टिप्पणी टिप्पणी लेखन टिप्पणी का अर्थ टिप्पणी की विशेषता है टिप्पणी लेखन उदाहरण टिप्पणी का अर्थ टिप्पण और टिप्पणी में अंतर टिप्पणी का उद्देश्य कार्य
टिप्पणी का अर्थ स्वरूप विशेषताएं
टिप्पणी टिप्पणी लेखन टिप्पणी का अर्थ टिप्पणी की विशेषता है टिप्पणी लेखन उदाहरण टिप्पणी का अर्थ - टिप्पणी उन विवरणों ,विचारों और सुझाओं को कहा जाता है जो विचाराधीन पत्रादि के निस्तारण को सरल और सुबोध बनाने के लिए व्यवहार में लाये जाते हैं। टिप्पणी के ही अंतर्गत पूर्व पत्रों को संक्षेप ,निर्णयानुसार प्रश्नों का विवरण और विश्लेषण तथा तत्संबंधी कार्यवाही आदि का भी उल्लेख किया जाता है। अर्थात टिप्पणी का आशय उन बातों को संक्षिप्त ,स्पष्ट और तर्कसंगत रूप में प्रस्तुत करना है जिस पर निर्णय देना होता है। साथ में उन तथ्यों की ओर भी संकेत कर दिया जाता है जो निर्णय देने में सहायक सिद्ध होते हैं।
विचाराधीन पत्र के निस्तारण के लिए लिखी गयी अभ्युक्ति को टिप्पणी कहते हैं। टिप्पणी एक ऐसी लेखन कला है ,जिसमें अधिकारी की बौद्धिक कार्यक्षमता एवं सद्द निर्णय वृत्ति की परीक्षा हो जाती है। विचाराधीन विषय के पक्ष या विपक्ष में निस्तारण वृत्ति से लिखी गयी सूचना टिप्पणी नहीं कही जाती है।
टिप्पणी का स्वरूप
टिप्पणी का क्षेत्र कार्यालय है। कार्यलय चाहे सरकारी हो ,अर्ध सरकारी हो अथवा व्यापारिक संस्था का हो, टिप्पणी का प्रयोग क्षेत्र माना जाता है। व्यापारिक संस्थाओं में टिप्पणी का विशेष प्रचलन नहीं है ,किन्तु सरकारी कार्यालयों में टिप्पणी की स्थिति अपरिहार्य रूप में स्वीकार की जाती है। सरकारी सचिवालय तथा लोकसेवा आयोग के कार्यालय आदि के कार्यालय आदि में इसका विशेष प्रचलन है।
टिप्पण और टिप्पणी में अंतर
अंग्रेजी भाषा में टिप्पण के लिए Noting और टिप्पणी के लिए Note शब्द का प्रयोग होता है। भ्रमवश लोग दोनों को एक ही मान लेते हैं। जबकि दोनों का अर्थ स्पष्ट रूप से भिन्न है। Note का अर्थ विवरण और Noting का अर्थ टिप्पणी लेखन कार्य से है। इसी प्रकार हिंदी में भी टिप्पण और टिप्पणी में अंतर है। किसी भी विचाराधीन पत्रदिक के निपटाने की सुविधा के लिए उस पर जो अभ्युक्ति लिखी जाती है ,वे टिप्पणी कहलाती है और टिप्पणी लिखने की प्रक्रिया अथवा कला टिप्पणी कहलाती है।
टिप्पणी का उद्देश्य
सभ्यता के विकास के साथ साथ मानव जीवन की व्यस्तता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। समयाभाव की समस्या सभी के सामने रहती है जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पत्र व्यवहार अपरिहार्य हो गया है। सरकारी कार्यलयों में विशेष रूप से असंख्य पत्रों का आदान -प्रदान होता है। उन्ही पत्रों को कम समय और सरल विधि से निपटाने के लिए टिप्पणी की आवश्यकता होती है। पत्रों में वर्णित विषय से सम्बंधित प्रश्नों समस्याओं का विलेषण ,तत्संबंधित पूर्ण निर्णय तथा आवश्यक सुझाओं आदि का उल्लेख टिप्पणी में किया जाता है ,जिससे कम से कम समय में अधिक से अधिक पत्रों को निपटाया जा सके।
