कलम की आत्मकथा पर हिंदी निबंध Autobiography of Pen in Hindi कलम की आत्मकथा हिंदी निबंध Kalam ki aatmkatha per nibandh biography of a pen essay in Hind
कलम की आत्मकथा पर हिंदी निबंध
कलम की आत्मकथा कलम की आत्मकथा पर निबंध कलम की आत्मकथा हिंदी निबंध Kalam ki aatmkatha per nibandh हिंदी निबंध कलम की आत्मकथा biography of a pain in Hindi biography of a pen essay in Hindi autobiography of pen - मैं कलम हूँ। मेरा यह नाम अरबी भाषा से लिया गया है। संस्कृत में मेरा नाम लेखनी है। मैं लिखने में प्रयोग होती हूँ। यद्यपि मेरा आकार बहुत ही छोटा है ,परन्तु इतिहास इस बात का साक्षी है कि मेरे द्वारा अनेक महान कार्य हुए हैं। आंदोलनों में मेरी भूमिका अग्रणी रही है। राजनितिक उथल -पुथल का आधार मैं ही हूँ। विश्व के क्षितिज पर उमड़ने -घुमड़ने वाले काले -काले बादलों को मैंने शांति एवं प्रेम का प्रतीक बनाया है। विद्वानों के मन में आदिकाल से यह प्रश्न उठता रहा है कि कलम बड़ी है या तलवार। " यदि हम इतिहास का गहन अध्ययन करें तो यह सत्य प्रतीत होता है कि कलम के सामने तलवार बौनी एवं क्षीण है ,कलम अजेय है। इसकी शक्ति अपरमित है।
कलम का इतिहास
जैसे जैसे मानव सभ्यता का विकास हुआ ,मानव ने बोलना सीखा। मानव जब बोलने लगा तो भाषा का विकास हुआ। वह भाषा के माध्यम से अपने विचार एक दूसरे के सामने आसानी से प्रकट कर देता ,किन्तु बोली हुई बात स्मरण रखना कठिन होता है। इसीलिए मानव को मेरी आवश्यकता प्रतीत हुई। मानव की इसी आवश्यकता ने मुझे जन्म दिया। स्याही के अस्तित्व में आने के बाद मनुष्य ने पेड़ों की छालों ,पत्तों तथा कागज़ के पृष्ठों पर मेरे सहयोग से बहुत कुछ लिखा। लेखकों ,कवियों ,न्यायधीशों ,वकीलों ,पत्रकारों ,आलोचकों तथा समाज सुधारकों के हाथ ,मुझे धारण करते ही सुशोभित हुए हैं। मेरे द्वारा ही उनकी प्रतिभा का यथार्थ अंकन हुआ है।
कलम का वर्तमान रूप
आज विज्ञान ने अत्याधिक उन्नति कर ली है। आज मेरा विकास अनेक रूपों में हुआ है। अब मुझे प्रयोग करते समय बार -बार स्याही में डुबोना नहीं पड़ता है। अब एक बार स्याही भर देने पर मैं बहुत दिनों तक प्रयोग में लायी जा सकती हूँ। मेरे इस रूप को फाउनटेन पेन कहा जाता है। इसके अतिरिक्त मैं बाल पेन के नाम से भी जानी जाती हूँ। अब मेरे निर्माण के कई कारखाने हैं। जहाँ मशीनों के द्वारा मुझे बनाया जाता है।
मैंने शताब्दियों के मानव ज्ञान को अंकित एवं संचित किया है। लेखों पुस्तकों तथा समाचार पत्रों के पीछे मेरी ही मेहनत रंग ला रही है। मैं न्यायाधीश के हाथों में पहुँचकर अपराधी को दंड दिलाती हूँ तथा निर्देशों के जीवन की रक्षा करती हूँ। छात्रों को उनकी परीक्षाओं में भरपूर सहयोग देती हूँ। विद्वानों एवं समाज सुधारकों ने भी मेरा पूर्ण उपयोग किया है।
मैं राग द्वेष के चक्कर से दूर हूँ। बालकों को लिखना पढ़ना मैं ही सिखाती हूँ। व्यापारी ,लेखक ,जज ,कवि तथा शिक्षक सभी मुझे अपने पास रखते हैं। मुझे किसी का भी कार्य करने में तनिक भी संकोच नहीं होता है। डाक्टरों के हाथों में पहुँचकर नुक्से मैं ही लिखवाती हूँ। जिसने बहुत से रोगियों को जीवनदान मिलता है। कवियों की कल्पना एवं भावना को मैं ही पाठकों तक पहुँचाती हूँ।
कलम का महत्व
यदि मेरा जन्म न हुआ होता तो अमूल्य साहित्य की रचना नहीं होती। कला,दर्शन ,इतिहास ,अर्थशास्त्र,विज्ञान आदि के क्षेत्र में शोध एवं अन्वेषण अधूरा ही रह जाता है। समाज में शायद ही कोई ऐसा हो जो मुझे नहीं चाहता हो। चाहे वह आदि कवि बाल्मीकि हों अथवा वर्तमान काल के साहित्यकार। मुझे सबके साथ कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त है।
मेरे द्वारा जनहितकारी साहित्य रचा गया है। मैंने समाज का भरपूर मनोरंजन किया है। देश के नौजवानों के मन में देशहित की भावना को जगाया है। मैं दिन रात कार्य में लगे रहने पर भी किसी से कोई आशा नहीं रखती हूँ।
मुझे इस बात का गर्व है कि मैं मानव समाज का सच्चे अर्थ में हित करती हूँ। मेरे मन में द्वेष ,जलन अथवा अहंकार की भावना के लिए तनिक भी स्थान नहीं है। मेरी तो यही मनोकामना है कि मैं समाज का हित साधन करने में निरंतर जुटी रहूँ। मानव के उन्नति पथ में जो रुकावटें हो ,उन्हें दूर करती रहूँ। मेरी प्रार्थना है कि समाज सुखी तथा संपन्न हो ,कोई दुःख का भागी न हो -
सुखी बसे संसार सब दुखिया रहे न कोय,
यह अभिलाषा हम सब की , भगवन पूरी होय।
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