शिवानी की अपराजिता कहानी

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अपराजिता कहानी


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शिवानी की कहानी अपराजिता का सारांश

अपराजिता कहानी शिवानी जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है। अपराजिता कहानी में एक ऐसी महिला का वर्णन किया गया है जिसमें अद्भुत धैर्य ,दृढ इच्छा शक्ति और निरंतर साधना का बल था। उसने इसी विशेषता के कारण अपनी विकलांगता पर विजय पा ली थी। 

दूसरों की विपत्ति की तुलना में हमारी विपत्ति चाहे कितनी भी कम क्यों न हो ,परन्तु फिर भी हम विधाता को अवश्य दोषी ठहराते हैं। प्रस्तुत पाठ में लेखिका ने ऐसी दो पीड़ित व्यक्तियों का सच्चा वर्णन किया है ,जिनमें एक लड़की के आधे निचले शरीर में लकवा मार गया है ,फिर भी उसका मनोबल ,साहस और सफलता उल्लेखनीय है ,जबकि दूसरा एक लड़का केवल एक हाथ कट जाने पर ही जीवन से निराश हो बैठा। 

शिवानी की अपराजिता कहानी
चंद्रा जब डेढ़ वर्ष की थी ,तो उसे गर्दन से नीचे पूरे शरीर में पोलियो हो गया। एक वर्ष के कष्टसाध्य उपचार के बाद उसकी कमर से ऊपर के भाग में गति आ गयी। जब वह पाँच वर्ष की हो गयी तो चंद्रा की माँ ने स्वयं ही उसे घर में पढ़ाना शुरू कर दिया। वह बड़ी बुद्धिमती निकली। बहुत प्रयत्न ,अनुनय -विनय तथा आश्वासन के बाद उसे बेंगलूर के माउन्ट कारमेल में प्रवेश मिल गया। व्हील चेयर पर बैठाकर स्कूल तथा कक्षा में उसकी माँ उसे इधर से उधर से ले जाती थी। चंद्रा में प्राणीशास्त्र में एमएस.सी. में प्रथम स्थान प्राप्त किया और बेंगलूर के प्रसिद्ध संस्थान में अपने लिए स्पेशल सीट प्राप्त की। केवल अपनी  निष्ठां ,धैर्य एवं साहस से पाँच वर्ष तक उसे प्रोफ़ेसर सेठना के निर्देशन में शोध कार्य किया। उसके माता-पिता ने पेन्सिल वानिया से उसके लिए व्हील चेयर मँगवा दी। इसे डॉ.चंद्रा स्वयं चलाती हुई पूरी प्रयोगशाला में सुगमता से घूम सकती है। 

इतना ही नहीं डॉ.चंद्रा बचपन से ही कविता लिखने लगी। उन्होंने कढ़ाई - बुनाई में भी योग्यता प्राप्त कर ली। जर्मन भाषा में डॉ.चंद्रा और उनकी माता ने मैक्समूलर भवन से परीक्षा देकर विशेष प्राप्त की। गर्ल गाइड में राष्ट्रपति का स्वर्ण कार्ड प्राप्त करने वाली वह प्रथम अपंग बालिका थी। भारतीय तथा पाश्चात्य संगीत दोनों में उनकी समान रूचि है। 
इसी की तुलना लेखिका ने उस युवक से भी की है जो सिविल सेवा की परीक्षा देने इलाहाबाद गया था। चलती ट्रेन पर चढ़ने के प्रयास में वह गिरा और पहिये के नीचे आ जाने से उसका दायाँ हाथ कट गया। इस घटना से वह मानसिक संतुलन खो बैठा। वह दुःख भुलाने के लिए नशे की गोलियाँ खाने लगा। इस प्रकार केवल एक हाथ खोकर ही उसने हथियार डाल दिए। डॉ.चंद्रा को आत्म-विश्वास ,अदम्य ,उत्साह ,प्रतिपल जीने की भरपूर इच्छा और महत्व कांक्षा ने सफलता की कितनी ऊँची सीढ़ीयों तक पहुंचा दिया ,इस बात की प्रेरणा उस युवक को इस लड़की के जीवन से लेनी चाहिए ,जो अपंग होते हुए भी आई.आई.टी. मद्रास में काम कर रही है।
 

अपराजिता कहानी के प्रश्न उत्तर

प्र. लेखिका ने जब पहली बार डॉ.चंद्रा को कार से उतरते देखा तो आश्चर्य से क्यों देखती रह गयी ?
उ. लेखिका ने जब पहली बार डॉ.चंद्रा को कार से उतरते देखा तो वह आश्चर्य से उसे देखती रह गयी क्यों डॉ.चंद्रा की काया का निचला धड़ निर्जीव प्राय था ,फिर भी वह बड़ी दक्षता से कार से नीचे उतरकर व्हील चेयर में बैठ गयी और उसे स्वयं चलाती हुई कोठी के भीतर चली गयी। उसके चेहरे पर किसी प्रकार की कोई शिकन नहीं थी। 

