धर्मवीर भारती की काव्यगत विशेषताएं Dharmvir Bharti ki Kavyagat Visestayein काव्य की विशेषताएं dharmveer bharti ki rachnaye हिंदी साहित्य का इतिहास
धर्मवीर भारती की काव्यगत विशेषताएं
धर्मवीर भारती की काव्यगत विशेषताएं Dharmvir Bharti ki Kavyagat Visestayein काव्य की विशेषताएं dharmveer bharti ki rachnaye dharmveer bharti ki kavyagat visheshta हिंदी साहित्य का इतिहास - नवीन पीढ़ी के साहित्यकारों में धर्मवीर भारती का अपना विशिष्ट स्थान है। उन्होंने साहित्यिक विधाओं के क्षेत्र में नवीन प्रयोग किये। आधुनिक हिंदी काव्य में अपनी आधुनिक दृष्टि ,रोमांटिक प्रवृत्ति ,व्यक्तिवादी चेतना तथा सहज जीवंत एवं बोलचाल की भाषा के लिए प्रयाख्त हैं।
धर्मवीर भारती का कला पक्ष
धर्मवीर भारती जी प्रेम और सौन्दर्य के कवि हैं। भावुकता की मुक्ति के लिए चाहे गए आलोक कणों की खोज में जब हम उनकी कविताओं को पढ़ते हैं ,तब टुकड़ों में ही उनकी व्याप्ति मिलती हैं। प्रयोगवादी कवियों ने कहीं स्पष्ट रूप और कहीं सूक्ष्म प्रतीकों और बिम्बों के माध्यम से दमित कामवासनाओं और उलझी हुई संवेदनाओं को रूपायित किया हैं। इसमें अज्ञेय ,शमशेरबहादुर सिंह ,गिरिजाकुमार माथुर और धर्मवीर भारती के नाम लिखे जा सकते हैं।
बरबाद मेरी ज़िन्दगी,इन फिरोज़ी होठों पर
गुलाबी पाँखुरी पर हल्की सुरमई आभा
कि ज्यों करवट बदल लेती कभी बरसात की दुपहर
इन फिरोज़ी होठों पर
धर्मवीर भारती के प्रेम का रूप कनुप्रिया में भी मिलता है ,जहाँ राधा अपनी निरीहता में आम के बौर को माँग में भरे खड़ी हैं और कृष्ण सेनाओं के संगठन में व्यस्त हैं। प्रेम अपनी लघुता में भी महान होता है।
धर्मवीर भारती की भाषा शैली
भारती की भाषा शैली अत्यंत सहज और सरल है। उन्होंने उचित प्रभाव के उर्दू शब्दों का प्रयोग निसंकोच किया है। मुक्त छंद के प्रयोग में उनका ध्यान भाषा की लय पर है। यों तो प्रतिक विधान में भारती सफल हैं। अँधा युग एवं कनुप्रिया पूर्णतः प्रतीकात्मक हैं। कवि ने अनेक नए उपमानों का प्रयोग किया है। जैसे -
- और संशय है
- बुझी हुई राख में छिपी चिन्गारी-सा
रीते हुए पात्र की आखिरी बूँद-सा
पा कर खो देने की व्यथा-भरी गूँज-सा ......
भावों की अभिव्यक्ति के लिए उचित उपमानों का प्रयोग करने में भारती सिद्धहस्त हैं ,जैसे - अश्वत्थामा के अस्तित्व की कुंठिता घृणा ,विकृत्ता ,कवि ने एकदम नवीन उपमानों द्वारा व्यक्त किया है। जैसे -
मैं यह तुम्हारा अश्वत्थामा
कायर अश्वत्थामा
शेष हूँ अभी तक
जैसे रोगी मुर्दे के
मुख में शेष रहता है
गन्दा कफ
बासी थूक
शेष हूँ अभी तक मैं
धर्मवीर भारती का भाव पक्ष
अँधा युग नाटक का कथानक ऐतिहासिक और पौराणिक होते हुए भी अत्याधिक संवेदना से मुक्त है ,संत्रस्त मानव की विविध भाव भूमियों की अभिव्यक्ति अँधा युग में हुई है। पांडव और कौरव दोनों पक्षों के माध्यम से आधुनिकता की चुनौती को स्वीकारा गया है। युधिष्ठिर का अर्द्ध सत्य पशुत्व का प्रेरक है। अंधायुग में नारी गौरव को प्रतिस्थापित किया गया है। गांधारी के माध्यम से पत्नीत्व और मातृत्व की आदर्श भावना अभिव्यक्त हुई है।
अँधा युग में जीवन के शाश्वत मूल्यों और उनकी समस्याओं को पौराणिक सन्दर्भ में आधुनिक जामा पहनाकर प्रस्तुत किया गया है। इसमें मानवीय चेतना का बोध नव निर्माण के प्रति अटूट आस्था और शाश्वत मूल्यों की अभिव्यक्ति दी गयी है। इसमें कृष्ण मानव भविष्य के प्रति आस्था जाग्रत करते हैं।
धर्मवीर भारती की प्रमुख रचनाएँ
धर्मवीर भारती की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं -
काव्य - ठंडा लोहा ,अँधायुग ,सात गीत वर्ष ,कनुप्रिया
उपन्यास - गुनाहों का देवता ,सूरज का सातवाँ घोड़ा।
कहानी - मुर्दों का गाँव ,चाँद और टूटे हुए लोग ,बंद गली का आखिरी मकान।
नाटक - नदी प्यासी थी।
निबंध - ठेले पर हिमालय ,कहनी -अनकहनी ,पश्यंती।
आलोचना - प्रगतिवाद :एक समीक्षा ,मानव मूल्य और साहित्य ,सिद्धहस्त साहित्य।
अनुवाद - ऑस्कर वाइल्ड की कहानियाँ,देशांतर।
विविध - युद्धयात्रा (रेपोर्तार्ज़ )
विडियो के रूप में देखें -
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