उसकी मां कहानी पांडेय बेचन शर्मा उग्र उसकी मां कहानी का सारांश प्रमुख पात्र लाल जानकी का चरित्र चित्रण मूल संवेदना उद्देश्य पाठ के प्रश्न उत्तर अर्थ
उसकी मां कहानी - पांडेय बेचन शर्मा उग्र
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उसकी मां कहानी का सारांश
उसकी माँ पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र जी द्वारा रचित अत्यंत मार्मिक एवं क्रांतिकारी विचारों की कहानी है। इस कहानी में लेखक एक जमींदार है जिसके यहाँ एक दिन पुलिस आती है और अपनी पॉकेट से तस्वीर निकाल उसे दिखाती है। लेखक उस तस्वीर वाले का नाम लाल बताता है जो कि उन्ही के पड़ोस में रहता है। लाल के पिता का देहांत हुए सात -आठ वर्ष हो चुके हैं। अब उसके परिवार में उसकी माँ जानकी और वह ही बचे हैं। लाल के पिता लेखक के यहाँ मैनेजर थे जो कि समय समय पर कुछ पैसा लेखक के पास रखवा दिया करते थे। आजकल उनके परिवार का पालन - पोषण उन्ही के पैसों से हो रहा है। लाल के सम्बन्ध में यह जानकारी देकर लेखक पुलिस से इस छानबीन का कारण पूछता है तो वे केवल इतना बताते हैं कि वे सरकारी मामला है अतः इसके बारे में वे ज्यादा नहीं बता सकेंगे।
लेखक लाल के सम्बन्ध में बड़ा बेचैन होकर उसकी माँ के पास जाता है तथा यह बताता है कि अंग्रेज पुलिस आजकल लाल की पूछताछ कर रही है। लेखक लाल को समझाते है कि तुम्हारा यह समय पढ़ाई का है अतः पहले पढ़ाई का कर्म पूरा करने के बाद तथा अपना उद्धार करने के बाद ही सरकार के सुधार या विरोध का विचार करो। लेकिन लाल लेखक के जमींदारी रूप का विरोध कर उन्हें सच्चा राज भक्त और स्वयं को सच्चा राष्ट्रभक्त कहता है। उसका मानना है कि जो व्यक्ति ,समाज या राष्ट्र किसी अन्य व्यक्ति ,समाज या राष्ट्र के नाश पर जीता हो - उसका सर्वनाश होना चाहिए। इस सर्वनाश के लिए वह आवश्यकता पड़ने पर षड्यन्त्र ,विद्रोह एवं हत्या करने को भी तैयार है। ऐसे विचार सुन लेखक को लाल के सम्बन्ध में चिंता होने लगती है।
कुछ दिनों के बाद लेखक अपनी पत्नी और लाल की माँ के बीच चलती वार्तालाप को सुनता है। लाल की माँ लेखक को बताती है कि उसके बेटे की मित्र मण्डली नित्य प्रति उसके घर पर इक्कठी होती है। लाल के मित्रों में एक बंगड़ नाम का लड़का है जो कि बहुत तगड़ा और हँसमुख प्रवृत्ति का है। वह लाल की बूढ़ी माँ को भारत माता के रूप में मानता है। वह कहता है कि हे माँ सर तेरा हिमालय ,माथे की बड़ी रेखायें गंगा और यमुना नदी है ,नाक विंध्याचल पर्वत के समान है ,ठुड्डी कन्याकुमारी है ,छोटी बड़ी झुरियाँ पहाड़ और नदियाँ हैं। ऐसा कहकर वह मुझे भारत माता मानकर गले से लगा लेता है जिससे सब हँसने लगते हैं। इन्ही में एक लड़का उत्तेजित होकर अंग्रेजी परतंत्रता का विरोध करता ,दूसरी सरकारी प्रशासन प्रणाली को गाली देता जबकि एक अन्य मित्र प्रकृति प्रदत्त स्वतंत्रता छीनने वाले अंग्रेजी सत्ता का विरोध करता। इस प्रकार सभी सरकार के खिलाफ बातें करते और आपस में कुछ न कुछ रणनीति बनाने पर विचार करते रहते।
