टूटते रिश्ते हिंदी कहानी अच्छे रिश्ते निभाने के लिए वादे और शर्तों की जरूरत नहीं होती, बस दो लोग चाहिए एक निभा सके और दूसरा उसको समझ सके
टूटते रिश्ते
बात यहाँ से शुरु होती है, जब एक बीज बढ़ते क्रम में कभी आवाज नहीं करता है। मगर जब एक पेड़ गिरता है तो जोर का शोर करता है। यह मानने में हर्ज नहीं कि विनाश में शोर और सृजन में मौन ही समृद्धि पाता है। ऐसे में वही व्यक्ति या परिवार सच्ची सुख का अनुभव करता है, जो हर्ष के साथ शोक और प्रकाश संग छाया को समझने का समझ रखता हो।
आप को ज्ञात है, इंसान जब किसी के धर जन्म लेता है तो जन्म के समय बाँटने वाली मिठाई से शुरुआत हुई, जिन्दगी का यह अद्भूत खेल श्राद्ध की जलेबी और बंुदियों पर आकर समाप्त हो जाती है। या यूँ कहें, यही जीवन की असली खटास-मिठास है। यह बड़ी बात समझने की है। बंदा इन दोनों अवसरों पर ये दोनों चीजें खा नहीं पाता। जरा सोचिए जिन्दगी भी क्या चीज है ? आकर नहाया और नहाकर चल दिया।
आज भाग-दौड़ की जिंदगी के सफर में दिखता है कि कुछ अनजाने लोग अपने हो जा रहे हैं और कुछ अपने अनजाने हो रहे हैं। ऋण लेने जैसा है। समाज या परिवार के बीच संबंध स्थापित करना। यह बहुत आसान है ऋण लेने जैसा! लेकिन इस संबंध को निभाना बहुत कठिन है किश्तें भरने जैसा। क्या बतलाया जाय ? टूटता समाज, बिखरता परिवार और ‘‘दम तोड़ते रिश्ते ने चिंता और चिन्तन का विषय बना डाला है। इस विषय पर चाय पर चर्चा के लिए’’ शिक्षितों के पास समय नहीं। सामान्य वर्ग को जरूरत नहीं और अनपढ़ों को समझ नहीं। नवजवानों की सोच ने क्या जादू किया कि संयुक्त परिवार को रिजेक्ट कर खुद को एकाकी परिवार को सिलेक्ट कर लिया?
बताते चलें! बड़ी आशा और विश्वास के साथ माँ-बाप बच्चों का पालन-पोषण करते हैं कि बुढ़ापे में इनसे मदद मिलेगा पर अफसोस! मदद क्या मिलेगा ? उल्टे अपमान का घूँट पी-पीकर बुढ़ापा काटने पर विवश है। परिवार बिखरने का यह भी एक बड़ा कारण सामने आ रहा है, माँ-बाप आजकल जरूरत से ज्यादा बेटियों के धर में हस्तक्षेप करके उसका खुशहाल परिवार खराब कर दे रहे हैं, जबकि माँ-बाप को बेटियों को समझाना चाहिए कि शादी के बाद उसकी असली माँ-बाप खुद उसके सास-ससुर ही होते हैं।
यह उम्मीद भी बड़ी मस्त-मस्त चीज है, न जिने देती और न मरने देती। इसी उम्मीद पर एक तोता सेमल का लाल और कोमल फूल देखा। आश लगाए इस उम्मीद में बैठा रहा कि जिसका फूल इतना सुन्दर है तो उसका फल अवश्य ही मीठा होगा ? पर अफसोस फल पकने पर उसके अन्दर रूई निकलता है, जो तोते की उम्मीद को चुर-चुर कर देता है। ठीक उसी तरह नव युवा दम्पत्ति अपने सास-ससुर को निराश करते जा रहे हैं।
निराशा का दौर चाहे शहर हो या गांव दोनों को सामान्य रूप से प्रभावित कर रहा है। गांव के जियालाल ने कठिन परिश्रम और तपस्या कर अपने इकलौते पुत्र राजलाल को उच्च शिक्षा दिलाई थी। उसकी तेजस्विता को देख एक विदेशी कम्पनी ने अपने यहाँ उसे नौकरी दे दी। कुछ वर्षों बाद उसकी शादी हो गई, विदेश में पत्नी संग रहने लगा।
इधर अकेला पड़ गये थे जियालाल। बहु-बेटे के विदेश चले जाने के बाद। पंद्रह वर्ष की आयु में राजलाल की माँ स्वर्ग सिधार चुकी थी। उसके बाद काका ही राजलाल को सम्भाले, पर अफसोस इस बात का है कि दिया हुआ पिता का स्नेह और प्यार को पुत्र लौटा न सका।
