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बसंती हवा कविता - केदारनाथ अग्रवाल
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बसंती हवा कविता का भावार्थ व्याख्या
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी -
अनोखी हवा हूँ।
बड़ी बावली हूँ,
बड़ी मस्तमौला।
नहीं कुछ फिकर है,
बड़ी ही निडर हूँ।
जिधर चाहती हूँ,
उधर घूमती हूँ,
मुसाफिर अजब हूँ।
व्याख्या - कवि का कहना है कि बसंत ऋतू में चलने वाली हवा स्वयं ही अपना परिचय दे रही है। वह कहती है कि मैं बंसती हवा हूँ। मेरी बात सुनों। वह कहती है कि मैं विचित्र और पगली हूँ। मैं बेपरवाह और बेफिक्र हूँ। मैं किसी से डरती नहीं हूँ। अतः जिधर जाना चाहती हूँ ,उधर चली जाती हूँ। वह कहती हैं कि मैं विचित्र प्रकार की यात्री हूँ।
न घर-बार मेरा,
न उद्देश्य मेरा,
न इच्छा किसी की,
न आशा किसी की,
न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ।
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
व्याख्या - वंसत ऋतू में चलने वाली बंसती हवा अपना परिचय दे रही है। कवि लिखता है कि बसन्त ऋतू में चलने वाली हवा कहती है कि मेरा कोई घर और ठिकाना नहीं है। बसंती हवा का कोई अपना मकसद नहीं है। इसे न किसी वस्तु की इच्छा है और न किसी बात की आशा। बसन्ती हवा कहती है कि न तो उसका कोई प्रेमी है और न ही उसका कोई दुश्मन। अतः पूरी आजादी से जिधर जाना चाहती है ,उधर चली जाती है। यही बसंती हवा का परिचय है।
जहाँ से चली मैं
जहाँ को गई मैं -
शहर, गाँव, बस्ती,
नदी, रेत, निर्जन,
हरे खेत, पोखर,
झुलाती चली मैं।
झुमाती चली मैं!
हवा हूँ, हवा मै
बसंती हवा हूँ।
व्याख्या - कवि लिखता है कि बसन्त ऋतू में चलने वाली हवा अपना परिचय देते हुए बताती है कि जहाँ से वह चलती है अथवा जहाँ भी जाती है - शहर ,गाँव ,बस्ती ,हरे खेत तथा पोखर आदि ,सबको वह झुलाती और झुमाती आती है। यही उस हवा का परिचय है जो बंसत ऋतू में बहती है। बसंत ऋतू में फसलें हरी होती है और फूल खिलते हैं। अतः थोड़ी सी हवा से भी झूम उठते हैं।
चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।
अनेकों पहर तक
इसी में रही मैं!
खड़ी देख अलसी
लिए शीश कलसी,
मुझे खूब सूझी -
हिलाया-झुलाया
गिरी पर न कलसी!
इसी हार को पा,
हिलाई न सरसों,
झुलाई न सरसों,
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
व्याख्या - कवि लिखता है कि बसंत ऋतू में चलने वाली हवा अपना परिचय देती है। साथ ह वह बसंत ऋतू का प्रकृति चित्रण भी करती है। बसंती हवा स्वयं बताती है कि वह महुए के पेड़ पर चढ़ती है। इस ऋतू में महुए को फल फूल लगते है। महुए के पेड़ को अच्छी तरह हिलाकर आम के पेड़ पर पहुँचती हैं और वहां ध्वनि करती है। उसके बाद गेंहू के खेतों में पहुँचती और काफी समय उन खेतों को झुलाती है। यादी रहे कि इस ऋतू में गेंहू के खेत भी तैयार हो जाते हैं। इसके बाद बसंती हवा आलसी के पौधों के पास पहुँचती हैं। अलसी के फल गोल और शंकु के आकार के होते हैं जो पौधे के ऊपर उलटे लगते हैं ,मानों कोई स्त्री माथे पर कलसी लिए खड़ी हो। बसंती हवा अलसी के पौधों को खूब हिलाती है। किन्तु अलसी के कलसी जैसे फल नहीं गिरते ,बसंती हवा इसे अपनी हार समझती है। इससे निरुत्साहित होकर वह अब न सरसों के पौधों को हिलाती है और न झुलाती है। यही बसंत में चलने वाली हवा का परिचय है।
बसंती हवा के माध्यम से कवि ने बताया है कि किस प्रकार बसंत ऋतू में महुए और आम के वृक्षों को फल फूल लग जाते हैं। गेंहू ,सरसों और अलसी के खेत लहलहाने लगते हैं।
मुझे देखते ही
अरहरी लजाई,
मनाया-बनाया,
न मानी, न मानी;
उसे भी न छोड़ा -
पथिक आ रहा था,
उसी पर ढकेला;
हँसी ज़ोर से मैं,
हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी!