टिप्पणी का प्रस्तुतिकरण
प्रायः कार्यालय के किसी ज्येष्ठ लिपिक द्वारा प्रधान लिपिक के समक्ष टिप्पणी प्रस्तुत की जाती है। लिपिक सर्वप्रथम टिप्पणी की जाँच करता है और प्रस्ताव संलग्नों से मिलान करता है। यदि आवश्यक समझता है तो अपने सुझाव भी प्रस्तुत करता है। अन्यथा अपनी सहमति के साथ उसे वह अग्रसरित कर देता है तो अपने सुझाव भी प्रस्तुत करता है। इसके बाद प्रधान लिपिक पत्रबंध के साथ अपनी टिप्पणी सम्बंधित अधिकारी की सेवा में प्रस्तुत कर देता है।
अधिकारी के कार्य
प्रधान लिपिक द्वारा प्रस्तुत टिप्पणी को विभागीय अधिकारी भली प्रकार देखता है। तथ्यों के समर्थन में जो आदेश अथवा नियम प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत किये गए हैं उनका वह भली भाँती निरीक्षण करता है। यदि समस्या का समाधान उसी के आदेश से संभव होता है तो वह तत्काल उस पर अपना निर्णयात्मक आदेश लिख देता है अन्यथा उत्तराधिकारी से आदेश प्राप्त करने के लिए पत्रबंध को भेज देता है।
टिप्पणी लेखन के आवश्यक गुण
टिप्पणी लेखक में निम्नलिखित गुण अवश्य होने चाहिए -
- यदि टिप्पणी के लेखक को विचाराधीन विषय का पूर्ण ज्ञान होता है तो वह कुशलता के साथ टिप्पणी लिख देता है। अतः टिप्पणी लेखक को विषय का ज्ञान होना चाहिए।
- टिप्पणी लेखक को कुशाग्र बुद्धि का भी होना चाहिए। कुशाग्र बुद्धि होने से वह विषय के औचित्य को शीघ्र समझ लेता है। टिप्पणी लेखक को कार्यालय की परम्परों का पूर्ण बोध होना चाहिए ,इससे वह टिप्पणी को अधिक अभिप्रेषण बना सकता है और कार्यालय के अन्य लोग उसकी टिप्पणी को परंपरागत रूप से पाकर शीघ्र ही तात्पर्य समझ लेते हैं।
- टिप्पणी लेखक में पद के अनुसार विचाराधीन विषय पर उचित निर्देश या आदेश की क्षमता होनी चाहिए। उसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उसके निर्देश या आदेश का पालन हुआ है कि नहीं। टिप्पणी लेखक को अपने उच्च अधिकारियों के निर्देशों व आदेशों का पालन का ध्यान रखना चाहिए। टिप्पणी लिखते समय उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि उसकी टिप्पणी में कहीं उच्च अधिकारी के निर्देश या आदेश का उलंघन न हो।
- टिप्पणी लेखक को भाषा पर पूर्ण विचार रखना चाहिए जिससे वह विचाराधीन विषय के उपयुक्त भाषा में टिप्पणी लिख सके और उसकी टिप्पणी में अति व्याप्ति दोष न आ सके। उसे पूर्णतया तार्किक होना चाहिए ,टिप्पणी लिखते समय उसे विचाराधीन विषय पर तार्किक दृष्टि रखनी चाहिए। उससे उसकी टिप्पणी अकाट्य होती है।
यह तो केवल कार्यालयीन टिप्पणियों के बारे में है। ब्लॉग/लेख पर टिप्पणी, सड़क पर आवारा लोगों की टिप्पणी को आप कैसे पारिभाषित करेंगे?
जवाब देंहटाएंThank
जवाब देंहटाएं