Khoda Pahad Nikli Chuhiya खोदा पहाड़ निकली चुहिया पर कहानी kahawaton ki kahani the mountain and mouse story in hindi कहावत सही सिद्ध हुई वाक्य में प्र
खोदा पहाड़ निकली चुहिया पर कहानी
Khoda Pahad Nikli Chuhiya खोदा पहाड़ निकली चुहिया पर कहानी kahawaton ki kahani the mountain and mouse story in hindi - खोदा पहाड़ निकली चुहिया बिलकुल सत्य है। कभी कभी परिश्रम ज्यादा करने से परिणाम कम नज़र आता है ,तब इंसान को गुस्सा और थकान दोनों ही महसूस होने लगता है और व्यक्ति यह कहने में नहीं चूकता है कि बेकार ही इतनी मेहनत की या इतने परेशान हुए।
पहाड़ों पर जाने का विचार
मई - जून के माह में गर्मी से त्राहि - त्राहि मची हुई थी। गर्मी से छुटकारा पाने हेतु हम लोगों ने किसी ठन्डे स्थान यानी पहाड़ों पर जाने का विचार किया। अचानक विचार बना और रात की बस के टिकट मँगवा लिए गए और झटपट तैयारियाँ की। हालांकि इतनी भयंकर गर्मी में गरम कपडे रखने के विचार मात्र से ही गर्मी बढ़ गयी। फिर भी बचाव के ख्याल से एकाध स्वेटर ,शाल रख लेने से ही बुद्धिमानी समझी। बस में गाते - बजाते ,ख़ुशी से झूमते चले जा रहे थे।
शिमला में आनंद
सुबह सुबह चंडीगढ़ होते हुए शिमला पहुंचे। भीड़ बहुत अधिक थी ,लगता था सारी दिल्ली ही शिमला में उमड़ पड़ी है। ठहरने का स्थान ढूंढते - ढूंढते हल लोगों को शिमला से दूर नाल देहरा में एक कॉटेज मिल ही गया। मौसम अत्यधिक सुहावना था। कहाँ तपती आग उगलती धरती ,कहाँ हड्डी कंपा देने वाली बर्फीली ठंडी ठंडी हवा ,मानों जान ही पड़ गयी। पहाड़ों पर मौसम बदलते देर नहीं लगती है। कभी टोला तो कभी गाशा। अभी दो दिन भी नहीं बीते थे कि शाम को देखते देखते शीतल हवाओं का स्थान तेज़ आँधी ने ले लिया। बिजली ऐसी गुल हो गयी जैसे हवा की झोंकें से घी का दीपक बुझ गया हो। बादलों की गडगडाहट व बिजली की कड़क से दिल दहलने लगा मानों भूकंप आ जाएगा और पृथ्बी फट जायेगी। खिड़की ,दरवाजों के शीशे खनखना उठते। ऐसे वातावरण में रजाई में घुसकर बिस्तर में लेटने से बढ़कर कौन सा आनंद था। खाना तो माल रोड पर चाय के साथ इतना खा लिया था कि खाने की जरुरत ही नहीं थी। गप - शप करते अगले दिन का कार्यक्रम बनाने लगे। इतना थके कि नींद कब आ आ गयी की पता ही नहीं चला।
कहावत सही सिद्ध हुई
रात करीब डेढ़ बजे अचानक नींद खुली। बगल वाली पेंट्री में कुछ खटपट सुनाई दी। दरअसल खटपट से ही नींद खुल गयी। आस पास के लोगों का जगाया। एक एक करके तीनों ही जग गए और साँस रोककर आहट की टोह लेने लगे। एक तो नयी जगह ,फिर थकावट से चूर ,समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें ? हम दुबके पड़े थे। बुरे - बुरे ख्याल मन में आने लगे थे। भगवान् याद आने लगे। फिर सोचा कहीं हमें शक तो नहीं हुआ पर आवाज रुक रुक कर आ रही थी। धीरे - धीरे शक विश्वास में बदलने लगा कि जरुर मौके का लाभ उठाकर कोई चोर घुस आया है। सभी दिग्धी बंध गयी। किसी की उठकर देखने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। बड़ी हिम्मत कर हममे से एक ने सिरहाने से टार्च उठाई और दबे पाँव जाकर फुसफुसाकर पुलिस को फोन किया कि हमारे यहाँ चोर घुस आये हैं ,आप फ़ौरन मदद के लिए पहुँचे। दस मिनट में फ्लाईंग स्कड अपने दलबल के साथ आ पहुँचा। कॉटेज को चारों तरफ से घेर लिया गया। कुछ लोगों ने बड़े बड़े टॉर्च लेकर कॉटेज को छानना शुरू कर दिया। जैसे ही पेंट्री का दरवाजा खोला और टॉर्च डाली तो देखा एक चमगादड़ शाम को बंद ह गया था और बाहर निकलने के चक्कर में इधर -उधर टकरा रहा था। दरवाजा खुलते ही फर्र से उड़ गया और सब हतप्रभ खड़े रह गए। खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली कहावत चरितार्थ हो गयी।
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