महावीर ने सापेक्षता स्यादवाद दर्शन दिया जो है अनेकांतवाद या सप्तभंगी सिद्धांत जिसका शायद या सापेक्षतावाद अर्थ होता! सापेक्षतावाद का अर्थ होता है अपे
महावीर के सापेक्षता स्यादवाद से आइंस्टीन का सापेक्षता सिद्धांत निकला
महावीर ने सापेक्षता स्यादवाद दर्शन दिया
जो है अनेकांतवाद या सप्तभंगी सिद्धांत
जिसका शायद या सापेक्षतावाद अर्थ होता!
सापेक्षतावाद का अर्थ होता है अपेक्षित स्थिति
एक की अपेक्षा दूसरे का सत् असत आकलन
इसी को महावीर ने सतभंगी नय से समझाया
भिन्न भिन्न दृष्टिकोण से ज्ञान भिन्न होता!
पहला-है, दूसरा-नहीं है,तीसरा-है और नहीं है,
चौथा-कहा नहीं जा सकता, पांचवां-है किन्तु
कहा नहीं जा सकता, छठा-नहीं है
और कहा नहीं जा सकता, सातवां-है नहीं है
और कहा नहीं जा सकता, यही स्यादवाद
यानि शायद, अनेकांतवाद सप्तभंगी नय है!
महावीर ने कहा जन साधारण व्यक्ति
बता नहीं पाता किसी वस्तु की यथार्थ स्थिति
जैसे कोई छूकर हाथी के पैर को खंभ समझता
सूंड़ को अजगर सा, पूंछ को कहता रज्जु जैसा
जबकि वास्तव में हाथी होता नहीं है वैसा
ऐसा ज्ञान भिन्न-भिन्न आंगिक सापेक्षता से हुआ!
आइंस्टीन ने भी अपने सापेक्षता सिद्धांत में
न्यूटन से अलग भगवान महावीर जैसा ही कहा
आइंस्टीन ने कहा ब्रह्माण्ड में किसी वस्तु की ओर
जो गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव दिखता उसका कारण
हर वस्तु अपने मात्रा व आकार के अनुसार अपने
इर्दगिर्द दिक् काल(स्पेस टाइम) में मरोड़ पैदा करता!
न्यूटन का कहना था अगर अंतरिक्ष में दो वस्तुएं
एक दूसरे से एक किलोमीटर दूर है और वे स्थिर है
तो वे एक दूसरे से एक किलोमीटर दूर ही रहेंगी!
किन्तु आइंस्टीन ने इसे नकारकर कहा दिक् स्पेस
खिंच या सिकुड़ सकता और वे दो वस्तुएं बिना हिले
एक दूसरे से दूर सवा किलोमीटर तक हो जा सकती
या सिकुड़कर एक से पौने किलोमीटर की हो जाती!
आइंस्टीन ने कहा ‘जब कोई वस्तु गतिशील होती
तो उसके लिए समय धीरे हो जाता' उन्होंने ऐसा कहके
न्यूटन के भौतिक वस्तुओं के आपसी गुरुत्वाकर्षण
नियम झुठलाया और कहा पृथ्वी बड़ी होने के कारण
उसके इर्दगिर्द दिक काल मुड़कर अपने उपर तह जाता
हम इस खिंचे मुड़े दिक काल में ही रहते
और इस मुड़न से हम पृथ्वी की ओर ढकेल दिए जाते!
यानि अगर चारों ओर से चार लोगों द्वारा खिंचें चादर में
एक गोला रख दिया जाए तो चादर बीच में से धंस जाती
जिससे सूत में मुड़न पैदा हो जाती और अगर एक कोने से
एक हल्की गेंद छोड़ी जाए तो वे गोले की ओर लुढ़क जाती
इसकी वजह गोले का खिंचाव नहीं, बल्कि गेंद चाहती थी
जमीन में जाना पर चादर में मुड़न से गोले की ओर गई!
आइंस्टीन ने कहा गुरुत्वाकर्षण किसी आकर्षक की वजह से नहीं
बल्कि हर वस्तु अंतरिक्ष में चल रही होती और वह दिक के
ऐसी मुंडन के प्रभाव में आकर बड़ी चीज की ओर चलने लगती!
आइंस्टीन की स्थापना ‘जब कोई वस्तु गतिशील होती
तो उसके लिए समय धीरे हो जाता' में है आध्यात्मिकता!
जब किसी व्यक्ति को पीड़ा होती तो उसे अनुभव होता कि
उसका समय धीरे धीरे चल रहा है और सुख की स्थिति में
उसका समय बहुत तेज चलने लगा, जबकि घड़ी एक होती,
वस्तुत: गम की घड़ी लंबी, खुशी की घड़ी छोटी प्रतीत होती,
नरक यातना अंतहीन होती, स्वर्ग समृद्धि जल्द खो जाती!
वस्तुत: न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम को नकारने वाला
आइंस्टीन सिद्धांत गति के साथ समय का कम हो जाना
महावीर के स्यादवाद जैसा ही है सापेक्षता वादी कल्पना
जिसे फिर कोई वैज्ञानिक तबतक प्रतिस्थापित करते रहेगा
जबतक कोई महात्मा महावीर सा कैवल्य ज्ञानी ना होगा !
- विनय कुमार विनायक,
दुमका, झारखंड-814101
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