बावरा अहेरी कविता अज्ञेय बावरा अहेरी कविता की व्याख्या बावरा अहेरी कविता का भावार्थ बावरा अहेरी कविता बावरा अहेरी कविता का सारांश अज्ञेय की कविताएं
बावरा अहेरी कविता अज्ञेय
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बावरा अहेरी कविता की व्याख्या भावार्थ
भोर का बावरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक की
लाल-लाल कनियाँ
पर जब खींचता है जाल को
बाँध लेता है सभी को साथः
छोटी-छोटी चिड़ियाँ
मँझोले परेवे
बड़े-बड़े पंखी
डैनों वाले डील वाले
डौल के बैडौल
उड़ने जहाज़
कलस-तिसूल वाले मंदिर-शिखर से ले
तारघर की नाटी मोटी चिपटी गोल घुस्सों वाली
उपयोग-सुंदरी
बेपनाह कायों कोः
गोधूली की धूल को, मोटरों के धुँए को भी
पार्क के किनारे पुष्पिताग्र कर्णिकार की आलोक-खची तन्वि
रूप-रेखा को
और दूर कचरा जलाने वाली कल की उद्दण्ड चिमनियों को, जो
धुआँ यों उगलती हैं मानो उसी मात्र से अहेरी को
हरा देगी !
व्याख्या - प्रस्तुत कविता में कवि का कहना है कि प्रातः कालीन बेला में पागल शिकारी के समान सूर्य ने पहले तो अपनी लाल - लाल किरने चारों ओर सर्वत्र छिटका दी ,बाद में कुशल शिकारी की भाँती जब उसने अपने फैलाये जाल को खींचा तो सभी को उसमें एक साथ बाँध लिया। वह छोटी छोटी चिड़ियों को मध्यम आकार के तीव्रगामी पक्षियों को बड़े बड़े पंखों वाले पक्षियों को और बड़े बड़े डैनों वाले पक्षी जिसकी बनावट बेडौल है - को भी अपने जाल में समेट लेता है। वह आकाश में उड़ने वाले वायुयानों को उन मंदिरों को जिसकी चोटियों पर कलश और त्रिशूल लगे हैं अपने में समेट लेता है। तारघर में कार्यरत ठिगने कद वाली मोती ,चिमटी ,गोल और उनके कम्बल धारण करने वाली सुंदरी के आश्रय हीन शरीर को भी अपने जाल में समेट लेता है। गायों के खुरों से उडी घूल को मोटरों के धुंए भी अपने में समेट लेता है। पार्क के किनारे अग्रभाग में पुष्पित कन्नेर के पक्ष में निर्मित कोमल एवं सुकुमार सौन्दर्य की रेखा और दूरस्थ कूड़ा करकट जलाने वाली चिमनियाँ जो इस प्रकार धुवाँ उगलती हैं। मानों घुयें के बल से ही अहेरी से पराजित करेगी। पर इन सभी को ही नहीं अपितु संसार की प्रत्येक वस्तु को यह प्रभात का पागल अहेरी सूर्य एक साथ ही अपने जाल में खींच लेता है। पद्धति और यांत्रिक सभ्यता के प्रतीक भी उसके जाल में समां जाते हैं।
विशेष - उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
- सूर्य बावरा अहेरी का प्रतीक है। जिस प्रकार शिकारी जाल फैलाकर चिड़ियों को फँसा लेता है। उसी प्रकार इस अहेरी ने अपने किरण जाल में सभी को आबद्ध कर लिया है।
- सूर्य को प्रकाश सब पर समान रूप से पड़ता है। यह भी ध्वनित है।
- सूक्ष्म प्रकृति निरीक्षण का परिचय है।
- डील डौल में सभंग पद छोटी छोटी ,बड़े बड़े में पुनरुक्ति प्रकाश ,नाटी - मोटी ,चिमटी में पद मैत्री ,मानों उसी मात्र से रूपक और चिमनी से मानवीकरण
बावरे अहेरी रे
कुछ भी अवध्य नहीं तुझे, सब आखेट हैः
एक बस मेरे मन-विवर में दुबकी कलौंस को
दुबकी ही छोड़ कर क्या तू चला जाएगा ?
ले, मैं खोल देता हूँ कपाट सारे
मेरे इस खँढर की शिरा-शिरा छेद के
आलोक की अनी से अपनी,
गढ़ सारा ढाह कर ढूह भर कर देः
मेरी आँखे आँज जा
कि तुझे देखूँ
देखूँ और मन में कृतज्ञता उमड़ आये
पहनूँ सिरोपे-से ये कनक-तार तेरे –
बावरे अहेरी
व्याख्या - कवि कहता है कि हे बावरा अहेरी ! तेरे लिए संसार में ऐसा कुछ नहीं है जिसे तू नष्ट कर सके। संसार के समस्त प्राणी और समस्त वस्तुएँ तेरे लिए शिकार मात्र हैं। तेरी इस महत्ता और शक्तिशाली होने के नाते ही पूछता हूँ कि क्या तू मेरे मन में डूबकी अन्धकार की कालिमा को बंद किये बिना ही यों ही चला जाएगा। अतः तुझसे प्रार्थना है कि मेरे मन में छुपी अहंकार की कालिमा को बंद को तू नष्ट कर दे क्योंकि तू तो प्रकाश का पूँज और अन्धकार का विकट वैरी है ,ज्ञान का प्रतिक है। मैं अपने ह्रदय के सारे कपाट खोल देता हूँ। जिससे कि तेरे ज्ञान का प्रकाश खुले हुए द्वारों से मन की गुफा में प्रवेश कर उसमें समाये अहंकारयुक्त कालिमा को नष्ट कर सके। मेरे ह्रदय रूपी खंडहर को एक एक नस को तू अपने प्रकाश के रश्मि रूपी बाण से छेदकर नष्ट कर दे। तू मेरी आँखों के दृष्टिपथ को परिस्कृत कर दे जिससे कि हे ज्ञान रूपा मैं तुझे अच्छी तरह देख सकूं। तेरे इस उपकार के प्रति मेरे मन में कृतज्ञता का भाव उमड़ आये। हे बावरा अहेरी ! मेरी उत्कट अभिलाषा है कि मैं तेरे प्रातःकालीन स्वणिर्म किरणों के तारों से निर्मित स्वर्णिम एवं ज्योति परिधान को सिर से लेकर पैर तक पहन सकूँ जिससे नख से लेकर शिख तक आलोकमय हो सकूँ और ज्ञानमय हो सकूं।
विशेष - उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
- कवि सूर्य को ज्ञान का प्रतिक मानता है ,अतः उससे ज्ञान की याचना करता है।
- अहंकार की कालिमा को कवि दूर करना चाहता है।
- दर्शन का पुट दृष्टिगोचर होता है।
- शैली प्रतीकात्मक है।
बावरा अहेरी कविता का सारांश
बावरा अहेरी ,अज्ञेय जी की प्रसिद्ध कविता है। अहेरी सूर्य का प्रतिक है। वह जगत का अन्धकार हर कर समान रूप से प्रकाश का वितरण करता हुआ लोक कल्याण में रत रहता है। अतः वह लोक कल्याण की भी प्रेरणा देता है। आज की मशीनी सभ्यता पर्यावरण से दूषित करके उसके प्रयास कर रही है। सूर्य ज्ञान का भी प्रतिक है। अतः कवि उससे कवि के जीवन का अन्धकार हटकर ज्ञान प्रदान करने की भी याचना करता है।
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