शिवानी लेखिका
प्र. चिकित्सा क्षेत्र की हानि विज्ञान का लाभ कैसे बन गयी ?
उ. डॉ. चंद्रा बचपन में ही पक्षाघात से पीड़ित हो गयी थी। अतः उन्हें इच्छा होते हुए भी और परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने पर भी मेडिकल में प्रवेश नहीं मिला। कहा गया है कि निचला धड़ निर्जीव होने के कारण वे सफल चिकित्सक नहीं बन सकती है। डॉ.चंद्रा ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने प्राणीशास्र में परास्नातक में प्रथम स्थान प्राप्त किया और बेंगलूर के प्रख्यात संस्थान में अपने लिए स्पेशल सीट प्राप्त की। उन्होंने प्रोफ़ेसर सेठना के निर्देशन में शोधकार्य किया और विज्ञान के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किया। 

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि डॉ. चंद्रा को मेडिकल में प्रवेश न मिलने से चिकित्सा क्षेत्र को हानि हुई। यदि उन्हें मेडिकल में प्रवेश मिल जाता तो वे उस क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का परिचय देती। इससे चिकित्सा क्षेत्र को तो हानि हुई ,पर उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर उसे लाभ पहुँचाया।इस प्रकार चिकित्सा की हानि विज्ञान का लाभ बन गयी। 

प्र.डॉ.चंद्रा ने विज्ञान के अतिरिक्त और किन किन क्षेत्रों में उपलब्धियाँ प्राप्त की ?
उ. डॉ.चंद्रा ने विज्ञान के अतिरिक्त काव्य क्षेत्र और कढ़ाई - बुनाई में भी विशेष उपलब्धि प्राप्त की थी। उन्होंने मैक्समूलर भवन से जर्मन भाषा में विशेष योग्यता सहित परीक्षा उत्तीर्ण की थी। गर्ल गाईड में राष्ट्रपति का स्वर्ण कार्ड प्राप्त करने वाली वह पहली अपंग बालिका थी। भारतीय और पाश्चात्य संगीत दोनों में उनकी समान रूचि थी। 
इस प्रकार डॉ.चंद्रा ने विज्ञान के अतिरिक्त अनेक अन्य क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था। 

प्र। 'वीर जननी' पुरस्कार किसे और क्यों दिया गया? 
उत्तर : 'वीर जननी' पुरस्कार डॉ० चंद्रा की माता शारदा सुब्रह्मण्यम को दिया गया। डॉ० चंद्रा के लिए उनके माँ के भी भीतर अगाध स्नेह और लगाव था, जिसके कारण उन्होंने अपंग बेटी की सफलता के लिए अपने दिन-रात एक कर दिये। उन्होंने अपने जीवन के सारे सुखों को त्याग कर अपनी पुत्री के व्हील चेयर के पीछे-पीछे कभी कक्षाओं में तो कभी घर में घूमना पड़ा। उनके दाखिले से लेकर शिक्षा और जीवन के हर क्षेत्र में डॉ० चंद्रा की हर संभव सहायता की। कभी भी बेटी की अपंगता उन्हें बोझ नहीं लगी, इसलिए उन्होंने चंद्रा के सपनों को करने के लिए अपनी आकांक्षाओं की बलि चढ़ा दी। इन्हीं कारणों से उन्हें यह विशिष्ट पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
 
प्र। डॉ० चंद्रा के विषय में उनके प्रोफेसर के क्या विचार थे? 
उत्तर : डॉ० चंद्रा के प्रोफेसर के अनुसार डॉ० चंद्रा ने विज्ञान की उन्नति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनके प्रोफेसर के विचार से डॉ० चंद्रा बहुत ही परिश्रमी और लगन की पक्की थी। उन्होंने अपने मेहनत के बल अपनी अपंगता के बावजूद विज्ञान को आगे ले जाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
 