लेखक कुछ दिन के लिए कहीं से घूमकर आते हैं। इसी बीच उसे आते ही सूचना मिलती है कि लाल के यहाँ छापे मारे गए और तलाशी करने पर उसके यहाँ से पिस्तौल और कारतूस प्राप्त किया गया। लाल और उसके मित्रों को गिरफ्तार कर उनके विरुद्ध हत्या ,षड्यन्त्र ,सरकारी राज्य उलटने की चेष्टा का आरोप लगाया है। इन चारों पर मुकदमा चला। इनके विरुद्ध गुप्त समितियां निर्धारित की गयी। लेकिन इन लड़कों की पैरवी करने वाला कोई नहीं था। लाल की माँ ने बहुत कोशिश की लेकिन अंततः ऊँची अदालत ने लाल और बंगड़ समेत चारों मित्रों को फाँसी तथा अन्य दस को दस वर्ष से सात वर्ष की सजा सुनाई। लाल की माँ निराश अवश्य हो गयी थी लेकिन फिर भी वह जेल में जाकर उन बच्चों की सहायता करती है और उन्हें अच्छा भोजन देती है। लाल के पकड़े जाने के बाद से ही सभी लोग लाल की माँ से दूर रहने लगते हैं। यहाँ तक कि लेखक भी बड़ी सावधानी के साथ ही लाल की माँ से दूर रहने लगते हैं। यहाँ तक कि लेखक भी बड़ी सावधानी के साथ ही लाल की माँ से बात करता है। लेखक का मन लाल की माँ से जुड़ा हुआ था ,लेकिन पुलिस का ध्यान आते ही वह अपने कदम पीछे रख लेता।
एक दिन लाल की माँ लेखक की पत्नी के साथ उनके घर आती है। लाल की माँ के हाथ में एक पत्र था जिसमें लाल ने लिखा था कि माँ ,जिस दिन तुम्हे यह पत्र प्राप्त होगा उस दिन सुबह मेरा जीवन समाप्त हो चुका होगा। मैंने जानबूझकर तुम्हारे पीछे से मरना स्वीकार किया। मैं विधाता से यही प्रार्थना करता हूँ कि जन्म जन्मान्तर तक तुम ही मेरी माँ बनो। " पत्र समाप्त कर लेखक लाल की माँ को जडवत देखता है। लाल की माँ बिना कुछ कहे घर चली जाती है। कुछ दिन बाद लेखक को अपने नौकर से पता चलता है कि लाल के घर में ताला लगा हुआ है। लाल की माँ हाथ में पुत्र की चिट्ठी लिए दरवाजे पर मरी हुई है।
उसकी मां कहानी का प्रमुख पात्र लाल
लाल उसकी माँ कहानी का प्रमुख पात्र है जो कि स्वतंत्रता प्रेमी नवयुवक है। इसमें आक्रोश ,विद्रोह एवं क्रोध का भाव कूट कूट कर भरा हुआ है। लाल स्वतंत्रता प्रेमी ऐसे नवयुवकों का प्रतिनिधित्व कर रहा है जो सरकारी अत्याचार का विरोध कर क्रांति के मार्ग पर निकल पड़े हैं। लाल जैसे असंख्य युवा स्वतंत्रता आन्दोलन में कूदकर भारत माता को आजाद कराने के भाव मन में भरे रखते हैं। ऐसे युवा अपनी तनिक भी परवाह नहीं करते तथा भारत को माँ मान कर उनकी सेवा में निरस्त रहते हैं।
लाल के चरित्र का सबसे उज्जवल पक्ष उसके देशभक्ति के भाव में निहित में है। उसमें अपनी माँ के प्रति भी पूर्ण आदर भाव एवं स्नेह है ,इसी कारण फाँसी पर लटकने से पूर्व वह माँ से नहीं मिलता क्योंकि ऐसे समय में माँ से यह दृश्य देखा न जाता और पत्र के माध्यम से अपनी यही इच्छा रखता है कि उसे जन्म जन्मातर तक ऐसे ही माँ मिले। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी के पात्र लाल में बलिदानी ,देश प्रेमी ,माँ भक्त एवं विद्रोही देखी जा सकती है।
