अकेली मन्नू भंडारी की कहानी अकेली कहानी का सारांश अकेली कहानी की समीक्षा अकेली कहानी का उद्देश्य अकेली मन्नू भंडारी की कहानी manu bhandari सोमा बुआ
अकेली मन्नू भंडारी की कहानी
अकेली कहानी का सारांश अकेली कहानी की समीक्षा अकेली कहानी का उद्देश्य अकेली मन्नू भंडारी की कहानी manu bhandari
अकेली कहानी का सारांश
अकेली कहानी मन्नू भंडारी की बहुचर्चित एवं मनोवैज्ञानिक कहानी है। इस कहानी की नायिका सोमा बुआ परित्यक्त ,अकेली एवं बूढ़ी है। उनके जवान बेटे की मृत्यु हो चुकी है तथा पुत्र वियोग से बेचैन हो उसका पति घर छोड़कर ग्यारह महीने हरिद्वार रहता है तथा साल में एक महीने के लिए घर पर आता है। जैसे ही उसका पति घर पर आता है ,वह सोमा बुआ पर अधिकार जमाने लगता है तथा उसके आने जाने किसी से मिलने जुलने पर पाबंदी लगा देता है. ऐसे में सोमा बुआ का जीवन पति की उपस्थिति में तनाव के बीच ही व्यतीत होता है। सोमा बुआ पति के होते हुए भी उसके वियोग में विधवा - सा जीवन ग्यारह मास तक व्यतीत करती है। इस बीच उसका अन्य कोई रिश्तेदार न होने के कारण वह आस - पड़ोस के लोगों द्वारा ही अपने एकाकीपन को दूर करने का प्रयास करती है। इसी प्रकार नीरसता के साथ उनके आज बीस वर्ष बीत चुके हैं।
राधा भाभी सोमा बुआ को हौसला देती है। सोमा बुआ के दुखी होने का मूल कारण यह है कि उनके पति ग्यारह महीने तक हरिद्वार में रहते हैं और जब एक महीने के लिए आते हैं तो उससे बहस करने लगते हैं। वे स्वयं तो भगवान का नाम लेकर यश कमाते रहते हैं और उसके जीवन में दुःख की वर्षा करते जाते हैं। राधा से बातचीत के दौरान ही वह अपने बेटे हरखू को याद करने लगती है। एक सप्ताह बीत जाने के पश्चात सोमा बुआ अपने पति से कहती है कि देवर के समधी की किसी बेटी का विवाह उनके पड़ोस के भागीरथ के यहाँ निश्चित हुआ है इसीलिए वे सभी लोग विवाह करने के लिए यही गाँव में आ रहे हैं। उसका सोचना है कि देवरजी से चाहे हमारा सम्बन्ध टूट चुका है लेकिन वे समधी हमें विवाह में जरुर बुलाएँगे। यह बात उसके पति को पसंद नहीं आती है लेकिन सोमा बुआ की उत्सुकता नित्य प्रति बढ़ने लगी।
राधा से बात करते हुए सोमा बुआ एक दिन कहती हैं कि देवर के साथ हमारे समबन्ध बहुत पहले छूट गए थे इसीलिए पता नहीं वे समधी हमें बुलाएँगे की नहीं। इस पर राधा कहती है कि समधी से कोई सम्बन्ध तोड़ता थोड़े ही है इसीलिए तुम्हे वे अवश्य बुलाएँगे। तभी सोमा बुआ की विधवा ननद से पता चलता है कि उसके समधी उन्हें भी विवाह में सम्मिलित करने का मन बना रहे हैं। यह सुनकर सोमा बुआ को चिंता सताने लगती है कि वह शादी में क्या पहने और उपहार में उन्हें क्या दे। इस सम्बन्ध में राधा से सलाह लेती है। वह तभी अन्दर जाकर अपने मृत बेटे की अंतिम निशानी अंगूठी निकालकर लाती है और पच्चीस वर्षों से टूटे संबंधों को पुनः जोड़ने के लिए उस अंगूठी को बेचने के लिए तत्पर हो जाती है। वह अंगूठी राधा को बेचने के लिए देती है और स्वयं लाल -हरी काँच की चूड़ियाँ खरीद लाती है।
