मीठी बोली का महत्व निबंध मीठी बोली का महत्व Mithi boli ka mahatva mithi boli ka mahatva essay in hindi hindi essay on importance of mellifluous speech
मीठी बोली का महत्व पर निबंध
मीठी बोली का महत्व निबंध मीठी बोली का महत्व मीठी वाणी का महत्व पर निबंध essay on Mithi boli ka mahatva mithi boli ka mahatva essay in hindi hindi essay on importance of mellifluous speech mithi boli ka mahatva nibandh in hindi - मधुर भाषी के मुख से निकले हुए एक एक शब्द पर सुनने वालों का जी लुभाता है। मीठे वचन कहने और सुनने वाले दोनों को शान्ति लाभ होता है। मृदुभाषी कभी क्रोध नहीं करता है ,कभी किसी से ईर्ष्या - द्वेष नहीं करता है। वह सबको स्नेह पूर्ण दृष्टि से देखता है। मधुरभाषी सदैव ध्यान रखता है कि -
रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो ना प्रीति।
काटे चाटै स्वान के, दोऊ भांति विपरीति।।
बड़े बड़े शास्त्रों का प्रहार वह काम नहीं कर सकता जो मनुष्य की कतुवानी कर देती है। शास्त्रों के घाव चिकित्सा से भर जाते हैं। पर वाणी के घावों की कोई चिकित्सा नहीं ,समय समय पर ऐसी पीड़ा उठती है कि मनुष्य तिलमिला जाता है। मधुरभाषी सदैव आदर का पात्र होता है और कटुभाषी समाज में निंदा का पात्र बनता है। वह अपने शत्रु ही बनाता है। किसी को मित्र नहीं बना सकता है। ऐसे कटुभाषियों के लिए ही कविवर रहीम ने कहा है -
खीरा सिर ते काटिए, मलियत नमक बनाय।
रहिमन करूए मुखन को, चहिअत इहै सजाय।।
मधुरभाषी विद्वान
जहाँ मधुरभाषी को विद्वान देवता की उपाधि देते हैं ,वहीँ कटुभाषी को राक्षस की। जहाँ मधुर भाषण अमृत है ,वहीँ कटु भाषण विष। जहाँ मधुर भाषण एक अमूल्य औषधि है ,वहीँ कटु भाषण एक जहरीला वाण कबीरदास जी ने लिखा है -
मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन है तीर।
श्रवण द्वार होइ संचरै, सालै सकल शरीर।।
रामचरितमानस ने धनुषयज्ञ के प्रसंग के प्रसंग में जब शिव धनुष के टूटने से परशुराम जी अति क्रोध प्रकट करते हैं ,तो लक्षमण जी व्यंग कटु वचन ही कहते हैं ,जिससे परशुराम और अधिक क्रोधित हो जाते हैं। पर श्रीराम विनम्र शब्दों में कहते हैं -
नाथ शंभु धनु भंजन हारा,
होईये कोऊ इक दास तुम्हारा।
क्या बेचारा कौवा किसी का कुछ लेता है यदि नहीं ,तो फिर लोग उसे आराम से घरों की छतों पर यह फिर मुंडेरों पर क्यों नहीं बैठने देते हैं। घृणा यहाँ तक बढ़ गयी है कि उसके दर्शन को भी अपशकुन समझा जाता है।
कागा का को धन हरे, कोयल का को देय ।
मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ।
प्रेम की मधुर पीड़ा
किसी शुभ काम से जाने से पहले लोग देख लिया करते हैं कि बाहर कौवा तो नहीं बैठा है। इसके विपरीत कोयल समाज को क्या देती है ? समाज इसकी बोली ,उसकी वाणी को शुभ और दर्शनों को प्रिय क्यों समझता है ? सोने के पिजड़ों में बंद होकर कोयल राज दरबार की शोभा बढ़ा सकती है। तो कौए को पिंजड़े में बंद होकर किसी झोपड़ी में चार - चाँद लगाने का भी अधिकार नहीं है। मधुर वाणी ऐसा वाण है जिससे मनुष्य के ह्रदय में घाव नहीं होता है ,अपितु प्रेम की मधुर पीड़ा उत्पन्न हो जाती है। यह वह अमृत है ,जिससे मृत प्राणों में जीवन का संचार हो उठता है। तुलसीदास जी ने कहा भी है -
तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर |
वशीकरण यह मंत्र है, तज दे वचन कठोर |
इसीलिए कहा जाता है कि हमें अपना चरित्र उज्जवल बनाने के लिए मृदु भाषी होना चाहिए तभी देश में एकता स्थापित कर सकते हैं। तभी विश्व बंधुत्व की भावना को आगे बढ़ा सकते हैं।
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