जानकी का चरित्र चित्रण
जानकी लाल की माँ है। वह अत्यंत सरल हृदया एवं कुशल गृहणी है। उसका संसार उसके बेटे तक की सीमित है। सादगी पर विश्वास रखने वाली जानकी अपना पूर्ण जीवन एवं उसका सुख दुःख अपने पुत्र पर ही न्योछावर कर देती है। जानकी के मन में पुत्र के प्रति समर्पण भाव के साथ साथ सरलता एवं सादगी भी है। वह मध्यम परिवार की कुशल गृहणी है जो वक्त बेवक्त पुत्र की मार्गदर्शन बनकर भी सामने आती है। लाल और उसके मित्र मंडली को देखकर वह सदैव प्रसन्न रहती है और उनकी देख भाल करती है। लेकिन इसके साथ साथ वह धर्मभीरु और थोड़ी बहुत अंधविश्वासी भी है। वह इतनी भोली है कि सभी की बातें तुरंत मान लेती है। उसका सहृदय मन को कष्ट में नहीं देख पाता है इसी कारण वह लाल के जेल जाने पर हवलदार के सम्मुख गिडगिडाती है। इतना ही नहीं बेटे के फाँसी झूलने पर वह इस दुःख को सह ही नहीं पाती है और अंततः प्राण त्याग देती है। जानकी के ऐसे उदार चरित्र का प्रभाव लेखक पर भी पड़ता है।
उसकी मां कहानी की मूल संवेदना उद्देश्य
स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष में अनेक नवयुवक सर पर कफ़न बाँधे सरकार से टकराने के लिए निकल पड़े थे। इस कहानी का लाल नामक पात्र एक ऐसा ही सिरफिरा नवयुवक है जो अपने स्वार्थ ,घर ,परिवार ,माँ आदि को पीछे छोड़कर भारत माँ को आजाद कराने और देश के भले के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हो जाता है। उसकी माँ सहृदय बन उसे समझाती भी है लेकिन वह देश की राह में कदम रख निरन्तर आगे बढ़ता जाता है। उसकी माँ कहानी हमें यही प्रेरणा देती है कि हमें भी घर परिवार से ऊपर राष्ट्र को मानना चाहिए तथा राष्ट्र पर विप्पति देखकर उस विप्पति को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार यह कहानी आज के नवयुवकों के प्रेरक बनती है और स्वस्थ मार्ग का निर्देशन करती है।
उसकी मां पाठ के प्रश्न उत्तर
प्र. पुलिस लाल के सम्बन्ध में पूछताछ क्यों कर रही है ?
उ. लाल विद्रोही प्रवृत्ति का युवक है। वह अंग्रेजी सत्ता और उनके अन्याय को समाप्त करना चाहता है। अतः वह एक मंडली बनाकर राजद्रोह की तैयारी में जुटा हुआ है। पुलिस को इस बात की भनक लग जाती है। अतः वे इस विद्रोह को समय से पूर्व दबाने के लिए पूछताछ शुरू कर देते हैं।
प्र. पुलिस की बात सुनकर लेखक क्या करता है ?
उ. पुलिस की बात सुनकर लेखक को बहुत आश्चर्य होता है। लेखक लाल का शुभचिंतक है। अतः उसे लाल के सम्बन्ध में चिंता होने लगती है। अतः वह लाल के घर जाकर पहले उसकी माँ से और बाद में स्वयं लाल से बातकर उसे समझाने की चेष्टा करता है।
प्र. लेखक ने जमींदार के रूप में किस वर्ग का परिचय दिया है ?