प्र। लेखिका अपनी यह रचना किसे और क्यों पढ़ने के लिए कह रही है? 
उत्तर : लेखिका अपनी यह रचना लखनऊ के मेधावी युवक को पढ़ाना चाहती है। यह युवक आई०ए०एस० की परीक्षा देने इलाहाबाद गया था, जहाँ एक ट्रेन दुर्घटना में अपनी एक हाथ गँवा देनी पड़ी। उसके मन में अपने कैरियर और भविष्य के लिए ऊँचे सपने थे। लेकिन इस दुर्घटना के बाद उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया और वह निराशा के गर्त में कुछ ऐसे गिरा कि उसे नशे की गोलियों की लत पड़ गई। इसके विपरीत डॉ० चंद्रा ने अपंगता के बावजूद केवल अपनी इच्छा-शक्ति के बल पर अपने सपनों को पूरा किया। शायद यह अध्याय उस युवक को भी अपनी वर्तमान स्थिति से उबरने के लिए प्रेरित करे, इसी उद्देश्य से लेखिका उस युवक को यह रचना पढ़ाना चाहती हैं। 

प्र। डॉ० चंद्रा का संक्षिप्त चरित्र-चित्रण लिखिए। 
उत्तर : डॉ० चंद्रा शारीरिक रूप से अक्षम थी, इसके बावजूद उनके भीतर कुछ ऐसे गुण विद्यमान थे, जिनके दम पर उन्होंने सफल पर उन्होंने सफलता की ऊँचाइयों को स्पर्श किया, जिन्हें निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है- 
  • डॉ० चंद्रा इच्छाशक्ति की धनी थी, जिसके कारण उन्होंने अपने मुकाम को हासिल किया। 
  • उनका व्यक्तित्व साहस से परिपूर्ण था। यही कारण है कि वे कभी भी बाधाओं से डरी नहीं और उनका डटकर सामना किया। 
  • परिश्रम ही डॉ० चंद्रा का मूल कर्तव्य था, जिसके बल पर उन्होंने अपने शिक्षाकाल में हमेशा प्रथम स्थान प्राप्त किया। कठिन परिश्रम के द्वारा ही पाँच वर्ष में पी०एच डी० भी पूरा किया। 
  • डॉ० चंद्रा के सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास ने उन्हें वह शक्ति प्रदान की जिसके बल पर उन्होंने अपनी अपंगता को भी हरा दिया। 
  • इसके अलावा व्यक्तित्व की दृढ़ता और लगन ने उन्हें हर वक्त जागरुक रखा, जिससे विज्ञान के साथ ही भाषा, हस्तकला, काव्य और संगीत में भी उन्होंने महारथ हासिल की।
 
प्र। “चिकित्सा ने जो खोया, वह विज्ञान ने पाया” – उक्त गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : डॉ० चंद्रा एक मेधावी छात्रा थीं जो मेडिकल साइंस में अपना कैरियर बनाना चाहती थी। शल्य-चिकित्सा में 
एक मुकाम प्राप्त करना उनका उद्देश्य था । लेकिन अपंगता के कारण उन्हें मेडिकल में प्रवेश नहीं मिला। जिसके बावजूद वह हताश नहीं हुई, बल्कि उसने माइक्रोबायलॉजी का अध्ययन आरंभ किया। इसी विषय में उसने पी०एच डी० किया तथा विज्ञान की उन्नति में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। अगर मेडिकल में उसका दाखिला हो गया होता तो उसकी प्रतिभा से शल्य-चिकित्सा का क्षेत्र लाभान्वित होता, लेकिन वह लाभ विज्ञान को प्राप्त हुआ । 

प्र. डॉ. चंद्रा की कविताएँ देखकर लेखिका की आँखें क्यों भर आई ?
उ. जब लेखिका ने डॉ.चंद्रा द्वारा लिखी कविताएँ देखी ,तो उसकी आँखें भर आई। इसका कारण यह था कि डॉ.चंद्रा की कविताओं में उनके मन की व्यथा साफ़ झलकती थी। यद्यपि डॉ.चंद्रा अभिशप्त होते हुए भी कभी अपने चेहरे पर उदासी नहीं आने देती थी ,पर उनके मन का दुःख इन कविताओं में प्रकट हो रहा था। इसीलिए उन कविताओं को देखकर लेखिका की आँखों में आँसू आ गए। 


अपराजिता शिवानी कहानी के कठिन शब्द अर्थ 

अपराजिता - जो कभी न हारी हो। 
विधाता - भाग्य का देवता 
विलक्षण - अजीब 
व्यक्तित्व - किसी व्यक्ति में दूसरों को प्रभावित करने वाला गुण 
काया - शरीर 
नतमस्तक - सर झुककर 
निर्जीव - मरा हुआ। 
बित्ते भर की - छोटी सी 
मेधावी - बुद्धिमान 
नियति - भाग्य 
कष्टसाध्य - कष्ट से पूरा होने वाला 
भव्य - महान 
क्षत - विक्षत 
आभामंडित - चमक से भरा हुआ 
पाश्चात्य - पच्शिम के देशों का 

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