खेल कहानी जैनेन्द्र कुमार सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर summary of khel by jainendra kumar १२ राजस्थान बोर्ड खेल कहानी का प्रमुख पात्र सुरबाला मनोहर
खेल कहानी जैनेन्द्र कुमार सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर
खेल कहानी जैनेन्द्र कुमार summary of khel by jainendra kumar खेल जैनेन्द्र कुमार कहानी का सारांश कक्षा १२ राजस्थान बोर्ड class 12 anivary hindi rbse खेल कहानी का उद्देश्य खेल कहानी का प्रमुख पात्र सुरबाला मनोहर का चरित्र चित्रण खेल कहानी के प्रश्न उत्तर खेल कहानी जैनेन्द्र कुमार के कठिन शब्द अर्थ
खेल कहानी का सारांश
शाम के समय गंगा के एकांत स्थान पर सुरा और मनोहर नामक बालक - बालिका सारे विश्व को भूल गंगा तट की बालू और पानी से खेल रहे थे। बालिका रेत का भाड़ बनाकर उसे कहती है कि देख यदि तू ठीक न बना तो मैं तुझे फोड़ दूँगी। और उसे ठीक से बना कर सोचती है कि इस भाड़ पर कुटिया बनेगी जिस पर वह रहेगी ,मनोहर को वह नहीं रहने देगी। लेकिन यदि बहुत बार कहेगा तो उसे भी भीतर बुला लेगी। " मनोहर के सम्बन्ध में आगे सोचकर वह कभी उसके चंचल और दंगाई स्वभाव पर रुष्ट हो जाती है तो कभी सोचती है कि उसे भाड़ में प्रवेश तभी करने दूँगी जब वह दंगा बंद कर देगा। कुछ देर में उसे भाड़ की छत गर्म होने का अंदेशा होता है जिसे मनोहर न सह सकेगा ,ऐसे में वह मनोहर से कह देगी कि भाई छत बहुत तप रही है अतः तुम न आयो। अगर वह फिर भी आने की जिद करेगा तो मैं स्वयं भी बाहर चली जाऊँगी। लेकिन उसके मनोहर हठ पर विचार करते ही उसको लगता है कि वो तो जल जाएगा। ऐसा सोचते ही उसे धक्का लगता है और उसका मन उदास सा होता है।
सुरबाला भाड़ को पूरी तरह से देखभाल कर बनाती है। कुछ देर बाद जब वह पैर भाड़ के भीतर से निकालती है तो भी भाड़ ज्यों का त्यों बना रहता है जिससे बालिका ख़ुशी से नाच उठती है। उसके मन में आता है कि निकट ही पानी से खेल रहे मनोहर को वह खींच कर लाये औए सुन्दर भाड़ को गर्व सहित दिखाए। लेकिन पहले वह इस भाड़ पर कुटी बनाना चाहती है तभी मनोहर को बुलाएगी। तत्पश्चात वह रेत को लगाती हुई कुटी तैयार करती है। भाड़ तैयार होने पर वह उसके उपरी हिस्से पर धुना निकालने के लिए एक सींक भी टेढ़ी कर लगा देती है। भाड़ के पूर्ण तैयार होने पर वह उसमें साक्षात परमात्मा का निवास मानती है और उसे देख विस्मित और पुलकित होने लगती है।
मनोहर पानी के साथ खेलना छोड़कर एक लकड़ी को पानी पर फेंकता हुआ सुरबाला के पास पहुँचता है। उस समय सुरबाला का ध्यान पूरी तरह उस भाड़ में ही उलझा हुआ था। वह तुरंत एक लात मारकर भाड़ को तोड़ देता है और गर्व से कहता है - सुरों रानी ' सुरबाला टूटे भाड़ को देखकर मूक सी हो जाती है। वह व्यथा से भर उठती है। ऐसे में यदि कोई विद्वान वहाँ होता तो सुरबाला को जीवन की क्षणिकता ,नश्वरता की शिक्षा देता। सुख - दुःख से परिपूर्ण मानव जीवन की व्याख्या करता। उसे समझाता कि परमात्मा इस भाड़ के माध्यम से तुझे संसार की सच्चाई से अवगत करा रहे हैं उसे तू पहचान ,लेकिन दुर्भाग्यवश कोई पंडित वहाँ न पहुँच सका था। ऐसे में सुरबाला अपनी मनोव्यथा में ही डूबी हुई थी।
