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ठेले पर हिमालय धर्मवीर भारती
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ठेले पर हिमालय पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ या यात्रा-वृत्तांत ठेले पर हिमालय, लेखक धर्मवीर भारती जी द्वारा लिखित है। इस यात्रा-वृत्तांत के माध्यम से लेखक हमें हिमसम्राट हिमालय के करीब ले जाता है, जहाँ बादल नीचे उतर रहे थे और एक-एक कर नए-नए शिखरों की हिम-रेखाएँ अनावृत हो रही थीं। लेखक धर्मवीर भारती जी कहते हैं कि कल की बात है, मैं एक पान की दुकान पर अपने अल्मोड़ावासी मित्र के साथ खड़ा था कि तभी ठेले पर बर्फ़ की सिलें लादे हुए बर्फवाला आया। ठंडी, चिकनी, चमकती बर्फ़ से भाप उड़ रही थी। तभी मुझे लगा कि यही बर्फ़ तो हिमालय की शोभा है। फिर तत्काल एक शीर्षक मेरे मन में कौंध गया – ठेले पर हिमालय।
लेखक को वह यात्रा याद आ जाती है, जब वे बर्फ़ को बहुत निकट से देखने के लिए अपने दोस्तों के साथ हिमालय की यात्रा पर जाते हैं। वे कहते हैं कि हम लोग कौसानी गए थे। नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से मझकाली के भयानक मोड़ों को पार करते हुए कोसी। कोसी से एक सड़क अल्मोड़े चली जाती है, दूसरी कौसानी। कष्टप्रद, सूखा और कुरूप रास्ते से गुज़रना पड़ा था, पानी मिलना भी दुर्लभ हो गया था, सूखे पहाड़ नज़र आ रहे थे, हरियाली का कहीं नाम-निशान नहीं था। कोसी पहुँचे तो सभी के चेहरे पीले पड़ चुके थे। परन्तु, कोसी से बस चली तो रास्ते का सारा दृश्य बदल गया। सुडौल पत्थरों पर कल-कल करती हुई कोसी, किनारे के छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे मखमली खेत। सोमेश्वर घाटी की सुंदरता और हरियाली देखते ही बनते थी। सोमेश्वर घाटी के उत्तर में जो ऊँची पर्वतमाला है, उसके बिलकुल शिखर पर कौसानी बसा हुआ है। कौसानी से दूसरी ओर फिर ढाल शुरू हो जाती है। बस से उतरा ही था कि जहाँ का तहाँ पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़ा रह गया। सामने की घाटी में सौन्दर्य का अद्भुत नज़ारा बिखरा था। अकस्मात् हम एक-दूसरे ही लोक में चले आए थे। इतना सुकुमार, इतना सुंदर, इतना सजा हुआ और इतना निष्कलंक कि लगा इस धरती पर तो जूते उतारकर, पांव पोंछकर आगे बढ़ना चाहिए।
धीरे-धीरे मेरी निगाह ने इस घाटी को पार किया और जहाँ ये हरे खेत, नदियाँ और वन, क्षितिज के धुंधलेपन में, नीले कोहरे में घुल जाते थे, वहाँ पर कुछ छोटे पर्वतों का आभास अनुभव किया। उसके बाद बादल थे और फिर कुछ नहीं। इन धीरे-धीरे खिसकते हुए बादलों में यह कौन चीज़ है जो अटल है ! यह छोटा सा बादल के टुकड़े-सा, और कैसा अजब रंग है इसका। न सफ़ेद, न रुपहला, न हल्का नीला... पर तीनों का आभास देता हुआ। अचानक से एक क्षण के हिम-दर्शन ने हममें जाने क्या भर दिया था। सारी खिन्नता, निराशा और थकावट सब छूमंतर हो गई। हम सब व्याकुल हो उठे। अभी ये बादल छंट जाएँगे और फिर हिमालय हमारे सामने खड़ा होगा – निरावृत।