पूर्व की मानें तो पड़ोसी झामलाल और जियालाल के बीच बराबर तनाव रहा करता था, लेकिन आज वही झामलाल, जियालाल का सहारा बन चुका है। आप रोज लड़ो और चाहे खूब झगड़ों पर पड़ोसी से तनाव मत रखो, क्योंकि उन पत्तों की कोई कीमत नहीं होती, जो पेड़ से अलग होकर गिर जाते हैं। ठीक उसी तरह से पड़ोसी से दूर भागने वाले का कोई मोल नहीं रहता।
जियालाल समय की नजाकत को समझते हुए पड़ोसी झामलाल के परिवार के साथ मिल-जुलकर रहना ही बेहतर समझ, रहने लगे। वहीं खुद के बहु-बेटा को भूलने लगे।
कई वर्षों बाद एक फोन कॉल आता है राजलाल का। हैलो डैड। मजे में हो।
आनंद में हूँ! बेटा, जियालाल ने कहा।
डैड मैं कुछ समझा नहीं! दोनों में क्या फर्क है। बेटे! मजे के लिए रूपये चाहिए, वो मेरे पास है नहीं और आनंद के लिए अपना परिवार व मित्र का होना जरूरी है। जो मेरे पास अपना परिवार न सही झामलाल जैसा पड़ोसी मित्र है। मित्र की मित्रता ने मुझे आनंद से जीवन जीना आसान कर रखा है। याद रखना जिन्दगी एक पुस्तक की तरह है, उसके अगले पन्ने पर क्या होगा ? ये हमें पता नहीं और उसके पिछले पन्ने को बदल तो नहीं सकते पर केवल उसे पढ़ सकते हैं। याद रखना जीवन में साझेदारी करना तो किसी के दर्द की क्योंकि खुशयिों के तो दावेदार बहुत हैं, जीवन पर्यंत बस एक ही सबक याद रखना ‘‘दोस्ती और दुआ’’ में बस नियत साफ रखना। इन बारिश की बूंदों से भी सीख लेना ‘‘वरना’’ कौन गिरता है ? इस जमीं पे आसमान तक पहुँचने के बाद। हमें खुद से बेहतर कोई दूसरा तराश नहीं सकता।
अब क्या बतलाऊँ! विदेश जाने के बाद तुम लोगों ने मुझसे बात करना भी मुनासिब समझा नहीं।
फिर क्या था ? मरता क्या नहीं करता ? जिस झामलाल से तुम्हारी एक गलती के लिए वार्तालाप बन्द किया था वही आज हमारे लिए जीने का सहारा बन चुका है जिसके चलते आनंद में हूँ।
हमें जो बातें शिक्षक और विश्वविद्यालय नहीं सीखा पाते, वह खाली जेब और खाली पेट सीखा देती है। ये नौकरी भी बड़ी अजीब चीज है, जो घर-परिवार की तरफ देखने ही नहीं देती। राजलाल ने बोलते-बोलते डैड को एक सुझाव दिया ‘‘आप ओल्ड एज होम’’ में क्यों नहीं चले जाते हो ? रौशनी भी यही चाहती है कि डैड को समझाओ कि वो ओल्ड एज होम घर से शिफ्ट कर जायें।
जियालाल ने कहा! हाँ बेटा तुमने ठीक सुझाव दिया, इस दिन के लिए! हमने दिन की रौशनी ख्वाबों को संवारने में गुजार दी और रात की नींद तुम्हारी माँ ने तुझे सुलाने में गुजार दी, और क्या बताऊँ जिस घर को सजाने में सारी उम्र गुजार दी उस घर में मेरे नाम की एक बोर्ड तक तुमने लगाई नहीं।
तभी रौशनी! राजलाल को बीच में टोकते हुए कही तुम किस सोच में पड़ गये, तुम्हारे डैड ऑफ रोड हो चुके हैं। हमारे तुम्हारे लिए वह बोझ हो चुके हैं। इस बोझ को ढोना मेरे बस की बात नहीं है। रौशनी की भाषा आधुनिक शिक्षा का जीता जागता प्रमाण है, आज शिक्षण संस्थानों में ‘‘हैलो-हाय’’ की शिक्षा दी जा रही है, संस्कार की नहीं।
अब तो शादी-ब्याह में रिश्ते नहीं सौदे होते हैं, इतनी हिम्मत शेष नहीं बची है किसी माँ-बाप में कि खुद बच्चों का रिश्ता अपनी मर्जी से तय कर दें। पहले शादी संबंध खानदान, सामाजिक पकड़ और पारिवारिक संस्कार देख कर तय किये जाते थे, पर अब तन की खूबसूरती, दौलत और नौकरी-पेशा वाला लड़का चाहिए, ताकि बेटी को काम करना न पड़े। इनके लिए पति-पत्नी और खुद के बच्चे ही परिवार माने जाने लगे हैं। जिसकी कल्पना इतनी छोटी हो तो समाज की कल्पना की उम्मीद इन से क्या करना? आज हर माँ-बाप की पहली पसंद बेटी के लिए लड़का नौकरी वाला ही चाहिए व्यावसायिक नहीं, नौकरी के नाम पर घर में पूरी छूट है। न काम का बोझ और न बूढ़े माँ-बाप को ढोने