शाम को राधा भाभी आकर बुआ को एक सिंदूरदानी ,एक साड़ी और एक ब्लाउज का कपड़ा लाकर देती है। यह देखकर सोमा बुआ प्रसन्न होती है कि एक तो उसका अब एकाकीपन दूर हो सकेगा। दूसरा बिरादरी में इज्जत भी रह जायेगी। यह सोच अंगूठी बेचने का गम भी वह भुला देती है। साथ ही उसने अपनी सफ़ेद साड़ी को पीला करवाया। आखिर विवाह का दिन आया और उसने सुबह नौ बजे तक खाना तैयार कर लिया था। वह राधा को बताती है कि लग्न का समय शाम पाँच बजे का है और आजकल फैशन वाले लोग समय से थोड़ा पहले ही सबको बुलाते हैं। बुआ शादी में सम्मिलित होने की तैयारी करने लगती है। वह एक थाली में साडी ,सिंदूरदानी ,एक नारियल और थोड़े से बताशे सजाती है। यह सब उसका पति देख रहा था तथा वह कई बार कह चुका था कि यदि वे बुलाने न आएँ तो वहाँ जाना नहीं। सोमा बुआ भी विश्वास के साथ कहती है कि वे जरुर बुलाएँगे और बिन बुलाये वह न जायेगी। जैसे जैसे समय बढ़ता जाता है उसकी उत्सुकता भी बढ़ती जाती है। उसकी नज़र बराबर दरवाजे पर लगी रहती है। तभी समय गुजरता जाता है ,सात बज जाते हैं लेकिन कोई बुलावा नहीं आता। सोमा बुआ अंततः निराश हो बुझे दिल से अंगीठी जलाने लगती है।
सोमा बुआ का चरित्र चित्रण
मन्नू भंडारी द्वारा रचित अकेली कहानी की नायिका सोमा बुआ है जिसके इर्द - गिर्द समस्त घटनाक्रम घूमता है। उसके एकमात्र पुत्र का निधन हो चुका है तथा पुत्र वियोग के कारण उनका पति अधिकतर तीर्थ स्थलों में ही रहता है। वह बीस वर्षों से अकेले जीवन जी रही है। उनके पति जीवित होने के बाद भी वे विधवा सा जीवन जी रही है तथा उनके पति के आते ही उसका जीवन और भी अधिक पीड़ा युक्त हो जाता था। अतः सोमा बुआ अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए सामाजिक क्रियाकलापों में सक्रीय भाग लेती है। वह पड़ोसियों के यहाँ उनके कार्यों में उत्साह से भाग लेती है और दूसरों के सुख दुःख में जाना अपना कर्तव्य समझती है। पास पड़ोस में बिना बुलाये उत्सव में भाग लेने में भी संकोच नहीं करती है। इस तरह वह अपने एकाकी जीवन को जीती है। किन्तु उसके पति के घर आने पर उसके जीवन की स्वछंदधारा अवरुद्ध सी हो जाती है। इस प्रकार सोमा बुआ के चरित्र में विविध विशिष्टताएँ देखने को मिलती है जो परिस्थितिवश सृजित हुई है।
अकेली कहानी के प्रश्न उत्तर
प्र. सन्यासी जी कौन है ? परिचय दीजिये।
उ. सन्यासी जी सोमा बुआ के पति हैं। पुत्र वियोग का सदमा वे सहन न कर सके अतः तीर्थों में भ्रमण करते हुए वे अपना समय व्यतीत करते है। वर्ष में एक माह के लिए वे सोमा बुआ के पास अवश्य आते थे। लेकिन घर आते ही सोमा बुआ पर शासन चलाने लगते हैं। उसे बाहर जाने से रोका करते जिससे कि दोनों के बीच सदैव तनाव की ही स्थिति रहती है।
प्र. सन्यासी जी के आने के कारण बुआ के दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उ. सन्यासी जी और कोई नहीं सोमा बुआ का पति ही है जो पुत्र वियोग से दुखी होकर सदैव तीर्थ यात्रा करता रहता है। वह वर्ष में जब भी सोमा बुआ के पास आता उनसे बहस ही करता रहता और उस पर कई प्रकार के बंधन लगाता। सोमा बुआ अपना मन बहलाने के लिए आस -पड़ोस के कार्यों में भाग लेती लेकिन यह सब सन्यासी जी को पसंद नहीं था। अतः दोनों के बीच तनाव ही रहता था और दोनों के विवाद सदैव बढ़ जाता था जिससे सोमा बुआ का जीवन और कष्टमय हो जाता था।
प्र. सोमा बुआ का स्वभाव कैसा था ?
उ. सोमा बुआ अकेली ,परित्यक्ता एवं वृद्ध नारी हगे। उसके एकमात्र पुत्र का निधन हो चुका है तथा उसका पति भी पुत्र वियोग न सह पाने के कारण प्रायः तीर्थों में ही रहता है। वह वर्ष में एक बार सोमा के पास आता है और उसके जीवन का तनाव और अधिक बढ़ाकर चला जाता है। अतः सोमा बुआ अपने जीवन के एकाकीपन को दूर करने के लिए प्रायः सामाजिक क्रियाकलापों में सक्रीय भाग लेती रहती है।
प्र. बुआ की चिंता क्या है ?
