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बीज पौध का जन्म - जगदीश चंद्र बसु
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बीज पौध का जन्म पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ या निबंध बीज – पौध का जन्म निबंधकार जगदीशचंद्र बसु द्वारा लिखित है । इस पाठ में बसु जी द्वारा यह पड़ताल करने की कोशिश की गई है कि कब पेड़-पौधे अंकुरित होकर विशाल वृक्ष का रूप ले लेते हैं, कुछ पता ही नहीं चलता । लेखक कहते हैं कि मिट्टी के नीचे बहुत दिनों तक बीज पड़े रहे । कुछ महीना गुज़रता गया । जब वर्षा ऋतू की शरुआत में दो-एक दिन पानी बरसा तो बीज को और छिपे रहने की ज़रूरत नहीं थी । आहिस्ता-आहिस्ता बीज का ढक्कन दरक गया, दो सुकोमल पत्तियों के बीच अंकुर बाहर निकला । अंकुर का एक अंश नीचे माटी में मज़बूती से गड़ गया और दूसरा अंश माटी भेदकर ऊपर की ओर उठा । जैसे कोई शिशु अपना नन्हा-सा सिर उठाकर आश्चर्य से नई दुनिया को देख रहा हो ।
बसु जी कहते हैं कि एक गमले में पौधा था । परीक्षण करने के लिए कुछ दिन गमले को औन्धा लटकाए रखा । पौधे का सिर नीचे की तरफ़ लटका रहा और जड़ ऊपर की ओर रही । दो-एक दिन बाद यह देखकर आश्चर्य हुआ कि जैसे पौधे को भी सब भेद मालूम हो गया हो । उसकी सब पत्तियाँ और डालियाँ टेढ़ी होकर ऊपर की ओर उठ आईं तथा जड़ घूमकर नीचे की ओर लटक गई । हम जिस तरह भोजन करते हैं, पेड़-पौधे भी उसी तरह भोजन करते हैं । हम अपने दांतों के द्वारा कठोर चीज़ खा सकते हैं । नन्हें बच्चों के दांत नहीं होते, वे केवल दूध पी सकते हैं । पेड़-पौधे के भी दांत नहीं होते, इसलिए वे केवल तरल द्रव या वायु से भोजन ग्रहण करते हैं । पेड़-पौधे जड़ के द्वारा माटी से रस-पान करते हैं । जिस तरह चीनी में पानी डालने पर चीनी गल जाती है, उसी तरह माटी में पानी डालने पर उसके भीतर बहुत-से द्रव भी गल जाते हैं । पेड़-पौधे वे ही तमाम द्रव सोखते हैं । जड़ों को पानी न मिलने पर पेड़ का भोजन बंद हो जाता है और पेड़ मर जाता है । खुर्दबीन से अत्यंत सूक्ष्म पदार्थ स्पष्टतया देखे जा सकते हैं । पेड़ की डाल अथवा जड़ का रस यंत्र द्वारा परीक्षण करके देखा जा सकता है कि पेड़ में हज़ारों-हज़ार नल हैं । इन्हीं सब नलों के द्वारा माटी से पेड़ के शरीर में रस का संचार होता है । इसके अलावा पेड़ के पत्ते हवा से आहार ग्रहण करते हैं ।
प्रकाश ही जीवन का मूलमंत्र है । सूर्य-किरण का परस पाकर ही पेड़ पल्लवित होता है । पेड़-पौधे के रेशे-रेशे में सूरज की किरणें आबद्ध हैं । ईंधन को जलाने पर जो प्रकाश और ताप बाहर प्रकट होता है, वह सूर्य की ही उर्जा है । पेड़-पौधे और समस्त हरियाली प्रकाश हथियाने के जाल हैं । पशु-डांगर पेड़-पौधे या हरियाली खाकर अपने प्राणों का निर्वाह करते हैं । पेड़-पौधे में जो सूर्य का प्रकाश समाहित है, वह इसी तरह जंतुओं के शरीर में प्रवेश करता है । अनाज और सब्जी न खाने पर हम भी बच नहीं सकते । सोचकर देखा जाए तो हम भी प्रकाश की खुराक पाने पर ही जीवित हैं ।
