाएँ कर रहा था। मैंने देखा एक हाथ बार-बार मेरी तरफ़ हिल रहा है। मैं पहचान गया, यह गौतम पाल का हाथ था। एक हाथ से छतरी सटा, दूसरे से इशारा कर रह था। डोंगी मुझतक पहुँच नहीं सकती थी। पानी में चलकर मुझे आगे तक जाना होगा। तभी मैंने हिम्मत का परिचय देते हुए पानी में चलना शुरू कर दिया। मैं किसी तरह डोंगी पर पहुँच गया। एक बार लगा कि चढ़ते-चढ़ते डोंगी पलट जाएगी, लेकिन नहीं हुआ। डोंगी में पानी भरता जा रहा था। एक व्यक्ति बाल्टी से पानी को बाहर उलीचता जा रहा था। समझ में नहीं आ रहा था कि कहाँ किनारा ख़त्म होता है, कहाँ सागर शुरू हो जाता है। दूसरी डोंगी से चिल्लाकर कोई कुछ कह रहा था। उसके इशारों से पता चल रहा था कि दूर किसी चाल की खपरैलों पर लोग बैठे हुए थे। इस डोंगी में भरे हुए पानी को उलीचनेवाले ने पहले हाथ से इशारा किया, फिर चिल्लाकर कहा – तुम लोग उधर जाओ, हम लोग बाड़े की तरफ़ जाकर वापस आते हैं। ऊँचे-ऊँचे पेड़ लगातार एक ही तरफ़ झुकते चले जा रहे थे। तेज़ हवाएँ उन्हें उठने ही नहीं दे रही थीं। लगता था कि सभी पेड़ टूटकर गिर जाएँगे और समंदर का पानी उन्हें बहा ले जाएगा। कंपकंपी को रोककर किसी तरह मैंने गौतम से कहा – हम लोग जा कहाँ रहे हैं यार ? तभी गौतम चारों तरफ़ नज़रें डालते हुए बोला – तेरे के बाड़े में। दरअसल, उनका नाम है तेरे। पुराने लोग हैं यहाँ के। उनका बाड़ा काफ़ी बड़ा है और थोड़ी हाइट पर है।
शाम होने लगी थी। घने बादल होने के कारण कुछ पता नहीं चल रहा था। जिस डोंगी पर हम सवार थे, उसने हमें कुछ दूर छोड़ दिया। अंततः घुटनों तक पानी में चलकर हम तेरे के बाड़े में पहुँचे थे... ।।
मुंबई की बरसात जगदंबा प्रसाद दीक्षित पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1- लेखक किसी पड़ोसी से मदद क्यों नहीं माँग पा रहा था ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक किसी पड़ोसी से मदद इसलिए नहीं माँग पा रहा था, क्योंकि अब तक उसका किसी से कोई ख़ास जान-पहचान नहीं हुई थी।
प्रश्न-2- पानी भरता देख लेखक मन ही मन क्या सोचता रहा ?
उत्तर- पानी भरता देख लेखक मन ही मन यह सोचता रहा कि वह पूरी तरह से फँस गया है। कहीं और जाने का कोई रास्ता नहीं है। यूँहीं खड़े रहना है या एक कोने से दूसरे कोने में बस खिसकते जाना है।
प्रश्न-3- लोग कहाँ-कहाँ शरण लिए हुए थे ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लोग चर्च के अंदर, टेकड़ी पर, चाल की खपरैलों पर, डोंगरी इत्यादि पर शरण लिए हुए थे।
प्रश्न-4- घर के भीतर पानी भर जाने का अहसास लेखक को कब हुआ ?
उत्तर- घर के भीतर पानी भर जाने का एहसास लेखक को तब हुआ जब नींद की अवस्था में उनकी एड़ियों और पिंडलियों को अचानक ठंडे-ठंडे पाने ने छूना शुरू कर दिया और वे जागकर बैठ गए। लेखक ने देखा कि बाहर का पानी अंदर फ़ैल रहा है।
प्रश्न-5- डोंगी में कौन था ? उसने लेखक को पानी से कैसे निकाला ?
उत्तर- डोंगी में लेखक का साथी गौतम पाल था। गौतम ने डोंगी का सहारा लिया। बल्कि डोंगी से पानी में उतरकर छतरी को अपने आपसे चिपकाए, पैरों से टटोल-टटोलकर कदम रखता। धीरे-धीरे वह लेखक की तरफ़ कदम बढ़ाकर उसे डोंगी पर चढ़ने में मदद की और इस प्रकार उसे पानी से निकाला।
प्रश्न-6- डोंगीवाले पानी में फंसे लोगों की मदद कैसे कर रहे थे ?
उत्तर- डोंगीवाले जगह-जगह जाकर पानी में फंसे लोगों को आवाज़ दे रहे थे कि वे अपने घर से बाहर आएँ, ताकि वे उन लोगों को किसी ऊँची जगह या सुरक्षित जगह पर जाकर पहुँचा सके।
प्रश्न-7- नाव में पानी भर जाने पर सवारियों ने क्या किया ?
उत्तर- नाव में पानी भर जाने पर सवारियों ने बाल्टी से पानी को उलीचना या बाहर फेंकना शुरू किया।
व्याकरण-बोध
प्रश्न-8- दिए गए वाक्यों में वाच्य पहचानकर उनके सामने कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य लिखें -
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं -
रवि वर्मा ने सुंदर चित्र बनाए। (कर्तृवाच्य)
प्राचार्या द्वारा भाषण दिया गया। (कर्मवाच्य)
सैयदा कंप्यूटर सीखती है। (कर्तृवाच्य)
बॉस द्वारा आदेश दिया गया। (कर्मवाच्य)
मीना सवेरे उठकर पढ़ती है। (कर्तृवाच्य)
माँ रसोईघर में खाना पकाती हैं। (कर्तृवाच्य)
प्रश्न-9- ‘ही’ निपात का प्रयोग करके पाँच वाक्यों का निर्माण कीजिए -
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं -
आज मुझे स्कूल जाना ही होगा।
वह इस काम को शायद ही कर पाएगा।
मुझे समय पर पहुँचना ही होगा।
जिसे ज़रूरत है वह तो जाएगा ही।
पैसे मिलते ही मैंने उधार चुकता कर दिए।
प्रश्न-10- किन्हीं पाँच योजकों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाएँ -
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं -
राधा कह रही थी कि वह कल स्कूल नहीं जाएगी।
तुम घर जाओ और पढ़ाई करो।
दूसरों को संकट या आपदा से बचाना बहादुरी है।
तुम अपने परिवार के साथ रहो तथा उनका ख्याल रखो।
मैं यहाँ उपस्थित मेरे शिक्षकों एवं सहपाठियों का अभिनंदन करता हूँ।
मुंबई की बरसात पाठ के शब्दार्थ
बिछौना – बिछाने का कपड़ा
थमना – रुकना
निहारना – देखना
डोंगी – अस्थाई नाव
तरबतर – पूरा भीगा हुआ
उलीचना – नाव, हौदी आदि में पानी भर जाने पर उसे किसी बर्तन से बाहर फेंकना
टेकड़ी – ऊँची भूमि
खपरैल – मिट्टी का पकाया हुआ टुकड़ा जिससे छत को ढका जाता है।
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