जैसी करनी वैसी भरनी पर कहानी लेखन Jaisi karni waisi Bharni Hindi Story जैसी करनी वैसी भरनी पर लघु कथा लेखन जैसी करनी वैसी भरनी पर निबंध Moral Stories
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आदर और सहानुभूति
जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता गया ,अपनी दादी के प्रति माँ के बढ़ते जुल्मों को देखता रहा। समझदार होने पर जब उसका विरोध करता ,तो उसको भी झिड़की खानी पड़ती। लेकिन वह अपनी दादी के प्रति आदर और सहानुभूति रखता था। वह मन से अनुभव करता था कि घर में दादी के साथ सही व्यवहार नहीं हो रहा है। कुछ सालों के बाद जब बुढ़िया के पोते की बहू आई ,तब घर में दो - चार दिन के लिए ख़ुशी का वातावरण रहा। रिश्तेदारों के जाने के बाद बुढ़िया के फिर वही दिन आ गए। बुढ़िया से बर्तन मंजवाती ,बात - बात पर डांटटी डपटती और टूटी थाली में भोजन खिलाती ,नयी बहू यह सब छिप - छिप कर देखती रही। समय समय पर दादी के बारे में अपने पति से पूछती रही। कभी कभी पतोहू को ससुर से भी जानकारी मिल जाती थी। कुछ दिन बाद बुढ़िया की बहू अपने पतोहू से भी लड़ने लगी। अब पतोहू को भी पूरे दिन काम में लगाये रखती। कभी कभी पतोहू को ससुर से भी जानकारी मिल जाती थी। कुछ दिन बाद बुढ़िया की बहू अपनी पतोहू से भी लड़ने लगी। अब पतोहू को भी पूरे दिन काम में लगाये रखती। कभी कभी पतोहू बुढ़िया को बर्तन धोने में सहायता करती ,तो उनकी सास उन पर बरस पड़ती और कहती - "तेरे लिए ढेरों काम है ,अपना काम कर। " जब बहू ने देखा कि मेरी सास जैसी अपनी सास को खरी खोटी सुनाती थी ,उसी तरह मुझे भी खरी खोटी सुनाने लगी है ,तो उससे रहा नहीं गया। वह भी लड़ने लगी और उससे उसी तरह का व्यवहार करने लगी ,जैसा वह अपनी सास के साथ व्यवहार करती थी। अब पतोहू उसी टूटी हुई थाली में खाना परोसकर देने लगी ,जिसमें उसकी सास दादी सास को खाना देती थी।
सास के साथ वैसा ही व्यवहार
शुरू में जब पतोहू ने सास को टूटी थाली में खाना दिया तो पतोहू के ससुर और पति ने विरोध किया। पतोहू ने जबाब देते हुए कहा - 'जब वह अपनी सास को इस टूटी थाली में भोजन कराती थी ,तब तो आप दोनों के मुँह सिल गए थे। कोई कुछ नहीं बोलता था। कितनी सीधी थी मेरी दादी सास। उसके साथ इसने कैसा व्यवहार किया। उसके आगे तो यह कुछ भी नहीं है। यह सुनकर कोई कुछ नहीं बोला। अब सास भी जानती थी कि यदि कुछ पतोहू से कहा तो मारपीट भी कर देगी। अब पतोहू को कोई कुछ भी नहीं कहता था। ससुर को बुरा लगता है कि बूढी पत्नी के साथ इस प्रकार का व्यवहार हो रहा है। जब वे कुछ बक - बक करते तो पतोहू तड़ाक से जबाब दे देती ,ससुर चुप हो जाते। जब ससुर भी ज्यादा बोलने लगे तो उनके साथ भी वैसा व्यवहार होना लगा।
कभी कभी एकांत में बैठकर सास - ससुर अपने सुख दुःख को याद कर लेते थे और दोनों सोचते थे कि जैसी करनी वैसी भरनी ।" यही जीवन का परम सत्य है।
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