डाकबंगले के खानसामे ने बताया कि आप लोग खुशकिस्मत हैं साहब ! आपसे पहले 14 टूरिस्ट आए थे। हफ्तेभर पड़े रहे, बर्फ़ नहीं दिखी। आज तो आपके आते ही आसार खुलने के हो रहे हैं। इतने में बादल धीरे-धीरे नीचे उतर रहे थे और एक-एक कर नए-नए शिखरों की हिम-रेखाएँ अनावृत हो रही थीं। और फिर सब खुल गया। बाईं ओर से शुरू होकर दाईं ओर गहरे शून्य में धंसती जाती हुई हिम शिखरों की उबड़-खाबड़, रहस्यमयी, रोमांचक श्रृंखला। हमारे मन में उस समय क्या भावनाएँ उठ रही थीं, अगर बता पाता तो यह खरोंच, यह पीर ही क्यों रह गई होती ? सिर्फ एक धुँधला-सा संवेदन इसका अवश्य था कि जैसे बर्फ़ की सिल के सामने खड़े होने पर मुँह पर ठंडी-ठंडी भाप लगती है, वैसे ही हिमालय की शीतलता माथे को छू रही है। सूरज डूबने लगा और धीरे-धीरे ग्लेशियरों में पिघला केसर बहने लगा। बर्फ़ कमल के लाल फूलों में बदलने लगी। घाटियाँ गहरी पीली हो गईं। अँधेरा होने लगा तो हम उठे। मुँह-हाथ धोने और चाय पीने लगे। पर चुपचाप थे, गुमसुम, जैसे सबका कुछ छिन गया हो, या शायद सबको कुछ ऐसा मिल गया हो जिसे अंदर ही अंदर सहेजने में सब आत्मलीन हों या अपने में डूब गए हों। दूसरे दिन घाटी में उतरकर मीलों चलकर हम बैजनाथ पहुँचे, जहाँ गोमती बहती है।
कल ठेले पर बर्फ़ को देखकर अल्मोड़े के मेरे मित्र जिस तरह स्मृतियों में डूब गए, उस दर्द को समझता हूँ। वे बर्फ़ की ऊँचाइयाँ बार-बार बुलाती हैं, और हम हैं कि चौराहों पर खड़े, ठेले पर लदकर निकलनेवाली बर्फ़ को हो देखकर मन बहला लेते हैं... ।।
ठेले पर हिमालय प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1- लेखक कौसानी क्यों गए थे ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक कौसानी इसलिए गए थे, ताकि वे बर्फ़ को नजदीक से देख पाएँ।
प्रश्न-2- खानसामे ने सबको खुशकिस्मत क्यों कहा ?
उत्तर- खानसामे ने सबको खुशकिस्मत इसलिए कहा, क्योंकि पिछले सप्ताह लेखक से पहले वहाँ 14 यात्री आए थे, लेकिन उन्हें हिमशिखर दिखाई नहीं दिया था। किन्तु लेखक के वहाँ पहुँचने के दिन से ही हिमशिखर के दिखने के आसार नज़र आने लगे थे।
प्रश्न-3- लेखक ने बैजनाथ पहुँचकर हिमालय से किस रूप में भेंट की ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने बैजनाथ पहुँचकर गोमती की उज्ज्वल जलराशि में हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों की छाया तैरती देखी। लेखक ने इस प्रकार हिमालय से भेंट की।
प्रश्न-4- कोसी से कौसानी के बीच लेखक को किन दृश्यों ने आकर्षित किया ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कोसी से कौसानी के बीच लेखक को सुडौल पत्थरों पर कल-कल करती हुई कोसी, किनारे के छोटे-छोटे गाँव, हरे-भरे खेत, छोटे-छोटे पहाड़ी डाकखानों, चाय की दुकान, नदी-नाले पर बने पुल और चीड़ के जंगल इत्यादि के दृश्यों ने ख़ूब आकर्षित किया।
प्रश्न-5- लेखक को ऐसा क्यों लगा कि वे किसी दूसरे ही लोक में चले आए हैं ?