बसु जी कहते हैं कि मधुमक्खी और तितली की पेड़-पौधों के साथ चिरकाल से घनिष्ठता है । वे दल-बदल सहित फूल देखने आती हैं । कुछ पतंगे दिन के समय पक्षियों के डर से बाहर नहीं निकल सकते । पक्षी उन्हें देखते ही खा जाते हैं, इसलिए अँधेरा घिरने तक वे छिपे रहते हैं । शाम होते ही उन्हें बुलाने की ख़ातिर फूल चारों तरफ़ सुगंध ही सुगंध फैला देते हैं । पेड़-पौधे अपने फूलों में शहद का संचय करके रखते हैं । मधुमक्खी और तितली बड़े चाव से मधु-पान करती हैं । मधुमक्खी के आगमन से पेड़-पौधों का भी उपकार होता है । मधुमक्खियाँ एक फूल के पराग-कण दूसरे फूल पर ले जाती हैं । पराग-कण के बिना बीज पक नहीं सकता । इस तरह फूल में बीज फलता है । अपने शरीर का रस पिलाकर पेड़-पौधे बीजों का पोषण करते हैं । अब अपनी ज़िंदगी के प्रति उनमें मोह-माया नहीं रहती । संतान की ख़ातिर पेड़ तिल-तिलकर सब-कुछ लुटा देता है । आख़िरकार, एक दिन अकस्मात पेड़ जड़सहित ज़मीन पर गिर पड़ता है । इस तरह संतान के लिए अपना जीवन न्योछावर करके पेड़ समाप्त हो जाता है...।।
बीज पौध का जन्म पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1- वर्षा और बीज का क्या संबंध है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, वर्षा और बीज का संबंध बहुत गहरा है । यहाँ लेखक बसु जी ने नवांकुर की तुलना शिशु से की है तथा वर्षा होने के पश्चात् ही बीज अंकुरित होते हैं ।
प्रश्न-2- लेखक ने अंकुर की तुलना किससे और क्यों की है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने अंकुर की तुलना शिशु की है । क्योंकि जिस तरह शिशु को मानव का सबसे छोटा रूप माना जाता है, ठीक उसी तरह अंकुर भी पौधे का सबसे छोटा रूप माना जाता है ।
प्रश्न-3- पेड़ के शरीर में ‘रस’ कैसे पहुँचता है ?
उत्तर- मिट्टी में पानी डालने पर उसके अंदर बहुत-से द्रव भी गल जाते हैं । पेड़-पौधे वे ही तमाम द्रव सोखते हैं । अतः पेड़ के शरीर में ‘रस’ जड़ के माध्यम से पहुँचता है ।
प्रश्न-4- पौधा अंधकार से प्रकाश की ओर क्यों बढ़ता है ?
उत्तर- वास्तव में, प्रकाश ही जीवन का मूलमंत्र है । पेड़-पौधे भी प्रकाश चाहते हैं । पेड़ के पत्तों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब पत्ते सूर्य-उर्जा के सहारे अंगारक वायु से अंगार निःशेष कर डालते हैं और यही अंगार पेड़ के शरीर में प्रवेश करके उसका संवर्धन करते हैं । सूर्य-किरण का परस पाकर ही पेड़ पल्लवित होते हैं । यही कारण है कि यदि खिड़की के पास गमले में पौधा रखा जाए तो सारी पत्तियाँ और डालियाँ अंधकार से बचकर प्रकाश की ओर बढ़ रही होती नज़र आती हैं ।
प्रश्न-5- मरने से पहले पौधे किस रूप में अपनी संतान छोड़ जाते हैं ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, बीज ही पेड़-पौधों की संतान हुआ करते हैं । बीज की सुरक्षा और सार-सँभाल के लिए पेड़ फूल की पंखुड़ियों से घिरा एक छोटा-सा घर तैयार करता है । इस प्रकार मरने से पहले पौधे अपनी संतान छोड़ जाते हैं ।
प्रश्न-6- आहार ग्रहण करने में पेड़ के पत्ते किस प्रकार मदद करते हैं ?