का बोझ। अवकाश के दिन शहर की भ्रमण और होटल से पार्सल खाना का आनंद उठाना। ऐसे लोगों का संबंध समाज से कम ही होता है और समाज का डर भी उन्हें सताता नहीं। पूर्व की मानें तो संबंध बनाते समय बेटी की गुण-गान पिता करते अघाते नहीं थे। मेरी बेटी घर के सारे काम-काज करती है और अब बेटी को घर के सारे काम-काज से अलग ही रखते हैं। यह कहने में शान समझा जाने लगा है, परिणाम ससुराल में जाते ही कलह की शुरुआत हो जाती है। मेरे पिता ने लाखों रुपये दहेज में घर के काम थोड़े ही करने के लिए दी है।
वहीं बेटे वाले कहते चलते हैं, बेटे को सैकड़ों रिश्ते आ रहे हैं, लेकिन रिश्ते तय नहीं हो रहे हैं। ऐसे लोगों को रिश्ते के नाम पर मालदार रिश्ते की तलाश रहती है। आज पशु मेले की तरह इंसानों की शादी-ब्याह की रिश्तों का बाजार सजा है। मालदार रिश्तों के चक्कर में बेटे का आयु सीमा तीस-पैंतीस पार कर चुका होता है। समाज कहाँ जा रहा है। यह बुद्धिजीवियों के लिए चिन्ता और चिन्तन का विषय बनता जा रहा है। यही नहीं अब तो तलाकशुदा, विधवा और विधुर ग्रुप बनाए बनाए जा रहे हैं। अच्छे और मालदार रिश्ते की तलाश में सब अधेड़ होते जा रहे हैं। इस अजीब तमाशा को बुद्धिजीवी काले चश्मा पहन चुप्पी साधे बैठे हुए हैं। हाँ! मेन्स पार्लर और ब्युटि पार्लरों की कमाई अधेड़ उम्र के लोगों ने बढ़ दी है। रंग-रोगन करा कर। नई पीढ़ी को कौन समझाए कि एक उम्र में जो चेहरे में चमक दीखती है वह अधेड़ होने पर मुर्झा जाती है। मनोरंजन का साधन घर का काम होता था, टी. वी. नहीं। यही कारण था कि फालतू की बातें मन में नहीं उतरती। फलस्वरूप, न फाँसी और न ही तलाक की बात होती थी।आज घंटों मोबाईल पर बातें, टी. वी. सीरियल देखने और बाकी बचे समय में ब्युटि पार्लर में समय गुजारने के पश्चात् भी बहू बोलती है घर के काम से फुर्सत नहीं मिलती है।
नौजवान लड़के-लड़कियों को मालदार रिश्ते को प्रोत्साहन देने के बजाए समय पर शादी रचानी चाहिए। परिवार के छोटे-बड़ों को बराबर सम्मान देना और खुद के व्यवहार में सहनशीलता रखना होगा। जब परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा हो तो इस बात का ख्याल रहे, अभाव में स्वभाव न बिगडे़। संयुक्त परिवार कुछ को संभालने और कुछ से संभल कर चलने से ही रिश्ते बने रहते हैं।
यहाँ यह भी सत्य है कि रिश्ते और पौधे दोनों एक जैसे होते हैं, लगाकर भूल जाओ तो दोनों सुख जाते हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव से घबराओ नहीं और न आत्मघात का सहारा लो, गंभीर विषयों पर सोचो-समझो तब पैफसला लो। परिवार के बड़े-बुजुर्गों के सम्पर्क में रहो। उनके अनुभव का लाभ उठाओ।यह कड़ुआ सच्च है, संतान की परवरिश किसी साधना से कम नहीं और माता-पिता की सेवा किसी आराधना से कम नहीं।
इधर राजलाल की विदेशी कम्पनी बंद होती है और वह वतन वापस लौटता है। इधर जियालाल अपनी अर्जित सम्पत्ति को झामलाल के नाम कर देता है। यकीन तो सब झूठ पर ही करते हैं, सच तो जियालाल ने साबित कर दिखाया। दम तोड़ने से पूर्व जियालाल ने झामलाल को पास बुलाकर कहा। राजलाल को समझाना ‘‘बेटा सम्भालना पड़ता है।‘‘टूटते रिश्ते’’ वर्ना अच्छे रिश्ते निभाने के लिए वादे और शर्तों की जरूरत नहीं होती, बस दो लोग चाहिए एक निभा सके और दूसरा उसको समझ सके।
- अशोक कुमार सिंह
यादव सदन, धनेश्वरी नगर, सगुना मोड़ पश्चिम
दानापुर कैण्ट, पटना-801503
मो.: 9931709838
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