पत्र पढ़कर शर्मा जी की आंखों से आंसू बहने लगे यह पत्र उनको उनकी बेटी दिव्यांशी की ओर से अमेरिका से पेपर के द्वारा फादर डे की भेंट दी गई थी
खुशी के आँसू
सुबह के 10:00 बज रहे थे , शर्मा जी नित्य क्रिया से फ्री होकर बालकनी में आ चुके थे उन्होंने पेपर और चश्मा उठाया और कुर्सी पर बैठ गए चाय के लिए आवाज लगा दी . पेपर हाथ में उठाया ही था की पेपर में अपनी फोटो देखकर चौक गए. उन्होंने आगे पढ़ना शुरू किया लिखा था थैंक यू पापा आज फादर्स डे की आपको बहुत-बहुत बधाई.
मुझे गर्व है कि मैं आपकी बेटी हूं मुझे पता है कि आप ने कितने संघर्षों से जीवन को जिया है जब मैं पैदा हुई थी तब तक आपके पास कोई अच्छी नौकरी नहीं थी , लेकिन आपने छोटी-छोटी नौकरी करके मेरे सभी इच्छाओं को पूरी करने की कोशिश की . जब तक हम लोग संयुक्त परिवार में थे तब तक तो मुझे इतना पता नहीं था लेकिन चौथी-पांचवी कक्षा से जब हम दूसरे शहर में रहने लगे तब मैंने देखा कि आपने दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा. मुझे बहुत गुस्सा आता था जब आप हर बात के लिए एक प्रश्न चिह्न लगा देते थे , यानी अगर मुझे चॉकलेट चाहिए तो यूनिट टेस्ट में ८५ % प्लस होने चाहिए बाहर खाना खाने चलना है तो डिबेट में फर्स्ट आना चाहिए . बैग चाहिए तो नंबर अच्छे आने चाहिए हर बात के लिए आप कंडीशन लगा देते थे केवल पढ़ाई पर ही फोकस होता था .
१२ तक तो पढ़ाई अच्छे से हो गई उसके बाद आपने मुझे पढ़ाई के लिए बाहर भेज दिया और आपने अपने शहर से दूसरे शहर जा कर वहां के लोगों के साथ बिजनेस शुरू किया और दो-तीन महीनों में ही बिजनेस खड़ा कर लिया. बिजनेस की रफ्तार देखकर आपके व्यापार भागीदार भी आश्चर्य चकित रह गए उन्हें सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी आप इतनी उन्नति कर लेंगे , व्यापार की सफलता को देखकर वे पूरे व्यवसाय को जब्त करना चाहते थे , रोज कोई ना कोई बहाने से आप को आहत करने लगे , मैंने अक्सर आपको रात में विचारमग्न होकर टहलते हुए देखा था , शायद आप इसी उधेड़ बुन में लगे रहते थे कि आगे क्या होगा और बहुत जल्दी ही आपने इसका हल भी खोज लिया था , कोई दूसरा होता तो शायद हार कर बैठ जाता या उनसे लड़ाइयां लडता लेकिन आपने इन बातों में अपना समय बर्बाद नहीं किया और नई जगह अपना दिमाग लगाया , आपने पुनः एक बार जोखिम उठाया और अपना सब कुछ दांव पर लगा कर नया व्यापार शुरु कर दिया. और ईश्वर की कृपा से आपने बहुत जल्दी ही इसमें सफलता प्राप्त कर ली और आप यही ही नहीं रुके लगातार नया प्रयोग करते रहे और व्यापार को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए प्रयासरत रहे इसी जज्बे के कारण ही मैं आपकी फैन हो गई कि जिस उम्र में लोग रिटायरमेंट की सोचते हैं आप उस उम्र से चलना शुरू कर देते हो .
आपको गुस्सा बहुत जल्दी आता है इसी कारण मैं बचपन में आपसे बहुत डरती थी लेकिन जैसे जैसे बड़ी हुई डर कम होता गया और यह बात समझ में आने लगी कि आप प्रत्येक काम में प्रवीणता (परफेक्शन) चाहते हैं मेरे बारे में छोटे से छोटा निर्णय लेना होतो बहुत सोच समझ कर लेते थे .
मुझे याद है स्कूल में एक बार हमारे अध्यापक ने हमसे कहा कि अगर आप कुछ नया सीखना चाहते हैं तो पहली बार अपने स्कूल में विशेष कक्षा का आयोजन हो रहा है यदि आप उसमें भाग लेना चाहते हैं तो 3 दिन की कक्षा होगी जिसमें आप को ₹5000 देने होंगे है इससे आपमें नई प्रतिभा का संचार होगा
उस समय हमारे हालात ठीक नहीं थे लेकिन फिर भी आपने मुझे वह विशेष कक्षा करवाई थी आप सदैव ही मेरी सफलता के लिए पागल रहते थे .
एक बार डिबेट में पहली बार हारने पर मुझे हफ्तों लग गएथे उस हार से उभरने में तब आपने मुझे यही समझाया था कि बेटा सदैव जीतने से आप हारने वाले का दुख नहीं समझ पाते इसलिए कभी हारना भी चाहिए और उस हार को हथियार बनाकर पुनः जीतने की कोशिश करनी चाहिए.
आपका फंडा था कि यदि कुछ पाना है तो उस चीज को एक बार दो बार चाहे जितनी बार प्रयास करना पड़े करते रहो जूझते रहो जब तक उसने सफलता नहीं मिल जाती .छठी कक्षा तक गणित मुझे बहुत कठिन लगती थी फिर पता नहीं क्या हुआ गणित मेरा प्रिय विषय बन गया था शायद आपके ही कारण .आपने हर क्षेत्र में मेरा मार्गदर्शन किया पढ़ाई हो या नौकरी पहली नौकरी का पद भार संभालने के बाद कितनी ही बार मैंने उसको छोड़ने का मन बना लिया था लेकिन आपने कितनी ही बार मुझे सही कारण समझाकर पुन्हा नौकरी पर भेज दिया था कितनी बार कुछ बातों में आप मुझसे असहमत होते थे तो बात करना बंद कर देते थे और कई बार मैं भी आपसे बात नहीं करती थी महीनों हमारी बात नहीं होती थी इन सबके बावजूद आपने कभी भी मेरी किसी भी जरूरत में कमी नहीं कीआपका चुनाव कमाल का होता था चाहे आपके कपड़े का चुनाव हो या आपकी जूते चप्पल का हो या और किसी भी चीज का सदैव एक अलग झलक रखते थे आपकी हर बात में कोई बात होती है .
इस उम्र में भी आपकी आत्मविश्वास की दाद देनी पड़ती है , शायद मेरे अंदर आपकी सारी विशेषताएं तो नहीं आई है .लेकिन एक आदत जो मेरे अंदर आई है वो है दृढ़ निश्चय ,जो ठान लिया वो करना ही है . पापा मेरी सभी इच्छाओं को पूरीकरने के लिए आपको दिल से बहुत-बहुत धन्यवादआई लव यू आपकी बेटी दिव्यांशी.
पत्र पढ़कर शर्मा जी की आंखों से आंसू बहने लगे यह पत्र उनको उनकी बेटी दिव्यांशी की ओर से अमेरिका से पेपर के द्वारा फादर डे की भेंट दी गई थी .
- संगीता शर्मा,
धूमनगंज, प्रयागराज
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