उत्तर- लेखक कौसानी बस स्टैंड पर उतरे ही थे कि जहाँ का तहाँ पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़े रह गए। सामने की घाटी में सौन्दर्य का अद्भुत नज़ारा बिखरा था। हरे-मखमली कालीनों जैसे खेत, सुंदर गेरू की शिलाएं काटकर बने हुए रास्ते, आपस में उलझी बेलों की लड़ियों सी नदियाँ देखकर लेखक को लगा कि वे किसी दूसरे ही लोक में चले आए हैं।
प्रश्न-6- लेखक को ठेले पर हिमालय शीर्षक कैसे सूझा ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, ठेले पर बर्फ़ देखकर लेखक के अल्मोड़े के मित्र स्मृतियों में डूब गए। वे बर्फ़ की उठती हुई भाप में खो गए और उसी वक़्त बोले – ‘यही बर्फ़ तो हिमालय की शोभा है’ । इस प्रकार ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक सूझा।
प्रश्न-7- सूरज के डूबते ही सब गुमसुम क्यों हो गए ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, सूरज के डूबते ही सब गुमसुम इसलिए हो गए, क्योंकि सूरज के डूबने पर धीरे-धीरे ग्लेशियरों में पिघला केसर बहने लगा। घाटियाँ पीली हो गईं। अँधेरे के कारण बर्फ़ के दर्शन नहीं हो सकते थे।
व्याकरण-बोध
प्रश्न-8- समास-विग्रह कीजिए -
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं -
सूखे-भूरे – सूखे और भूरे
चाय-कॉफ़ी – चाय या कॉफ़ी
पेन-पेंसिल – पेन और पेंसिल
नदी-नालों – नदी अथवा नालों
शिव-पार्वती – शिव और पार्वती
स्कूटर-कार – स्कूटर अथवा कार
छोटे-बड़े – छोटे और बड़े
मुँह-हाथ – मुँह और हाथ
प्रश्न-9- नीचे लिखे वाक्यों में एक पद को रेखांकित किया गया है, जिसके पद-परिचय के रूप में चार-चार विकल्प दिए गए हैं। उचित विकल्प पर सही का निशान लगाइए –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं -
मेरे मित्र का जन्म-स्थान अल्मोड़ा है।
सार्वनामिक विशेषण, एकवचन, पुल्लिंग।
ठंडी, चिकनी, चमकती बर्फ़ से भाप उड़ रही थी।
गुणवाचक विशेषण, स्त्रीलिंग, एकवचन।
धीरे-धीरे मेरी निगाह ने इस घाटी को पार किया।
रीतिवाचक क्रिया विशेषण, अव्ययी।
शुक्ल जी, सेन और अन्य सभी ने देखा।
व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ता।
सोमेश्वर की घाटी के उत्तर में ऊँची पर्वतमाला है।
संबंधबोधक, अव्ययी, एकवचन।
प्रश्न-10- मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य बनाइए –
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर हैं -
नाक में दम करना – (परेशान करना)- इन बच्चों ने नाक में दम करके रखा है।
सिर पर आना – (पास आना)- परीक्षाएँ सिर पर हैं।
दांतों तले ऊँगली दबाना – (आश्चर्यचकित होना)- मिलन की जीवंत चित्रकारी देखकर लोग दांतों तले ऊँगली दबा देते हैं।
आँखों का तारा होना – (बहुत प्यारा होना)- रमेश अपने दादा-दादी की आँखों का तारा है।
अंधे की लाठी होना – (एकमात्र सहारा होना)- मेरा बेटा ही बुढ़ापे में अंधे की लाठी साबित होगा।
नौ दो ग्यारह होना – (भाग जाना)- चोर चोरी करके नौ दो ग्यारह हो गया।
हो हल्ला करना – (बहुत शोर मचाना)- रमेश थोड़ी सी बात पर हो हल्ला कर रहा है।
ईद का चाँद होना – (बहुत दिनों बाद दिखाई देना)- मुकेश आजकल ईद का चाँद ही हो गया है।
ठेले पर हिमालय धर्मवीर भारती पाठ से संबंधित शब्दार्थ
तत्काल – तुरंत
यकीन – विश्वास
कष्टप्रद – दुःख देनेवाला
सुडौल – सुंदर बनावटवाला
यक्ष – देवताओं की एक योनि
किन्नर – देवताओं की एक योनि, जाति
गेरू – एक तरह की लाल मिट्टी
संवेदन – अनुभूति, ज्ञान, भाव
बेसाख्ता – हार्दिकता से
हर्षातिरेक – अत्यधिक प्रसन्नता
निरावृत – बिना ढका हुआ
अपलक – लगातार, एकटक
अनावृत – खुला हुआ
श्रृंखला – वस्तुओं की क्रमानुसार माला, लड़ी।
Beautiful lesson
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