आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश में नारी भावना आदर्श प्रेमिका मल्लिका वात्सल्यमयी माँ अम्बिका राजसी बाला प्रियंगुमंजरी कालिदास भावात्मक प्रेम अथ
आषाढ़ का एक दिन नाटक में नारी भावना
आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश में नारी भावना - आषाढ़ का एक दिन नाटक मोहन राकेश जी का प्रसिद्ध नाटक है। प्रस्तुत नाटक में मल्लिका ,अम्बिका और प्रियंगुमंजरी तीन प्रमुख नारी पात्र है। मल्लिका ,अम्बिका की पुत्री और कालिदास की प्रेमिका है। अम्बिका ,मल्लिका की माँ और ग्राम की एक वृद्धा नारी है। प्रियंगुमंजरी एक राजकन्या और कवि कालिदास की पत्नी हैं। उपरोक्त तीनों नारी पात्रों का मनोवैज्ञानिक विशलेषण प्रस्तुत किया गया है। मल्लिका एक आदर्श प्रेयसी के रूप में सामने आती है। उसमें प्रेम ही प्रेम है। वह कालिदास को भावात्मक प्रेम करती है। उसके प्रेम में महान त्याग है। वह प्रतिदान की भी आकांक्षा नहीं रखती है।
मल्लिका अपने प्रेमी की कीर्ति के प्रसार के लिए भी महान त्याग करती है। कालिदास उज्जयनी जाना नहीं चाहते और राजकीय सम्मान तक को ठुकराने की उद्दत हो जाते हैं। मल्लिका उनको प्रेरित करती हुई कहती है -
"यहाँ बैठों ! तुम मुझे जानते हो। तुम समझते हो कि तुम इस अवसर को ठुकराकर यहाँ रह जाओगे ,तो मुझे सुख होगा ? मैं जानती हूँ कि तुम्हारे चले जाने से मेरे अंतर को एक रिक्तता छा लेगी। बाहर भी संभवतः बहुत सूना प्रतीत होगा कि फिर भी मैं अपने से छल नहीं कर रही हूँ। मैं ह्रदय से कहती हूँ कि तुम्हे जाना चाहिए ! मेरी आँखें इसीलिए गीली है कि तुम मेरी बात नहीं समझ रहे हो ! "
आदर्श प्रेमिका मल्लिका
कालिदास चले जाते हैं और मल्लिका उनका वियोग ओढ़ लेती है। मल्लिका श्रद्धा है ,जो विश्वास को लेकर कालिदास से भावात्मक प्रेम करती है। वह पीयूष की धारा बनकर नर के लिए त्याग करती है और अपने प्रियतम कालिदास को उज्जयिनी भेज देती है। परन्तु पुरुष से उसे छल एवं प्रवंचना ही मिलती है। उसकी जीवन की विशेषताएँ ही उसे विलोम के समक्ष आत्म - समर्पण करने के लिए विवश करती है। कालिदास से उसे प्रेम और त्याग का प्रतिदान नहीं मिलता है। कालिदास आते हैं। अथ से पुनः प्रारंभ करने की बात करते हैं ,किन्तु मुकर जाते हैं। मल्लिका की बच्ची उनके मार्ग में दिवार बन जाती है। मल्लिका बच्ची को ह्रदय से चिपकाए हुए और अश्रु गिराती हुई रह जाती है। मल्लिका ,नारी का निम्न रूप प्रस्तुत करती है -
"क्या कहती हो ठहरो नारी!
संकल्प अश्रु-जल-से-अपने।
तुम दान कर चुकी पहले ही
जीवन के सोने-से सपने।
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में।
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में।
वात्सल्यमयी माँ अम्बिका
आषाढ़ का एक दिन नाटक में नारी का दूसरा रूप वत्सला माँ का रूप है। अम्बिका का सारा वात्सल्य अपनी पुत्री मल्लिका के लिए सुरक्षित है। उसके भीगे कपडे देखकर उसका ह्रदय दहल जाता है। वह उसकी चिंता में निरंतर काम में लगी हुई घुलती रहती है और टूटती जाती है। साथ ही अम्बिका एक कर्मठ नारी का स्वरुप भी प्रस्तुत करती है। वह जीवन में भावना और कल्पना को कोई महत्व नहीं देती है। उसकी दृष्टि में जीवन की यथार्थता और वास्तविकता ही सब कुछ है।
राजसी बाला प्रियंगुमंजरी
प्रियंगुमंजरी एक राजसी बाला का रूप प्रस्तुत करती है। वह सहृदय और उदार हृदया है। मल्लिका से उसकी सहानुभूति है ,मातुल का वह घर बनवा देती है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आलोच्य नाटक में एक नारी का रूप वह है ,जो राजसी वैभव से आवृत्त है ,दूसरी नारी का वह रूप है ,जो कि वत्सला माँ है और तीसरी नारी का वह रूप है ,जो प्रेम ,श्रद्धा और विश्वासमयी है ,जिसके आँचल में दूध और आँखों में पानी है।
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