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
व्याख्या - बसंती हवा अपना परिचय दे रही है। उसी के माध्यम से कवि बसंत ऋतू का प्रकृति चित्रण करता है। बसंत ऋतू में अरहर के पौधे भी बड़े हो जाते हैं। हवा चलने से वे भी झुकते हैं। बसंती हवा कहती है कि उसे देखकर अरहर लजा गयी है। उसे हवा जैसे मनाती है। हवा के चलने से पौधे ऊँचे - नीचे होते हैं। बसन्ती हवा पथिक से टकराई। कवि बसंती में सब कुछ हरा भरा और सुखद होता है। हवा भी सुख देती है। जैसे बसन्ती हवा भी खुश है। प्रकृति भी खुश है। सभी दिशाएं प्रसन्न हैं। खेत खुश हैं। चमचमाती धूप भी प्रसन्न है।
कवि लिखता है कि बसंत ऋतू में जब हवा चलती है लगता है मानों सृष्टि खुश हो। बसन्त ऋतू को फूलों का मौसम या मौसम ए गुल भी कहा जाता है। जब हर जगह सुन्दरता और हरियाली होती है। चित्त प्रसन्न होता है।
बसंती हवा कविता का सारांश
बसंती हवा कविता केदारनाथ अग्रवाल जी द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कविता है। इस कविता में कवि ने बसंत ऋतू में चलने वाली बसंती हवा का परिचय दिया है और उसके माध्यम से ही बसंत ऋतू के समय का प्रकृति चित्रण किया है। बसंती हवा बहुत ही बेपरवाह और लापरवाह है। वह किसी से डरती नहीं है। वह जिधर भी जाना चाहती है वहीँ अपनी मर्ज़ी से चली जाती है। हवा शहर ,गाँव ,बस्ती ,हरे खेत एवं पोखर आदि में वह घूमती और झुलाती है। वह महुए के पेड़ पर चढ़ती है ,उसे हिलाकर आम के पेड़ों ,गेहूं के खेतों में पहुंचती है। वह अलसी के पौधों को भी खूब हिलाती है ,किन्तु अलसी के फल नहीं गिरते हैं ,जिसे वह अपनी हार मान लेती है। हवा को देखकर अरहर लजा जाती है। बसंत के मौसम में सब कुछ हरा भरा और सुखद होता है। बसन्ती हवा भी खुश है और प्रकृति भी खुश है। इन सभी को देखकर मनुष्य का ह्रदय भी पुलकित हो जाता है।
बसंती हवा कविता का प्रश्न उत्तर
प्र. बसंती हवा ने अपने आपको अजब मुसाफिर क्यों कहा है ?
उ. बसंती हवा ने अपने आपको अजब मुसाफिर इसीलिए कहा क्योंकि यह जिधर चाहती है उधर घूमती है। न इसका घर - बार है और न ही इसका कोई उद्देश्य है।
उ. बसन्ती हवा जिधर चाहती है ,उधर घूमती है। यह शहर ,गाँव ,बस्ती ,नदी ,रेत ,निर्जन ,हरे खेत ,पोखर की ओर घूमती है। महुए के पेड़ से आम के पेड़ पर फिर गेंहू से अलसी और अरहरी की ओर घूमती है।
प्र. कवि ने अलसी के फल को कलसी क्यों कहा है ?
उ. कवि ने अलसी के फल को कलसी इसीलिए कहा क्योंकि इसके फल गोल और शंकु के आकार के होते हैं जो पौधे के बिलकुल ऊपर उलटे लगते हैं मानों कोई स्त्री माथे पर कलसी लिए खड़ी हो।
प्र. किया कान में कू का अर्थ क्या है ?
उ. किया कान में कू का अर्थ यह है कि उसके साथ भी शरासत और हंसी की।
प्र. सरसों के पौधों को नहीं हिलाने - झुलाने के पीछे क्या राज है ?
उ. सरसों के पौधों को नहीं हिलाने - झुलाने के पीछे यह राज है कि इससे पहले वह अलसी के पौधे को इस उद्देश्य से हिलाती है कि उसका फल गिर सके। मगर फल नहीं गिरता है। बसंती हवा इसे अपना हार समझती है। इस हार के कारण वह आगे सरसों के पौधों को नहीं हिलाती है।
प्र. बसंत ऋतू में प्रकृति कैसी हो जाती है ?
उ. वसन्त ऋतू में प्रकृति बहुत सुन्दर और सुखद होती है। न गर्मी होती है और न सर्दी। सब ओर हरियाली होती है। गेंहू .,अलसी ,सरसों और अरहर के खेत बड़े हो जाते हैं और बसंती हवा से झूलते हैं। महुए ,आम ,अलसी और सरसों को सुन्दर फल फूल लग जाते हैं। प्रकृति सुन्दर हो जाती है। इसका रूप निखर आता है। बसन्त ऋतू को फूलों का मौसम भी कहते हैं।
बसंती हवा कविता के कठिन शब्द
बसंती हवा - बसंत ऋतू में चलने वाली हवा।
अनोखी - विचित्र
बावली - पगली
उद्देश्य - मकसद
इच्छा - कामना
अलसी - एक तिलहन
पथिक - राही
चमचमाती - चमकती हुई।
पहर - प्रहार
Basanti hva aapko kesi lagi ?
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