सुरबाला मनोहर से रूठ जाती है। मनोहर सुरबाला को मनाने का प्रयास करता है। वह उससे कहता है कि तुम चाहे मुझे मार लो लेकिन मुझसे बात तो करो। सुरबाला कहती है कि वह उससे बात न करेगी। मनोहर यह सुन कहता है कि मनोहर तेरे पीछे खड़ा है ,ऐसे में तुम उस पर रेत क्यों नहीं फेंकती ,उसे मारती क्यों नहीं। सुरबाला उसे चुप रहने को कहती है तो मनोहर तुरंत पूछता है कि तुम मेरी ओर देखोगी भी नहीं। जब वह मना करती है तो मनोहर कहता है कि अच्छा मत देखो ,मैं अब कभी सामने नहीं आऊँगा ,मैं इसी लायक हूँ। कुछ देर में बालिका का क्रोध और व्यथा समाप्त हो जाती है। वह पिघलकर मनोहर के पास जाती है ,लेकिन मनोहर तब तक सुरबाला से नाराज़ हो जाता है। दोनों के बीच सहसा बातचीत हो जाती है। एक ओर सुरबाला उससे भाड़ तोड़ने का कारण पूछती है तो दूसरी ओर मनोहर अब नए भाड़ में उसकी मदद करने लगता है और एक नया भाड़ बनाता है। सुरबाला मनोहर की मदद कर धुआं का रास्ता बनाने के लिए सींक ठीक कर वह रास्ता बनाती है। पानी से भाड़ को मजबूती दी जाती है। भाड़ के तैयार होने पर दोनों प्रसन्न हो जाते हैं। तभी कुछ देर बाद सुरबाला एक लात से भाड़ के सर को चकनाचूर करती है और हँसकर नाच उठती है। मनोहर भी यह देखकर प्रसन्न होता है। इस प्रकार शाम के समय एकांत स्थान में बच्चों का शोर फ़ैल जाता है। उनकी निर्मल हँसी जगत के लोगों को एक सीख देती चलती है।
खेल कहानी का उद्देश्य
खेल कहानी जैनेन्द्र कुमार जी की प्रसिद्ध कहानी है। प्रस्तुत कहानी में आपने सुरबाला और मनोहर के माध्यम से कहा गया है कि यह जीवन क्षणिक है। जिसमें सबको उसके भाग्य की ही वस्तु मिलती है। जो जन्म लेता है उसे समाप्त भी होना पड़ता है। अतः हमें भाग्य के नियम को मानना चाहिए तथा प्रत्येक परिस्थिति में नाश होने के बाद भी ऐसे कहकहे लगाकर रहना चाहिए जैसे सुरबाला द्वारा मनोहर के भाड़ तोड़ दिए जाने पर दोनों उत्फुल्लता से कहकहे लगाने लगते हैं।
खेल कहानी का प्रमुख पात्र सुरबाला
सुरबाला बहुत ही भावुक एवं संवेदनशील बालिका है। उसके मन में आशा - निराशा -उत्साह -जिज्ञासा आदि भाव समय समय पर उठते रहते हैं और उन्ही का आश्रय लेकर उसके क्रियाकलाप चलते हैं। वह बहुत ही कल्पनाशील बालिका है। एक कार्य में तत्पर रहते हुए वह उससे सम्बद्ध अनेक कल्पनाएँ कर लेती है और उन्ही के अनुरूप उसका स्वभाव बनता जाता है। भाड़ का निर्माण करते हुए भी वह कई स्वपन देखती जाती है और बात बात पर स्वयं ही अपने भाई मनोहर से नाराज़ हो उससे मान भी जाती है। उसमें दृढ निश्चय का भाव एवं सूक्ष्मता कूट कूट कर भरी हुई है। साथ ही उसकी कल्पनाशीलता के दर्शन भाड़ में धुएँ के स्थान बनाने में देखी जा सकती है। इसी के साथ साथ उसमें बच्चों सी चंचलता भी विद्यमान है जिसके कारण वह एक पल में मनोहर से नाराज़ हो उससे मान भी जाती है तथा अपने भाड़ के टूट जाने के बाद मनोहर के भाड़ को तोड़कर बड़ी प्रसन्न होती है।
मनोहर का चरित्र चित्रण
मनोहर सुरबाला का भाई है। वह बहुत ही शैतान और चंचल स्वभाव का है। उसे पानी बहन से बहुत प्यार है तथा वह बहन को नाराज़ करने के बाद उसे मनाने का प्रयास भी करता है। मनोहर कल्पना से अधिक यथार्थ भूमि पर रहता है तथा छोटी - छोटी बात पर बहन से लड़ता - झगड़ता रहता है। कहानी के अंत में बहन को मनाने के लिए वह नया भाड़ बनाता है तथा उससे प्रतियोगिता का भाव भी रखता है। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी द्वारा जैनेन्द्र कुमार ने मनोहर के माध्यम से बाल सुलभ चंचलतायें ,स्वभाविकता एवं मानसिकता को रेखांकित करने का प्रयास किया है।
खेल कहानी के प्रश्न उत्तर
प्र. मनोहर कौन है ?
