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आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रकृति चित्रण
आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रकृति चित्रण ashad ka ek din naatak prakriti chitran - आषाढ़ का एक दिन नाटक प्रकृति सुषमा प्रधान नाटक है। कथानक का विकास प्रकृति के रमणीय अंचल में होता है। नाटक का मूल विषय है ,आषाढ़ का एक दिन। नाटककार ने प्रथम अंक के प्रारंभ में आषाढ़ का एक दिन की वर्षा का चित्र उपस्थित किया है।
'पर्दा उठने से पूर्व हल्का - हल्का मेघ - गर्जन और वर्षा का शब्द ,जो पर्दा उठने के अनंतर भी कुछ क्षण चलता रहता है। फिर धीरे - धीरे विलीन हो जाता है। कथानक का समापन भी इसी पृष्ठभूमि में होता है -
'बिजली चमकती है और मेघ गर्जन सुनाई देता है। कालिदास एक बार चारों ओर देखता है ,फिर झरोखें के पास चला जाता है। वर्षा पड़ने लगती है। वह झरोखे के पास आकर ग्रन्थ को एक बार उठाकर देखता है और रख देता है। फिर एक दृष्टि अन्दर की ओर डालकर ड्योढ़ी में चला जाता है। क्षण भर सोचता सा वह रुक जाता है। वर्षा और मेघ गर्जन का शब्द बढ़ जाता है। बिजली बार बार चमकती है और मेघ गर्जन सुनाई देता रहता है।'
मेघ गर्जन और बिजली चमकना
कथानक के नायक कालिदास प्रकृति की सुषमा में खोये हुए हैं ,वे घायल हरिण शावक को हाथ में लेकर कहते हैं -
"हम जियेंगे हरिण शावक जियेंगे न ? एक वाण से आहत होकर हम प्राण नहीं देंगे। हमारा शरीर कोमल है तो क्या हुआ ? हम पीड़ा सह सकते हैं। एक बाण प्राण ले सकता है तो ऊँगलियों का कोमल स्पर्श प्राण दे भी सकता है। कल हम फिर वनस्थली में घूमेंगे। कोमल दूर्वा खायेंगे। "
प्रकृति मानव की सजातीय बनकर आलोच्य नाटक में उपस्थित हुई है। कालिदास घायल हरिन शावक को अपने हाथों में लिए हुए राजपुरुष दंतुल से कहता है -
'यह हरिण शावक इस पार्वत्य भूमि की संपत्ति है ,राजपुरुष और इसी पार्वत्य भूमि के निवासी हम इसके सजातीय है। "
इस प्रकार प्रथम अंक के कथानक का विकास प्रकृति की पृष्टभूमि में हुआ है। अंक के अंत में कालिदास उज्जयिनी चले जाते हैं। इधर मल्लिका के नेत्रों से अश्रु गिरते हैं और उधर मेघ - गर्जन एवं वर्षा का शब्द सुनाई पड़ता है। दूसरे अंक के कथानक की पृष्टभूमि प्रकृति की सुषमा पूर्ण स्थली है। प्रियंगुमंजरी कालिदास के गाँव में आने का उद्देश्य बतलाती हुई कहती है कि -
"इसीलिए मैं यहाँ से कई कुछ अपने साथ ले जा रही हूँ। कुछ हरिन शावक जायेंगे ,जिनका हम अपने उद्यान में पालन करेंगे। यहाँ की औषधियाँ ,उद्यान के क्रीडा शैल पर तथा आस - पास के प्रदेश में लगवाई जायेंगे। हम यहाँ के से कुछ घरों का भी निर्माण करेंगे। "
तीसरे अंक के कथानक का प्रारंभ भी वर्षा और मेघ - गर्जन के शब्द से होता है। मातुल वर्षा में भीगा हुआ आता है और मल्लिका से कहता है ' वर्षा से बचने के लिए तुम्हारे घर के सिवा कोई शरण नहीं थी ,सोचा ,जो हो ,मातुल के लिए आज भी तुम वही मल्लिका हो। " यह आषाढ़ की वर्षा तो मेरे लिए काल हो रही है। "
प्रकृति चित्रण प्रधान नाटक
पूरे अंक में बार - बार बिजली कौंधती है और मेघ गर्जन का शब्द सुनाई देता है। कालिदास आषाढ़ के प्रथम दिन का स्मरण करता हुआ मल्लिका से कहता है -
"सोच रहा हूँ कि वह आषाढ़ का एक ही दिन था। ऐसे ही घाटी में मेघ भरे पड़े थे और असमय अँधेरा हो आया था। मैंने घाटी में एक आहत हरिण शावक को देखा था और उठाकर यहाँ ले आया था। तुमने उसका उपचार किया था।"
उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आषाढ़ का एक दिन नाटक प्रकृति चित्रण प्रधान नाटक है। आषाढ़ के प्रथम दिवस की वर्षा की प्रकृति यथार्थ रूप में सामने आ जाती है। प्रकृति का सजीव वर्णन मानवीय भावों की पृष्ठभूमि बनकर उपस्थित होती है और इसी पृष्टभूमि में कथानक विकसित होता चला जाता है।
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