आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रेम का त्रिकोण Ashad Ka Ek Din by Rakesh Mohan love triangle तर्क और दीवानगी प्रेम का एक त्रिकोण प्रणय द्वन्द प्रधान अथ
आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रेम का त्रिकोण
आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रेम का त्रिकोण आषाढ़ का एक दिन तर्क और दीवानगी प्रेम का एक त्रिकोण Ashad Ka Ek Din by Rakesh Mohan love triangle - आषाढ़ का एक दिन नाटक प्रणय द्वन्द प्रधान है। प्रारम्भ में ही मल्लिका कालिदास के भावात्मक प्रेम में डूबी दिखाई पड़ती है। इसी समय ग्राम पुरुष विलोम सामने आता है ,वह मल्लिका से विवाह करने के लिए प्रयत्नशील है ,यहीं से प्रेम का त्रिकोण स्थापित हो जाता है। मल्लिका की माँ अम्बिका मल्लिका का विवाह करने को प्रयत्नशील है ,मल्लिका उससे कहती है -
'तुम जानती हो मैं विवाह नहीं करना चाहती फिर भी उसके लिए प्रयत्न क्यों करती हो ? तुम समझती हो ,मैं निरर्थक प्रलाप करती हूँ। "
मल्लिका कालिदास को भावात्मक प्रेम करती है ,वह अपनी स्थिति स्पष्ट करती हुई कहती है कि मैंने भावना में एक भावना का वरण किया है। मेरे लिए वह सम्बन्ध और सब संबंधों से बड़ा है ,जो पवित्र है ,कोमल है ,अनश्वर है।
यहाँ विलोम उपस्थित होता है ,उसके निम्न से द्वन्द की स्थिति सामने आती है। वह कहता है कि अम्बिका ! मल्लिका बहुत भोली है ,वह लोक जीवन के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानती है। वह नहीं चाहती है कि मैं इस घर में आऊं क्योंकि कालिदास नहीं चाहता है और कालिदास क्यों नहीं चाहता ? क्यों मेरी आँखों में उसे अपने ह्रदय का सत्य झाँकता दिखाई देता है। उसे उलझन होती है।
इस प्रकार प्रथम अंक के अंत तक प्रणय के त्रिकोणात्मक द्वन्द की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कालिदास और मल्लिका दोनों पवित्र प्रेम में बंधे हुए हैं। विलोम मल्लिका से विवाह करने के लिए प्रयत्नशील है।
दूसरे अंक में यह त्रिकोण टूटता हुआ दृष्टिगोचर होता है। मल्लिका को यह सूचना मिल जाती है कि उसके प्रेमी कालिदास का विवाह राजकन्या प्रियंगुमंजरी से हो गया है ,परन्तु वह विचलित नहीं होती है। उनके भावात्मक प्रेम में भी विराम नहीं पड़ता है। अम्बिका का निम्न कथन स्थिति को स्पष्ट कर देता है -
लो ,मेघदूत की पंक्तियाँ पढ़ो। इन्ही में न कहती थी ,उसके अंतर की कोमलता साकार हो उठी है। आज उस कोमलता का और भी साकार रूप देख दिया। "
मल्लिका का भावात्मक प्रेम
मल्लिका को उसके संकल्प से माँ की प्रताड़ना कालिदास का व्यवहार एवं विलोम के व्यंग कथन नहीं डिगा पाते हैं। परन्तु ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि मल्लिका को विलोम के समक्ष आत्म - समर्पण करने के लिए विवश होना पड़ता है। उसकी माँ की मृत्यु हो जाती है और उसके लिए दूसरा आश्रय नहीं रहता है। जीवन की भौतिक आवश्यकता उसके सामने विषम होकर खड़ी हो जाती है। अतः वह विवश होकर विलोम को आत्म समर्पण कर देती है। उसके विलोम से एक बच्ची भो हो जाती है। इतने पर भी वह कालिदास की ही रहती है। कालिदास के प्रत्यागमन पर वह शेष जीवन को अथ से प्रारंभ करना चाहती है। परन्तु परिस्थियाँ बदल चुकी है। कालिदास बच्ची को देखकर चौंक पड़ते हैं और उलटे पैरों उसके घर से चल पड़ते हैं। विलोम के निम्न कथन में प्रेम का त्रिकोण टूट जाता है -
'तुमने अब तक कालिदास के आतिथ्य का उपक्रम नहीं किया है। वर्षों के बाद एक अतिथि घर घर पर आये और उसका आतिथ्य न हो ? जानती हो कालिदास को इस प्रदेश के हरिन शावकों से कितना प्रेम है ? एक हरिन शावक इस घर में भी है। .... तुमने मल्लिका की बच्ची को नहीं देखा ? उसकी आँखें किसी हरिन शावक से कम सुन्दर नहीं है। "
कालिदास के चले जाने से प्रेम का त्रिकोण टूट जाता है। कालिदास का विवाह प्रियंगुमंजरी से हो चुका है और मल्लिका विलोम के साथ है। इस प्रकार नाटककार मोहन राकेश जी ने आषाढ़ का एक दिन नाटक में प्रेम का त्रिकोण स्थापित कर कथानक का विकास किया है ,परन्तु द्वन्द की स्थिति उभर कर सामने नहीं आने पाती है।
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