उ. मनोहर सुरबाला का भाई है। दोनों भाई बहन गंगा के तट पर खेल में मग्न है। सुरबाला अपनी कल्पनाशीलता का सहारा ले भाड़ बना रही है जबकि मनोहर अपनी चंचलातावश गंगा के जल के साथ खिलवाड़ कर रहा है।
प्र. मनोहर के विषय में सुरो के क्या विचार है ?
उ. सुरो (सुरबाला ) रेत का भाड़ बनाते हुए विचार करती है कि इस भाड़ के ऊपर वह एक घर बनाएगी और उस घर में वह और मनोहर रहेंगे ,लेकिन मनोहर बाहर खड़े -खड़े पत्ते झोकेंगा ,जब वह अन्दर आने की बहुत जिद्द करेगा और मुझसे हार मानेगा तभी मैं उसे अन्दर आने दूँगी क्योंकि वह बहुत शरारती है और उसे तंग करता रहता है।
प्र. भाड़ तोड़ने के पीछे मनोहर के कौन से भाव है ?
उ. भाड़ सुरबाला ने बनाया था तथा उसमें उसकी कल्पनाशीलता एवं उसका पूरा श्रम लगा था। मनोहर में बाल सुलभ चंचलता अधिक थी। इसी चंचलता के कारण एवं बचपन की हठधर्मीता के कारण वह पहले गंगा के जल पर डंडा चलाता रहता है और बाद में सुरबाला के निकट पहुँचकर उसके भाड़ को एक लात मार कर गिरा देता है।
उ. मनोहर के द्वारा सुरबाला का भाड़ तोड़ा जाता है। यह देखकर सुरबाला नाराज़ हो जाती है और वह मनोहर से नया भाड़ बनाने को कहती है। मनोहर पूरी मेहनत एवं श्रम से नया भाड़ तैयार करता है। सुरबाला उसमें संशोधन भी करती है। लेकिन कुछ देर बाद वह उसी भाड़ को तोड़ देती है क्योंकि एक तो उसमें भी बालसुलभ चंचलतावश बचपने का भाव है ,दूसरा वह मनोहर को उसी मानसिक पीड़ा से गुजारना चाहती थी जिससे वह गुजर चुकी थी ,ताकि उसे भी अहसास हो कि मेहनत से किये गए कार्य पर कोई विघ्न पहुंचाता है तो कैसा अनुभव होता है।
प्र.सुरबाला को मनाने के लिए मनोहर ने क्या किया ?
उ. सुरबाला अपने भाड़ के टूटते ही मनोहर से नाराज़ हो जाती है। मनोहर सुरबाला को नाराज़ देखकर उसे मीठी बातों द्वारा मनाने की कोशिश करता है। थोड़ी देर के बाद सुरबाला उससे बात करती हुई उससे भाड़ तोड़ने का कारण पूछती हैं ? मनोहर उसे मनाने के लिए एक नया भाड़ बनाने की बात करता है।
प्र. सुरबाला मनोहर के भाड का क्या करती है ?
उ. सुरबाला मनोहर के भाड़ को देखकर सबसे पहले ठीक से सँवारती -सजाती है। वह पानी मँगवाती है और भाड़ को मजबूती देती है। मनोहर गँगाजल लाकर पानी से भाड़ का अभिषेक कर ही रहा था कि वह एक लात मारकर भाड़ को फिर से तोड़ देती है।
प्र. बदला लेना बच्चों का स्वभाव है। खेल कहानी के आधार पर स्पष्ट करें।
उ. बच्चों की प्रवृत्ति बड़ी नटखट एवं चंचल है। वह जहाँ एक ओर सरलता से भरा जीवन जीता है। वहीँ दूसरी ओर यदा -कदा बदले का भी भाव रखता है। इस बदले के भाव में ईर्ष्या से अधिक बचपना या भोलापन रखता है। प्रस्तुत कहानी खेल की प्रमुख पात्र सुरबाला इसी तथ्य का प्रमाण प्रस्तुत करती है। मनोहर के द्वारा जब सुरबाला का भाड़ तोड़ा जाता है तो सुरबाला मनोहर से नाराज़ हो जाती है। सुरबाला को मनाने के लिए मनोहर एक नया भाड़ बनाता है और अन्ततः सुरबाला उस भाड़ को तोड़ अपना बदला लेती है। इस बदला लेने के भाव में बाल सुलभ चंचलता ही विद्यमान थी।
खेल कहानी जैनेन्द्र कुमार के कठिन शब्द अर्थ
मुग्ध - आसक्त
निर्जन - जहाँ कोई व्यक्ति न हो
बालुका - रेत
निनिर्मेश - लगातार
अनुग्रह - कृपा
आलौकिक - इस लोक से अलग या परे
क्षणिक - क्षण भर का
शर - चालाक ,तेज़
विलीन - समा जाना
उत्फुल्लता - प्रसन्नता
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