मौलिक अधिकारों का महत्व और उपयोगिता Fundamental Rights In Hindi लोकतंत्र की सफलता का आधार अल्पसंख्यक प्रतिबन्ध Maulik Adhikar विकास निर्देशक तत्व संवि
मौलिक अधिकारों का महत्व और उपयोगिता
मौलिक अधिकारों का महत्व और उपयोगिता Fundamental Rights In Hindi - भारतीय संविधान में मूल अधिकारों का विशेष महत्व है। कुछ लेखकों का मत है कि जितने अधिकार भारत के संविधान में नागरिकों को प्राप्त है ,उतने अन्य देशों के संविधानों में प्राप्त नहीं है। भारतीय संविधान में जनता को दिए गए मूल अधिकार दूसरे बहुत से देशों के संविधानों में पाए जाने वाले मूल अधिकारों से अधिक विषद और यथार्थ है। भारत में लोकतान्त्रिक गणराज्य की स्थापना करने के उद्देश्य से ही इनको संविधान में स्थान दिया गया है। संविधान के द्वारा नागरिकों को वे सभी सुविधाएँ प्राप्त है ,जिनके आधार पर वह अपना विकास कर सकता है। संविधान में प्राप्त मौलिक अधिकारों को वेर्त्मान परिस्थितियों को देखते हुए कुछ प्रतिबन्ध लगाया गया है क्योंकि अधिकारों की अपेक्षा राष्ट्र की सुरक्षा तथा समाज का हित अधिक आवश्यक है। मौलिक अधिकारों में कुछ कमियाँ व प्रतिबन्ध लगने के बावजूद इसके महत्व को अस्वीकृत नहीं किया जा सकता है। मौलिक अधिकारों की अनेक कमियों को निति निर्देशक तत्व के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया गया है। मौलिक अधिकारों के महत्व की विवेचना हम निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं -
लोकतंत्र की सफलता का आधार
भारत में लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली को अपनाया गया है। स्वतंत्रता तथा समानता लोकतंत्र के दो आधारभूत सिद्धांत है। इन दोनों को मौलिक अधिकारों में स्थान दिया गया है। लोकतंत्र में जनता निर्वाचन द्वारा अपने शासकों को शासन करने का अधिकार प्रदान करती है ,निर्वाचन के द्वारा वह उन्हें हटा भी सकती है। अतः चुनाव में खड़े होने ,प्रचार करने ,मत देने का सभी को समान अधिकार होना चाहिए ,तभी लोकतान्त्रिक परम्पराओं का निर्वाह हो सकेगा।
शासन की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश
हमारे देश को स्वतंत्रता से पहले प्रशासन की स्वेच्छाचारिता का कटु अनुभव था। इसीलिए संविधान सभा में यह माँग की गयी है लोकहित के लिए यह आवश्यक है कि संविधान में कुछ ऐसे अधिकारों को स्थान दिया जाए ,जिनका अतिक्रमण शासक भी न कर सके। संविधान निर्माताओं ने इस मांग को स्वीकार करते हुए मौलिक अधिकारों को अलंघनीय घोषित किया है। कार्यपालिका तथा विधायिका को अपना कार्य मौलिक अधिकारों के अनुरूप ही करना होता है। मूल अधिकारों के सिद्धांत में प्रशासन को सिमित होना सम्मिलित है। कार्यपालिका तथा विधायिका की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाना ही इसका उद्देश्य है और इस उद्देश्य को प्राप्त कर वह व्यक्ति को अपने आत्म विकास का अवसर प्रदान करता है।
अल्पसंख्यक तथा सामान्यजनों का कल्याण
मौलिक अधिकारों में अल्पसंख्यकों के हित संरक्षण को विशेष महत्व प्रदान किया गया है। भारत में प्राचीन काल से ही समाज ने अल्पसंख्यकों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया है। कुछ जातियों को अछूत तथा निम्न समझा जाता था ,उनका शोषण किया जाता था। समाज की इन बुराइयों को दूर करने तथा समाज में मानव महत्ता की स्थापना करने के उद्देश्य से जाति ,सम्प्रदाय ,धर्म ,लिंग आदि के भेदभाव को समाप्त करके सभी नागरिकों को समान अधिकारों से विभूषित किया गया है। दूसरे भारत सदियों से गुलाम रहा ,इसीलिए भारतवासी सभी क्षेत्रों में पिछड़ गए। अतः जनता का सर्वागीण विकास करना मौलिक अधिकारों का लक्ष्य घोषित किया गया। राज्य को यह उत्तरदायित्व सौंपा गया है कि वह सामान्यजनों के कल्याण तथा उनके विकास के लिए प्रयास करें।
लोकहित में मौलिक अधिकारों का प्रतिबन्ध
मौलिक अधिकारों की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि लोकहित में इन प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। किसी भी अधिकार का समान उपयोग तभी संभव हो सकता है ,जबकि उसकी कुछ सीमाएँ हों। यदि अधिकारों की कोई सीमाएँ न हों और व्यक्ति स्वतंत्रता का निर्वाध रूप से उपभोग करें तो जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो जायेगी। अतः लोकहित में मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध आवश्यक है। इस उपबंध से मौलिक अधिकारों के महत्व में वृद्धि हो जाती है।
इस प्रकार मौलिक अधिकार नागरिकों को न्याय और उचित व्यवहार की सुरक्षा प्रदान करते हैं और राज्य के बढ़ते हुए हस्तक्षेप तथा व्यक्ति की स्वतंत्रता के मध्य संतुलन स्थापित करते हैं। नागरिकों के मौलिक अधिकार मानवीय स्वतंत्रता के मापदंड और संरक्षक दोनों ही हैं। इस कारण उनका अपना मनोवैज्ञानिक महत्व है। वर्तमान युग का कोई राजनितिक दार्शनिक उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता है।
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