उ. सोमा बुआ की पहली चिंता यह थी कि उसके देवर के समधी उसे विवाह में बुलाएँगे या नहीं। तथा दूसरी चिंता यह है कि उन्हें निमंत्रण भेजा तो वे तो पैसा वाले हैं इसीलिए उन्हें विवाह में अच्छी खासी वस्तु ही उपहार में देनी होगी।
उ. समधिन सोमा बुआ के देवर के ससुरालवाले हैं। अतः वे सोमा बुआ के भी समधी हुए। ससुरालवालों की किसी लड़की के विवाह का आयोजन चल रहा है।
प्र. बुआ ने किशोरीलाल के घर का सम्मान कैसे बचाया ?
उ. सोमा बुआ अकेली एवं परित्यक्ता होने के कारण अपना सारा समय आस -पड़ोस के कार्यों में लगा देती थी। उनके पड़ोस के कार्यों में लगा देती थी। उनके पड़ोस में चौकवाले किशोरीलाल के बेटे का मुंडन था जिसमें सारी बिरादरी को न्योता था। किशोरीलाल की बहुए नयी नयी थी इसीलिए सोमा बुआ उनके यहाँ पहुँच गयी और भट्टी से सारे समोसे उतारे साथ ही इतनी मात्रा में गुलाब जामुन बनाया कि दो बार खिलाने के बाद भी वे खत्म न हो। इस प्रकार उनके यहाँ जाकर सोमा बुआ ने खाना पकाने का उचित प्रबंध कर उनके सम्मान की रक्षा की।
प्र. बुआ अपने मृत बेटे की कौन सी अंतिम निशानी बेचती है और क्यों ?
उ. बुआ समधी के यहाँ जाने के लिए बहुत उत्सुक थी। इस शादी में सम्मिलित होने के लिए पैसे की कमी के कारण वह अपने मृत बेटे की अंतिम निशानी अंगूठी को बेच देते है जिससे कि एक सिन्दूरदानी ,एक साड़ी और ब्लाउज का कपड़ा मँगवाती है।
प्र. सोमा बुआ के कष्टों का वर्णन करो।
उ. सोमा बुआ बूढ़ी ,अकेली एवं परित्यक्ता नारी है। सोमा बुआ का जवान बेटा मर चुका है तथा उसका पति पुत्र वियोग के कारण प्रायः बाहर ही रहता है। इस कारण सोमा बुआ की सारी जवानी और उत्साह समाप्त हो चुका है। जीवन के प्रति कोई आकर्षण नहीं बचा है।
प्र. सोमा बुआ शादी में सम्मिलित होने के लिए क्या क्या तैयारी करती हैं ?
उ. सोमा बुआ शादी में सम्मिलित होने के लिए लाल हरी काँच की चूड़ियाँ खरीदती है। समधी के यहाँ उपहार देने के लिए मृत पुत्र की एकमात्र निशानी अँगूठी को बेचकर चाँदी की सिंदूरदानी ,एक साड़ी और ब्लायुज का कपड़ा मँगवाती है। एक थाल में वह साड़ी ,सिंदूरदानी ,एक नारियल और थोड़े से बताशे भी सजाती है।
प्र. समधी की ओर से निमंत्रण न मिलने पर सोमा बुआ के मन पर क्या गुजरती है ?
उ. सोमा बुआ के निराश जीवन में उस समय जरा सी चमक की आशा जाग जाती है जब उसे पता चलता है कि उसके देवर के समधी की बेटी की शादी इन्ही के पड़ोस में हो रही है। लेकिन जब समधी की ओर से निमंत्रण नहीं मिलता तो उसके जीवन में और अधिक निराशा आ जाती है और वह अत्यंत भार युक्त जीवन लेने लगती है। उसका ह्रदय निराश भाव से युक्त हो प्रायः रोने लगता है और वह चारों ओर अन्धकार महसूस करती है।
अकेली कहानी मन्नू भंडारी के कठिन शब्द अर्थ
परित्यक्ता - जिसे त्याग दिया गया हो।
एकाकीपन - अकेलापन
एकरसता - बोरियत
स्वच्छंद - स्वाधीन
कुंठित - धीमा पड़ा हुआ।
संबल - सहारा
शिथिल - कमजोर
बिरादरी - एक जाति के लोगों का समूह या वर्ग
मुहरत - निर्दिष्ट समय या क्षण
रेजगारी - छोटे सिक्के
Abhishek
जवाब देंहटाएं