वर दे वीणावादिनी वर दे कविता का भावार्थ सारांश प्रश्न उत्तर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला saraswati mata ssaraswati vandana Var De Veena Vadini Var De Sur
वर दे वीणावादिनी वर दे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
वर दे वीणावादिनी वर दे वर दे वीणावादिनी वर दे की व्याख्या वर दे वीणावादिनी वर दे सारांश वर दे वीणावादिनी वर दे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला saraswati mata saraswati vandana Var De Veena Vadini Var De Surya Kant Tripathi Nirala Ki Rachna वर दे वीणावादिनी वर दे कविता का अर्थ
वर दे वीणावादिनी वर दे कविता का भावार्थ व्याख्या
वर दे, वीणावादिनि वर दे!
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे!
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे!
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे!
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
व्याख्या - कवि निराला जी माँ सरस्वती जी के प्रति एक आस्थावान समर्पित साधक है। माँ सरस्वती को संबोधित करते हुए ,निश्चल भाव से वह कहते हैं कि माँ ! तुमने बहुतों को वरदान देकर पूर्ण काम किया है ,महान बनाया है ,मुझे भी वरदान देकर कृतार्थ करो। देशवासियों को स्वतंत्रता प्रिय प्रतीत होने लगे। वे प्रिय मन्त्र के रूप में इसे बार बार दुहराने लगे। हमारे देश के लोग विदेशी शासन से वे मुक्त होने की कामना करें। सामाजिक व्यक्ति होने के कारण समय के सन्दर्भ में मेरा भी राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। मैं साहित्य साधक हूँ ,कवि हूँ। मेरे अंतकरण से जो वाणी फूटे उसमें स्वतंत्रता की चेतना का तीव्र स्वर हो। कवि की वाणी ही जागरण का सन्देश देती है। अपने स्वर से अमरत्व का मन्त्र प्रदान करती है। अमर जीवन पाकर लोग चिंतामुक्त हो जाते हैं और पूर्ण त्याग और बलिदान के लिए उत्सुक और प्रस्तुत देखे जाते हैं। मैं चाहता हूँ कि जीवन के अमरत्व का सन्देश देनें वाली मेरी वाणी सम्पूर्ण देश ,समाज और जाति में गूँज उठे और लोग स्वतंत्रता की दिव्यता और महत्ता को समझने लगे।
माँ ! मेरी वाणी में वह शक्ति पैदा करो कि देशवासियों के मन और ह्रदय से अज्ञान और दासता का असामयिक बंधन नष्ट हो जाए और लोगों के अन्तकरण में ज्ञान और स्वाधीनता का अजस्र स्त्रोत प्रवाहित हो उठे ,जीवन एक नवीन आलोक से प्रकाशित हो उठे। लोगों के मन से पाप ,द्वन्द और कुसंस्कार का भाव वैसे ही नष्ट हो जाए जैसे अन्धकार नष्ट हो जाता है। लोगों को समानता और मानवता का नया प्रकाश प्राप्त हो। सारा देश जागरण के नवीन प्रकाश से युक्त हो जाए। देश की सम्पूर्ण जनता ज्ञान और स्वतंत्रता की भव्य भावना से जगमगा उठे। समय को ध्यान में रखकर कवि जब समकालीन सामाजिक समस्याओं पर विचार करता है तो भावों एवं विचारों के प्रभाव से नयी शक्ति लेकर नयी वाणी फूटती है और समाज नयी चेतना प्राप्त पर संघर्ष के लिए सन्नद्ध ,विकास के लिए अग्रसर होता है। कवि इस विशिष्ट विचार से प्रभावित होने के कारण प्रार्थना करता है कि माँ सरस्वती उसे आशीर्वाद दे कि उसके काव्य में रंचमात्र भी परम्परा के प्रति ,किसी भी स्तर पर मोह न हो। उसकी कविता गति,लय ,ताल और छंद की दृष्टि से नवीन हो। कवि चाहता है कि परिवर्तन के लिए युवक ,कवि सामने आये। उनके स्वर में प्राण शक्तियां उसी प्रकार स्थिर हों जिस प्रकार से नए बादल की गंभीर गर्जन में अनुगूँज की शक्ति निहित होती है। कविओं की कल्पना और भावना का काव्य जगत भी नए जीवन दर्शन से प्रवाहित हो। उनका स्वर नयी चेतना से युक्त हो। कवि की कामना है कि देश के युवा वर्ग को नए प्रभाव से युक्त उत्साहवर्धक नया काव्य ,जन जीवन को नयी गति ,नया मार्ग और प्रगति की नयी दिशा प्राप्त हो सके।
वर दे वीणावादिनी वर दे सारांश मूल भाव
निराला भारत और भारतीयता के नव निर्माण के पुजारी रहे हैं तथा साथ ही माता सरस्वती के प्रति आस्थावान एक समर्पित साधक भी है। युगांतकारी कवि के रूप में प्रस्तुत गीत में उन्होंने भारतीयों के मन में स्वतंत्रता के नए बहाव भर देने की प्रार्थना देवी सरस्वती से की है। कवि भारतीयों को प्राचीन परम्पराओं एवं रुधिओं से मुक्त करके ,ज्ञानवान तथा नए रूप में देखना चाहता है। कवि माता सरस्वती से इस पाप - ताप पूर्ण जगती से नवशक्ति ,नव प्रेरणा ,नव गीत तथा नवानुभुती का संचार करने की आराधना करता है। वह माता सरस्वती से एक ऐसे संसार का निर्माण करने के लिए कहता है ,जहाँ दुःख ,जड़ता ,पाप तथा अज्ञान का नाम न रहे। कवि कहता है कि आज देश पराधीनता के रेशमी बंधन में बंधा हुआ है।
