नई कविता में मुक्तिबोध का स्थान नई कविता और मुक्तिबोध मुक्तिबोध के काव्य की आधारशिला आत्म संघर्ष की अभिव्यक्ति मुक्तिबोध पर मार्क्सवाद का प्रभाव कहान
नई कविता में मुक्तिबोध का स्थान नई कविता और मुक्तिबोध
नई कविता मुक्तिबोध हिंदी कविता - मुक्तिबोध ने सन १९३५ में छायावाद के युग में कविता करना आरम्भ कर दिया था ,तथापि उनकी ख्याति उस समय हुई ,जब हिंदी में प्रयोगवाद का प्रदर्शन हो रहा था। अज्ञेय द्वारा सम्पादित तार सप्तक में प्रकाशित रचनाओं के द्वारा हिंदी संसार ने मुक्तिबोध को प्रगति एवं प्रयोग के कवि के रूप में जाना।
आज हिंदी में जो कविता धारा चल रही है ,यह नयी कविता के नाम से जानी जाती है। इसका बीजारोपण सन १९४० में हुआ था। सन १९५४ में उसका एक निश्चित रूप सामने आया तथा सन १९६० में वह एक विकसित रूप ग्रहण करके अपने पथ पर अग्रसर है। नयी कविता किस रूप में प्रयोगवाद के प्रति ऋणी है ,यह एक विवादास्पद प्रश्न है। हम तो केवल यह देखना चाहते हैं कि नयी कविता की मान्य प्रवृत्तियां मुक्तिबोध की कविता में किस रूप में तथा किस सीमा तक परिलक्षित होती हैं। मुक्तिबोध ने हिंदी कविता में नए वस्तु का तथा नयी कथ्य शैली का प्रयोग किया है। नए काव्य की सामाजिक तथा तार्किक पृष्ठभूमि को निर्मित किया। नयी कविता के काव्यशास्त्र और नए ललित बोध के सौंदर्यशास्त्र का प्रारम्भ मुक्तिबोध से होता है।
मुक्तिबोध के काव्य की आधारशिला
मुक्तिबोध के काव्य में हमको जिस आत्म संघर्ष की अभिव्यक्ति मिलती है ,वह वस्तुतः नयी कविता की आधारशीला है। यह आत्मसंघर्ष वस्तुतः ही नए मानव की कहानी है। मुक्तिबोध के काव्य में हमको आत्म चेतन एवं सामंजस्य दिखाई देता है। यही वस्तुतः नयी कविता के मानववाद का द्वार है। मुक्तिबोध का काव्य में शिल्प की नवीन पद्धतियों का श्रीगणेश की चर्चा हम अभी अभी कर चुके हैं। अतः यह निर्विवाद है कि मुक्तिबोध नयी कविता के कवि हैं।
तार सप्तक में मुक्तिबोध हमारे सामने समाजवादी यथार्थ के कवि के रूप में आते हैं। उनके काव्य में जिस विश्व शान्ति ,निम्न मध्यम वर्ग के प्रति सहानुभूति एवं पूँजीवादी समाज के प्रति आक्रोश का स्वर मुखरित पाते हैं। वह परवर्ती कवियों में सुनने को मिलता है। इस प्रकार मुक्तिबोध को यदि सामाजिक यथार्थवादी काव्यधारा का प्रवर्तक मान लिया जाए तो अनुपयुक्त नहीं होगा।
कई नए कवियों में काव्य की जिस बौद्धिक शैली के दर्शन होते हैं ,वह भी किसी न किसी रूप में मुक्तिबोध में पायी जाती है। श्री अशोक वाजपेयी के शब्दों में - यह आकस्मिक नहीं है कि आज के महत्वपूर्ण युवा कवि रघुवीर सहाय और श्रीकांत वर्मा दोनों ने अपने ढंग से तुर्की व्यक्तिवादी नापों ,चमत्कारी संयोगों आदि का जो इस्तेमाल किया है ,इसका उद्गम कहीं कहीं न मुक्तिबोध में हैं। मुक्तिबोध की बौद्धिकता का एक उदाहरण देखिये -
हे रहस्यमय, ध्वंस-महाप्रभु, जो जीवन के तेज सनातन,
तेरे अग्निकणों से जीवन, तीक्ष्ण बाण से नूतन सृजन