उत्तर- वास्तव में देखा जाए तो पत्तों में छोटे-छोटे अनेक मुँह होते हैं । सूक्ष्मता से देखा जाए तो इन मुँह पर अनगिनत होंठ देखे जा सकते हैं । इन्हीं होठों के माध्यम से पेड़ अपने पत्तों के माध्यम से आहार ग्रहण करते हैं ।
प्रश्न-7- पेड़-पौधे अंगारक वायु को कैसे शुद्ध कर देते हैं ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, जीव-जंतुओं के लिए ज़हर माने जाने वाले अंगारक वायु का सेवन करके पेड़-पौधे उसे पूर्णतया शुद्ध कर देते हैं । पेड़ के पत्तों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब पत्ते सूर्य-उर्जा के सहारे अंगारक वायु से अंगार निःशेष कर डालते हैं ।
प्रश्न-8- मधुमक्खी के आगमन से पौधों का उपकार किस रूप में होता है ?
उत्तर- पेड़-पौधे अपने फूलों में शहद का संचय करके रखते हैं । मधुमक्खी और तितली बड़े चाव से मधु-पान करती हैं । मधुमक्खी के आगमन से पेड़-पौधों का भी उपकार होता है । मधुमक्खियाँ एक फूल के पराग-कण दूसरे फूल पर ले जाती हैं । पराग-कण के बिना बीज पक नहीं सकता । इस तरह फूल में बीज फलता है । अपने शरीर का रस पिलाकर पेड़-पौधे बीजों का पोषण करते हैं ।
व्याकरण-बोध
प्रश्न-9- नीचे लिखे वाक्यों में से करण अथवा अपादान छाँटकर सही का निशान लगाइए -
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
श्रम करने से धन प्राप्त होता है । (करण कारक)
निबंध ढंग से लिखो । (करण कारक)
आसमान से गिरा खजूर में अटका । (अपादान कारक)
मुझे गणित से अच्छा विज्ञान लगता है । (अपादान कारक)
गोपियों से कृष्ण का विरह सहा न गया । (अपादान कारक)
मुँह से निकला शब्द पराया हो जाता है । (अपादान कारक)
क्या तुम्हें आँखों से ठीक दिखाई देता है ? (करण कारक)
स्विट्ज़रलैंड से अच्छा तो हमारा कश्मीर है । (अपादान कारक)
पतंग डोर से ही उड़ती है । (करण कारक)
घोड़ा तेज़ी से भागा । (करण कारक)
प्रश्न-10- उचित विस्मयादिबोधक का वाक्यानुसार मिलान कीजिए -
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
बेचारा मर गया – ओह
कितनी बदबू आ रही है – छि:
तुमने बहुत अच्छा किया – शाबाश
अब मेरा क्या होगा ? – हाय
हम जीत गए – अहा
तुम कब आए ? – अरे
मेरी नज़रों से दूर हो जा – हट
क्या हवा चल रही है ? – वाह
बीज पौध का जन्म पाठ के शब्द अर्थ
खुर्दबीन – माइक्रोस्कोप
सूक्ष्म – बारीक
तरल द्रव – बहनेवाला पदार्थ
श्वास-प्रश्वास – साँस लेना-छोड़ना
विषाक्त – ज़हरीला
संवर्धन – बढ़ना, विकास होना
अंगारक वायु – कार्बनडाइऑक्साइड
अग्रसर – आगे बढ़ना
सचेष्ट – चेष्टा या प्रयास करनेवाला
पल्लवित – जिसमें पत्ते (पल्लव) लगे हों
आबद्ध – जकड़ा हुआ
आच्छादित – ढका या छिपा हुआ
अपरूप – बुरा रूप
परस – छूना, स्पर्श
क्षीण – पतला, कमज़ोर
उपादान – ऐसा द्रव जिससे कोई वस्तु बने ।
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