उ. लेखक ने जमींदार के रूप में एक ऐसे वर्ग का परिचय दिया है जिसकी दृष्टि में अपना घर ,परिवार ,पहचान ज्यादा महत्वपूर्ण है। वे समाज में अपनी प्रतिष्टा में भूखें हैं। वे राज भक्त हैं। उनके लिए अंग्रेजी सरकार श्रेष्ठ है क्योंकि उससे उन्हें मान सम्मान ,पहचान और रोजगार मिला। इनमें देशभक्ति की भावना तो है लेकिन राजभक्ति के कारण वे देश भक्ति व्यक्त करने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं। वस्तुतः ऐसे स्वार्थी लोगों ने भारत की गुलामी को लम्बा खींचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
प्र. लेखक लाल को क्या समझाता है ?
उ. लेखक सच्चा राज भक्त और जमींदारों का प्रतिनिधि पात्र है। स्वतंत्रता आन्दोलन के मार्ग पर चलते लाल को देख लेखक समझाते हुए कहता है कि साजिश ,विद्रोह आदि करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला। तुम्हारा काम पढ़ना है ,इसी में मन लगाओ। पढ़ लिखकर पहले कुछ बन जाओ ,उसके बाद देश को संवारते रहना। पहले अपना घर का ,खुद का उद्धार करो और उसके बाद सरकार के सुधार पर विचार शुरू करना।
प्र. जानकी के बेटे लाल और उसके मित्रों को क्या सजा सुनाई गयी और क्यों ?
उ. जानकी के बेटे लाल और उसके मित्रों को षड्यन्त्र करने ,राजद्रोह करने तथा सरकार के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए गिरफ्तार किया गया। पूरी अंग्रेजी सत्ता उनके खिलाफ थी ,अतः कोई वकील उनके बचाव पक्ष में आगे न आ सका। परिणामस्वरूप अंग्रेजी सत्ता ने बागियों की आवाज को हमेशा के लिए दबाने के लिए तथा अवथा डर लोगों ने बिठाने के लिए लाल और उसके मित्रों को फाँसी की सजा सुनाई।
प्र. लाल ने अपनी माँ को पत्र कब और क्या लिखा ?
उ. लाल ने अपनी माँ को पत्र अपनी फाँसी से पूर्व ही लिखा था लेकिन वह उसकी माँ के पास फाँसी के बाद पहुँचा। उस पत्र में लिखा हुआ था कि जिस दिन तुम्हे यह पत्र मिलेगा उस दिन सुबह सवेरे मुझे फाँसी हो चुकी होगी। मैं चाहता तो अंत समय तुमसे मिल सकता था मगर उससे क्या फायदा ? मुझे विश्वास है तुम मेरी जन्म जन्मान्तर की जननी हो ,रहोगी। मैं तुमसे दूर थोड़े जा सकता है। जब तक पवन साँस लेता रहेगा ,सूर्य चमकता है ,समुन्द्र लहराता रहेगा ,तब तक मुझे तुम्हारी करुणामयी गोद से कोई दूर नहीं कर सकता है।
प्र. लाल के पत्र का जानकी पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उ.लाल के पत्र पढ़कर जानकी पत्थर के समान हो जाती है। उसके चेहरे पर मृत्यु सी शान्ति दिखलाई देती है। इसी जड़वत अवस्था में पुत्र के वियोग को वह सह नहीं पाती है और अंततः वह भी अपने प्राण त्याग पुत्र प्रेम का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है।
उसकी माँ कहानी के कठिन शब्द अर्थ
मुग्ध - मोहित
दिवाकर - सूर्य
सकपकाया - चकित होना
बगावत - विद्रोह
मर्दक - दबाने वाले
विभूति - वैभव
दिक्कत - कष्ट में
अवाक - चकित
जीर्ण - कमजोर ,फूटा हुआ
आततायी - अत्याचारी
Ya parsan nahi h
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