देशवासियों के ह्रदय में दासता की एक नहीं ,अनेक तहें जम गयी है। उनसे मुक्त होकर पवित्रता ,एकता और ज्ञान का आलोक भर दो। वह चाहता है कि उसकी वाणी में ऐसी शक्ति उत्पन्न हो जाए कि देशवासियों के मन और ह्रदय से अज्ञान और दासता का सामायिक बंधन नष्ट हो जाए और लोगों के ह्रदय से अज्ञान और स्वाधीनता का ज्योति निर्भर प्रवाहित हो उठे और जीवन के नवीन आभा से ज्योतित हो उठे। लोगों के मन - प्राण से ईर्ष्या द्वेष का भाव उसी प्रकार नष्ट हो जाए ,जिस प्रकार अन्धकार नष्ट हो जाता है। देशवासियों को समानता और मानवता का अभिनव आलोक प्राप्त हो। सारा देश नवजागरण के नवीन प्रकाश से जगमगा उठे। देश में स्थिलता और जड़ता व्याप्त है। अतः उसे नवीन लय ,नवीन ताल ,नवीन छंद और नयी गति उपलब्ध हो। हे माँ ! तुम्हारी दया से सारा देश स्वतंत्रता के नवीन राग से गुंजित हो उठे। तुम भारतीय नवयुवकों को ऐसी मेघ गंभीर वाणी दो कि वे इस राग को नवीन आकाश में ,नवीन पंखों और नवीन स्वर वाले पक्षियों की तरह गा उठे। इस प्रकार कवि माता सरस्वती से सर्वप्रथम अज्ञान रूपी अन्धकार के बंधन से मुक्त होने के लिए प्रार्थना करते हुए नवीन दृष्टिकोण देने की याचना करता है।
वर दे वीणावादिनी कविता के प्रश्न उत्तर
प्र. कवि ने प्रस्तुत कविता में नव शब्द की आवृत्ति कई बार क्यों की है ?
उ. नव शब्द की आवृत्ति द्वारा कवि आकांक्षा की तीव्रता को व्यक्त करता है। वह आंशिक परिवर्तन न चाह कर समग्र परिवर्तन चाहता है। वह मानता है कि समग्र परिवर्तन ही चतुर्दिक विकास का सच्चा स्वरुप है। परंपरा से मुक्त होने के लिए नवीनता के प्रति उसका विशेष आग्रह है। वह प्रत्येक क्षेत्र में नवीनता के दर्शन करना चाहता है। अतः अपनी भावनाओं तथा आकांक्षाओं को प्रबल तथा प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करने के लिए कवि नव शब्द की बार - बार आवृत्ति करता है।
प्र. कलुष भेद तम पद से कवि क्या कहना चाहता है ?
उ. कवि कहता है कि अज्ञान के कारण भारतीयों के ह्रदय में दासता की एक नहीं ,अनेक परतें जम गयी है। जिसके कारण स्वतंत्र भावों तथा विचारों को पनपने में बाधा पड़ रही है। साथ ही उनके ह्रदय में मलिनता ,ईर्ष्या ,द्वेष और जड़ता के अन्धकार का साम्राज्य है। अतः हे माँ ! इस दासता के सुनहले बंधन काटकर ,उनके ह्रदय में ज्ञानरुपी प्रकाश की धारा प्रवाहित कर दो। भारतीयों के ह्रदय से पाप ,द्वन्द एवं अन्धकाररूपी दूषित भाव समाप्त हो जाए तथा उनके बदले पवित्रता ,एकता और ज्ञान का आलोक उद्भाषित हो जाए ,जिससे सम्पूर्ण विश्व दीप्तिमान हो जाए।
प्र. विहग वृन्द किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और क्यों ?
उ. विहग वृन्द का प्रयोग देश के नवयुवक तथा कवियों के लिए हुआ है। कवि का नवीनता के प्रति आग्रह है। वह वीणावादिनी से आग्रह करता हुआ कहता है कि देश के नवयुवक तथा कवियों में जो गतिहीनता आ गयी है ,उसे दूर कर उन्हें नए भावरूपी पंख दे ताकि वे देश के नए काव्य आकाश में ,उत्साह एवं नवजीबन से ओतप्रोत परिवेश में उत्साह और स्वर विधान के साथ ,उन्मुक्त उड़ान भर सके।
प्र. वर दे वीणावादिनी कविता में भारत के लिए क्या वरदान माँगा गया है ?
उ. कविता में कवि निराला जी ने भारत के लिए माता सरस्वती से वरदान माँगा है कि तुम नयी चेतना देकर कलंक कालिमा और वैचारिक कलुषता को समाप्त कर दो ताकि नए प्रकाश को पाकर सम्पूर्ण जन जीवन नए प्रगति सौन्दर्य से जगमगा उठे। नयी शक्ति से नयी कविता अनुप्रमाणित हो। उसके सारे अव्यय नवीनता से युक्त हों। राजनितिक या अन्यान्य स्वतंत्रता के मूल में साहित्यिक स्वतंत्रता ,जिसमें ह्रदय और मष्तिष्क समान रूप से मुक्त होते हैं ,प्रधान हुआ करती है। और इसी पर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की स्वतंत्रता ,मुक्ति और प्रगति आश्रित हुआ करती है। कवि की इस अपरमित शक्ति को वह व्यक्ति का निजी अर्जन नहीं मानता है ,बल्कि उसे देवी वरदान या आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करता है।
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