हम घुटने पर, नाश-देवता ! बैठ तुझे करते हैं वंदन
मेरे सर पर एक पैर रख नाप तीन जग तू असीम बन ।
अतिशय बौद्धिकता एवं युगीन जीवन का चित्रण के बीज बिंदु मुक्तिबोध की कविताओं में खोज सकते हैं। मुक्तिबोध के काव्य में बौद्धिक तंतुओं का ताना - बाना देखा जा सकता है। कवि वास्तव में चिन्तक ,विचारक के रूप में प्रतिस्थापित है तो बौद्धिकता के बल पर ही। दूसरी विशेषता के रूप में मुक्तिबोधीय काव्य में अपने युग के सामाजिक जीवन की विद्रूपता ,असंगति ,मानव मूल्यों के हास्र ,यंत्र युग के कारण उद्भूत वर्ग संघर्ष की स्पष्ट ध्वनि मुखरित हुई है। तब नयी कविता के क्षेत्र में मुक्तिबोध के द्वारा किये गए प्रारम्भ के लिए हमें उसका ऋण स्वीकार करना पड़ेगा। नयी कविता की एक सर्वप्रमुख विशेषता के रूप में यदि लघु मानव की प्रतिष्ठा को माना जाए तो भी मुक्तिबोध के काव्य में ऐसा बहुत कुछ मिल जाएगा ,जिसके आधार पर मुक्तिबोध की नयी कविता का आदि अविष्कारक कहने के लिए आधार बन सके। मुक्तिबोध के काव्य से कुछ उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि की जा सकती है -
दिल को ढोकर
वह विकृत आइना मन का सहसा टूट गया
जिसमें या तो चेहरा दिखता था बहुत बड़ा
फूला -फूला
या अकस्मात् विकलांग व छोटा छोटा सा
मुक्तिबोध पर मार्क्सवाद का प्रभाव
मुक्तिबोध कोरे भावुक ,संवेदनशील एवं सौन्दर्य का चित्रण करने वाले कलाकार नहीं है ,अपितु अपनी बुद्धि के सहारे चलने वाले ,तर्क पर आधारित जीवन यथार्थ को स्वीकार करने वाले साहित्यकार हैं। अनेक वैचारिक चिंतन जगत पर मार्क्सवाद का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। उन्होंने अपने युग के मानव जीवन की ध्वस्त अवस्थाओं ,हास्रग्रस्त सभ्यता की समस्या को गहराई के साथ देखा परखा है। उनकी सभी रचनाओं में इसीलिए जीवन का व्यापक अनुभव ,रचनात्मक चिंतन एवं गंभीर सौन्दर्यनुभूति का निखार देखने को मिलता है। इसीलिए उनके चिन्तक एवं वैचारिक रूप को देखकर उन पर मार्क्सवाद के प्रभाव को स्वीकार किया जा सकता है। यह आवश्यक है कि वे मार्क्सवाद से प्रतिबद्ध होते हुए भी अपने काव्य में कहीं इसका आग्रह प्रकट नहीं होने देते है। उन्होंने जीवन में सुन्दरता की अपेक्षा असुंदर और कुरूप को अधिक देखा। इनका मुख्य कारण इनके जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियां थी ,यद्यपि कुछ आलोचकों का कहना यह है कि इस प्रकार मुक्तिबोध का काव्य नूतन परिवेश में प्रकट हुआ है। यह नूतन परिवेश समाज का परिवेश था।
मुक्तिबोध की कविता में हमको नयी कविता का पूर्ण प्रतिनिधित्व उपलब्ध होता है। मुक्तिबोध की कविता में मन्त्र कर्म की बौद्धिक संस्कृति के प्रतिक मानव के दर्शन किये जा सकते हैं। मुक्तिबोध ने नयी कविता को अपने मार्ग पर आगे बढ़ाने के लिए ठोस आधार प्रदान किये। अन्य कवियों पर मुक्तिबोध का व्यापक प्रभाव देखकर नयी कविता में उनके प्रदेय को सहज ही आँका जा सकता है।
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